राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : पूछताछ से हडक़ंप
11-Nov-2022 4:40 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : पूछताछ से हडक़ंप

पूछताछ से हडक़ंप

ईडी की टीम कोयला कारोबार, और परिवहन में मनी लॉड्रिंग केस की पड़ताल कर रही है। कारोबारियों, और केस से जुड़े अफसरों से रोजाना पूछताछ हो रही है। जिन कारोबारियों से पूछताछ हुई है उनमें एक नामी कारोबारी भी हैं। कारोबारी से पूछताछ की खबर से उद्योग जगत में हडक़ंप मचा है।

सुनते हैं कि कारोबारी को सुबह-सुबह पूछताछ के लिए बुलाया गया था। फिर उन्हें बाहर बैंच में बैठने के लिए कहा गया। पूछताछ तो ज्यादा देर नहीं चली, लेकिन उन्हें डेढ़ बजे रात को घर जाने की अनुमति दी गई। कारोबारी की उद्योगपतियों, और राजनेताओं के बीच बड़ी प्रतिष्ठा है। सरकार चाहे किसी की भी रहे, उनकी पूछपरख कम नहीं हुई।

पिछली सरकार में भी सीएम हो या सीएस, कारोबारी को मुलाकात के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता था। मनी लॉड्रिंग केस में उनकी क्या भूमिका है, इसका खुुलासा तो नहीं हुआ है, लेकिन दिग्गज कारोबारी से ईडी के पूछताछ के तौर तरीकों की खूब चर्चा हो रही है।

गुजरात ने नींद उड़ा दी

गुजरात चुनाव में जिस अंदाज में भाजपा ने सिटिंग एमएलए की टिकट काटी है, उससे छत्तीसगढ़ भाजपा के भीतर खूब चर्चा हो रही है। दो विधायक बलराम थौरानी, और निर्मला वाधवानी, जो कि पिछले चुनाव में 50 हजार से अधिक वोटों से जीते थे, उनकी टिकट काट दी गई। ऐसे लोगों को छांट-छांटकर टिकट दी गई जो कि भले ही पार्टी में सक्रिय नहीं रहे, लेकिन सामाजिक क्षेत्रों में काफी प्रतिष्ठा है। ऐसे ही अहमदाबाद के एक विधानसभा सीट से डॉ. ज्योति कुलकर्णी को टिकट दी गई, जिनकी एक चिकित्सक के रूप में अच्छी साख है।

सुनते हैं कि गुजरात की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में अलग-अलग क्षेत्रों के प्रतिष्ठित लोगों की तलाश की जा रही है। संघ परिवार खुद इस काम में लगा हुआ है। कहा जा रहा है कि  कई विधायकों की भी टिकट काटी जा सकती है। टिकट किसे मिलेगी, किसे नहीं, यह तो तय नहीं है, लेकिन गुजरात के टिकट वितरण ने छत्तीसगढ़ भाजपा के स्थापित नेताओं की नींद उड़ा दी है।  

एक अजीब सा फोन कॉल!

टेलीफोन पर हर दिन लोगों को बहुत सी अवांछित कॉल मिलती हैं जिनमें कहीं कोई बीमा पॉलिसी बेच रहे होते हैं, तो कहीं क्रेडिट कार्ड। बहुत से फोन जमीनों की बिक्री करने वालों के आते हैं, और फाइनेंस कंपनियां भी कर्ज देने पर आमादा रहती हैं, और उनके कॉल सेंटर से लड़कियां फोन करके लोगों को कर्ज लेने के लिए उकसाती रहती हैं। ऐसे सभी टेलीफोन कॉल के नंबरों को बहुत से लोग ब्लॉक करते चलते हैं ताकि बाद में इनसे और कॉल नहीं आएं। आज सुबह इस अखबारनवीस को हिन्दुस्तान के एक नंबर 9109309916 से एक फोन आया, उठाने पर सामने से सिर्फ मधुर संगीत आते रहा। फोन को काटने के लिए हाथ खाली नहीं थे, इसलिए ब्लूटूथ पर यह संगीत 15-20 सेकेंड सुनते रहना पड़ा। इसके बाद संगीत खत्म हुआ, और एक महिला की आवाज में एक संदेश आया, थैंक यू, गुड बाय।

अब यह बात समझ से परे है कि एक संगीत सुनाकर धन्यवाद देने, और विदा लेने के पीछे किस तरह की नीयत हो सकती है? न कुछ बेचा गया, न जालसाजी की गई, और न ही कोई संदेश दिया गया!

भरोसा उठ रहा है

छत्तीसगढ़ के मंत्रियों को लेकर एक अटपटी सी चर्चा चल रही है कि उन्होंने टेलीफोन पर बात करना, खुद होकर फोन करना, फोन कॉल को उठाना, सब कुछ कम कर दिया है। अब अगर यह किसी एजेंसी की चल रही जांच की वजह से है, या फिर किसी जांच के डर से है, तो इससे मंत्रियों का लोगों से संपर्क प्रभावित हो रहा है। जांच तो आती-जाती रहेगी, लेकिन लोगों का यह भरोसा अगर कमजोर हो रहा है कि उनके नेता उनके लिए उपलब्ध रहते हैं, तो यह राजनीति में, और खासकर चुनावी राजनीति में बड़े नुकसान की बात रहेगी। मंत्रियों से परे भी सार्वजनिक और सरकारी जीवन के बहुत से महत्वपूर्ण लोग मोबाइल सिमकार्ड से लगने वाली कॉल पर बात करना कम कर चुके हैं। कुछ को वॉट्सऐप सुहाता है, कुछ को सिग्नल या टेलीग्राम जैसा मैसेंजर, और कुछ आईफोनधारियों को फेसटाईम जैसा कॉल सुहाता है जिसके बारे में ऐसी साख है कि अमरीकी खुफिया एजेंसी भी उसमें घुसपैठ नहीं कर पाई है। देश भर के कई प्रदेशों में आक्रामक जांच के इस दौर में लोगों का टेक्नालॉजी पर से भरोसा उठ रहा है, लोगों पर से भरोसा तो कब का उठ चुका है।

