राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : देखें अब कैसे ‘प्रतिष्ठित’ आएंगे
06-Oct-2022 2:54 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : देखें अब कैसे ‘प्रतिष्ठित’ आएंगे

देखें अब कैसे ‘प्रतिष्ठित’ आएंगे

छत्तीसगढ़ के सूचना आयोग में अध्यक्ष और एक सदस्य के पद खाली होने जा रहे हैं, और लोगों के बीच इसे लेकर बड़ी उत्सुकता है। रिटायर्ड अफसरों के मन में तो भारी सहूलियतों, मोटी तनख्वाह, और भारी सरकारी महत्व वाली इस कुर्सी के लिए चाहत है ही, समाज के दूसरे तबकों के लोग भी तीन बरस का यह मौका चाह रहे हैं। अफसरों में कुछ ऐसे लोगों का नाम भी चर्चा में है जो कि सबसे अधिक बदनाम हैं, लेकिन बदनामी सूचना आयोग में आड़े नहीं आती, यह तो मौजूदा नामों से भी पता चलता है, इसलिए आने वाले लोग भी उसी दर्जे के बदनाम रहेंगे, तो भी किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। हालांकि यह आयोग अपने इश्तहार में प्रतिष्ठित होने की मांग करता है, लेकिन आज के ही कुछ लोगों को ही देख लें, तो यह दिख जाता है कि प्रतिष्ठा कैसी-कैसी हो सकती है। अब देखें आने वाले दिनों में ये दो कुर्सियां किन लोगों को नसीब होती हैं।

रावण का अपशकुन!

दशहरा पर रावण दहन अधूरा रहता है, तो अपशगुन माना जाता है। इस बार भी प्रदेश में सैकड़ों जगहों पर रावण दहन हुआ, लेकिन कई जगहों पर दहन से पहले बारिश हो गई। इस वजह से तमाम कोशिशों के बावजूद रावण दहन अधूरा रह गया।
प्रदेश के सबसे बड़े दशहरा उत्सव डब्ल्यूआरएस मैदान में आतिशबाजी तो खूब हुई, लेकिन रावण के सिर जल नहीं पाए। यही हाल, सप्रे शाला मैदान के दशहरा उत्सव का भी रहा। धमतरी में तो पूरी तरह रावण दहन नहीं होने पर निगम प्रशासन ने पुतला तैयार करने वाले को भुगतान करने से इंकार कर दिया है।

कुछ इसी तरह का वाक्या डब्ल्यूआरएस में दो दशक पहले हुआ था। तब भी रावण दहन अधूरा रह गया था। उस वक्त कार्यक्रम के कर्ताधर्ता तत्कालीन मंत्री तरूण चटर्जी थे, और फिर बाद में वो विधानसभा का चुनाव हार गए। इसी तरह राजेश मूणत के आयोजन प्रमुख रहते हुए भी इसी तरह का मौका आया, और वो भी अगला चुनाव नहीं जीत पाए। उस वक्त श्रीचंद सुंदरानी भी आयोजन समिति में थे। उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा।

डब्ल्यूआरएस में कुलदीप जुनेजा, और मेयर एजाज ढेबर आयोजन समिति के प्रमुख थे। इसी तरह सप्रे शाला मैदान के दशहरा उत्सव कार्यक्रम के मुखिया सन्नी अग्रवाल थे। ये सभी विधानसभा चुनाव लडऩा चाहते हैं। अब इनके राजनीतिक भविष्य को लेकर अभी से कानाफुसी हो रही है। देखना है आगे क्या होता है।

आज के सीआईडी अफसर

सरकार के कामकाज को जानने वाले लोग यह अच्छी तरह जानते हैं कि पुलिस में सीआईडी का काम क्या होता है। कुछ लोगों को टीवी सीरियल से धोखा हो सकता है कि सीआईडी बड़ी नाजुक जांच करती है, और बड़े-बड़े मुजरिमों को पकड़ लेती है, लेकिन सच तो यह है कि सरकार में जिन मामलों को जांच के किसी किनारे तक नहीं पहुंचाना रहता, उन्हें सीआईडी को दे दिया जाता है, और सीआईडी के अफसर गोदाम के इंचार्ज की तरह सरकार की मर्जी आने तक उन फाइलों को दबाकर बैठे रहते हैं। बाहर से बहुत ही महत्वपूर्ण दिखने वाला यह विभाग ऐसे मामले ही पाता है जिनकी कोई जांच नहीं होनी रहती।

