राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : डीएम का नया मतलब
10-Nov-2022 4:40 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : डीएम का नया मतलब

डीएम का नया मतलब

हिन्दुस्तान की सरकारी व्यवस्था में अंग्रेजी का एम अक्षर हिन्दी के मनमानी शब्द के लिए बना दिखता है। देश में तीन ही कुर्सियां ताकतवर मानी जाती हैं, पीएम, सीएम, और डीएम। वैसे तो ब्रिटिश संसदीय व्यवस्था में पीएम और सीएम को उनके मंत्रिमंडलों में बराबरी के लोगों में अव्वल कहा गया है, लेकिन फस्र्ट अमंग इक्वल बात अमल में नहीं आती है। पीएम और सीएम अपार ताकत के धनी ओहदे हैं। लेकिन ये दो लोग तो फिर भी चुनाव जीतकर आते हैं, और सांसदों या विधायकों के बहुमत से इन कुर्सियों तक पहुंचते हैं। दूसरी तरफ महज एक मुकाबला-इम्तिहान से आईएएस बनकर आने वाले लोग डीएम, यानी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट उर्फ कलेक्टर बनते हैं, और उनकी ताकत भी अपने जिलों में बेमिसाल रहती है। छत्तीसगढ़ में इन दिनों जितने किस्म की जांच चल रही है, उनसे पता लगता है कि कलेक्टर की कुर्सी पर बैठकर कैसी मनमानी की जा सकती है, किसी को भी धमकाया जा सकता है कि जानते नहीं हो कि कलेक्टर अपने जिले के सबसे बड़े गुंडे होते हैं। ऐसी ही गुंडागर्दी का नतीजा आज इस राज्य के कुछ अफसर भुगत रहे हैं, और कुछ भुगतने जा रहे हैं। डीएम यानी डिस्ट्रिक्ट मनमानी!

अब चुनावी कथा

कथावाचक प्रदीप मिश्रा को सुनने के लिए जिस तरह लोगों का सैलाब उमड़ा, उससे राजनीतिक दलों के लोगों में काफी हलचल है। वैसे तो मिश्रा जी को दल विशेष से जोडक़र नहीं देखा जाता है, और उनके चाहने वाले हर दल में हैं। मगर चुनावी साल में उनकी लोकप्रियता का फायदा उठाने की भी कोशिश हो रही है।  सुनते हैं कि जनवरी-फरवरी में राजनांदगांव में भी कथाकार प्रदीप मिश्रा के शिव महापुराण कथा के आयोजन की रणनीति बनाई जा रही है। रायपुर में भी एक पूर्व मंत्री की अगुवाई में इसी तरह के कार्यक्रम की योजना पर काम चल रहा है। हालांकि अभी इन आयोजनों के लिए कथाकार की सहमति बाकी है। मगर चुनावी साल में धर्म का इस्तेमाल खूब होने के संकेत मिल रहे हैं।

जो खर्चा करेगा उसे ही टिकट

भानुप्रतापपुर उपचुनाव में भाजपा बेहतर प्रत्याशी की खोजबीन में लगी है। बुधवार को राज्यसभा के पूर्व सदस्य रामविचार नेताम की अगुवाई में पर्यवेक्षकों ने दावेदारों के नाम पर चर्चा भी की। कहा जा रहा है कि पार्टी नेता दावेदारों की आर्थिक ताकत भी आंक रहे हैं।
सुनते हैं कि चुनाव लडऩे के लिए पार्टी कोई बड़ा बजट उपलब्ध कराने की स्थिति में नहीं है। प्रत्याशी को खुद खर्च वहन करना पड़ेगा। ऐसे में उस दावेदार के नाम पर मुहर लग सकती है, जो सबसे ज्यादा खर्च करने में सक्षम होगा। वैसे इस पर अंतिम फैसला 12 तारीख को चुनाव समिति की बैठक में लिया जाएगा।

तेली जी तो अपने बीच के हैं..

