राजपथ - जनपथ
अब कुम्हार पर कारखाने का हमला!
दीवाली में मिट्टी के दीयों की पुरानी परंपरा है, जो अब धीरे-धीरे आगे बढक़र कुछ छोटी-मोटी घरेलू मशीनों से भी बनने वाले दीयों तक आ गई है। लेकिन अब मामला कुछ और आगे बढ़ गया है। कांच के बर्तन बनाने वाली एक बड़ी कंपनी ने कांच के बने दीये बाजार में उतारे हैं जो कि छोटे से हैं, लेकिन 62-62 रूपये के हैं। अब जिन लोगों की तसल्ली बाजार के सबसे महंगे सामान लिए बिना पूरी नहीं होती है, वे तो कुम्हार के एक-दो रूपये के दीये छोडक़र 62 रूपये वाले दीये लेने लगेंगे, लेकिन क्या इसमें कोई समझदारी भी है?
जंगल में हवा है कि...
अफसरों के बीच अगले कुछ महीनों में एक और फेरबदल की सुगबुगाहट राज्य में चल रही है। रेरा के चेयरमेन विवेक ढांड जनवरी में रिटायर हो रहे हैं। और वन विभाग के मुखिया संजय शुक्ला मई में। इसके पहले वन विभाग के मुखिया रहे और बड़े कामयाब और माहिर अफसर माने जाने वाले राकेश चतुर्वेदी भी रिटायर होने के बाद से अब तक खाली बैठे हैं जो कि उनकी अब तक की साख के खिलाफ जाने वाली बात है। ऐसी चर्चा है कि वे छत्तीसगढ़ प्रदूषण निवारण मंडल के अध्यक्ष होकर जाना चाहते थे जहां अभी सुब्रत साहू हैं। इस कुर्सी के साथ यह शर्त जुड़ी हुई है कि अध्यक्ष को इंजीनियर होना चाहिए, और पर्यावरण के क्षेत्र में उसका अनुभव भी होना चाहिए, राकेश चतुर्वेदी के पास ये दोनों ही हैं, लेकिन सुब्रत साहू के पास दोनों में से एक भी नहीं हैं। फिर भी मामला अभी मुख्यमंत्री के स्तर पर थमा हुआ है।
अब रेरा में एक सदस्य की कुर्सी भी खाली है, और एक चर्चा यह है कि राकेश चतुर्वेदी को अभी वहां सदस्य बना दिया जाए, और ढांड के रिटायर होने के बाद उन्हें अध्यक्ष बना दिया जाए। दूसरी चर्चा यह है कि विवेक ढांड अपने जाने के बाद अपने सबसे पसंदीदा अफसर संजय शुक्ला को रेरा चेयरमेन देखना चाहेंगे, ताकि इस दफ्तर की निरंतरता बनी रहे। संजय शुक्ला को भी रिटायरमेंट के कुछ महीने पहले वन विभाग छोडक़र कई बरस के लिए रेरा आने में कोई आपत्ति तो हो नहीं सकती।
लेकिन फिलहाल यह पहली बार हुआ है कि वन विभाग के मुखिया के पास मुख्यालय के अलावा लघु वनोपज संघ का जिम्मा भी है। और सच तो यह है कि संजय शुक्ला अभी तक लघु वनोपज संघ के अध्यक्ष ही हैं, और अरण्य भवन के मुखिया का जिम्मा उनका अतिरिक्त प्रभार बनाया गया है, जो कि बड़ी अटपटी बात है, और इसे प्रशासनिक नजरिये से तो एक कमजोर आदेश बताया जा रहा है। इन दो प्रभारों की वजह से वन विभाग के भीतर नीचे के लोगों में कुछ हैरानी और हताशा भी है कि नीचे के किसी एक अफसर को लघु वनोपज संघ का प्रभार दिया जा सकता था जो कि नहीं दिया गया है। ऐसा बताया जाता है कि संजय शुक्ला के काम से मुख्यमंत्री बहुत संतुष्ट हैं, और वे यह चाहते हैं कि संघ के शुरू किए गए काम रफ्तार से आगे बढ़ें, इसलिए अरण्य भवन का जिम्मा देते हुए भी उन्हें संघ का जिम्मा भी दिया गया है।
जनवरी तक वन विभाग के इन दो अफसरों का कुछ न कुछ होगा, और हो सकता है कि सबसे ऊपर के अफसरों में कोई एक फेरबदल और हो।
भालुओं का भ्रमण शहर में..
जंगल से लगे गांवों में भालुओं की आमद देखी गई है, पर बीते कुछ समय से वे शहरी इलाकों में भी घूमते दिखाई दे रहे हैं। नेशनल हाईवे क्रास कर कांकेर शहर के भीतर कल 3 भालू एक साथ घुसे। वे सडक़ पार कर आमपारा बस्ती की ओर जाते दिख रहे हैं। वहां से गायब होने के बाद भालू दिखे नहीं। बस्ती में लोग डरे हुए हैं कि कहीं वे छिपे न हों और अचानक हमला न कर दें। एक राशन दुकान को तोडक़र यह दल गुड़ शक्कर चट कर चुका है। स्थानीय लोगों पर कई बार ये भालू हमला कर चुके हैं। मरवाही, कोरबा वन मंडल और सरगुजा में भालू प्राय: ग्रामीणों पर हमला करते हैं। पर शहर की भीड़ भाड़ में अपनी जान को खतरे में डालकर भालूआ रहे हैं। वन विभाग तत्कालिक रूप से इन्हें खदेडक़र शहर से बाहर भी कर दे तो वे फिर नहीं आएंगे इसकी कोई गारंटी नहीं। उनके आवास और भोजन की सुविधा क्या जंगलों में घट रही है, इस पर सोचकर स्थायी समाधान निकालना जरूरी होगा। कल ही शहर के बाहर कांकेर मे एक तेंदुआ भी सडक़ पर एक कार के सामने आ गया था। इसका वीडियो भी वायरल हो रहा है।
सन्नाटे में राज्योत्सव
राजधानी में छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस का जैसा ताम-झाम दिखा है वैसा जिलों में नहीं देखा गया। खासकर नए बने जिले मानपुर-मोहला-अंबागढ़ चौकी में तो स्थिति हास्यास्पद हो गई थी। मिनी स्टेडियम में हजारों कुर्सियां रखी गई थीं। उद्घाटन में गिनती के 20-25 दर्शक भी नहीं पहुंचे। पंडाल, माइक और साज-सज्जा पर लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं सो खाली कुर्सियों को विभिन्न विभागों के अधिकारी-कर्मचारी शासन की योजनाओं के बारे में बताते रहे। विभागों के स्टाल भी दर्शकों के लिए तरसते रहे। जानकारी आ रही है कि इस कार्यक्रम में विधायक इंद्रशाह मंडावी और छन्नी साहू को मुख्य अतिथि और अध्यक्ष के तौर पर बुलाया गया था। पर दोनों ही नहीं पहुंचे। विधायक साहू की तरफ से बताया गया कि उन्हें आयोजन के बारे में तो कुछ देर पहले ही बताया गया, नहीं पहुंच पाईं। पंचायत के पदाधिकारियों और सरपंचों तक भी सूचना नहीं पहुंची। कुल मिलाकर नए जिले का पहला राज्योत्सव काफी फीका रहा। राजधानी के अफसरों के ध्यान में बात जाएगी तो किसी अदने अधिकारी कर्मचारी पर इस विफलता का ठीकरा फोड़ा जा सकता है।