राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : चुनावी साल और राज्यपाल
13-Dec-2022 4:17 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : चुनावी साल और राज्यपाल

चुनावी साल और राज्यपाल

वैसे तो राज्यपाल किसी राजनीतिक पार्टी का हिस्सा नहीं रहते, लेकिन जब उन्हें मनोनीत करने वाली केन्द्र सरकार किसी एक विचारधारा की रहती है, और जिस राज्य में उन्हें भेजा गया है वहां की सरकार की विचारधारा अलग रहती है, तो राज्यपाल उन्हें नौकरी देने वाली सोच का साथ देते दिखते हैं या दिखती हैं। छत्तीसगढ़ में आज कुछ ऐसा ही माहौल बन रहा है। विधानसभा ने राज्य में आरक्षण बढ़ाने का विधेयक पास करके उसे मंजूरी के लिए राज्यपाल को भेजा है, लेकिन राजभवन से कई सवालों के साथ उसे वापिस भेजा गया है। राज्य सरकार चाहती थी कि अदालत से खारिज हुए आरक्षण के नए फॉर्मूले को राज्य का कानून बनाकर फिर से लागू किया जाए, लेकिन उसकी राजनीतिक हड़बड़ी और राज्यपाल की इस मुद्दे पर इत्मीनान से काम करने की सोच ने मामले को गड़बड़ा दिया है। अब राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी और सरकार दोनों ने जनता के बीच राज्यपाल की लेटलतीफी का बखान शुरू किया है, और खासकर आदिवासी तबके को यह बताया जा रहा है कि आदिवासी होने के बावजूद राज्यपाल इस विधेयक को रोककर बैठी हैं। राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव कोई नई बात नहीं है, और बहुत से राज्यों में इससे कहीं बुरा टकराव देखा है। अब यह चुनाव का साल है, और केन्द्र सरकार के एजेंट की हैसियत से राज्यपाल का यहां काम कैसा रहता है, यह देखने की बात है।

चुनाव तक रोज के मुद्दे

छत्तीसगढ़ में अभी कोयला कारोबार पर से रंगदारी वसूलने की पूरी तस्वीर सामने आई नहीं है कि कुछ और मामलों के उठने के आसार दिख रहे हैं। इनमें कारखानों से वसूली, आयरन ओर खदानों से वसूली तो जुड़े हुए मामले लगते हैं, इनके अलावा केन्द्रीय जांच एजेंसियां महादेव ऐप को लेकर भी बड़ी उम्मीद से हैं कि उसमें भी कुछ ताकतवर लोग शामिल मिलेंगे। केन्द्र सरकार की एक जांच एजेंसी के हाथ ऐसे दस्तावेज भी लगे हैं जो बताते हैं कि बड़े किसानों से उनके किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से निकाली गई बड़ी-बड़ी रकमों को काला-सफेद करने के लिए किस तरह इस्तेमाल किया गया है। ऐसा लगता है कि चुनाव तक ये मुद्दे रोज सामने आते रहेंगे।

एक ट्रेनिंग ऐसी भी

ईडी के शिकंजे में फंसे अफसर और कारोबारियों की बॉडी लैंग्वेज पर चर्चा छिड़ी है. यह बात तो माननी ही पड़ेगी कि इसके पीछे भी कुछ ना कुछ कहानी तो जरूर होगी ही। इस संबंध में हमको जो कहानी सुनने को मिली है, उसके अनुसार कहा जा रहा है कि तमाम लोग पहले से इस बात के लिए तैयार थे कि उन्हें एक ना एक दिन केन्द्रीय जांच एजेंसी के सामने पेश होना ही पड़ेगा। ऐसे में अधिकारी-कारोबारियों ने काफी पहले से तैयारी शुरू कर दी थी। कहा जा रहा है कि साल 2020 में जब आयकर विभाग की कार्रवाई हुई थी, उसी समय से केन्द्रीय जांच एजेंसियों के रिटायर्ड अधिकारियों, बड़े वकीलों और जानकारों की एक फौज तैयार कर ली गई थी। उस समय तो यहां तक हल्ला था कि कार्रवाई के दौरान बचाव पक्ष की यह टीम राजधानी रायपुर में ही डेरा डाले हुए थी और उसके निर्देश पर ही बचाव की रणनीति बनाई जा रही थी। आईटी के बाद जब ईडी की कार्रवाई से पहले और बाद में यह विशेष टीम जरूरी टिप्स दे रही थी, ताकि सभी लोगों को बेदाग निकाला जा सके। कुछ लोगों का तो यहां तक दावा है कि ईडी के सवालों के सामने अपनी बात पर अडिग रहने के लिए भी बकायदा घंटों-घटों रिहर्सल करवाया गया है। ईडी के मनोवैज्ञानिक दबाव के सामने भी स्ट्रेस फ्री रहने की ट्रेनिंग भी इसका हिस्सा था। इस टीम के लोगों ने यह भरोसा दिलाया कि डिजीटल प्रूफ, चैट्स और रिकार्डिंग को कोर्ट में आसानी से चुनौती दी जा सकती है। चर्चा है कि इस ट्रेनिंग के कारण ही ईडी के शिकंजे में फंसे अफसर-कारोबारी बेफिक्र नजर आ रहे हैं।

तंत्र-मंत्र से भागेगा ईडी का भूत

छत्तीसगढ़ में ईडी से निपटने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही है। चर्चा है कि बाबाओं और अघोरियों को भी इस काम में लगाया गया है, जो लगातार अनुष्ठान कर संकट को भगाने की कोशिश कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि यह काम भी एक बड़े नेता की देखरेख में चल रहा है। अनुष्ठान, हवन राज्य के अलावा दूसरे प्रदेशों की मान्यता प्राप्त स्थानों पर चल रहा है। समय-समय पर राज्य के प्रमुख लोग आहूति देने और इन स्थानों पर मत्था टेकने जाते भी हैं। खैर, तमाम बातें केवल चर्चाओं में हैं और ये उन लोगों की आस्थाओं का विषय है, लेकिन चर्चाओं में थोड़ी भी सच्चाई है, तो यह बात तो मनानी पड़ेगी कि दोनों तरफ से तलवारें खींची हुई है। अब देखना यह होगा कि कौन किस पर कितना भारी पड़ता है।

तो इनका स्टापेज क्यों नहीं?

