राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : साइकिल लेकर निकलें, पर रखें कहां?
07-Dec-2022 6:17 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : साइकिल लेकर निकलें, पर रखें कहां?

साइकिल लेकर निकलें, पर रखें कहां?
रायपुर के मेयर रह चुके और अभी भी म्युनिसिपल के सभापति प्रमोद दुबे बरसों से साइकिल को बढ़ावा देने की कोशिश करते आए हैं। लेकिन किसी-किसी इतवार को सडक़ों पर साइकिल का जलसा मनाने के लिए वे बड़े अफसरों के साथ साइकिल पर निकल तो जाते थे, शहर को साइकिलों के लिए दोस्ताना बनाने का कोई काम उन्होंने नहीं किया। आज से 40 बरस पहले शहर के सबसे बड़े बगीचे मोतीबाग में साइकिलों को चेन से बांधकर रखने के लिए लोहे की सलाखों के स्टैंड लगे हुए थे, बाद में शहरों के कॉलेजों में भी तरह-तरह के स्टैंड बनते थे, लेकिन अब किसी सार्वजनिक जगह पर साइकिल को बढ़ावा देने के लिए ऐसा कोई इंतजाम नहीं है। चूंकि पार्किंग और स्टैंड का सारा इंतजाम कारों और स्कूटर-मोटरसाइकिलों के लिए ही रहता है, इसलिए साइकिलों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता। रेलवे स्टेशन पर भी देखें तो प्लेटफॉर्म के सबसे करीब कारें खड़ी रहती हैं, उसके बाद स्कूटरों की बारी आती है, और साइकिलों की बारी आधा किलोमीटर दूर आती है, जबकि होना ठीक इसका उल्टा होना चाहिए। 

प्रमोद दुबे के निजी प्रचार और प्रयास से परे साइकिलों के लिए कोई दोस्ताना इंतजाम इस शहर में नहीं हो पाया, और ऐसे में साइकिल लेकर निकलने का कोई उत्साह लोगों में नहीं रहता। 

स्मार्टसिटी का डीएमएफ 
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्मार्टसिटी के नाम पर म्युनिसिपल के हाथ में ठीक उसी तरह अंधाधुंध फंड आ जाता है जिस तरह खनिज संपन्न जिलों में डीएमएफ का पैसा कलेक्टरों के पॉकेटमनी की तरह रहता है, उसी तरह स्मार्टसिटी का पैसा म्युनिसिपल कमिश्नरों की मनमानी पर खर्च होता है। यह एक अलग बात है कि प्रदेश सरकार या निर्वाचित मेयर का दबदबा अधिक रहने पर स्मार्टसिटी का खर्च उनके कहे मुताबिक होता है। 

स्मार्ट सिटी में अंधाधुंध खर्चों का आलम यह है कि पुराने रायपुर शहर में दो साल में वृक्षारोपण के नाम पर करीब 7 करोड़ रूपए फूंक दिए गए। जबकि वृक्षारोपण कहां हुआ, इसका कोई अता-पता नहीं है। यही नहीं, बूढ़ातालाब के गेट बनाने में ही 60 लाख रूपए खर्च कर दिए गए। 

इसी तरह कुछ दिन पहले स्मार्ट सिटी के टेंडरों में अनियमितता, और भ्रष्टाचार की शिकायत ईओडब्ल्यू में भी की गई  है। इसके अलावा सांसदों की स्टीयरिंग कमेटी  तक शिकायतों का पुलिंदा भेजा गया है। और तो और स्मार्ट सिटी के मद से महाराजबंद तालाब के किनारे ऐसे सडक़ को स्मार्ट बनाया जा रहा है जहां ट्रैफिक सबसे कम होता है। सुनते हैं कि सडक़ का काम चालू होने से पहले ताकतवर लोगों ने आसपास की जमीन कौडिय़ों के भाव में खरीद ली थी। अब उनकी जमीन के दाम आसमान को छू रहे हैं। इस प्रोजेक्ट में काम करने वाले संविदा अफसर भी बहती गंगा में हाथ धोने से पीछे नहीं रहे हैं। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अगले कुछ महीनों में बंद होने की भी चर्चा है। इसके बाद यहां की गड़बडिय़ों का खुलासा होने की उम्मीद जताई जा रही है। 

