राजपथ - जनपथ

खेल मैदानों के लिए काला टीका
लगता है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के खेल मैदानों और खेल परिसरों को बुरी नजर लग गई है। एक समय शहरों के चारों तरफ छोटे-बड़े दसियों खेल मैदान हुआ करते थे, जहां सुबह शाम बच्चे, युवा अलग-अलग खेल खेलते दिखाई पड़ते थे और जो बुजुर्गों की तफरीह करने की मुफीद जगह हुआ करती थी, लेकिन अब ऐसी एक भी जगह नहीं बची है, जहां ऐसा नजारा देखने को मिले। अधिकांश खेल मैदानों में निर्माण दिखाई पड़ता या फिर आवारागर्दी और शराबखोरी के लिए छोड़ दी गई है। जहां असमाजिक तत्वों के चखना की पूरी व्यवस्था होती है। नाइट कल्चर की अंधी दौड़ में सुभाष स्टेडियम, सप्रे शाला मैदान, हिंद स्पोर्टिंग ग्राउंड जैसे मैदानों की दशा किसी से छिपी नहीं है। इंडोर स्टेडियम, साइंस कॉलेज हॉकी मैदान जैसी जगह खेल के अलावा हर तरह के कार्यक्रमों के लिए उपलब्ध रहते हैं। कभी यहां सियासी कार्यक्रम होते हैं, तो कभी मेले-ठेले की रौनक रहती है। शहर के कर्ता-धर्ताओं को इतने में भी संतुष्टि नहीं मिल रही है कि वे निर्माण से बचे-खुचे हिस्सों को आवारगर्दी के खोलने की तैयारी कर रहे हैं। स्मार्ट सिटी और नगर निगम साइंस कॉलेज के हॉकी मैदान वाली सडक़ में नाइट चौपटी शुरू करने की तैयारी कर ली है। तय है कि चखने की व्यवस्था होने के बाद मैदान अहाता में तब्दील हो जाएगी। इसके पहले भी बेटियों के स्कूल-कॉलेज वाले रास्ते में चौपाटी खोलने की योजना बनाई गई थी। ऐसी ही कोशिश साइंस कॉलेज मैदान में चल रही है। हमारी चिंता यह है कि चौपाटी या नाइट कल्चर के चक्कर में खेल मैदानों को बरबाद नहीं किया जाना चाहिए। हम पहले भी इस विषय पर लिखते रहे हैं और शासन-प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराते रहे हैं। उसके बाद भी कुछ असर होते दिखाई नहीं पड़ रहा है। हमारी कोशिश यह है कि खेल मैदानों के माथे पर काला टीका लगाकर ऐसी बुरी नजर वालों से बचाया जा सके। यह केवल सियासी बयानबाजी या धरना-प्रदर्शन का मुद्दा नहीं है, क्योंकि विपक्ष में रहने वाले सत्तापक्ष के फैसलों का तो विरोध करती है, लेकिन सत्ता में आने के बाद वो भी यही करते हैं, इसलिए सिविल सोसायटी और समाज को भी बुरी नजर वालों के खिलाफ आवाज उठाना ही चाहिए।
रामविचार सीएम चेहरा !
