राजपथ - जनपथ
मीडिया और अफसर
छत्तीसगढ़ में पुलिस और दूसरे सरकारी विभाग बड़े दिलचस्प तरीकों से काम कर रहे हैं। राज्य के एक विभाग के अफसरों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए खबरें किसी न्यूजपोर्टल ने पोस्ट कीं, तो उस विभाग ने उस पोर्टल के संपादक-प्रकाशक को नोटिस भेजकर बुलवाया, और उससे आरोपों के सुबूत मांगे। बाद में पुलिस और जनसंपर्क विभाग के अफसरों की एक कमेटी ने इस न्यूजपोर्टल की खबरों को फेक घोषित कर दिया। मजे की बात यह भी है कि इस कमेटी में दो पत्रकार भी रखे गए हैं, लेकिन उनके रहते भी भ्रष्टाचार के आरोपों की खबरों को फेक घोषित किया गया, जबकि यह कमेटी सोशल मीडिया पर निगरानी रखने के लिए बनी थी। इसके बाद दो पत्रकारों में से एक पत्रकार के इस्तीफा दे देने की भी खबर है।
अब बस्तर से एक नई खबर निकलकर आई है कि वहां पर नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में पुलिस ने चार पत्रकारों को नोटिस देकर बयान देने के लिए बुलाया है, और कहा है कि पशु चिकित्सा विभाग के एक अफसर ने इन पत्रकारों के खिलाफ शिकायत की है कि वे अनर्गल बयान और तथ्यहीन मुद्दे प्रकाशित करके शासन की छवि धूमिल कर रहे हैं, और मानसिक रूप से प्रताडि़त कर रहे हैं।
अब सवाल यह उठता है कि किसी सरकारी विभाग के भ्रष्टाचार की खबरें छापने या पोस्ट करने, या कहीं दिखाने से अगर किसी अफसर को मानसिक प्रताडऩा हो रही है, तो क्या यह पुलिस की दखल का मामला बनता है? राज्य स्तर की फेक न्यूज कमेटी से लेकर दंतेवाड़ा एसपी ऑफिस तक जगह-जगह सरकारी लोग अपने अधिकार क्षेत्र को लेकर गलतफहमी या खुशफहमी के शिकार दिख रहे हैं। अगर अच्छे या बुरे, कैसे भी मीडिया से जूझने के लिए विभाग खुद नोटिस भेजकर जांच के लिए बुलाते हैं, या पुलिस बुलाती है, तो फिर मानहानि के कानून की जरूरत कहां रह जाती है? किसी अदालत में ऐसी दखल दो पेशी भी खड़ी नहीं रह पाएगी।
धर्म और राजनीति
विधानसभा चुनाव में सालभर बाकी रह गए हैं। ऐसे में त्यौहार, और अन्य धार्मिक कार्यक्रमों में राजनीतिक चर्चाएं हो जाती हैं। पिछले दिनों सीएम भूपेश बघेल पुरानी बस्ती स्थित महामाया मंदिर दर्शन के लिए पहुंचे, तो मंदिर के ट्रस्टी, और पुराने कर्मचारी नेता को देखकर रूक गए। उनसे हल्के-फुल्के अंदाज में कहा बताते हैं कि आम आदमी पार्टी काबर जाइन कर लेस, इहां आम आदमी पार्टी के कोई भविष्य नहीं हे। कर्मचारी नेता ने धीरे से उनसे कुछ कहा, तो सीएम यह कहकर आगे बढ़ गए कि ले ना दशहरा के बाद बैठबो...। उसके बाद पहुंचे रायपुर दक्षिण के विधायक बृजमोहन अग्रवाल की मंदिर प्रांगण में कर्मचारी नेता से दुआ-सलाम हुई। उन्होंने हास परिहास के बीच कर्मचारी नेता को नसीहत दे डाली कि वो सक्रिय राजनीति से अलग हो, और प्रवचन करें। उन्हें हर संभव सहयोग करेंगे।
बघेल का एमपी के मंत्री पर ऐतराज...
