राजपथ - जनपथ
एक और अफसर को गृह राज्य में पद
छत्तीसगढ़ में काम कर चुके पश्चिम बंगाल कैडर के आईएएस पी रमेश कुमार आंध्रप्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर काबिज हो गए हैं। रमेश कुमार आईएएस के 86 बैच के अफसर हैं, और पश्चिम बंगाल में एसीएस के पद से रिटायर हुए। रमेश कुमार छत्तीसगढ़ में प्रतिनियुक्ति पर 5 साल काम कर चुके हैं। यहां वो उद्योग, महिला बाल विकास, और उच्च शिक्षा सचिव रहे हैं।
बताते हैं कि रमेश कुमार आंध्रप्रदेश के कड़प्पा जिले के रहने वाले हैं, और यह सीएम जगनमोहन रेड्डी का गृह जिला है। कई प्रमुख दावेदारों को नजर अंदाज रमेश कुमार की नियुक्ति की गई। छत्तीसगढ़ कैडर के एक और अफसर राबर्ट हरंगडोला भी अपने गृह राज्य नागालैंड के मुख्य सूचना आयुक्त रहे हैं। राबर्ट हरंगडोला जोगी सरकार में गृह, और श्रम विभाग के प्रमुख सचिव के पद पर रहे। सालभर पहले ही हरंगडोला निधन हो गया।
और छत्तीसगढ़ सूचना आयोग
दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में सूचना आयोग में एक कुर्सी खाली हो चुकी है, और दूसरी इसी महीने खाली होने जा रही है। इन दो कुर्सियों के लिए कई रिटायर्ड आईएएस और पत्रकार कतार में हैं, लेकिन इसकी बैठक में विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष भी मौजूद रहते हैं, अभी तक इसके लिए सरकार के पास समय नहीं निकल पाया है। सूचना आयोग में कर्मचारियों की इतनी कमी है कि आदेश भी टाइप नहीं हो पाते। नये अध्यक्ष और सदस्य आ भी जाएंगे तो भी कतार में लगे हजारों केस तो नहीं निपट जाएंगे।
ऑनलाइन सट्टा प्रचार छत्तीसगढ़ी में
एक तरफ तो पुलिस संसाधन को होटल, दुकान, जंगल में छापा मारकर 10-20 हजार रुपये का जुआ पकड़ कर 8-10 लोगों को गिरफ्तार करने में लगाया जा रहा है, दूसरी तरफ ऑनलाइन सट्टा छत्तीसगढ़ के लोगों को कई गुना ज्यादा बर्बाद कर रहा है। इसमें हजारों लोग शामिल हैं और लाखों रुपये रोज गंवा रहे हैं, पर पुलिस सरगना तक पहुंच नहीं पाती है। महादेव और अन्ना रेड्डी सट्टा खिलाने वाले अरबों रुपये हड़प रहे और इंटरनेशनल लेवल पर रैकेट चला रहे हैं। यहां के पढ़े-लिखे बेरोजगार कुछ रुपयों की लालच में जुड़ गए वे धरे जा रहे हैं। इनसे प्रेरणा लेकर छोटे-छोटे स्थानीय उस्ताद भी पैदा हो गए हैं। वे वाट्सएप के जरिये सट्टा खिला रहे हैं। आईपीएल और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में करोड़ों रुपये का कारोबार होता है, पर दो चार ही पुलिस की पकड़ आते हैं।
सूचना प्रसारण मंत्रालय ने अक्टूबर माह के पहले सप्ताह में एक सख्त गाइडलाइन टीवी चैनलों, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स, डिजिटल मीडिया और न्यूज वेबसाइट्स के लिए जारी की थी कि ऑनलाइन विदेशी सट्टेबाजी प्लेटफॉर्म का छद्म प्रचार हो रहा है। इस पर रोक नहीं लगी तो मंत्रालय कानूनी विकल्प का इस्तेमाल करेगा। पर इसका कोई असर नहीं दिख रहा है। किसी पोर्टल को खोलें तो बैनर में यही विज्ञापन दिखता है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसे लेकर पिछले महीने ही चिंता जताई थी। उन्होंने कहा कि अभी सख्त कानून नहीं होने के कारण अपराधियों को खौफ नहीं है, जल्दी ही जमानत पर छूट जाते हैं। केंद्र