हमसफर एक्सप्रेस, कामाख्या कर्मभूमि एक्सप्रेस, मुंबई हावड़ा वीकली सुपर फास्ट, सांतरागाछी सुपरफास्ट, हावड़ा सुपर फास्ट, मालदा टाउन एक्सप्रेस, दुरंतो एक्सप्रेस, दुरंतो एक्सप्रेस, दरभंगा एक्सप्रेस, रक्सौल साप्ताहिक, गोवा जसीडीह, पुरी सुपर फास्ट, कविगुरु एक्सप्रेस, गांधीधाम-पुरी वीकली, हटिया सुपरफास्ट, विशाखापट्टनम सुपर फास्ट, तिरूपति सुपरफास्ट, पुरी सुपर फास्ट,गांधीधाम पुरी वीकली और हापा बिलासपुर सुपर फास्ट। ये सूची उन ट्रेनों की है, जिनका स्टापेज राजनांदगांव में देने की मांग वर्षों से हो रही है। यहां के सांसद से मांग हो रही है कि जिस तरह से आपने वंदेभारत ट्रेन को रुकवाने की मांग ट्रेन शुरू होने के दो दिन पहले पूरी करा ली, उसी तरह से तत्परता दिखाएं और इन ट्रेनों का भी स्टापेज शुरू कराएं। वंदेभारत तो खास लोगों की ट्रेन है, पर बाकी जिन ट्रेनों को रोकने की मांग हो रही है, उसका बड़ी संख्या में आम यात्री, रोजाना सफर करने वालों को लाभ मिलेगा। जायज मांग है जब 130 किलोमीटर की रफ्तार में चलने वाली ट्रेन रुक सकती है तो 70-80 की औसत गति में चलने वाली ट्रेनों पर बात क्यों नहीं? राजनांदगांव कोई छोटा शहर तो है नहीं।

रेलवे का राजगीत पर रुख

वंदेभारत ट्रेन के स्वागत में रखे गए सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रस्तुत राजगीत के दौरान रेलवे अफसरों के बैठे रहने, नाश्ता करते रहने का विवाद रुक नहीं रहा है। रेलवे अधिकारियों ने राजगीत-अरपा पैरी के धार, गाये जाने के दौरान सम्मान में खड़ा नहीं होने पर अपना तर्क देते हैं। उसका कहना है कि यह सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा था। राजगीत के रूप में इसे नहीं गाया गया। हालांकि एनएसयूआई ने मामले में एफआईआर की मांग की है। उनका कहना है कि रेलवे के अफसरों ने छत्तीसगढिय़ों की भावनाओ को ठेस पहुंचाई। रेलवे अधिकारियों को इस बात का संतोष है कि भाजपा नेता इस चूक को तूल नहीं दे रहे हैं, वरना केंद्र से जुड़े होने के कारण उन्हें अपना बचाव करना मुश्किल हो जाता।

इस तरह मिली पसंद की साइकिल

इस छात्रा को सरकारी योजना से एक लेडीज साइकिल पहले मिली थी, फिर वह जेंट्स साइकिल से स्कूल आने लगी। स्कूल में शिक्षक देख रहा था कि छात्रा को लडक़ों की बड़ी साइकिल चलाने में दिक्कत है, फिर भी वह आ रही है। फिर पाया कि बीच-बीच में वह स्कूल नहीं आ रही। शिक्षक ने आखिर पूछ लिया। तुम जेंट्स साइकिल में क्यों आती हो और बीच-बीच में गैप क्यों करती हो। छात्रा ने बताया मेरी साइकिल पिताजी ने एक रिश्तेदार को दे दी। उसे मजदूरी के लिए दूर जाना पड़ता है। पड़ोसी के पास साइकिल थी, उसने कहा इसमें तुम स्कूल चल दिया करो। फिर, बीच-बीच में क्यों गैप कर देती हो? छात्रा ने बताया- जब पड़ोसी को साइकिल की जरूरत पड़ जाती है तो मुझे आने का साधन नहीं मिलता।

शिक्षक को एक साथ कई ख्याल आए। पिता में इतनी हमदर्दी कि उसने अपने मजदूर रिश्तेदार को बेटी की साइकिल दे दी। पड़ोसी में सहयोग भावना कि वह अपनी साइकिल छात्रा को स्कूल जाने के लिए दे रहा है। तीसरी बात छात्रा का जुनून कि मांगी हुई बड़ी सी साइकिल से स्कूल आ रही है।

शिक्षक ने अपने सोशल मीडिया पर दोस्तों के ग्रुप में इस समस्या के बारे में बताया। कुछ ही घंटों में छात्रा के लिए नई लेडीज साइकिल खरीदने के लायक फंड जमा हो गया। छात्रा के पिता के साथ शहर जाकर शिक्षक  साइकिल लेकर आए। अब छात्रा इसी से स्कूल आना-जाना कर रही है। यह घटना कोरबा जिले के गढक़टरा स्कूल की है। जहां शिक्षक, बच्चों और ग्राम वासियों के बीच अच्छा तालमेल है। रचनात्मक गतिविधियों के कारण इस स्कूल की कई बार चर्चा हुई है।

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