राजपथ - जनपथ
सीखने का खास दौर
छत्तीसगढ़ में आज जिस तरह ईडी की जांच और कार्रवाई चल रही है, उस बीच अफवाहों का बाजार गर्म है। मीडिया के बीच रात-दिन कुछ गैरजिम्मेदार लोग आदतन, और कुछ जिम्मेदार लोग लापरवाही से ऐसी बातें लिख रहे हैं, बोल रहे हैं, जिनकी असलियत कुछ घंटों में ही उजागर हो जाती है। आज मीडिया में जिस तरह सबसे पहले पेश करने का गलाकाट मुकाबला चल रहा है, उसने विश्वसनीयता को बहुत दूर तक नुकसान पहुंचाया है। अब यह वक्त लोगों को पत्रकारिता सिखाने का तो नहीं है, लेकिन यह याद दिलाने का जरूर है कि हर दिन उन्हें कुछ पल यह भी सोचना चाहिए कि उन्हें पिछले दिन मिली जानकारियों में से कौन-कौन सी गलत साबित हो चुकी हैं। लोग आमतौर पर लिख चुकी बातों के गलत साबित होने पर भी उसे अनदेखा करके आगे बढऩे में लग जाते हैं। ऐसा करने वाले दुबारा गलतियां, या गलत काम करने का खतरा रखते हैं। इसलिए अफवाह, चर्चा, सूचना, खबर, तथ्य, और सुबूत जैसे अलग-अलग दर्जों के बारे में लोगों को सोचना चाहिए कि उन्हें मिली जानकारी इनमें से किस दर्जे में फिट बैठती है। फिलहाल अफवाहों के अंधड़ में किसी को नसीहत देना ठीक नहीं है, लेकिन जिन लोगों को इस पेशे में रहते हुए साख पाना है, उनके लिए यह सीखने का एक बड़ा खास दौर है। इस दौर में बहुत से रिपोर्टर कम से कम यह तो सीख ही सकते हैं कि केन्द्र और राज्य की सीमाएं क्या हैं, उनके अधिकार क्या हैं, कौन सी एजेंसी क्या कर सकती है, और क्या नहीं। ये बुनियादी बातें सीखना एक वक्त अच्छे अखबारों में ट्रेनिंग का एक हिस्सा होता था। इन दिनों मीडिया में अखबार एक छोटा हिस्सा हो गए हैं, और कई किस्म के मीडिया अपने लोगों की ट्रेनिंग कैसी करते हैं, यह पता नहीं।
अगली गिरफ्तारी कब और किसकी?
प्रदेश की एक सबसे असरदार अफसर, सौम्या चौरसिया की गिरफ्तारी के बाद अब अगली बारी किसकी है, यह पहेली लोगों के बीच घूम रही है। जिन लोगों को जिनसे हिसाब चुकता करना है, उसके नाम की संभावना बताते हुए बात को आगे बढ़ाना जारी है। कुछ लोग एक-दो आईपीएस का नाम ले रहे हैं, कुछ लोग एक-दो आईएएस का नाम ले रहे हैं, कुछ लोग राज्य के अफसरों की बारी भी गिना रहे हैं। ऐसे अफसर जो राज्य में महत्वहीन कुर्सियों पर हैं, उन्हें रातोंरात अपनी कुर्सी आरामदेह लगने लगी है क्योंकि उसके साथ कोई खतरा जुड़ा हुआ नहीं है। इस पूरी कार्रवाई से लगातार जुड़े रहने वाले एक अखबारनवीस का कहना है कि गिरफ्तारियां बहुत जल्दी-जल्दी नहीं होंगी क्योंकि हंडी को महीनों तक गरम रखना है, चुनाव अभी दूर हैं।
रेलवे का खजाना भर रहा स्टेशन वीरान
एसईसीएल का गेवरा खदान भारत ही नहीं एशिया का सबसे बड़ा कोयला खदान है। छत्तीसगढ़ सहित देश के 6 राज्यों के लिए यहां से कोयला भेजा जाता है। कोल इंडिया को उत्पादन का रिकॉर्ड बताना हो या फिर रेलवे बोर्ड को सर्वाधिक लदान का, इसी खदान का उदाहरण दिया जाता है। नवंबर की 8 तारीख को रिकॉर्ड 1.71 लाख टन कोयले का लदान हुआ। इसे अपनी उपलब्धि के रुप में रेलवे ने दर्ज किया। अफसरों ने केक काटकर जश्न भी मनाया।