यदि सख्त आईटी कानून बनाता है, तो हम साथ हैं। अक्टूबर में जारी केंद्र की गाइडलाइन विफल दिखाई ही नहीं पड़ रही है बल्कि सट्टेबाज अब हमारे और पास आ रहे हैं। गांव-गांव तक पहुंचने के लिए वाट्सएप और सोशल मीडिया के दूसरे प्लेटफॉर्म पर छत्तीसगढ़ी बोली का इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसी आकर्षक बातें कि मजदूर, रिक्शा चालक, गृहणियां भी ललचा जाएं। लोगों को लगता है कि जब अपने आसपास का व्यक्ति हमारी अपनी बोली में हजारों रुपये जीतने की बात कर रहा है तो क्यों नहीं आजमाया जाए।
सीएसआर और अस्पताल
अकलतरा के विधायक सौरभ सिंह ने अभी प्रदेश के एक सबसे बड़े उद्योग बालको का एक कागज जुटाया है जिसमें उसके पिछले बरस के सीएसआर के खर्च का करीब 90 फीसदी सिर्फ बालको मेडिकल सेंटर पर खर्च हुआ है। 47.41 करोड़ का कुल सीएसआर खर्च हुआ जिसमें से 44.05 करोड़ बालको मेडिकल सेंटर को दिया गया। अब बिलासपुर में एयरपोर्ट के लिए आंदोलन कर रहे लोगों ने इसके खिलाफ नाराजगी जताई है कि सारा पैसा बालको ने अपने ही अस्पताल पर खर्च कर दिया। कुछ ने यह भी लिखा कि कार्पोरेट सोशल रिस्पॉंसिबिलिटी के नाम पर बालको ने अपने ही अस्पताल को दान दिया।
लोगों की भावनाएं भडक़ने में देर नहीं लगती। कोरबा में चल रहे इस उद्योग के सीएसआर की छोटी सी रकम कोरबा में खर्च हुई है, इसलिए वहां के लोगों को भी निराशा हो सकती है। लेकिन यह भी समझने की जरूरत है कि बालको का रायपुर का अस्पताल चैरिटेबल अस्पताल है, और कैंसर का छत्तीसगढ़ का एक सबसे बड़ा अस्पताल है। छत्तीसगढ़ में कैंसर मरीजों के लिए यह एक बड़ी सहूलियत है, और ऐसे अस्पताल को चलाने का काम सस्ता नहीं होता है, उसमें बड़ी रकम लगती है, और अगर कोई उद्योग अपने सीएसआर को कई जिलों में छोटे-छोटे कामों में बांटने के बजाय उससे प्रदेश स्तर का एक बड़ा अस्पताल चला रहा है, तो उसके महत्व को भी समझने की जरूरत है। ऐसा बड़ा विशेषज्ञ सहूलियतों वाला अस्पताल छोटी लागत से न बन सकता, न वह छोटे खर्च से चल सकता। इस अस्पताल में साल भर में 8 हजार से अधिक कैंसर मरीजों का इलाज हो रहा है, जिसमें से बालको के कर्मचारी कुल 8 या 10 हैं। अब कैंसर के मरीज और उनके परिवार जानते हैं कि ऐसे अस्पताल की कितनी जरूरत है।
एक नए कारोबार की संभावना
अभी महाराष्ट्र के एक किसी कारोबारी प्रदर्शनी की एक तस्वीर सामने आई है जिसमें एक कंपनी के स्टॉल के सामने एक अर्थी रखी हुई है। अब यह नजारा देखने में अटपटा लग रहा है, लेकिन कंपनी का नाम, सुखांत फ्यूनरल मैनेजमेंट प्रा.लि., बताता है कि यह अंतिम संस्कार का इंतजाम करने वाली कंपनी है। अब पश्चिम के देशों में तो अंतिम संस्कारों के लिए पेशेवर लोग रहते हैं जो कि शव को ताबूत में सजाने का काम भी करते हैं, और शव वाहन से लेकर दफन तक का पूरा इंतजाम करते हैं। यह अब हिन्दुस्तान के हिन्दू धर्म के अंतिम संस्कार में भी पहुंच गया पेशा दिखता है। शहरीकरण के साथ-साथ लोगों की जिंदगी में इतना समय भी नहीं रहता कि अंतिम संस्कार की सारी दौड़-भाग पूरी कर सकें, ऐसे में अगर कोई पेशेवर कंपनी सारा इंतजाम अच्छे से कर सके, तो यह एक नया कारोबार हो सकता है। कुछ बेरोजगार लोग इससे नसीहत ले सकते हैं। [email protected]