अब छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक सबसे वरिष्ठ सत्तारूढ़ कांग्रेसी विधायक सत्यनारायण शर्मा की हालत सीआईडी अफसर जैसी हो गई है। सरकार ने नशाबंदी लागू करने के लिए एक कमेटी बनाई, और उसकी अध्यक्षता सत्यनारायण शर्मा को दे दी। जब छत्तीसगढ़ नया राज्य बना तब शर्माजी अविभाजित मध्यप्रदेश में आबकारी मंत्री थे, सरकार में उनका तजुर्बा शराब बेचने का था। अब न तो सरकार को शराबबंदी करनी थी, और न ही सत्यनारायण शर्मा का तजुर्बा शराबबंदी का था। इसलिए वे सीआईडी अफसर की तरह इस कमेटी पर बैठे हुए हैं। उन्हें एक और कमेटी में सरकार ने अध्यक्ष बनाया है, राजधानी रायपुर में रमन सरकार के समय बने स्काईवॉक की जांच के लिए। इस कमेटी को यह रिपोर्ट देनी थी कि अब तक बने स्काईवॉक को तोड़ देना बेहतर होगा, या उसे पूरा करना। सरकार के चार बरस पूरे होने को हैं, और अब तक यह कमेटी सरकार के सीआईडी विभाग की तरह यही तय नहीं कर पाई है कि इसे रखा जाए, या तोड़ दिया जाए। राजधानी रायपुर का यह एक सबसे चर्चित और खर्चीला प्रोजेक्ट था, और चार बरस में भी भूपेश बघेल सरकार इसका नफा-नुकसान तय नहीं कर पाई है। इसे बनाने वाले पिछली सरकार के एक सबसे ताकतवर मंत्री, रायपुर के विधायक राजेश मूणत ने अभी चार दिन पहले थक-हारकर यह बयान जारी किया है कि सरकार किसी जज से इस मामले की जांच करा ले, या फिर भ्रष्टाचार के आरोप लगाना बंद करे। देखना है कि आज की सरकार के सबसे बड़े सीआईडी अफसर इस पर क्या करते हैं?  

बाजार में चीनी माल घट गया...

इस त्यौहारी सीजन में प्रदेश के बाजारों में चाइनीज माल की क्या स्थिति है? व्यापारियों के अनुसार इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण पहले 80 फीसदी चीन के माल भरे रहते थे, उसकी जगह भारतीय उत्पादों ने ले ली है। टीवी, कंप्यूटर आदि के कुछ पार्ट्स चीन से आते हैं, जो रायपुर और देश के बाकी शहरों तक पहुंचने के बाद भारतीय माल की तरह एसेंबल करके खपाये जा रहे हैं। पटाखों को लेकर तो विरोध पिछले कुछ वर्षों से हो ही रहा है। उसकी गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों पर निगरानी रखने वाली सरकारी एजेंसियों की चिंता थी, जिसके कारण कड़े प्रावधान तय किए गए। ये भारतीय पटाखों के अनुपात में बहुत सस्ते भी नहीं थे। पटाखा कारोबारी बता रहे हैं कि इस बार बाजार में देश के ही बने पटाखे ज्यादा दिखेंगे। झालर का विकल्प कोई नहीं आ पाया है। इस बार भी बाजार चाइनीज झालरों से सज रहे हैं। देश में इसका सस्ता उत्पादन नहीं हो पा रहा है।

कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल ट्रेडर्स  ने जुलाई महीने में देश के महानगरों सहित 20 बड़े कारोबारी शहरों में सर्वेक्षण कराया था। इनमें रायपुर को भी शामिल किया गया था।  यह बात सामने आई थी कि इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रिक उपकरणों और पटाखों के चीन को ऑर्डर बहुत कम गए हैं।

चाइनीज माल के बहिष्कार के लिए जैसा आह्वान पहले किया जाता था, अब कम दिखाई देता है। इन आंकड़ों से यह संकेत मिलता है कि घरेलू जरूरतों को पूरी करने के लिए लोग देसी उत्पाद की तरफ मुड़ रहे हैं। इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि चाइनीज उत्पादों में गारंटी का नहीं होना। झालर भी खरीदते समय दुकानदार साफ तौर पर बता देता है कि इसे वे न तो वापस लेंगे, न एक्सचेंज करेंगे।

पर दूसरा पहलू भी देखिये, दोनों देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय व्यापार में कोई कमी नहीं आई है। सितंबर माह की ही खबर है कि सैन्य और कूटनीतिक तनाव के बावजूद चीन से आयात बढ़ता ही जा रहा है। साथ ही कम हो रहा है भारत का निर्यात। और, हमारा सबसे ज्यादा व्यापार दुनिया में चीन के साथ है। आम उपभोक्ता इस बात पर संतोष जता सकता है कि वह सीधे चीन मार्का का माल नहीं खरीद रहा है, या फिर कम खरीद रहा है।

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