राजपथ - जनपथ

दोनों तरफ से जुर्म
भानुप्रतापपुर उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार ब्रम्हानंद नेताम को एक नाबालिग से बलात्कार और उसे देह के कारोबार में धकेलने के मामले में गिरफ्तार करने आई हुई झारखंड की पुलिस से कांग्रेस और भाजपा में पहले से खिंची हुई तलवारों में नई धार हो गई है। अब इन दोनों ही पार्टियों के लोग नए उत्साह से हमलों में जुट गए हैं। भाजपा जो कल तक अपने उम्मीदवार की गिरफ्तारी की आशंका जाहिर कर रही थी, अब वह कांग्रेस पार्टी को चुनौती दे रही है कि वह झारखंड पुलिस से भाजपा उम्मीदवार को गिरफ्तार ही करवा दे। चुनाव संचालक बृजमोहन अग्रवाल का कहना है कि उनका उम्मीदवार जेल में रहकर और अधिक वोटों से जीतेगा। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने इसे फर्जी मामला करार दिया है। एक नाबालिग लडक़ी द्वारा बलात्कार की शिकायत को फर्जी करार देने का काम डॉ. रमन सिंह एक बार पहले भी कर चुके हैं। जब बापू कहा जाने वाला आसाराम एक नाबालिग छात्रा के साथ बलात्कार में गिरफ्तार हुआ था, तो अपने राष्ट्रीय संगठन के निर्देश पर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने तुरंत ही सार्वजनिक रूप से इस गिरफ्तारी को राजनीतिक साजिश करार दिया था। यह एक और बात थी कि मामला इतना पुख्ता साबित हुआ कि मोदी के प्रधानमंत्री रहते सात बरस हो गए, लेकिन इस मामले में आसाराम की जमानत तक नहीं हो पाई। लोगों को याद होगा कि ऐसे ही एक मामले में नाबालिग लडक़ी की बलात्कार की शिकायत को राजनीतिक साजिश कहने वाले यूपी के बड़े समाजवादी नेता आजम खां को सुप्रीम कोर्ट में माफी मांगनी पड़ी थी, वरना उनके जेल जाने का खतरा था। अब झारखंड के इस बलात्कार के मामले में कांग्रेस और भाजपा दोनों छत्तीसगढ़ में बढ़-चढक़र गलतियां कर रहे हैं। और जब कानून को जानने वाले बड़े-बड़े नेता गलतियां करें, तो वे गलतियां नहीं होतीं, वे गलत काम होते हैं। कांग्रेस भी इस मामले के सारे दस्तावेज प्रेस को जारी करके इस नाबालिग बच्ची की पहचान उजागर करने की मुजरिम हो चुकी है, और भाजपा के नेता इसे राजनीतिक साजिश कहकर एक दूसरे किस्म का जुर्म कर चुके हैं। अभी तो चुनाव की गर्मी है इसलिए कानून अपना काम तेजी से नहीं कर पा रहा है, लेकिन मतदान के बाद कानूनी शिकायतें जोर पकड़ेंगी।
कोलाहल को लेकर जज की चिंता
ध्वनि विस्तार यंत्रों के प्रयोग में नियमों का उल्लंघन हो तो रोकने का काम पुलिस-प्रशासन का है। पर कार्रवाई नागरिकों, समाजसेवियों की ओर से दबाव पड़े तभी की जाती है। राजधानी रायपुर में बीते मई माह में अनेक लोगों पर कार्रवाई सामाजिक कार्यकर्ताओं के दबाव पर ही हो पाई थी। इधर बीते 22-23 नवंबर की रात रायपुर के बीचों-बीच सिविल लाइन और गोलबाजार इलाके में तेज आवाज में डीजे बजता रहा। कोई कार्रवाई नहीं हुई। कानून के छात्रों ने कहीं और नहीं सीधे