धारणा बदलेंगी रंजीत रंजन ?

राज्यसभा सदस्य रंजीत रंजन छत्तीसगढ़ के दौरे पर आई हैं। बस्तर में स्काउट गाइड के कार्यक्रम में उन्हें शामिल होना है। इसके पहले वे तीजा-पोला त्यौहार पर भी छत्तीसगढ़ आ चुकी हैं। कांग्रेस की बहुमत वाली राज्यसभा की दोनों सीटों को प्रदेश से बाहर के नेताओं को दिए जाने के कारण पार्टी की बड़ी आलोचना हुई। भाजपा ने पूछा-क्या यही छत्तीसगढिय़ावाद है। लोगों को भी शिकायत है कि दिल्ली या दूसरे राज्यों से यहां के लिए चुने गए राज्यसभा सदस्य राज्य के दौरे पर आते तो हैं ही नहीं, जरूरी मुद्दों पर बयान तक नहीं देते। संयोगवश इसी दौरान केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलन करने छत्तीसगढ़ आई हैं और कल ही फिर बड़ी संख्या में रेलवे ने यात्री ट्रेनों को रद्द करने की घोषणा की है। दोनों मुद्दों पर रंजीत रंजन का बयान आया है। नक्सलवाद पर दिए गए बयान पर तो भाजपा की प्रतिक्रिया भी आने लगी है। उनके बयानों को प्रमुखता से मीडिया में जगह भी मिली है। सक्रियता अच्छी दिखाई दे रही है। लोगों को प्रदेश के बाहर से राज्यसभा टिकट दिए जाने का मलाल कम होगा। इस बीच  कांग्रेस के कुछ नेता यह भी टटोलने लगे हैं कि क्या दिल्ली तक पकड़ बनाने के लिए इनके नजदीक आना फायदेमंद होगा? देखना होगा कि सांसद महोदया ज्यादा दौरे कर अपना एक अलग गुट न बना लें।

करमा महोत्सव पर उठा विवाद

आदिवासी बाहुल्य सरगुजा संभाग में, जहां बड़ी संख्या धर्मांतरित ईसाईयों की भी है, उत्पन्न विवाद जल्दी सुलझ जाए इसके आसार नहीं दिखते। यहां ईसाई आदिवासी महासभा ने 8 नवंबर को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराने के लिए विशाल करमा उरांव नृत्य महोत्सव की तैयारी की थी। इस आयोजन का जनजातीय गौरव समाज और मूल आदिवासी हिंदू समाज ने विरोध किया। स्थिति तनावपूर्ण होने की आशंका में जिला प्रशासन ने महोत्सव की अनुमति वापस ले ली। प्रशासन का कहना है कि इसके लिए नई तिथि दी जाएगी। विरोध करने वालों का कहना है कि ईसाई धर्म को मानने वाले यदि आदिवासी नृत्य का आयोजन करेंगे तो भ्रम पैदा होगा।

ईसाई बन चुके अनेक आदिवासी अब भी शादी-ब्याह और त्यौहार पुराने तरीके से मनाते हैं। जिन्होंने धर्म नहीं बदला वे नाते रिश्तेदार भी इन आयोजनों में शामिल होते हैं। पर बड़े स्तर पर नृत्य महोत्सव के आयोजन के पीछे आदिवासी संगठनों को अलग ही कारण दिखाई दे रहा है। दरअसल, धर्म परिवर्तन के बाद आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा चल रहा है। विश्व हिंदू परिषद्, आरएसएस आदि संगठन अनेक बार कह चुके हैं कि ऐसे लोगों को आरक्षण से अलग किया जाए। दलित ईसाईयों और दलित मुस्लिमों के मामले में केंद्र सरकार ने यही रुख अपनाया है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने अभी-अभी इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा भी दे दिया है। ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले आदिवासियों के मामले में भी अनुमान है कि केंद्र का यही रुख होगा। मूल आदिवासी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि नृत्य महोत्सव जैसा आयोजन धर्म परिवर्तन करने वालों का यह दावा मजबूत करेगा कि वे आदिवासी समुदाय को मिलने वाले आरक्षण के हकदार हैं। धर्मांतरित वर्ग का कहना है कि उनकी सिर्फ आस्था मसीही धर्म पर है, जाति अलग  है और वे आदिवासी ही हैं। सरगुजा प्रशासन ने अभी नृत्य महोत्सव को सिर्फ स्थगित करने कहा है, पर आगे जब भी कोई नई तिथि तय की जाएगी, यह मुद्दा शांत हो चुका रहेगा, इसके आसार कम हैं।

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