इंदौर के लिए बिलासपुर से शुरू हुई हवाई सेवा के उद्घाटन समारोह में वर्चुअल शामिल हुए मध्यप्रदेश के जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट ने यह कहकर चौंका दिया कि हमारे यहां इंदौर में तो भूपेश बघेल और सिंधिया दोनों की फोटो मंच पर लगी है, लेकिन बिलासपुर में ऐसा नहीं किया गया है। सिर्फ सीएम की फोटो है। बिलासपुर एयरपोर्ट में मंच के पीछे लगे स्क्रीन पर कैमरे दो ही जगह ज्यादा फोकस हो रहे थे। एक तो सिंधिया पर दूसरे बघेल पर। दर्शकों ने सिलावट की बात पर ध्यान दिया, ऐसा लगा कि वे कह तो सही रहे हैं। पर यह बात सही नहीं थी। दरअसल, तुलसी सिलावट इंदौर से कार्यक्रम में जुड़े थे जहां सिंधिया और बघेल दोनों की फोटो थी। इधर, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने कार्यालय से वीडियो कांफ्रेंस में शामिल हुए। सिलावट के मंच के पीछे की तस्वीर में सिंधिया और बघेल दोनों की तस्वीरें स्क्रीन पर दिखाई दे रही थी, पर सीएम के पीछे ऐसा नहीं था। लोगों को लगा यह क्या राजनीति हो गई?
पर भाषण के अंत में सीएम बघेल ने शालीनता से सिलावट की खिंचाई की, आपको ऐसी बात नहीं करनी चाहिए। सीएम ने कहा कि मैं अपने दफ्तर से बात कर रहा हूं। यहां मेरे पीछे सिंधिया जी की तस्वीर क्यों होगी। कार्यक्रम बिलासपुर में हो रहा है, जहां सिंधिया जी की तस्वीर लगी हुई है। चूंकि बघेल अंतिम वक्ता थे अतएव सिलावट को सफाई देने का कोई मौका नहीं मिला। वैसे बात साफ हो गई थी, सफाई देने जैसा कुछ था भी नहीं। बघेल ने ऐन मौके पर सिलावट की बात का खंडन कर दिया। वरना सोशल मीडिया में एक्टिव लोग अब तक इस मुद्दे पर हजारों ट्वीट कर चुके होते।
गरियाबंद और काम्बले का नाता
2009 बैच के आईपीएस अमित तुकाराम काम्बले को सरकार ने दोबारा गरियाबंद की कप्तानी सौंपी है। काम्बले का गरियाबंद जिले से कुछ खास नाता रहा है। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में गरियाबंद जिले की कमान सौंपने से खफा होकर अमित ने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति का रास्ता चुना था। उन्होंने एसपीजी में लंबे समय तक काम किया। नारायणपुर में तैनात रहते अमित ने नक्सल मोर्चे में अच्छी सफलताएं पुलिस के खाते में दर्ज कराई थी। उन्हें उम्मीद थी कि नक्सल क्षेत्र से बाहर आने के दौरान सरकार किसी बड़े जिले में पोस्ट करेगी, लेकिन उनकी चाहत के विपरीत सरकार ने उस वक्त नए नवेले जिले गरियाबंद में भेज दिया। उन्हें यह बात इतनी खली कि कुछ महीनों के भीतर ही उन्होंने स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप में काम करने का आवेदन कर दिया। भाजपा सरकार ने उन्हें रिलीव करने में जरा भी देरी नहीं की। डेपुटेशन से लौटे काम्बले को सरकार ने कुछ दिन बाद सरगुजा एसपी पदस्थ कर दिया, लेकिन 11 महीने की छोटी पोस्टिंग के बाद अचानक माना बटालियन कमांडेंट पद पर भेज दिया।