छत्तीसगढ़ बीजेपी में मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर गाहे-बगाहे सवाल उठते रहते हैं। 15 साल पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह बीजेपी का चेहरा हुआ करते थे, लेकिन साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद यह चर्चा रहती है कि बीजेपी को नए चेहरे की तलाश है। इस बारे में बीजेपी के नेताओं और तत्कालीन प्रभारी डी पुरंदेश्वरी से कई बार सवाल भी पूछा गया, पर कोई साफ-साफ जवाब नहीं आ पाया। हर बार सामूहिक नेतृत्व या फिर मोदी के चेहरे पर चुनाव लडऩे का जवाब ही सुनने को मिला, लेकिन लगता है अब बीजेपी की तलाश पूरी हो गई है। अरे, थोड़ा धैर्य रखिए, बीजेपी ने चेहरे का ऐलान नहीं किया है। हम तो पूर्व मंत्री और प्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता अजय चंद्राकर के हवाले से ऐसा अनुमान लगा रहे हैं। अब आप ही बताइए कि पार्टी का मुख्य प्रवक्ता कुछ कह रहे हैं, तब तो बात में दम होगी और वो भी सार्वजनिक मंच से। पिछले दिनों दुर्ग में भाजपा की एक सभा में पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि 11 माह बाद रामविचार नेताम मुख्यमंत्री बनने वाले हैं। उनकी इस बात पर खूब ठहाके भी लगे और तालियां भी बजी। जाहिर है कि अजय चंद्राकर ने कुछ सोच-समझकर ही ऐसा ऐलान किया होगा, क्योंकि बीजेपी तो अनुशासित पार्टी मानी जाती है और यहां कोरी बयानबाजी शायद नहीं होती। खैर, यह तो समय ही बताइगा कि अजय चंद्राकर का इस ऐलान को पार्टी और दावेदार नेता किस तरह लेते हैं ? अगर बात में दम है तो कई दावेदारों की नींद हराम हो सकती है।
शायद उस शहर का अंदाज हो...
कहा जाता है कि किसी समस्या को सुलझाने से पहले समस्या को समझा जाए तो आसानी होती है। यह बात युवक खासकर छात्रों के लिए तो एकदम फिट बैठती है। छात्रों की समस्याएं, मांगे हैं तो शिक्षक, प्राचार्य, प्रोफेसर, कुलपतियों को पहले छात्रों को समझना होगा। हमारे प्रदेश के एक कुलपति महोदय इन दिनों यही कर रहे है। महोदय का यह अंदाज उत्तर भारत के एक शहर से आयातित है, या यूं कहें कि जन्मभूमि के तौर-तरीके मन-मस्तिष्क में रचे-बसे हैं। कुलपति के इस अंदाज की चर्चा कुलपति दफ्तर तक होने लगी है। कुलपतिजी, छात्रों के साथ न केवल धूम्रपान करते हैं बल्कि मदिरापान के लिए बैठकी भी होती है। प्रदेश के विश्वविद्यालय में गुरू-शिष्य की इस नयी परंपरा के संवाहक कुलपति जी, एक हिंदू विश्वविद्यालय से पास आऊट हैं। कुलपति कार्यालय चुटकी ले रहा है कि कुलपति चयन के लिए भविष्य में, शिक्षा विदों के इस गुण को भी क्राइटीरिया में रखना होगा।
राजनीति, पुलिस और अपराध
आपराधिक प्रवृत्ति का कोई व्यक्ति किसी राजनीतिक दल से जुड़ा है या नहीं, इसकी चिंता उस दल के नेताओं से ज्यादा पुलिस को होती है। सत्ता से जुड़ा हो तो बचाने का आरोप, विरोधी दल से हो तो जानबूझकर सताने का। बिलासपुर में जमीन दलाल संजू त्रिपाठी की फायरिंग से हत्या होते ही लोगों का ध्यान उसकी कार पर गया, जिसमें नंबर प्लेट की जगह लिखा था- महामंत्री, जिला कांग्रेस कमेटी। वारदात के बाद ही यह खबर भी फैल गई कि कांग्रेस नेता की हत्या हो गई। वह हत्या, हत्या की कोशिश, लूट, अपहरण सहित दर्जनों मामलों में आरोपी है। जमीन कब्जा करना, डरा-धमकाकर रजिस्ट्री कराना, महंगे ब्याज पर पैसे देना, जैसे धंधों से जुड़ा है। सवाल यह भी उठने लगा कि आखिर संगीन मामलों का आरोपी खुले कैसे घूम रहा था। कई मामलों में तो एफआईआर हुई है पर गिरफ्तारी भी नहीं हुई। कांग्रेस से ज्यादा तत्परता पुलिस ने दिखाई यह बताने के लिए कि वह किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़ा था। