राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : मंदिर में गंदे नोट क्यों घुसने दिए जाएं?
01-Oct-2022 3:58 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : मंदिर में गंदे नोट क्यों घुसने दिए जाएं?

मंदिर में गंदे नोट क्यों घुसने दिए जाएं?

अभी एक चतुर लेखक ने सोशल मीडिया पर लिखा कि हिन्दुस्तानी नोट कसाईखाने से लेकर शराबखाने तक कई किस्म की जगहों पर जाते हैं, और धार्मिक हिसाब से अशुद्ध हो चुके रहते हैं, इसलिए मंदिरों में नोट चढ़ाने पर रोक लगानी चाहिए ताकि देवी-देवताओं को अपवित्र होने से बचाया जा सके। इस सलाह पर धर्म को मानने वाले लोग बड़ी रफ्तार से विचलित हो गए, और यह डर लगने लगा कि बिना दान के नोटों के भला मंदिर चलेंगे कैसे? फिर कुछ लोगों ने तेजी से मंदिरों में डिजिटल भुगतान वाले निशान लगा दिए कि लोग अपने मोबाइल फोन से ही भुगतान कर सकें, और नोटों की बात ही न आए। लेकिन इसके साथ भी दिक्कत थी, क्योंकि भक्त तो पढ़े-अनपढ़ सभी तरह के रहते हैं, और बहुत से लोग मोबाइल फोन से भुगतान नहीं जानते हैं। ऐसे में देवी-देवता और उनके पुजारी-एजेंटों का तो बड़ा नुकसान हो जाएगा। तिरुपति जैसे मंदिर में तो हर दिन करोड़ों रूपये नगद आते हैं, वहां के दानदाता अगर सोशल मीडिया पढक़र भडक़ जाएंगे, तब तो धर्म का बड़ा ही नुकसान हो जाएगा। फिलहाल यह भी सोचने की बात है कि लोग थूक लगाकर नोट गिनते हैं, बीमार-भिखारियों के हाथों में ऐसे नोट जाते हैं, कई लोग नोट को मोडक़र उससे दांत भी साफ कर लेते हैं, कई लोग नोट को लपेटकर उससे कान साफ कर लेते हैं, और ऐसे सारे नोट मंदिरों और दूसरे धर्मस्थानों पर पहुंचते हैं। अब ऐसी गंदगी को तो चढऩे से रोकना ही चाहिए, और ईश्वर की अपनी तो कोई जरूरत होती नहीं है, इसलिए सभी धर्मस्थानों पर नोटों का दाखिला बंद किया जाना चाहिए। बस्तर के एक पत्रकार रानू तिवारी ने एक मंदिर की यह फोटो पोस्ट की है।

70 वर्ष की आयु 50 वर्ष की नौकरी

है न आश्चर्य किंतु सत्य। यह छत्तीसगढ़ में ही संभव है। ऐसा नहीं है इन साहब की योग्यता अनुभव में कमी हो। इसी प्लस प्वाइंट की वजह से सरकार है कि इन्हें सेवा निवृत्ति नहीं करना चाहिए। इसीलिए तो संविदा नियुक्ति का नया रास्ता इस्तेमाल किया जाता है। मंत्रालय शाखा का हिसाब-किताब रखने वाले विभाग के साहब हैं ये। 43 साल की अधिकारिक सेवा के बाद बीते 20 वर्षों से लगातार संविदा पर कार्य कर रहे हैं। यानी नौकरी का आधा समय संविदा में काट चुके हैं। अब जाकर साहब रियल में सेवानिवृत्त होना चाह रहे हैं। तो विभाग के पास कोई सब्सिट्यूट नहीं है। यानी तय है फिर पांच वर्ष संविदा के। ऐसा नहीं है कि संविदा में ये अकेले हैं, ऐसे कई और साहेबान हैं। नारडा में भी जय-वीरू की एक और जोड़ी है। इन्हें भी 10 वर्ष हो गए है, संविदा में दोस्ती निभाते-निभाते।

