राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : साख ऐसे वक्त काम आती है
14-Oct-2022 4:46 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : साख ऐसे वक्त काम आती है

साख ऐसे वक्त काम आती है

कभी किसी नेता या अफसर के घर जब करोड़ों की, जाहिर तौर पर काली दिखती, कमाई बरामद होती है, तो लोगों की प्रतिक्रिया उन बड़े लोगों की साख के मुताबिक रहती है। अगर ऐसे भ्रष्ट लोगों ने अपनी कमाई करने के साथ-साथ सरकारी काम ठीक से किया है, लोगों के मामूली और छोटे-छोटे कामों में अपनी जिम्मेदारी पूरी की है, लोगों से व्यवहार ठीक रखा है, तो लोग ऐसे करोड़ों की नगदी और सोने की बरामदगी का बहुत मजा नहीं लेते। लेकिन जब ऐसी बरामदगी उन लोगों से होती है जिन्होंने सरकारी काम ठीक से नहीं किया था, लोगों से सीधे मुंह बात नहीं की थी, लोगों के जायज कामकाज अटकाए थे, गरीबों का दिल दुखाया था, तो लोग ऐसे भ्रष्ट लोगों की परेशानी का मजा लेते हैं। यह बात अफसरों और नेताओं दोनों पर बराबरी से लागू होती है। अब भारत में लोकतंत्र महज स्थापित मीडिया कारोबार का मोहताज नहीं रहा है, और कई किस्म के गैरजिम्मेदार और अराजक लोग सोशल मीडिया पर भी खुलकर लिखते हैं, और हर किस्म की समाचार वेबसाइटें भी हैं, इसलिए भ्रष्टाचार पर कहीं न कहीं, कुछ न कुछ तो लिखा ही जाता है। और परंपरागत गंभीर मीडिया से परे, आज के सोशल मीडिया, और आज के कई किस्म के समाचार-मीडिया में लोग समाचारों के साथ अपने विचार भी घोलकर लिखते हैं, और अपने पूर्वाग्रह भी। यहीं पर आकर पता चलता है कि लुटेरों की तरह कमाने वाले लोगों ने भी अगर रॉबिनहुड की तरह लोगों की मदद की हुई थी, तो वह साख बुरे दौर की बदनामी में लोगों की मदद करती है। जब भ्रष्ट लोग सीधे मुंह बात भी नहीं करने वाले रहते हैं, तब उनके भ्रष्टाचार की कमाई को संदेह का लाभ देने की रहमदिली कोई नहीं दिखाते। लोकतंत्र में जहां कहीं भी काली कमाई के मामले सामने आते हैं, लोग उन्हें भ्रष्ट के व्यवहार से जोडक़र देखते ही हैं। छत्तीसगढ़ में भ्रष्ट लोगों की शिनाख्त मुश्किल नहीं है, और उनकी साख भी अच्छी तरह उजागर है, वह आज भी काम या आड़े आ रही है।

नाम तो ओलंपिक लेकिन इंतजाम?

छत्तीसगढ़  में हो रही देसी खेल प्रतियोगिता के नाम के साथ ओलंपिक जुड़ा होने के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर खबर नहीं बनी, पर इसमें भाग ले रहे एक कबड्डी खिलाड़ी की मौत ने जरूर सबका ध्यान खींच लिया। जिस तरह राजिम मेले को उसकी भव्यता दर्शाने के लिए राजिम कुंभ नाम दे दिया गया था, उसी तरह व्यापक स्तर पर छत्तीसगढ़ के हर कोने में खेल रखे जाने के कारण इसे किसी समझदार अफसर ने ओलंपिक जोडऩे का सुझाव दिया होगा। पर इतना नहीं हुआ कि खेल मैदान में जरूरी व्यवस्था कर लें। रायगढ़ जिले के घरघोड़ा ब्लॉक के एक गांव भालूमार में कबड्डी खिलाड़ी की मौत की घटना में यह बात निकलकर आई है कि वहां फर्स्ट एड किट भी नहीं थी। आयोजकों के ध्यान में यह मामूली सी बात नहीं आई थी कि खेल के दौरान कोई हादसा हो तो प्राथमिक उपचार की व्यवस्था वहां पर हो। संभव है इस हादसे के बाद सबक लेकर बाकी जगह अब तैयारी की जा रही हो, पर छह अक्टूबर से पूरे एक माह चलने वाली इस प्रतियोगिता में अधिकारियों की लापरवाही तो सामने आ ही गई है। देखना होगा, किस पर गाज गिरती है।

क्या कह गईं रेणुका सिंह...

