राजपथ - जनपथ
राज्योत्सव और विवाद
रायपुर में आदिवासी नृत्य महोत्सव, और स्थापना दिवस समारोह की गुंज प्रदेश से बाहर भी सुनाई दी। मगर जिलों में राज्य स्थापना दिवस का कार्यक्रम इस बार प्रशासनिक अफसरों के लिए परेशानीकारक रहा है। दो-तीन जिलों को छोड़ दें, तो ज्यादातर जगहों पर जनप्रतिनिधियों ने प्रशासन की नाक में दम कर रखा था। कहीं आमंत्रण कार्ड में फोटो नहीं छपने पर विधायकों ने विवाद खड़ा किया, तो कहीं आमंत्रण पत्र देर से पहुंचने पर स्थानीय विधायक, और जनप्रतिनिधियों ने हंगामा खड़ा किया।
कुर्सियों में आगे पीछे करने तक को लेकर भी जिलों में वाद विवाद हुआ है। एक-दो जगहों पर प्रशासन की लापरवाही भी सामने आई है। एक जगह तो विधायक ने मंच पर अपने करीबी जनपद सीईओ के सास-ससुर को ही बिठा दिया था। बाद में कुछ नेताओं की आपत्ति के बाद उन्हें मंच से नीचे बिठाया गया। इस बार प्रशासन पर विधायकों, और स्थानीय नेताओं का दबाव कुछ ज्यादा ही नजर आया।
हालांकि भूपेश सरकार के कार्यकाल का एक तरह से आखिरी राज्योत्सव था। क्योंकि अगले राज्योत्सव के समय तो विधानसभा चुनाव चल रहा होगा, और उस समय कार्यक्रम चुनाव आचार संहिता के दायरे में होगा। तब जनप्रतिनिधियों की दखल नहीं रहेगी। ऐसे में कहा जा सकता है कि अलग-अलग वजहों से ज्यादातर जगहों पर राज्योत्सव कोई अमिट छाप छोडऩे में नाकाम रहा।
असर सरकारी कामकाज पर..
मनी लॉड्रिंग केस की ईडी पड़ताल कर रहा है। आईएएस समीर विश्नोई, और दो कारोबारियों के साथ जेल में हैं। रायगढ़ कलेक्टर रानू साहू, और उनके पति डायरेक्टर माइनिंग जयप्रकाश मौर्य से ईडी के अफसर पूछताछ कर चुके हैं। रानू साहू पूरे हौसले से जांच का सामना कर रही हंै। फिर भी उन्हें लेकर कई तरह की चर्चा चल रही हैं।
रानू साहू पिछले चार दिन से दफ्तर में नहीं बैठ पा रही हैं। इससे अफवाह कुछ ज्यादा ही तेजी से उड़ रही है। गुरूवार को अफवाह उड़ी कि रानू साहू को ईडी ने हिरासत में ले लिया है। बाद में पता चला कि गुरूवार को रानू से पूछताछ नहीं हुई थी। दिक्कत यह है कि इन अफवाहों पर लगाम कसने के लिए न तो ईडी, और न ही सरकार कोई पहल कर रही है। इसका सीधा असर सरकारी कामकाज पर भी देखने को मिल रहा है।
लक्ष्मी जी सदा सहाय
तबादलों के इस सीजन में मंत्री स्टाफ ने भव्य दीपावली मनाई। मां लक्ष्मी, इन्हीं के घरों में खूब आई। इस साल के अनुभव और आवक को देखते हुए ये कहने लगे हैं कि लक्ष्मी सदा सहाय। निज सचिव, निज विशेष सहायक, ओएसडी ने पहले तबादला कराया फिर लक्ष्मीजी की मदद से रद्द भी। रद्द करने के प्रस्ताव तो सीएम दफ्तर के दहलीज भी नहीं पहुंचे। पढ़ाई-खिलाफ विभाग के एक ओएसडी ने तो कैंसिलेशन ऑफ ट्रांसफर के लिए छ: अंकों का रेट ही तय कर दिया था। हैसियतदारों ने करवाया भी। इसी तरह के दूसरे विभाग के सचिव, संयुक्त सचिव के भी दिन बहुर गए। डाटा एंट्री ऑपरेटर ग्रेड के इन कर्मियों के हाव भाव ही बदल गए। कहते घूम रहे है दीपावली अच्छी मनी।
कब तक सुरक्षित रहेंगे गणेश जी