चमक एक दिन रही

दो दिन पहले जब दिग्विजय सिंह के कांग्रेसाध्यक्ष का चुनाव लडऩे की बात सामने आ रही थी, तो छत्तीसगढ़ के बहुत से नेता बहुत खुश थे। कांग्रेस के प्रदेश कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल इसलिए खुश थे कि ऐसे अध्यक्ष आ सकते हैं जिनसे उनका पहले से कोष का कामकाज चलते रहा हो। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी जाहिर तौर पर खुश रहे होंगे क्योंकि उन्होंने दिग्विजय सिंह के साथ काम किया हुआ है। और चरणदास महंत भी खुश हुए होंगे क्योंकि महंत और भूपेश दोनों को पहली बार मंत्री दिग्विजय ने ही बनाया था। यह एक अलग बात है कि दिग्विजय का नाम एक धूमकेतु की तरह आया, और एक दिन के भीतर खत्म हो गया। अभी यह भी राज उजागर नहीं हुआ है कि वे गंभीर उम्मीदवार थे, या किसी रणनीति के तहत उनका नाम उछाला गया था। लेकिन उनका नाम सामने आने से ही छत्तीसगढ़ में बहुत से चेहरे चमक गए थे।

आस्था को मौका मिलने वाला है

हिंदुस्तान के सबसे लोकप्रिय टीवी सीरियल रामायण में राम की भूमिका करने वाले अभिनेता अरुण गोविल को जगह-जगह ऐसी असुविधा झेलनी पड़ती है। जब उम्र में उनसे बड़े लोग भी एयरपोर्ट या दूसरी सार्वजनिक जगहों पर उनके पैरों पर गिर पड़ते हैं, और उन्हें भगवान राम की तरह निहारने लगते हैं, तो वे समझ नहीं पाते कि वे क्या करें। वे लोगों को रोकते रह जाते हैं लेकिन लोग हैं कि पाँव पड़े रहते हैं। यह वीडियो अभी पोस्ट किया गया है और एक एयरपोर्ट का है। अब अरुण गोविल सीरियल में धर्मपत्नी माता सीता (दीपिका चिखलिया) के साथ दशहरे पर रायपुर पहुंचने वाले हैं और उस दिन लोग अपनी आस्था और अधिक पूरी कर सकते हैं।

मैनकाइंड का गरबा संदेश

छत्तीसगढ़ में नवरात्रि पर दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना का कल्चर पश्चिम बंगाल से आया। पहले मुंबई हावड़ा रूट पर पडऩे वाले शहरों में प्रतिमाएं रखने की शुरुआत हुई। इस मार्ग के तमाम शहरों में, रायगढ़ से लेकर राजनांदगांव तक बंगाली समुदाय पारंपरिक रूप से देवी की प्रतिमा 9 दिन  के लिए ही स्थापित करता है। पर स्थानीय लोगों ने इसे अपनाया तो धीरे-धीरे दिन घटे और सजावट बढ़ गई। पंचमी के दिन प्रतिमा स्थापित होती है जिसे दशहरा के बाद विसर्जित किया जाता है। इसके बाद गुजरात से गरबा आया। छत्तीसगढ़ में गरबा लोकप्रिय हुआ तो गुजराती समाज से बाहर भी स्थानीय संस्थाओं के आयोजन होने लगे। डांडिया का अभ्यास करना, बॉलीवुड सिलेब्रिटीज़ के साथ देर रात तक नृत्य करना अब स्टेटस सिंबल है। आपके पास डांडिया पास है, मतलब आप विशिष्ट हैं। कार्यक्रम आध्यात्मिक कम, इवेंट ज्यादा हो गए हैं। यह होर्डिंग संभवत: गुजरात की है, जहां मैनकाइंड ने गरबा की शुभकामनाएं दी हैं।   

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