राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : नीले निशान के लिए इतना खर्च?
03-Nov-2022 3:39 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : नीले निशान के लिए इतना खर्च?

नीले निशान के लिए इतना खर्च?

ट्विटर एकाउंट को विश्वसनीय और प्रमाणित बनाने के लिए यूजर के नाम के साथ लगने वाले ब्लू-टिक के अब पैसे लगेंगे। ट्विटर के नए मालिक एलन मस्क ने जबसे यह ऐलान किया है, भारत में ट्विटर उपयोग करने वालों की तरह-तरह प्रतिक्रिया आ रही है। एक कहना है कि हम तो केबल कनेक्शन वाला 50 रुपये महीना बढ़ाने के लिए कहता है तो कनेक्शन काट देने के लिए कहते हैं। आप उम्मीद करते हैं कि हम अपने नाम के आगे ब्लू टिक लगाने के लिए 660 रुपये महीना देंगे? एक और यूजर का कहना है, आप तो पैसे डॉलर में लेंगे न, हमारी वित्त मंत्री जी से कहिए रुपये का गिरना रोकें, हम दो डालर ज्यादा देकर ट्विटर ब्लू टिक लेने के लिए तैयार हैं। कुछ लोग कह रहे हैं कि सीनियर सिटिजन्स जो ज्यादा वक्त सोशल मीडिया पर ज्यादा वक्त बिताते हैं उन्हें ब्लू टिक फ्री किया जाए। लोग डिस्काउंट ऑफर और वन टाइम पेमेंट की बात कर रहे हैं। एक और प्रतिक्रिया है- कितने ही भिखारियों की पोल खुलने वाली है, ब्लू टिक लेकर बैठे हैं। 8 डॉलर चुकाने की जगह ब्लू टिक वापस करना पड़ेगा। बहरहाल, 90 दिन की डेडलाइन खत्म होने के बाद मालूम होगा कि ब्लू टिक परजेब ढीली करने कितने लोग रह गए हैं।

माथे पर किराये का मोरपंख

ट्विटर पर नए मालिक एलन मस्क के आने का फर्क दिखने लगा। वे पहले भी अपनी कंपनियों में कर्मचारियों का तेल निकालने के लिए जाने जाते थे, और यहां पर भी उन्होंने आधे कर्मचारियों की छंटनी का माहौल बना दिया है, और दिन में बारह घंटे, हफ्ते में सात दिन काम करने के लिए कहा है। इसके साथ-साथ उन्होंने ट्विटर पर ब्लूटिक नाम के एक दर्जे को भी खत्म सरीखा करने की मुनादी की है जो कि लोगों को उनके ओहदे या किसी खास कामकाज की वजह से ट्विटर से मिलता था। इसे बहुत से लोग ऊंची जाति के एक प्रतिष्ठा-प्रतीक की तरह मानते थे, और नए मालिक ने अब इसे भुगतान देकर खरीदने की योजना घोषित की है। हिन्दुस्तानियों को शायद यह छह-सात सौ रूपये महीने में मिलेगा, और जो लोग अब तक ट्विटर पर अपने को ‘ऊंची जाति’ सरीखा मानकर चलते थे, अब वह ब्लूटिक भाड़े पर ली गई प्रतिष्ठा हो जाएगा, जिसे उदार और प्रगतिशील लोगों के बीच अपमान का सामान अधिक माना जाएगा। अब हिन्दुस्तानियों के बीच ट्विटर पर प्रतिष्ठा का यह एक नया पैमाना रहेगा कि कौन भाड़े पर ब्लूटिक लेते हैं, और कौन उसे गैरजरूरी मानते हैं। छत्तीसगढ़ में भी ऐसे बहुत से लोग हैं जो कि ब्लूटिक को आज माथे पर मोरपंख की तरह सजाकर चलते हैं, अब आगे वे इस मोरपंख का किराया देंगे, या आम लोगों की तरह रहेंगे, यह देखने की बात रहेगी।