प्रदेश अध्यक्ष का बदलाव टला?
फरवरी में होने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के चलते क्या प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष को बदला जाएगा? पीएल पुनिया इस महत्व के इस बड़े आयोजन का हिस्सा बनने से रह गए। हालांकि 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार को दोबारा लाने में उनकी भी विशेष भूमिका रही।

इधर, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को बदलने की चर्चा भी चार-पांच महीने से चल रही थी। इस दौरान झारखंड, पंजाब, हरियाणा और बिहार में अध्यक्ष बदले भी गए हैं। पर संभवत: छत्तीसगढ़ पर फैसला एक के बाद एक दो उप-चुनाव खैरागढ़ और भानुप्रतापपुर, में होने के कारण टाल दिया गया। इसी बीच राष्ट्रीय अध्यक्ष बदलने की सरगर्मी भी चल रही थी। अब जब राष्ट्रीय अधिवेशन की तैयारी शुरू करनी है, हो सकता है फैसला फिर टल जाए। यदि ऐसा होगा तो मरकाम छत्तीसगढ़ के ऐसे पहले अध्यक्ष के रूप में अपने-आपको याद कर सकेंगे जिनकी अगुवाई में राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ।

दहेज में पौधे
कोरबा में हुई निशा महतो की शादी की इन दिनों बड़ी चर्चा है। दरअसल बेटी की विदाई महंगे उपहारों से नहीं, 101 पौधों से की गई। जो मेहमान पहुंचे उन्हें भी औषधीय पौधे उपहार में दिए गए। यह प्रचार के लिए किया गया काम नहीं था। निशा के भाई प्रशांत चैरिमति फाउंडेशन से जुड़े हैं। अब तक तीन हजार पौधे अलग-अलग जगहों पर लगा चुके हैं। हसदेव नदी के किनारे एक लाख पौधे लगाने का उनका लक्ष्य है। एक और बहन की शादी में भी वे पौधे  ही उपहार के रूप मे दे चुके हैं। खुद अपनी शादी के निमंत्रण कार्ड में उन्होंने लिखा था कि वे गिफ्ट के रूप में केवल पुरानी किताबें, जो आप पढ़ चुके हों, उनको स्वीकार करेंगे। ये किताबें उन्होंने जरूरतमदों में बांट दी।

निजी क्लीनिक किस-किस का?
अंबिकापुर के मेडिकल कॉलेज में पांच घंटे के भीतर पांच नवजात शिशुओं की मौत के मामले में जांच के बिंदु तय किए गए हैं। इसमें बिजली बाधा के समय कोई डॉक्टर उपस्थित था, वेंटिलेटर को पॉवर बैकअप मिला नहीं मिला, जैसे कुछ बिंदु शामिल हैं। पर, यह जांच भी जरूरी है किरोजाना सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर कितनी देर अपनी ड्यूटी करते हैं। बहुत से डॉक्टर खुलेआम निजी क्लीनिक चलाते हैं और सरकारी ड्यूटी को बेगार समझते हैं।

कई डॉक्टर निजी नर्सिंग होम में नियमित विजिट करते हैं, सर्जरी करते हैं। अंबिकापुर के मामले में यह जानकारी हैरान करती है कि विभिन्न विभागों के एचओडी और दूसरे चिकित्सक निजी क्लीनिक चला रहे हैं। खुद एसएनसीयू वार्ड के एचओडी पर यही आरोप लग रहा है। जाहिर है कि सरकारी सेवाओं में कमी आएगी ही। एक शिशु के पिता ने कलेक्टर को जन-चौपाल में यह भी कहा कि हमसे नर्सों ने गरम कपड़े लेकर आने के लिए कहा था। मौत के बाद पता चला कि इसका इस्तेमाल तब करना था जब वार्मर बंद हो जाए। माताएं बच्चों को गर्म कपड़ों के साथ अपनी गोद में ले लेती तो शायद उनकी जान बच जाती, पर जब शिशुओं की सांस उखडऩे लगी तब यह बताने वाला अस्पताल में कोई नहीं था। सुबह 9 बजे सीधे मौत की खबर दी गई। बहरहाल, 48 घंटे में रिपोर्ट मांगी गई है। जितनी तेजी से जांच हो रही है, उतनी तेजी से जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई होगी या नहीं, देखना होगा। यह भी देखना होगा कि किसी के ऊपर जिम्मेदारी डाली जाएगी भी या नहीं?       ([email protected])

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