राजपथ - जनपथ
स्कूलों में बदहाली का हाल ऐसा
छत्तीसगढ़ में जगह-जगह स्कूल शिक्षक शराब पीकर स्कूल आ रहे हैं, और कुछ मामलों में तो स्कूल में बैठकर भी शराब पी रहे हैं। दोनों ही किस्म की तस्वीरें दिल दहला रही हैं कि बेरोजगारी वाले इस देश-प्रदेश में जिन्हें नौकरी मिली है वे इसके महत्व से किस हद तक बेपरवाह हैं। दूसरी तरफ फिक्र की बात यह भी है कि जिनका बच्चों से सीधा वास्ता पड़ता है, वे भी इस तरह दारू पीकर आ रहे हैं, या बच्चों के सामने स्कूल में दारू पी रहे हैं। ऐसे कई फोटो और वीडियो खबरों में आने के बाद भी राज्य सरकार का स्कूल शिक्षा विभाग नहीं जागा है। लेकिन एक जिले, आदिवासी इलाके जशपुर के जिला शिक्षा अधिकारी ने सभी कर्मचारियों-अधिकारियों को एक नोटिस जारी किया है कि वे सरकारी कर्मचारियों के आचरण नियम 1965 के तहत एक घोषणा पत्र पर दस्तखत करके जमा करें। इस नोटिस में लिखा गया है कि प्राय: यह देखा जा रहा है कि ड्यूटी के दौरान ही शासकीय सेवक दारू पीकर दफ्तर या स्कूल में आ रहे हैं जिससे वातावरण खराब हो रहा है, और छात्र-छात्राओं पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए यह घोषणा भरकर जमा करें कि वे ड्यूटी के दौरान या सार्वजनिक रूप से शराब नहीं पिएंगे।
तब तो बस एक मुद्दा काम करेगा...
भानुप्रतापपुर उप-चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी ब्रह्मानंद नेताम के खिलाफ सनसनीखेज दस्तावेज सामने लाकर कांग्रेस ने चुनाव को दिलचस्प मोड़ पर ला दिया है। उन पर झारखंड में पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध दर्ज होने का दावा किया गया है। चूंकि आरोप प्रदेश कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की ओर से सीधे लगाया गया है इसलिए इसकी सत्यता की ठीक तरह से जांच जरूर की गई होगी। भाजपा प्रत्याशी ने आरोपों को बेबुनियाद बताया है। पार्टी अपने उम्मीदवार के पक्ष में खड़ी दिखाई दे रही है। संभवत: भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की तरफ से ही इसका जवाब आएगा। पर, आरोप लगाने का जो दिन कांग्रेस ने तय किया वह भी खास है। यह दिन है स्क्रूटनी हो जाने और नामांकन वापस लेने के पहले का। नामांकन पत्रों की जांच के दौरान आपत्ति नहीं की गई, हो सकता है तब तक दस्तावेज कांग्रेस के हाथ नहीं आ पाए हों। कांग्रेस ने जानकारी छिपाने की वजह से नेताम का नामांकन रद्द करने की मांग की है, पर जानकार बताते हैं कि चूंकि जांच की प्रक्रिया के दौरान आपत्ति नहीं की, इसलिए चुनाव आयोग शायद ही इस मांग को माने। भाजपा के पास अब प्रत्याशी बदलने का भी वक्त नहीं है। भाजपा यदि इस हमले का ठीक तरह से जवाब नहीं दे पाएगी तो बाकी मुद्दे गौण हो जाएंगे और पूरा प्रचार अभियान नेताम के खिलाफ लगे आरोपों और उसकी सफाई के इर्द-गिर्द तक ही सीमित रह जाएगा।
सांसदों के आदर्श गांव किस हाल में हैं?
केंद्र सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना सांसद आदर्श ग्राम योजना भी है। सन् 2014 में जब मोदी सरकार का पहला कार्यकाल शुरू हुआ था तो सांसदों को एक-एक ग्राम गोद लेने के लिए कहा गया था। यह निर्देश अक्टूबर 2015 में जारी हुआ। उसके बाद सन् 2016 में फिर एक और उसके बाद 2017 में फिर एक ग्राम। इस तरह से उस कार्यकाल में तीन ग्रामों को गोद लिया जाना था। इसी तरह दूसरे कार्यकाल में सांसदों को एक-एक गांव को गोद लेना था। सरकारी वेबसाइट में जो नवीनतम रिपोर्ट दिखाई गई है, उसके अनुसार छत्तीसगढ़ के 23 गांवों की रैंकिंग में शामिल किया गया है। जुलाई माह की एक रिपोर्ट दिखाई दे रही है जिसमें अधिकांश सांसदों ने कहा है कि कोरोना के दौरान सांसद निधि के आवंटन में अवरोध आ जाने के कारण गोद गांवों के विकास नहीं हो सके। सांसदों ने यह भी बताया है कि किस तरह वहां उन्होंने पेयजल, सामुदायिक भवन, सडक़ आदि के लिए राशि आवंटित किए हैं। हर तीन माह में इन गांवों की समीक्षा होनी चाहिए पर ज्यादातर सांसद ऐसी बैठकें नहीं ले रहे हैं।
दूसरी तरफ इसके लक्ष्य सडक़, पेयजल, भवन तक सीमित नहीं है। यह तो दूसरे मदों से भी होता रहता है। सरकार ने आदर्श ग्राम के लक्ष्य इस तरह बताए हैं- समाज के सभी वर्ग की भागीदारी से ग्राम की समस्याओं का समाधान किया जाए। अंत्योदय का पालन हो- यानि सबसे गरीब या कमजोर का सबसे पहले विकास हो, महिलाओं के लिए सम्मान हो, लैंगिक समानता हो, श्रम की गरिमा हो, सफाई की संस्कृति हो, लोग प्रकृति के सहचर बनें, विरासत को सहेजें, सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता, जवाबदेही, ईमानदारी हो, शांति सद्भाव को बढ़ावा दिया जाए, संविधान में उल्लेखित मौलिक अधिकार और कर्तव्य का पालन हो..आदि, आदि। अब आप चाहें तो सांसद के किसी गोद लिए गांव को ढूंढें और पता करें कि वहां क्या स्थिति है। [email protected]