राजपथ - जनपथ
एक साथ कई टोपियां
इन दिनों एक-एक लोग एक साथ कई किस्म की टोपियां पहनकर घूमते हैं। गाडिय़ों के पीछे या सामने जो स्टिकर लगे रहते हैं, वे राजनीतिक दलों के भी हो सकते हैं, किसी साम्प्रदायिक संगठन के भी हो सकते हैं, और साथ-साथ प्रेस का स्टिकर भी दिख सकता है। अब प्रेस के साम्प्रदायिक होने पर कोई रोक तो है नहीं। कुछ गाडिय़ों पर तो इन सबके साथ-साथ पुलिस का भी स्टिकर लगे रहता है, और समझ नहीं आता कि वे पुलिस की प्रेस गाड़ी हैं, या प्रेस की पुलिस गाड़ी।
अभी धरनास्थल पर इस अखबार के फोटोग्राफर को एक मोटरसाइकिल ऐसी दिखी जिसके हर हिस्से पर मूल निवासी के स्टिकर लगे थे, और सामने प्रेस का भी स्टिकर लगा था, सुरक्षागार्ड मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष का भी स्टिकर लगा था, और ‘जाग मूल निवासी, भाग विदेशी’ का स्टिकर भी लगा था।
बटालियन भर्ती के अधूरे नतीजे..
सुरक्षा बलों के साथ काम करने के लिए राज्य पुलिस ने जब बस्तर फाइटर्स की भर्ती शुरू की गई तो नक्सल संगठनों ने इसका काफी विरोध किया। इस भर्ती के विरोध में उन्होंने सडक़ काटकर बैनर-पोस्टर लगाए थे। बेरोजगारी से जूझ रहे बस्तर के युवाओं ने धमकियों के बाद भी बड़ी संख्या में आवेदन लगाए। इनमें युवतियां भी शामिल हुईं। 2800 पदों पर भर्ती की प्रक्रिया चलने के दौरान ही सीआरपीएफ ने भी दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर से 400 युवाओं को बस्तर बटालियन में नौकरी देने की घोषणा की। पर इसकी पहली ही सूची विवादों में घिर गई। दंतेवाड़ा में 144 युवाओं की मेडिकल के लिए सूची निकाली गई, पर इसमें नाम नहीं केवल रोल नंबर है। आवेदन करने वाले युवाओं ने कल इसके खिलाफ प्रदर्शन किया। रोल नंबर से पता नहीं चल रहा है कि किनका चयन किया गया। स्थानीय युवाओं को मौका देने की बात कही गई थी, पर उन्हें आशंका है कि बाहरी लोग भर लिए गए। नाम इसीलिए छिपाये गए। सीआरपीएफ का कहना है कि नाम उजागर करना ठीक नहीं होगा। वे नक्सलियों के निगाह में आ जाएंगे। युवाओं का कहना है कि जब वे पुलिस में शामिल होने के लिए तैयार हो ही गए हैं तो कैसा डर? तरीका इतना गोपनीय भी नहीं रहा है। इसके लिए बकायदा विज्ञापन दिए गए हैं। सीआरपीएफ के कैंप में युवा आवेदन देने और शारीरिक परीक्षण के लिए भी पहुंचे हैं। चयन सूची सार्वजनिक भले ही न की जाए, लेकिन भर्ती में भाग लेने वालों को सूची तो दिखा देनी चाहिए, ताकि वे संतुष्ट हो सकें कि जिनको शार्ट-लिस्ट में रखा गया है वे सबसे काबिल हैं और स्थानीय हैं। किसका चयन हुआ, क्यों हुआ, क्यों नहीं हुआ- यह जानना तो उनका हक है। यह भर्ती अभियान फोर्स और स्थानीय युवाओं के बीच भरोसा बढ़ाने की अच्छी कोशिश है। पर भर्ती में पारदर्शिता को लेकर उठ रही शंका का समाधान अधिकारियों को दिक्कत क्यों होनी चाहिए?
विधायक रस्साकशी में उलझे..
प्रदेश के दूसरे जिलों की तरह बिलासपुर में भी कांग्रेस नेताओं के बीच रस्साकशी चल रही है। सार्वजनिक मंचों पर विधायक शैलेष पांडेय को उनको पार्टी के लोग किनारे करने की भरसक कोशिश करते आ रहै हैं। खासकर वे लोग जो सत्ता के करीब हैं। पर इसकी वजह से वे खाली नहीं बैठ जाते हैं। वे इन दिनों बाजार, दुकान, वार्ड और घरों में मतदाताओं से सीधा संपर्क कर रहे हैं। कुछ दिन पहले वे चाकू तेज करने वाली एक दुकान में चले गए। वहां चाकू की धार तेज करने के लिए बैठ गए। फिर, आलू बेच रहे ठेले वाले से तराजू लेकर खुद ही आलू बेचने लगे। एक जगह छत्तीसगढ़ी ओलंपिक मैच देखने गए तो वहां रस्साकशी का खेल चल रहा था। एक टीम की मदद के लिए विधायक पहुंच गए और खुद रस्सी खींचने में लग गए। विधायक ने कहा कि उन्होंने खिलाडिय़ों का हौसला बढ़ाने के लिए ऐसा किया। लोगों ने कहा- रस्साकशी के बीच काम कर रहे हैं, इस खेल में शामिल होना उनको अच्छा लगा होगा।
कानून अपने हाथ में..
एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसे नारायणपुर बस्तर का बताया गया है। कुछ लोग दो युवकों को लाठियों से मारकर भगा रहे हैं। वहां 20-25 लोगों की भीड़ भी है। कुछ लाठियों के साथ, तो कुछ दर्शक हैं। शायद वे पहले से मौजूद हैं। हिंदुत्ववादी संगठनों का कहना है कि जिन्हें पीटा जा रहा है वे पास्टर हैं। गांव के कुछ लोग इन्हें पीट रहे हैं। सवाल है कि यदि दबाव या लालच से धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है तो पुलिस के पास किसी ने शिकायत की या नहीं? जिन लोगों ने मार खाई क्या वे पिटने के बाद पुलिस के पास शिकायत लेकर पहुंचे? क्या पुलिस इस घटना से अनजान है, सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो जाने के बाद भी! [email protected]