डिस्ट्रिक्ट जज संतोष शर्मा से इसकी शिकायत कर दी। आम तौर पर अदालतें ऐसी शिकायतें लेती नहीं, न ही लोग उनसे शिकायत करने पहुंचते हैं, क्योंकि कानून का पालन कराने की जिम्मेदारी तो कलेक्टर, एसपी पर है। जिला जज ने मामले की गंभीरता को समझते हुए शिकायत ली। उन्होंने कलेक्टर, एसपी और संबंधित लोगों को पत्र लिखा है। साथ ही जानकारी मंगाई है कि कोलाहल के मामलों में वह क्या कार्रवाई कर रही है। उन्होंने लोगों से कहा है कि आगे भी कोलाहल नियंत्रण अधिनियम का उल्लंघन हो तो वे जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में शिकायत करें। मुमकिन है जिला जज के सीधे दखल के बाद कार्रवाई होते दिखाई देगी।
नामों पर एक सवाल तो बनता है
छत्तीसगढ़ में कुछ नए जिलों के नाम इतने लंबे हो गए हैं कि सरकारी कामकाज के अलावा आम लोग भी उनके संक्षिप्त नामों का ही इस्तेमाल करने लगे हैं। पहले ऐसा एक जिला था, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिसे जीपीएम कहा जाने लगा था. अब उस किस्म के कुछ और जिले भी हो गए हैं. ऐसा ही एक जिला खैरागढ़-छुईखदान-गंडई है जिसे कि केसीजी कहा जा रहा है. एक जिला सरगुजा में मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर हो गया है जिसे एमसीबी कहा जा रहा है। राजनांदगांव से अलग करके बनाया गया मोहला-मानपुर-चौकी भी तीन नामों वाला एक जिला है, एमएमसी। ऐसे तीन-तीन जगहों के नाम वाले ये 4 जिले तो हो ही गए हैं, इनके अलावा सारंगढ़-बिलाईगढ़ भी एक जिला है, और जांजगीर-चांपा दूसरा जिला है जो कि दो-दो जगहों के नाम वाले हैं। अब अगले चुनाव तक हो सकता है कि दो-तीन नामों वाला कोई और जिला भी बन जाए. फिलहाल तो सामान्य ज्ञान की परीक्षा में छत्तीसगढ़ के तीन-तीन जगहों वाले जिलों के संक्षिप्त अक्षरों से उनके पूरे नाम पूछने का एक सवाल तो बनता ही है।
एटीआर और उदंती में बाघिन
वन्य जीव प्रेमियों के लिए दो खबरें एक साथ आईं। उदंती-सीतानदी अभयारण्य के ट्रैप कैमरे में एक बाघिन कैद हुई है। इसके पहले यहां 2019 में बाघिन देखी गई थी। इसका डील-डौल उससे अलग है। दूसरी ओर अचानकमार अभयारण्य में एक बाघिन के पगमार्क दिखे। पंजों के निशान से पहचाना गया कि वह मादा है। उदंती में 4 से 6 बाघ होने की जानकारी वन विभाग देता है। यह ओडिशा के सोनाबेड़ा अभयारण्य से जुड़ा हुआ है। बाघ दोनों ही जंगलों में विचरण करते रहते हैं। अचानकमार अभयारण्य में कितने बाघ हैं इस पर अलग-अलग दावे किए जाते हैं। वन विभाग कभी 17 तो कभी 12 बाघ बताता है। इन दावों पर पर्यटक विश्वास नहीं करते। किसी खुशकिस्मत सैलानी को कभी एकाध बाघ दिख जाए तो अलग बात है। संरक्षण को लेकर पड़ोसी मध्यप्रदेश की तरह यहां चिंता नहीं दिखाई देती। फिर भी एक ही समय छत्तीसगढ़ के दो अलग-अलग छोर में बाघिन या उसका पगमार्क दिखना वन्य जीवन में रुचि लेने वालों को खुश कर गया है। ([email protected])