आधार, अकाउंट और अब ओटीपी

श्रीमान वाई तो बिजनेसमैन हैं, उन्हें फोन पर आया मेसैज पढऩे की फुर्सत नहीं। घर का फोन भी कई बार व्यस्त होने के चलते नहीं उठा पाते। इधर श्रीमान एक्स भी काम पर अक्सर सुबह-सुबह घर से निकल जाते हैं। कई बार दौरे पर होते हैं, मोबाइल आउट ऑफ कवरेज भी मिलता है, पर अब उनके घर चूल्हा जलाने में दिक्कत खड़ी हो सकती है। सिलेंडर लेकर घर पहुंचा एजेंसी का कर्मचारी तब तक डिलीवरी नहीं देगा, जब तक उसे श्रीमान एक्स या वाई मोबाइल फोन पर आया ओटीपी नहीं बता देंगे। यह व्यवस्था आज से छत्तीसगढ़ सहित देश के कई हिस्सों में शुरू की जा रही है। दो साल पहले हरियाणा के करनाल में पायलट प्रोजेक्ट के तहत यह व्यवस्था लागू की गई थी। पिछले साल से भोपाल सहित मध्य प्रदेश के कई शहरों में इसे प्रयोग में लाया गया। ये परेशानी वहां के उपभोक्ता भुगत रहे हैं। डिलिवरी बॉय अलग से दुखी हैं क्योंकि इनमें से कई लोग एजेंसियों में नियमित कर्मचारी नहीं हैं। ओटीपी लेने के इंतजार में कम घरों तक सिलेंडर पहुंचा पाएंगे, कमीशन कम बनेगा। मुखिया घर पर नहीं है, उनसे संपर्क नहीं हो रहा है तो घर में महिलाओं, बच्चों को ओटीपी प्राप्त कर कर्मचारी को बताने में परेशानी होगी। घरेलू गैस सिलेंडर पहले से ही आधार कार्ड और बैंक एकाउंट से लिंक है। घरेलू गैस सिलेंडर पर सब्सिडी तो घटते हुए अब 25-30 रुपये तक आ चुकी है, इसलिए उपभोक्ता कालाबाजारी क्यों करेंगे? पेट्रोलियम कंपनियों और खाद्य विभाग के अधिकारियों को कालाबाजारी रोकने के लिए मोटी तनख्वाह पर रखा जाता है, उन्हें एजेंसी संचालकों पर नजर रखनी चाहिए पर यह जिम्मेदारी निर्दोष उपभोक्ताओं के सिर पर डाली जा रही है। अब उपभोक्ताओं को गैस सिलेंडर की महंगाई रुलाएगी या डिलिवरी लेने में परेशानी ज्यादा होगी, यह सवाल सामने है। लगे हाथ बता दें कि ऐसी ही सुविधाओं, सेवाओं से नागरिकों का हैप्पीनेस इंडेक्स भी तय होता है। इस वर्ष मार्च में यूएन ने भारत को 136वें  स्थान पर रखा जो बेहद नीचे है।

एक नवंबर पर औपचारिकता...

छत्तीसगढ़ का स्थापना दिवस प्रदेश के बाहर से चुने गए हमारे राज्यसभा सदस्यों के लिए कितना महत्व रखता है इसकी पड़ताल के लिए उनके सोशल मीडिया पेज को देखा जाना चाहिए। और कोई अपेक्षा हो न हो, जाना जाए कि उन्होंने बधाई देने की औपचारिकता निभाई गई या नहीं। इनमें से एक सांसद राजीव शुक्ला छत्तीसगढ़ से राज्यसभा में जरूर हैं, पर उनकी अधिक सक्रियता और पहचान बीसीसीआई में वाइस प्रेसिडेंट की है। इस समय हो रहे हिमाचल प्रदेश के चुनाव में भी उनको कांग्रेस ने प्रभार दिया है। इस समय उनके ज्यादातर ट्वीट इस समय चल रहे वर्ल्ड कप क्रिकेट और हिमाचल प्रदेश चुनाव को लेकर ही है। छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस पर एक नवंबर को उनके दो ट्वीट हैं। एक उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ट्वीट को रिट्विट किया है, दूसरे में दो तीन लाइनों में छत्तीसगढ़ को बधाई दी है। दूसरी सांसद रंजीत रंजन ने दो लाइन की एक ट्वीट एक नवंबर को किया है- छत्तीसढिय़ा सबसे बढिय़ा। राज्य के निवासियों को दिल से बधाई। पेज देखने से पता चलता है कि पिछले कुछ दिनों से वे भारत जोड़ो यात्रा में सक्रिय हैं। ज्यादातर ट्वीट राहुल की यात्रा की तस्वीरों का है। तीसरे सांसद वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी का अधिकारिक ट्वीटर हैंडल पिछले कुछ महीनों से सक्रिय ही नहीं है। उनका आखिरी ट्वीट अगस्त महीने का दिखाई देता है, जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार की जन-धन योजना पर छपी एक खबर को शेयर किया है। हो सकता है उन्होंने किसी दूसरे इससे आसान तरीके से राज्य स्थापना दिवस की खुशी जाहिर की हो, जो लोगों को पता नहीं चला है। पिछले साल जब उनका एकाउंट काफी सक्रिय था और अक्टूबर, नवंबर में कई ट्वीट होते थे तब भी छत्तीसगढ़ के स्थापना दिवस पर उनका कोई ट्वीट नहीं था। बीते एक साल में छत्तीसगढ़ पर उनका एक ही ट्वीट है-बिलासपुर में हुए उनके खुद के एक कार्यक्रम का।
छत्तीसगढ़ से दो अन्य राज्यसभा सदस्य फूलोदेवी नेताम (कांग्रेस) और सरोज पांडेय (भाजपा) हैं। उन पर कोई सवाल नहीं।

मधुमक्खियों के हमले से बचने के लिए...

कोरबा जिले के एक आदिवासी बाहुल्य ग्राम नकटीखार में ग्रामीण अजीब समस्या से जूझ रहे हैं। एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें सडक़ सूनी है। इक्का-दुक्का ग्रामीण निकल भी रहे हैं तो सिर कंबल से ढंककर। दरअसल गांव की मुख्य सडक़ के किनारे एक पेड़ पर मधुमक्खियों ने डेरा जमा लिया है। शहद की चाह में कौवे और चील इन पर हमला करते हैं और भाग जाते हैं। इसके बाद मधुमक्खियां आसपास से गुजरने वालों को डंक मार रही हैं। ग्रामीणों को उपाय नहीं सूझ रहा है। मधुमक्खी के छत्ते को भी वे नष्ट नहीं करना चाहते। शहद समाप्त होने के बाद मधुमक्खियां खुद ही चली जाती हैं, वे इसी का इंतजार कर रहे हैं। [email protected]

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