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता और जिला अध्यक्ष का बयान तो काफी देर बाद आया, सबसे पहले एसएसपी ने यह जानकारी साझा की। अर्थात्, लोग यह न समझें कि मृतक इसलिए खुलेआम घूम रहा था कि उसे सत्तारूढ़ दल का पदाधिकारी होने के कारण छूट दी गई। पुलिस ने अपनी निष्पक्षता और मुस्तैदी के सबूत के रूप में उसके अपराधों की सूची भी खुद जारी की, इस नोट के साथ कि उसके जिला बदर की सिफारिश के लिए फाइल बनाई जा रही थी। यानि उसे रियायत नहीं दे रखी थी। जहां तक कांग्रेस के इंकार का सवाल है, संजू त्रिपाठी आए दिन सत्तारूढ़ दल के नेताओं के आसपास दिखता था। उनके साथ तस्वीरें हैं। महामंत्री लिखे हुए कार में तो वह चल ही रहा था, सोशल मीडिया पर भी उसने अपना विवरण कांग्रेस पदाधिकारी के रूप में ही दर्शाया था। इन सबके बावजूद कांग्रेस नेता हैरान करने वाला यह कह रहे हैं कि पार्टी के नाम का वह दुरुपयोग कर रहा था, यह पता नहीं चला, वरना कार्रवाई करते।
नक्सली कितने बैकफुट पर?
बस्तर में नक्सलियों के बैकफुट पर जाने के दावों में कुछ यकीन तो किया जा सकता है। इस महीने पीएलजीए सप्ताह के दौरान आम तौर पर शांति रही। पर भीतरी गांवों में दहशत कम नहीं हुई है। दंतेवाड़ा जिले के रेवाली गांव की महिला सरपंच देवे अपना हिसाब-किताब सचिव के पास जमा कर पद छोडऩे जा रही है। वह गांव भी छोड़ देगी। पिछले महीने उसके पति भीमा की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। हत्या के बाद एक पर्ची उसके पास छोड़ गए थे। इस पर्ची को पुलिस अपने साथ ले गई। उसमें क्या था यह बताया नहीं गया। पर, उसका गांव और सरपंची दोनों ही छोड़ देने के फैसले से समझा जा सकता है कि उस पर्ची में क्या लिखा होगा। पीएलजीए सप्ताह के दौरान भीतर के गांवों के बिजली खंभे, दीवारों और पेड़ों पर नक्सली पोस्टर लगे हुए थे। इसका मतलब यह है कि सरपंच के पति की हत्या के बाद भी सुरक्षा बलों या पुलिस यहां उन पर दबाव नहीं बना पाई है।
राखड़ में चहकते प्रवासी पक्षी
सीपत स्थित एनटीपीसी के राखड़ डेम और राख के पहाड़ से आसपास के घरों, गलियों, खेतों में काफी प्रदूषण है। लोगों के घरों में डस्ट की परतें जम जाती है, फसल काली हो जाती है। तालाब, हैंडपंप से भी गंदा पानी निकलता है। हवा में धूल के कण तो होते ही हैं। आसपास का तापमान भी इसके कारण बढ़ा हुआ है। पर, दूसरी ओर हर साल ठंडे प्रदेशों की ओर रुख करने वाले हजारों किलोमीटर दूर के प्रवासी पक्षियों के लिए को आजकल यही प्रदूषित इलाका भा रहा है। राखड़ बांध और फ्लाई ऐश के आसपास जाने के बारे में लोग आम दिनों में नहीं सोचते लेकिन प्रवासी पक्षियों की वजह से पक्षी प्रेमी यहां पहुंच रहे हैं। जो डस्ट मनुष्यों के लिए हानिकारक है उसका असर इन प्रवासी पक्षियों पर नहीं पड़ रहा है।