पांच साल पहले दंतेवाड़ा जिले के बचेली वन परिक्षेत्र में 2994 फीट की ऊंचाई पर ढोलकल में स्थापित 10वीं शताब्दी की गणेश प्रतिमा पहाड़ी से अचानक गायब हो गई थी। लोगों ने बड़ी मुश्किल से खोज निकाला। उसे पहाड़ी से नीचे घने जंगल में गिरा दिया गया था। पड़ताल से पता चला कि मूर्ति पर पहले हथौड़े से प्रहार किया गया, फिर भी नहीं टूटी तो रॉड से फंसाकर नीचे गिरा दिया गया। यह चोरी की नीयत से किया गया या बैलाडीला और बस्तर की पहचान को नुकसान पहुंचाने के लिए, अब तक पता नहीं चला। घटना के पीछे नक्सलियों का हाथ होने की बात भी सामने आई थी, हालांकि उन्होंने इससे इंकार किया था। पुरातत्वविद् अरुण शर्मा और इंजीनियर तथा कारीगरों की टीम ने न केवल 56 टुकड़ों में बंट चुकी प्रतिमा को फिर से पहले की तरह स्वरूप देकर वापस पहाड़ी में उसी जगह पर स्थापित कर दी। इस घटना के बाद प्रशासन और पुरातत्व विभाग को सतर्क रहना था। अब भी ढोलकल की प्रतिमा तक पहुंचना और नुकसान पहुंचाना मुमकिन है। कुछ दिन पहले मूर्ति में जगह-जगह खरोच और उसमें कुछ नाम उकेरे हुए दिखे। इससे पुरातत्व और बस्तर को चाहने वालों में बड़ी नाराजगी है। जाहिर है सूने जंगल में स्थापित इस प्रतिमा से छेड़छाड़ करने वालों का पता नहीं चल पाया है। पर लोग यह सहज सवाल कर रहे हैं कि जब एक बार इस प्रतिमा को नष्ट करने की कोशिश की जा चुकी है उसके बावजूद इसकी सुरक्षा में इतनी लापरवाही क्यों? 2017 की घटना के बाद स्थानीय ग्रामीण युवाओं की टीम को मानदेय पर रखकर प्रतिमा की सुरक्षा और दर्शन कराने का काम सौंपने की योजना बनाई गई थी। अभी कुछ युवा यहां पर्यटकों की मदद करने मौजूद हैं, पर अधिकारिक रूप से नहीं। लोग यह भी मांग कर रहे हैं कि प्रतिमा को रेलिंग से घेर दिया जाए, ताकि लोग प्रतिमा को छू न सकें। गाइड के साथ ही ऊपर जाना जरूरी किया जाए। माना कि पुरातत्व उपेक्षित सा विभाग है, पर क्या इन छोटे-छोटे खर्चों के लिए भी बजट नहीं है?
अच्छी साड़ी की नहीं, सम्मान की चिंता
राज्योत्सव में जगह-जगह रूठने मनाने का संकट खड़ा होता रहा। नवगठित मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले के समारोह में स्थानीय नगर पालिका अध्यक्ष प्रभा पटेल नाराज होकर मंच के सामने जमीन पर बैठ गईं। दरअसल मंच और प्रचार सामग्री में उनकी तस्वीर गायब थी। मंच पर जो दो शाही कुर्सियां रखी गई थीं, उनमें एक मुख्य अतिथि डॉ. विनय जायसवाल व दूसरी उनकी पत्नी चिरमिरी नगर निगम की अध्यक्ष कंचन जायसवाल की थी। एसडीएम अभिषेक कुमार ने जमीन पर बैठीं नगर पालिका अध्यक्ष से मनुहार किया- मैडम अब आ भी जाएं मंच पर। आपने अच्छी साड़ी पहनी हैं, खराब हो जाएगी। पटेल ने कहा कि साड़ी की चिंता नहीं, सम्मान की बात है। सही है, सार्वजनिक जीवन में संघर्ष करना हो तो कपड़ों की चिंता कौन करे, मगर दिक्कत यह है कि यह संघर्ष सत्ता में रहते हुए करना पड़ रहा है।
वैसे सरगुजा के तीनों जिलों में कुछ न कुछ बात हुईं। बैकुंठपुर के कार्यक्रम में समर्थकों ने अपनी स्थानीय विधायक अंबिका सिंहदेव की उपेक्षा को लेकर नाराजगी जताई, यहां मुख्य अतिथि संसदीय सचिव गुलाब कमरो बनाये गए थे। अंबिकापुर में पारस नाथ राजवाड़े मुख्य अतिथि थे। यहां मंत्री टीएस सिंहदेव की उपेक्षा पर उनके समर्थक नाराज थे। इधर बिलासपुर में भी महापौर रामशरण यादव मंच के नीचे दर्शक दीर्घा में बैठे रहे, उन्हें मंच पर बुलाया गया ही नहीं, जबकि उद्घोषक की मेहरबानी से कई बिना ओहदे वाले भी मंच पर बैठ चुके थे। नाराज यादव की ओर जब आयोजकों का ध्यान गया तो उन्होंने मंच में जाने से ही इंकार कर दिया। कुल मिलाकर आयोजन किस तरह किया जाना है, किसे कितना वजन देना है किसे नहीं प्रशासन ने इसकी पूरी तैयारी की थी।