असम से आने वाले केंद्रीय पेट्रोलियम राज्य मंत्री रामेश्वर तेली साइंस कॉलेज मैदान बिलासपुर में स्वदेशी मेले का उद्घाटन करने पहुंचे थे। मंच पर उन्होंने जब अपना उद्बोधन ठेठ छत्तीसगढ़ी बोली में देना शुरू किया तो कई लोग हैरान रह गए। सुनने से ही लग रहा था कि यह कोशिश करके सीखी हुई छत्तीसगढ़ी नहीं बोल रहे हैं बल्कि वे अभ्यस्त हैं। मंत्री ने खुद ही राज खोला। बताया कि उनके पूर्वज छत्तीसगढ़ के ही थे। करीब 200 साल पहले वे काम के सिलसिले में असम जाकर चाय बागानों के आसपास बस गए।  पीढिय़ों से वहां हैं, पर घर में सब छत्तीसगढ़ी में ही बात करते हैं। वहां छत्तीसगढ़ से गए लोगों का पूरा इलाका है। यहां के लोक कलाकार कार्यक्रम भी देने पहुंचते रहते हैं।

ऐसे तो नशा मत उतारो...

पिछले दिनों जांजगीर-चांपा जिले के सोनसरी की भ_ी से ली गई देसी शराब की बोतल में मरा हुआ सांप दिखा। कोरबा जिले के हरदी बाजार बोतल के भीतर मरा हुआ मेंढक भी हाल ही में मिला। अब इसी जिले के कुसमुंडा इलाके की देसी शराब दुकान से खरीदी गई बोतल में गुटखे का पाउच मिला है। ऐसी लापरवाही पहले भी सामने आती रही है, जब देसी बोतलों में कीड़े-मकोड़े मिले हैं। ज्यादातर इसे खरीदने वाले लोग गरीब और मजदूर तबके के होते हैं। वे कहीं शिकायत नहीं कर पाते हैं। शराब का मामला होने की वजह से भी झिझकते हैं। पर, अफसर-नेता भी ऐसी घटनाओं को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। सवाल तो यह भी है कि सांप-मेंढक नहीं भी मिले, तब भी क्या शराब की शुद्धता को लेकर पक्का कुछ कहा जा सकता है? पैकिंग जिन टैंकरों से हो रही है, उसकी क्या सफाई हो रही है? बोतलों की दुबारा इस्तेमाल करने से पहले धुलाई हो रही है? सरकार ने मजदूरों की सीमित कमाई का ध्यान रखते हुए देसी शराब की कीमत अंग्रेजी के मुकाबले कम ही बढ़ाई। पर अफसरों को उनकी सेहत का बिल्कुल भी ख्याल नहीं है।   

आरक्षण मसले के बीच उप-चुनाव

आदिवासी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट के फैसले के बाद गरमाई प्रदेश की सियासत के बीच सुरक्षित आदिवासी सीट भानूप्रतापपुर में उप-चुनाव का ऐलान हो गया है। भारतीय जनता पार्टी और आदिवासी समाज के एक धड़े ने इस मुद्दे को लेकर सरकार को घेर रखा है। सरकार पहले सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील पर गई। उसके बाद तय किया कि अन्य राज्यों से, जहां आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक है, रिपोर्ट ली जाए। उसका अध्ययन करने के बाद अंतिम विकल्प के रूप में विधानसभा का सत्र रखें। 3 दिन पहले एक समिति इसके लिए बना भी दी गई। इधर भाजपा ने आदिवासी बाहुल्य सरगुजा और बस्तर के कई जिलों में चक्का जाम कर दिया। कल अंबिकापुर, दंतेवाड़ा, कोंडागांव, धमतरी, सूरजपुर आदि में इसका असर देखा भी गया। अब विधानसभा का सत्र 1 और 2 दिसंबर को बुला लिया गया है। इसके तीन दिन बाद भानुप्रतापपुर में 5 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे। घटनाक्रम महत्वपूर्ण है।

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