राजपथ - जनपथ

यह भी कोई दीवाली थी!
दीवाली छत्तीसगढ़ में कुछ सूनी-सूनी रही। कुछ सरकारी अफसरों, कारोबारियों, और नेताओं पर चल रही ईडी की जांच के चलते बहुत से लोगों को सांप सूंघा हुआ है। आमतौर पर अफसरों की जिन बस्तियों में दीवाली के तोहफे लिए भीड़ लगती थी, वहां सन्नाटा था। तोहफे भेजने वाले लोगों ने भी सावधानी से कुछ मिठाई वगैरह भेज दी, कुछ महंगा सामान नहीं भेजा। ऐसे ही इलाके से एक अफसर दीवाली पर चाय पीने आए, तो उन्होंने कहा कि अभी उनकी कॉलोनी में बाहर से सामान आ कम रहा है, बाहर ज्यादा जा रहा है। बहुत से अफसर जिन्हें कुछ आशंकाएं हैं, वे घर का बहुत सा सामान इधर-उधर कर रहे हैं, और सामान ऐसा जाते हुए दिख रहा है। एक बड़े अफसर ने महंगी शराब की कुछ बोतलें एक परिचित को दीवाली पर तोहफे में भेज दीं, तो पाने वाले भी हक्का-बक्का रह गए। खतरा कम है, दहशत अधिक है। दहशत के साये में मनाई गई दीवाली भी भला कोई दीवाली हो सकती है? कई अफसरों की सांसें इसमें अटकी हुई हैं कि जिन तीन आईएएस अफसरों से पूछताछ हुई है, उन्होंने और किनके नाम बताए हैं? प्रदेश सरकार के जिस चिप्स नाम के संस्थान पर ईडी ने जांच शुरू की है, वह पिछली सरकार के समय से बदनाम चले आ रहा दफ्तर है जहां से सरकारी टेंडरों को लेकर तरह-तरह का खेल होता था, कभी सर्वर डाउन होता था, तो कभी जानकारी लीक होती थी। इस बार ईडी की जांच में आज की सरकार का काम ही सामने आएगा, या पिछली सरकार का भी, यह भी देखने की बात होगी।
बस नाम ही काफी है
केन्द्र सरकार की जांच एजेंसी ईडी के नाम की दहशत ऐसी है कि वह अब किस्सों में बदलने लगी है। एक किस्सा किसी ने सुनाया कि एक बड़े निजी अस्पताल में भर्ती एक मरीज का कई लाख का बिल बन गया। जब उसने सरकारी अधिकारी को विभाग से मिलने वाले खर्च के बारे में पूछताछ की तो उससे विभाग का नाम पूछा गया। उसने अपने को ईडी का अधिकारी बताया तो अस्पताल ने उसका पूरा बिल ही माफ कर दिया, और नमस्ते करते हुए बिदा किया। उसे कई दिन तक समझ नहीं आया कि एजुकेशन डिपार्टमेंट का नाम सुनते ही अस्पताल के हाथ-पांव क्यों फूल गए।
यह घटना कहानी अधिक लगती है, लेकिन जब कोई व्यक्ति या संस्था इतना बड़ा कद पा जाते हैं, तो उनके बारे में कहानियां तो चलने ही लगती हैं।
बोर्ड है पर सडक़ गायब
यह सरगुजा संभाग के मैनपाट के मार्ग की तस्वीर है। सिंचाई विभाग ने पर्यटन स्थल सेदम जाने के लिए बड़ा सा बोर्ड तो लगा दिया है। बोर्ड देखकर ऐसा लगता है कि जल संसाधन विभाग बने जलाशय तक जाने के लिए सडक़ बनाई होगी, पर उसमें कुछ भी काम नहीं हुआ है। सेदम और उसके बगल की पंचायत सुआरपारा के पंचायत प्रतिनिधियों ने जब विभाग के लोगों से पूछा कि बोर्ड क्यों लगाया जा रहा है, तब बताया गया कि सडक़ बनाई जाएगी। पर बोर्ड लग जाने के बाद अधिकारी-कर्मचारी झांकने के लिए आए हैं। पर्यटक बांध तक उबड़-खाबड़ सडक़ नापकर पहुंचते हैं। पहले उन्हें पता नहीं था कि यह सडक़ किस विभाग की है पर अब यह बोर्ड बता रहा है।
सरगुजा में यह सब नया नहीं है। पिछले महीने ही रामानुजगंज के कार्यपालन यंत्री संजय ग्रायेकर को निलंबित किया गया था। यह बात सामने आई थी कि भू अर्जन के पौने नौ करोड़ रुपये एसडीएम के माध्यम से प्रभावितों के खाते में डालने थे पर ईई ने सेल्फ चेक जारी कर कई फर्मों और किसानों के खाते में पैसे डाल दिए।