राजपथ - जनपथ
भय बिन होय न प्रीत
राज्य के एक नए नवेले जिले के कलेक्टर और नगर पालिका अध्यक्ष के बीच पिछले दिनों अंदरूनी स्तर पर चली खींचतान, इस्तीफे की नौबत तक पहुंच गई। सत्तारूढ़ कांग्रेस के अध्यक्ष को इस बात का गुमान नहीं था कि कलेक्टर एकाएक उनके वित्तीय अधिकार छीनकर पालिका के कार्यों में बेवजह दखलंदाजी करेंगे। दरअसल घटनाक्रम ऐसा हुआ कि कलेक्टर ने नगर पालिका सीएमओ को तलब कर निर्माण कार्यों की एक सूची लेने के साथ अध्यक्ष के सभी वित्तीय अधिकार पर रोक लगा दी। इससे हड़बड़ाए अध्यक्ष ने राज्य के दो मंत्रियों तक गुहार लगाई। मंत्रियों के ढीले रवैये के कारण अध्यक्ष ने कांग्रेस के एक कद्दावर नेता से अपने साथ हो रहे बर्ताव का दर्द साझा किया। मंझे हुए धाकड़ नेता ने पालिका अध्यक्ष को पार्षदों के साथ इस्तीफा देने का सुझाव दिया।
यह जानकारी कलेक्टर के कानों तक पहुंच गई, फिर अपने रवैये के कारण सुर्खियों में रहने वाले कलेक्टर ने अध्यक्ष को मिलने के लिए बुलाया। अध्यक्ष इस्तीफा देने पर अड़ गए। इससे कलेक्टर के पसीने छूट गए। अध्यक्ष ने कलेक्टर से कहा कि मुख्यमंत्री के समक्ष अब मसले का सही हल निकाला जाएगा। आखिरकार कलेक्टर ने अपने कदम पीछे लेते हुए अध्यक्ष को तमाम अधिकार लौटा दिए। बताते हैं कि पूरा मामला कमीशनखोरी से जुड़ा हुआ है। वहीं अध्यक्ष अगले विधानसभा चुनाव के लिए मौजूदा विधायक के सामने मजबूत प्रतिद्वंदी बनकर उभरे हैं। ऐसे में विधायक और कलेक्टर के गठजोड़ ने अध्यक्ष के पर कतरने की कोशिश की थी। कलेक्टर को आखिरकार यह समझ में आया कि सियासी पैंतरेबाजी में फिलहाल वे कमजोर हैं। अब अध्यक्ष पूरे घटनाक्रम को ताकत बनाकर पूरे विधानसभा में जोरशोर से फैला रहे हैं।
चौराहे पर अठखेलियां
अंबिकापुर के अंबेडकर चौक पर 13 अक्टूबर को दोपहर 12 बजे एक आदमी इस तरह सडक़ के पानी भरे गड्ढे पर विचरण कर रहा था तो पहली नजर में लोगों को लगा कि यह शराब और पानी भरे सडक़ का मिला-जुला असर है। पर काफी देर बाद बाहर निकलकर बताया कि उसने शराब नहीं पी रखी है। मोबाइल फोन इस गड्ढे में गिरकर गुम हो गया है। खोज डाला, मोबाइल तो मिला नहीं, अलबत्ता मछलियों की मौजूदगी का अनुमान जरूर लग रहा था।
राशन बिना गरीबों की दिवाली
कई योजनाएं लागू होने के दौरान काफी सुर्खियां बटोर लेती है, पर बाद में क्या हश्र हो रहा है, इस पर किसी को चिंता नहीं रहती। वन नेशन वन कार्ड इसी का उदाहरण है। पूरे देश के साथ छत्तीसगढ़ में यह योजना इस साल जनवरी में शुरू हुई। इसमें एक पीएसओ मशीन होता है, जो इंटरनेट के जरिये आधार कार्ड से जुड़ा रहता है। पीडीएस दुकान में जो राशन लेने आता है, उसे आधार नंबर बताना होता है और अंगूठे का निशान लिया जाता है। इससे तय हो जाता है कि राशन लेने सही व्यक्ति आया है। यह मशीन तौल मशीन के ब्लू टूथ से जुड़ी है, जिसके चलते उसे उतना ही राशन मिलता है जितना ऑनलाइन दिखाई देता है। किसी को काम या ज्यादा राशन नहीं मिल सकता। जैसा कि नाम से ही पता चलता है, देश के किसी भी कोने में हितग्राही रहे, किसी भी पीडीएस दुकान से राशन उठा सकता है। प्रवासी मजदूरों के लिए यह काफी फायदेमंद है। पीडीएस में भ्रष्टाचार रोकने के लिए यह व्यवस्था अच्छी दिखाई देती है, मगर जब से यह नया सिस्टम लागू हुआ है, हितग्राही और राशन दुकानदार दोनों खासे परेशानी में हैं। रायपुर, बिलासपुर, सरगुजा, जांजगीर-चांपा और अन्य जिलों से लगातार खबरें आ रही है सर्वर ठप रहने के कारण पीएसओ मशीन काम ही नहीं कर रहे हैं। रायपुर में सबसे ज्यादा 5 लाख 37000 राशन कार्ड हैं और बिलासपुर में चार लाख 73 हजार। खबरें आ रही है कि दोनों जिलों में दर्जनों दुकानें ग्राहकों की नाराजगी के चलते खोली नहीं जा रही हैं। ग्राहक और दुकानदार दोनों मशीन के बार-बार अंगूठे का निशान मांगे जाने से झल्ला रहे हैं। उनके बीच वाद-विवाद हो रहा है। इन मशीनों को चलाने के लिए राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र के सर्वर का इस्तेमाल होता है। मशीनों में करोड़ों लोगों का डेटा लोड है। इसके चलते जनवरी माह में जब यह सुविधा शुरू की गई तभी से दिक्कत आने लगी।
शुरुआती दिनों में तय किया गया था कि हितग्राही पुरानी व्यवस्था से भी राशन उठा सकते हैं। पर नई योजना की सफलता की समीक्षा किए बिना वह समाप्त कर दी गई। वैसे अभी भी गड़बड़ी पूरी तरह खत्म ही हो गई है, नहीं कहा जा सकता। ऐसा होता तो कांग्रेस के निचले हिस्से के कार्यकर्ता, सरकार बदल जाने के बाद भी भाजपा समर्थकों के हाथ में राशन दुकान होने को लेकर नाराज नहीं चल रहे होते। सरगुजा में खाद्य मंत्री अमरजीत भगत को अपनों के ही रोष का सामना करना पड़ा था। अप्रैल महीने में छत्तीसगढ़ के दौरे पर आए केंद्रीय खाद्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना में प्रति व्यक्ति 5 किलो चावल ना देकर प्रति कार्ड 5 किलो वितरित करने की शिकायत आने की बात कही थी और इसकी जांच के लिए मुख्यमंत्री को ट्वीट भी किया था।
अभी स्थिति यह है ठीक दिवाली के मौके पर हजारों की संख्या में हितग्राही राशन दुकानों के चक्कर लगा रहे हैं और उनके कोटे का चावल उनमें ही मिल रहा है। लोगों की मांग है कि कम से कम व्यवस्था ठीक होते तक तो उन्हें पहले की तरह टेबलेट के माध्यम से राशन वितरित कर देना चाहिए। शिकायत होने पर यूपी सहित दूसरे राज्य में ऐसी वैकल्पिक सुविधा शुरू कर दी गई है।