छत्तीसगढ़ की एकमात्र केंद्रीय मंत्री, राज्य मंत्री रेणुका सिंह के बयान पर गौर करना चाहिए। एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें  वे पत्रकारों से चर्चा में कह रही हैं कि- इतने वर्षों से हमारे राम भगवान के सिर के ऊपर छत नहीं था। सुप्रीम कोर्ट का माननीय प्रधानमंत्री जी की वजह से जो फैसला आया है..., देश की जनता को बहुत खुशी हुई थी। वर्षों के बाद राम मंदिर का फैसला आया...।

विपक्ष तो सीबीआई, ईडी, चुनाव आयोग, आरबीआई, जैसे सारे संवैधानिक संस्थाओं को अपने नियंत्रण में ले लेने का आरोप मोदी सरकार पर लगाता ही रहा है। इधर कुछ अदालती फैसलों को लेकर भी सीनियर एडवोकेट्स भी सवाल उठा चुके हैं। पर उन्होंने यह कहने से परहेज किया कि केंद्र या मोदी के प्रभाव में ये फैसले लिए गए। मन में कोई बात हो तब भी बोलने के मामले में संयम रखा। ऐसे में किसी केंद्रीय मंत्री का यह दावा करना कि कोई फैसला मोदी की वजह से लिया गया, देश की सबसे बड़ी अदालत की तौहीन करना है। चूंकि रेणुका सिंह काफी वरिष्ठ नेत्री हैं इसलिए इसे अनजाने में या भूलवश दिया गया बयान भी इसे नहीं कहा जा सकता। उनकी कोई सफाई भी नहीं आई है। मोदी की तारीफ है, इसलिए भाजपा से इस पर कोई प्रतिक्रिया आने की उम्मीद तो है नहीं, दूसरे दलों ने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

फिंशिंग का बढ़ता दायरा...


फिशिंग का सामान्य अर्थ चारा डालकर मछली मारना है। 90 के दशक में साइबर क्राइम बढऩे के बाद यह शब्द इंटरनेट की दुनिया में इस्तेमाल किया जाने लगा। अनजाने फोन कॉल कर, लिंक भेजकर, झांसे में बैंक खातों का डिटेल लेकर ऑपरेट करना और रुपये उड़ा देना फिशर्स का काम है। कार्पोरेट कंपनियों के नाम फर्जी वेबसाइट बनाना और सर्च इंजन में फर्जी हेल्पलाइन नंबर डालकर ठगी करना भी ऐसा ही उदाहरण है। छत्तीसगढ़ में ऑनलाइन बेटिंग पर इन दिनों ताबड़तोड़ कार्रवाई हो रही है। यह अलग तरह की फिशिंग है, जिसमें लोग यह जानते हुए भी दांव लगाते हैं कि उनकी रकम डूब रही है। उनको छोटी रकम लगाकर बड़ी कमाई का लालच देकर फंसाया जाता है जबकि बुकी खुद करोड़ों रुपये की कमाई कर रहे हैं। देश की मुद्रा विदेशों में भी भेज रहे हैं।

सरकारों को विरोधी दलों का डेटा निकालने के लिए किसी तरह का चारा डालने की जरूरत नहीं। मशीनरी उनके नियंत्रण में होती है। विरोधी दल आरोप लगाते हैं, सरकारें इंकार करती है। सरकार बदलती है तो उन अफसरों की शामत आ जाती है, जिन्होंने डेटा चोरी, फोन टेपिंग में सरकार की मदद की। छत्तीसगढ़ के कुछ उदाहरण तो आपको याद आ ही रहे होंगे। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि इन दिनों जो छापे पड़ रहे हैं उसमें हार्डकॉपी में मिले दस्तावेजों की कम भूमिका है। सबूत फोन कॉल, वाट्सएप चैटिंग, ऑनलाइन बैंकिंग से ज्यादा जुटाए गए हैं।  

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