राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : भाजपा से ज्यादा व्यवस्थित प्रचार
27-Nov-2022 4:48 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : भाजपा से ज्यादा व्यवस्थित प्रचार

भाजपा से ज्यादा व्यवस्थित प्रचार

भानुप्रतापपुर में भाजपा प्रत्याशी पर रेप केस के चलते पार्टी बुरी तरह फंस गई है। कांग्रेस ने अब पूर्व सीएम रमन सिंह को निशाने पर लिया है। कांग्रेस नेता, रमन सिंह के पूर्व पीए ओपी गुप्ता के खिलाफ रेप केस को भी सोशल मीडिया में उछालकर भाजपा पर हमला बोल रहे हैं। भाजपा के दिग्गज नेताओं का हाल यह है कि वो प्रचार की औपचारिकता निभा रहे हैं।

सुनते हैं कि पार्टी के फायर ब्रांड एक पूर्व मंत्री को सब कुछ छोडकऱ गुजरात से प्रचार के लिए यहां बुलाया गया। पूर्व मंत्री भानुप्रतापपुर गए भी लेकिन बाद में वो एक दवा सप्लायर के यहां पारिवारिक कार्यक्रम में शिरकत करने दुर्ग निकल गए। बाकी नेता भी बीच-बीच में शादी व अन्य कार्यक्रमों में हिस्सा लेने निकल जाते हैं। कुल मिलाकर प्रचार की कमान स्थानीय नेता ही संभाल रहे हैं। अभी तक की स्थिति में तो भाजपा से ज्यादा व्यवस्थित प्रचार सर्वआदिवासी समाज के प्रत्याशी अकबर राम कोर्राम का चल रहा है। अभी प्रचार में 6 दिन बाकी है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।

बसपा के जनाधार में सेंध?

राहुल गांधी की पदयात्रा के बाद दूसरे दलों के नेता भी इसी रास्ते पर चल निकले हैं। स्व. अजीत जोगी ने कभी अविभाजित मध्यप्रदेश में लंबी पदयात्रा की थी। अब उनके पुत्र छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जे) के अध्यक्ष अमित जोगी ने 26 नवंबर से पदयात्रा शुरू की है। बहुत से राजनीतिक पंडित यह मानकर चल रहे हैं कि छजकां का अधिकतम प्रभाव सन् 2018 के चुनाव में दिख गया, अब वो बात नहीं रही। तब मुख्यमंत्री स्व अजीत जोगी की उपस्थिति भी थी। उसके बाद से छजकां टूटती ही गई है। संस्थापक रहे उनके बेहद करीबी भी अब पार्टी छोडक़र जा चुके हैं। दो सीटें उप-चुनाव में छिन गई, एक विधायक धर्मजीत सिंह को बाहर कर दिया गया। पर कल धार्मिक नगरी मल्हार से शुरू हुई पदयात्रा के लिए रखी गई जनसभा में जिस तरह भीड़ उमड़ी, उसने लोगों को जोगी के कार्यक्रमों की याद दिला दी। यह भी तय कर दिया कि जोगी के गुजर जाने के बाद भी उनके समर्थक पार्टी के साथ अभी भी हैं।

सन् 2018 के चुनाव में जिस बसपा ने छजकां से गठबंधन किया था, वह सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में अलग हो गई। गौर करने की बात यह है कि अमित जोगी तीन चरणों में जनवरी तक चलने वाली पदयात्रा में जिन 6 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरेंगे वे सभी बसपा के जनाधार वाली हैं। प्रदेश में बसपा की दोनों सीटें इन्हीं में से है। एक जैजैपुर को छोडक़र बाकी पांच सीटों में बहुजन समाज पार्टी या तो जीती या फिर उसने जीतने वाले उम्मीदवार को कड़ी टक्कर दी। मस्तूरी में 2013 के विधायक दिलीप लहरिया को बसपा उम्मीदवार जयेंद्र सिंह पात्रे ने तीसरे स्थान पर खिसका दिया। यहां से भाजपा के डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी जीत गए। पात्रे को जोगी का ही प्रत्याशी बताया गया था। बिलाईगढ़ से कांग्रेस के चंद्रदेव राय को भी बसपा के श्याम कुमार टंडन ने टक्कर दी। अमित जोगी की पत्नी ऋचा जोगी अकलतरा में भाजपा प्रत्याशी सौरभ सिंह केवल दो हजार वोट से हारीं। पामगढ़ में कांग्रेस को बसपा की इंदु बंजारे ने हराया। चंद्रपुर में भी कांग्रेस के रामकुमार यादव जीते पर सिर्फ 4400 मतों से। यहां बसपा प्रत्याशी गीतांजलि पटेल ने उन्हें कड़ी टक्कर दी। जैजैपुर में तो बसपा का जबरदस्त असर देखा गया जहां केशव चंद्रा ने भाजपा के कैलाश साहू को 21 हजार वोटों से हराया। कांग्रेस यहां भी तीसरे स्थान पर खिसक गई थी।

अमित जोगी और ऋचा जोगी इस समय अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र रद्द हो जाने के संकट से जूझ रहे हैं। छानबीन समिति और राज्य सरकार के आदेशों को उन्होंने कोर्ट में चुनौती जरूर दी है, पर इनका फैसला कब आएगा, कुछ नहीं कहा जा सकता। अभी जिन 6 सीटों में अमित जोगी और उनकी पार्टी पहुंच रही है, उनमें से तीन सामान्य सीटें हैं, जहां लडऩे के लिए जाति संबंधी दस्तावेज नहीं चाहिए। पर इन सभी में अनुसूचित जाति के मतदाताओं की बड़ी संख्या है। बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने अपनी चुनावी राजनीति यहीं के जांजगीर लोकसभा सीट से  शुरू की थी। अनुसूचित जाति वर्ग में निर्विवाद रूप से स्व. अजीत जोगी की अच्छी पैठ रही है। इस इलाके में भी। इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए समझा जा सकता है कि अमित जोगी ने अपनी यात्रा इन्हीं सीटों पर केंद्रित क्यों रखा है।

अब लड़ाई जीत के लिए ही...

भानुप्रतापपुर उप-चुनाव में कांग्रेस-भाजपा के अलावा सर्व आदिवासी समाज की साख भी दांव पर लग गई है। समाज के सदस्य किस दल से जुड़े हैं पहले यह गौण था, लेकिन अब वह राजनीतिक भूमिका में है। जब सभी पंचायतों से एक-एक उम्मीदवार मैदान में उतारने का निर्णय लिया गया तब संगठन ने स्पष्ट किया था कि चुनाव जीतना उनका उद्देश्य नहीं है, वे सिर्फ यह देखना चाहते हैं कि मतदाता आदिवासी आरक्षण के सवाल पर दोनों प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और भाजपा की भूमिका के खिलाफ हैं या नहीं। अब उनका कुल एक ही उम्मीदवार लड़ रहा है। अब यह नहीं कहा जा सकता कि जीत के लिए नहीं लड़ रहे हैं। चुनाव प्रचार में लगभग एक सप्ताह का समय है। इस अवधि में यदि वह त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बनाने में भी कायमाब हो गए तो यह उनकी सफलता के रूप में देखा जाएगा। [email protected]

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