राजपथ - जनपथ
यह चुनाव तक जोंक सरीखा...
कसडोल की विधायक शकुंतला साहू का नया वीडियो उन्हें खासा नुकसान देने वाला है। इसमें वे एक सार्वजनिक कार्यक्रम के मंच पर माईक पर बड़ी नाराजगी में बोल रही हैं, और वहां मौजूद कुछ असंतुष्ट लोगों को झिडक़ते हुए अपनी पार्टी की फजीहत भी कर रही हैं। सोशल मीडिया पर इस वीडियो को पोस्ट करके भाजपा मजा ले रही है। वे सभा के लोगों को कड़वी जुबान में कह रही हैं- तमाशा बना के रखे हो, इतने सालों में कांग्रेस और बीजेपी ने यहां परदेसिया लोगों को लाकर बिठाकर रखा था तब कुछ नहीं कहा, तब परदेसिया लोगों के तुलए चाट रहे थे...। इसके आखिर में इस वीडियो रिकॉर्डिंग में हरामखोर शब्द कहा जाता सुनाई पड़ता है। अब चुनाव के एक बरस पहले अगर कोई वोटरों को हरामखोर कहे, तो इससे चुनावी नतीजों में एक ही चीज की गारंटी हो सकती है। और इसके अलावा अपनी ही पार्टी के वहां से विधायक रहे नेता को परदेसिया कहना, उस भूतपूर्व विधायक को भी गाली है, और पूरी पार्टी को भी जिसने कि रायपुर के उस नेता को कसडोल से टिकट दिया था। अब सवाल यह उठता है कि अगर इस पार्टी के रायपुर के नेता को कसडोल में परदेसिया कहा जाएगा, तो फिर इटली से शादी होकर हिन्दुस्तान आईं सोनिया गांधी को परदेसिया कहने वाले देश के कुछ नेताओं की आलोचना क्या कहकर हो सकेगी? शकुंतला साहू वैसे भी कुछ दूसरी बातों को लेकर लोगों की आलोचना के घेरे में चले आ रही हैं, और यह ताजा वीडियो चुनाव तक उनका पीछा नहीं छोड़ेगा। भला कौन से वोटर अपने को तलुआ चाटने वाले कहलाना चाहेंगे?
उपचुनाव और उम्मीदें
भानुप्रतापपुर में कांग्रेस दिवंगत विधायक मनोज मंडावी की पत्नी को चुनाव मैदान में उतार सकती है। कांग्रेस में ज्यादा समस्या नहीं है, लेकिन भाजपा में खींचतान चल रही है। भाजपा के एक बुजुुर्ग नेता ने तो बाल काले करवा लिए हैं, और वो फिर से चुनाव लडऩे के उत्सुक बताए जाते हैं।
सुनते हैं कि एक रिटायर्ड अफसर ने भाजपा की टिकट के लिए काफी कुछ निवेश किया था, और एक महिला नेत्री के मार्फत कोशिशें भी की थी। लेकिन टिकट नहीं मिल पाई। मगर इस बार रिटायर्ड अफसर उम्मीद से हैं। उन्हें भरोसा है कि निवेश व्यर्थ नहीं जाएगा, और पार्टी प्रत्याशी जरूर बनाएगी। लेकिन वाकई ऐसा होगा, यह तो प्रत्याशी की अधिकृत घोषणा के बाद ही पता चलेगा।
राज्यपाल की चुनाव पूर्व चिट्ठी
भानुप्रतापपुर विधानसभा टिकट की घोषणा के एक दिन पहले राज्यपाल की चिट्ठी ने हलचल मचा दी है। राज्यपाल ने आदिवासी आरक्षण की बहाली के मसले पर सरकार को चिट्ठी भेजी थी। आदिवासी सीट पर चुनाव के ठीक पहले पत्र को लेकर राजनीतिक निहार्थ तलाशे जा रहे हैं।
आदिवासी आरक्षण के मसले पर प्रदेश की राजनीति गरम है। भाजपा चुनाव में इस मसले को जोरशोर से उठाने की रणनीति बना रही है। भानुप्रतापपुर बस्तर के सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों का केंद्र बिन्दु रहा है। ऐसे में राज्यपाल की चिट्ठी से भाजपा को चुनावी फायदे की उम्मीद भी है। मगर वाकई फायदा मिलेगा, यह तो चुनाव नतीजे के बाद ही पता चलेगा।