गरियाबंद में उनकी दूसरी बार पोस्टिंग होने से आईपीएस बिरादरी हैरानी में है। अफसर यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि अमित को गरियाबंद भेजने के पीछे सरकार का असल मकसद क्या है। सुनते हैं कि अमित महत्व की मुख्यधारा में लौटने के लिए जोर लगा रहे थे, पर गरियाबंद पोस्टिंग की उन्हें उम्मीद नहीं थी। जिस तरह दूसरे उनकी पोस्टिंग से अचरज में हैं, वही हाल अमित का भी है। अगले साल जनवरी में डीआईजी पदोन्नति की राह पर बढ़ रहे अमित काम्बले की अच्छे अफसरों में गिनती होती है। वह 2009 बैच के आईपीएस अफसरों में छत्तीसगढ़ में इकलौते हैं। उनका एसपी के तौर पर कामकाज पिछली सरकार में अच्छा रहा, लेकिन पोस्टिंग के मामले में उनकी पूर्ववर्ती सरकार से उन्हें खास तरजीह नहीं मिली। गरियाबंद भेजे गए अमित को वहां के हालात समझने में कोई खास दिक्कतें नहीं होंगी। बताते हैं कि अमित का नाम बड़े जिलों के लिए चल रहा था। काम्बले को कमांडेंटशिप से हटाकर सरकार ने मुख्य तंत्र में जोड़ा है। उनकी तैनाती पर कयासों की झड़ी लग गई है।
छोटी सी जीत से आप की शुरूआत
सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने छत्तीसगढ़ की 90 में से 85 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन किसी भी सीट पर जमानत बचा पाने लायक वोट भी नहीं मिले। पर इस बीच दिल्ली से बाहर वह पंजाब में जिस तरह सरकार बनाने में वह कामयाब हुई, उसका असर देश के दूसरे राज्यों पर पड़ा। छत्तीसगढ़ में 2018 के नतीजों को भूलकर पार्टी नए सिरे से संगठन मजबूत करने में लगी है। छत्तीसगढ़ के संदीप पाठक को पंजाब से राज्यसभा में भेजने के चलते भी यहां के कार्यकर्ताओं में उत्साह है। इसलिए यह खबर अधिक चौंकाने वाली नहीं है कि बालोद जिले की प्राथमिक लघु वनोपज सहकारी समिति में आप ने 6 पदों पर जीत हासिल की है। पार्टी इस समिति में अपना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बनाने में भी कामयाब हो गई है। छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी क्या पैर जमा पाएगी, यह सवाल लोगों के मन में तैर रहा है। यह छोटी सी जीत विश्लेषण का विषय हो सकता है। गुजरात में भी आप के सांसद विधायक नहीं है, पर सूरत महानगरपालिका की 120 सीटों में से 21 में जीत दर्ज कर उसने अपनी मौजूदगी दिखा दी। यह बात अलग है कि उनकी पार्टी से जीते कई पार्षद बाद में भाजपा में शामिल हो गए। पर इसी जीत को पकडक़र जो तैयारी आप ने की है उसने उसे चर्चा में ला दिया है। बीजेपी के लोग मानते हैं कि बीते तीन चुनावों में गुजरात में पार्टी की सीटों की संख्या में लगातार गिरावट आई, इसके बावजूद उसे सत्ता से इस बार भी हटाना मुश्किल होगा। कांग्रेस की स्थिति 2017 के चुनाव से काफी भिन्न है। हार्दिक पटेल उनका साथ छोडकर जा चुके हैं। जिग्नेश मेवानी, कल्पेश ठाकोर की तिकड़ी कांग्रेस के सपोर्ट में नहीं है। छत्तीसगढ़ की एक लघु वनोपज समिति में मिली जीत को आप कितना आगे लेकर जा पाएगी, यह बहुत कुछ गुजरात के नतीजे से समझा जा सकेगा। आदिवासी बाहुल्य इलाके से मिली यह जीत छोटी सही लेकिन खास है। यह भी देखना जरूरी है कि बस्तर की हिंसा और हसदेव अरण्य की खनन योजना से प्रभावित आदिवासियों को कांग्रेस, भाजपा दोनों के रुख से इस समय नाराजगी है।