राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : जुर्म की दुनिया में नंबर वन
20-Dec-2022 5:06 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : जुर्म की दुनिया में नंबर वन

जुर्म की दुनिया में नंबर वन
ईडी की जांच से छत्तीसगढ़ के जिन तीन जिलों में सनसनी फैली हुई है, उनमें कोरबा, रायपुर, और दुर्ग हैं। कोरबा कोयला-जुर्म का अड्डा हमेशा से रहा है, यह एक अलग बात है कि वहां हजारों करोड़ रूपये साल के कोयलामाफिया पर कोई कार्रवाई कभी होती नहीं थी। इस बार हाल के दो-तीन बरसों में कोयला कारोबार से वसूली की ईडी जांच पहली बार कोयले के काले धंधे को अदालत तक ले जा रही है, जबकि कोरबा के बड़े कारोबारी जानते हैं कि वहां अलग-अलग किस्म से जुर्म चलते ही आए हैं। फिर जैसा कि किसी राज्य में हो सकता है, किसी भी किस्म के आर्थिक अपराधी राजधानी में बसते हैं, वह यहां भी हो रहा है। लेकिन दुर्ग में जितने किस्म की जांच चल रही है, वह कोयले से जुड़ी हुई भी है, और कोयले से परे भी है। जानकार लोगों का कहना है कि महादेव ऐप नाम के ऑनलाईन सट्टेबाजी के कारोबार में कोयले के धंधे से दसियों गुना अधिक कारोबार हुआ है, और सबका सब परले दर्जे का जुर्म भी है। दुर्ग जिले में आज छोटे-छोटे राह चलते लोग भी बड़ी-बड़ी गाडिय़ों के मालिक कैसे हो गए हैं, इसकी जांच ईडी कर रही है, क्योंकि महादेव का प्रसाद चारों तरफ बंटा है। फिल्मों में भगवे रंग को लेकर भडक़ने वाले हिन्दुत्ववादी भी महादेव के नाम पर इतना बड़ा जुर्म चलते हुए देखकर चुप हैं, उनकी धार्मिक भावनाओं को कोई ठेस नहीं पहुंच रही है। लेकिन ईडी ने इस मामले को दर्ज करते हुए शुरू से ही इसमें विदेशी मुद्रा के जुर्म वाला कानून, फेमा, जोड़ दिया है, जो कि कई लोगों पर भारी पड़ सकता है। जिन लोगों को महादेव ऐप के मामले में ईडी के बुलावे का इंतजार है, वे अपने वकीलों से सलाह-मशविरे में लगे हैं। लेकिन यह मामला इस राज्य के किसी भी दूसरे जुर्म को हजार मील पीछे छोड़ सकता है। 

पीएम आवास बनेगा चुनाव का मुद्दा
प्रधानमंत्री आवास योजना में छत्तीसगढ़ के पिछडऩे का सवाल एक बार फिर सुर्खियों में है। सांसद अरुण साव ने इसे लोकसभा में शून्यकाल के दौरान मंगलवार को उठाया। उन्होंने कहा कि 11 लाख आवासों का राज्यांश नहीं देकर गरीबों के हित पर छत्तीसगढ़ सरकार चोट पहुंचा रही है। ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से हर साल कई बार पत्र भेजकर राज्य को अपना हिस्सा देने और आवासों को शुरू करने के लिए कहा जाता है। छत्तीसगढ़ की तरह पश्चिम बंगाल भी प्रधानमंत्री आवास में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। देश में ये दोनों राज्य प्रधानमंत्री आवासों के मामले में सबसे पीछे हैं। राज्यांश करीब 40 प्रतिशत होता है। 60 प्रतिशत राशि केंद्र जारी करता है। वैसे राज्यों पर 40 प्रतिशत का भार कुछ ज्यादा ही है। उत्तर-पूर्व राज्यों, हिमालय की तराई में बसे प्रदेशों तथा केंद्र शासित राज्यों में यह अनुपात 90:10 ही है। केंद्र इन राज्यों में 90 प्रतिशत राशि देता है। छत्तीसगढ़ सरकार का कहना है कि इंदिरा आवास योजना का नाम बदलकर यदि प्रधानमंत्री पर कर दिया गया है तो पूरी राशि केंद्र सरकार ही खर्च करे। राज्यों से 40 प्रतिशत देने के लिए क्यों कहा जा रहा है। राज्यांश की स्वीकृति नहीं होने के कारण 7.82 लाख स्वीकृत प्रधानमंत्री आवासों के अपने हिस्से का बजट केंद्र सरकार ने पिछले साल वापस ले लिया। छत्तीसगढ़ का यह भी कहना है कि सेंट्रल एक्साइज के 21-22 हजार केंद्र ने रोक दिया है, कोयले की रायल्टी का भी 4 हजार करोड़ रुका है। ऐसे में केंद्र को चाहिए कि वह आवासों के लिए राशि जारी करने का दबाव बनाने के बजाय राज्य को रुकी हुई राशि जारी करे।

प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से किसी एक गांव के बहुत से लोग मजदूरी और निर्माण सामग्री के जरिये प्रधानमंत्री आवास का काम चलने से लाभान्वित होते हैं। नाम बदल देने, राज्य की रुकी राशि नहीं देने के सरकार के तर्क के बावजूद इस योजना को रोके जाने से ग्रामीण क्षेत्रों में नाराजगी है। भाजपा के लिए यह सरकार के खिलाफ एक और चुनावी मुद्दा बनकर सामने आ सकता है। कांग्रेस इसके जवाब में धान खरीदी, गोबर और गो-मूत्र पर किए जा रहे खर्च को ढाल बना सकती है।

तराई में बर्फ की चादर
अमरकंटक के नीचे बसे पेंड्रारोड और आसपास के गांवों में इन दिनों ठंड खूब पड़ रही है। रात का पारा 5.5 डिग्री तक जा रहा है। बहुत लोग इस ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़े पहनकर घरों में दुबके रहते हैं पर कुछ जोशीले लोग इस मौसम का लुत्फ उठाने घर से बाहर भी निकलते हैं। ऐसे ही एक शख्स ने पेंड्रारोड में गिर रहे बर्फ की रात में तस्वीर खींचकर सोशल मीडिया पर डाली है।

टमाटर बिना मोल के
दुर्ग से बेमेतरा की ओर जाएं तो रास्ते में कहीं आपको सडक़ के किनारे कहीं-कहीं टमाटर की ढेरी दिख सकती है। कई किसानों ने उदारता बरती है। वे अपने खेतों से टमाटर तोडक़र छोड़ रहे हैं। जिसे ले जाना है, ले जाए। ठंड के दिनों में पूरे छत्तीसगढ़ के बाजारों में धमधा, पत्थलगांव आदि इलाकों के ही टमाटर दिखते हैं। बाकी दिनों में जब दक्षिण के राज्यों से आता है तो यह 60 रुपये किलो तक मिलता है। अभी तो लगभग मुफ्त है। ([email protected])

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