रेलवे जोन बिलासपुर की आमदनी का आंकड़ा देश के दूसरे किसी भी जोन से अधिक है तो इसमें गेवरा का योगदान सबसे बड़ा है। अब, सुधार और विकास कार्यों के नाम पर बीच-बीच में परिचालन जरूर रोक दिया जाता है पर जोन की अधिकांश एक्सप्रेस ट्रेनों को शुरू कर दिया गया है। पर, अनेक छोटे स्टेशनों से ट्रेन नहीं चल रही है, या फिर उनमें स्टापेज नहीं दिया गया है। रेलवे को भरपूर राजस्व देने वाले गेवरा के साथ भी यही हो रहा है। सन् 1963 में प्रारंभ गेवरा रोड स्टेशन से किसी समय 12 ट्रेनों का परिचालन होता था। पर बीते 8 महीनों से एक भी ट्रेन नहीं चलाई जा रही है। गेवरा रोड स्टेशन सूनसान पड़ा है। यात्री कह रहे हैं कि कम से कम गेवरा के योगदान को देखते हुए तो रेलवे को यहां की सुविधा नहीं छीननी चाहिए। रेलवे के फैसले से स्टेशन पर आश्रित व्यवसायी, श्रमिक महीनों से खाली बैठे हैं। सच यही है कि गेवरा से होने वाले मुनाफे के मुकाबले यात्री ट्रेन को चलाने का खर्च बेहद मामूली है।
हो ही गई ठगी केबीसी के नाम पर
पापुलर टीवी शो कौन बनेगा करोड़पति में होस्ट अमिताभ बच्चन कार्यक्रम के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक के लिए विज्ञापन भी करते हैं। इसमें वे लोगों को आगाह करते हैं कि ऑनलाइन फ्रॉड से बचें। कभी कोई पैसा भेजने के नाम पर ओटीपी मांगे तो न दें, इसकी जरूरत ही नहीं पड़ती। पर लोगों तक उनकी बात नहीं पहुंच पा रही है। अंबिकापुर में केबीसी के ही नाम पर ठगी हो गई है। जब से यह शो शुरू हुआ है, लोगों के व्हाट्सएप नंबर पर एक ऑडियो मेसैज आ रहा है, जिसके साथ नरेंद्र मोदी, मुकेश अंबानी और अमिताभ बच्चन की तस्वीर भी होती है। इसमें 25 लाख या इसी तरह की बड़ी रकम लॉटरी में निकलने का झांसा दिया जाता है। दरिमा, अंबिकापुर का एक रोजगार सहायक इस जाल में फंस गया और उसने 4 लाख रुपये गंवा दिए। अफसोस की बात यह है कि उसके पिता को गंभीर बीमारी है। इस रकम की व्यवस्था उनके इलाज के लिए उसने की थी। मौजूदा दौर में छप्पर फाडक़र रुपयों की बारिश कर देगा, इसकी उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए। पर लोग हैं कि लालच में अपनी गाढ़ी कमाई डुबा रहे हैं।
विज्ञापन पर विवाद..
भानुप्रतापपुर उप-चुनाव के लिए मतदान के बाद अब नतीजों का इंतजार रहेगा। आखिरी दिन आरोप प्रत्यारोपों की झड़ी लग गई। भाजपा नेताओं ने प्रेस कांफ्रेंस लेकर कांग्रेस पर शराब की नदियां बहाने का आरोप लगाया। कलेक्टर, एसपी और कई दूसरे अधिकारियों पर कांग्रेस के लिए प्रचार करने का भी आरोप लगा। एक ऐतराज ‘बस्तर के समस्त आदिवासी जनप्रतिनिधि’ की ओर से प्रकाशित विज्ञापन पर भी है। विज्ञापन की जिस पंक्ति पर आपत्ति है वह है- कुछ आदिवासी नेताओं ने चंद रुपयों के लिए समाज को दांव पर लगा दिया है। आदिवासी समाज को समझना है कि झूठी कसमें खिलाकर आपके वोट से उनको फायदा पहुंचाने की कोशिश हो रही है जिन्होंने विकास के नाम पर आदिवासियों का शोषण किया और उनके हिस्से में हिंसा के सिवाय कुछ नहीं आया। इन पंक्तियों को समझा जाए तो आक्षेप सर्व आदिवासी समाज और भाजपा दोनों पर है।
आदिवासी समाज के भाजपा नेताओं ने निर्वाचन आयोग से इस पर संज्ञान लेने की मांग की है। कहा है कि आदिवासी समाज को कांग्रेस ने बिकाऊ करार देकर उनके स्वाभिमान पर खंजर घोंप दिया।
आयोग की कार्रवाई यदि हुई तो जब तक होगी तब तक कम से कम मतदान की प्रक्रिया तो पूरी हो चुकी रहेगी। भाजपा की ओर से प्रतिक्रिया आ चुकी है, सर्व आदिवासी समाज की ओर से अभी नहीं दिखी है। मतदाताओं की प्रतिक्रिया तो दो दिन बाद आने वाले नतीजों में दिख ही जाएगी। ([email protected])