राजपथ - जनपथ

गेट की जगह बदलने का टोटका
जब वक्त खराब चलता है तो लोग भविष्यवक्ता, तांत्रिक, वास्तुशास्त्री जैसे कई पाखंडियों के चक्कर में पड़ जाते हैं। बड़े-बड़े लोगों के बारे में सुनाई पड़ता है कि वे तांत्रिक अनुष्ठान करवाने में लग गए हैं, तीर्थयात्रा कर रहे हैं, और जगह-जगह मनौतियां मांग रहे हैं। ऐसे में राजधानी रायपुर में आईएएस-आईपीएस अफसरों की देवेन्द्र नगर ऑफिसर्स कॉलोनी में एक बंगले का गेट तोडक़र उसे दूसरी जगह लगाया जा रहा है। पूरी कॉलोनी में सरकारी मकान एक सरीखे बने हैं, गेट एक सरीखे लगे हैं, नामों की तख्तियां तक एक सरीखी हैं, लेकिन अब इस एक मकान में गेट की जगह बदली जा रही है, दीवार तोडक़र नए पिल्लर खड़े हो रहे हैं। पूछने पर वहां काम कर रहे मजदूरों का कहना है कि रायगढ़ कलेक्टर रानू साहू के पति का घर है, कोई माइनिंग वाले साहब हैं, उनका नाम मौर्या बताते हैं। अब परेशानी के बाद वास्तुशास्त्रियों के कहे हुए या किसी और टोटके के तहत मकानों में फेरबदल होते रहेंगे, तो फिर इसका अंत पता नहीं कहां होगा क्योंकि परेशानी में तो और भी कई लोग आ सकते हैं, नामों की चर्चा कम नहीं हैं।
बिना भुगतान बस इतना ही
पूरे देश में, और खासकर छत्तीसगढ़ जैसे चुनावी राज्य में जहां साल भर के भीतर चुनाव है, वहां पर पार्टियां एक-दूसरे के कहे एक-एक शब्द को लेकर जवाबी हमले के लिए एक पैर पर खड़ी हैं। चुनाव का यह साल कांग्रेस और भाजपा के बीच जुबानी और कानूनी हमलों का रहेगा, और असल मुद्दे उसके बीच धरे रह जाएंगे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के एक बयान को लेकर भाजपा के नेता टूट पड़े हैं, लेकिन राज्य के दूसरे बहुत महत्वपूर्ण जलते-सुलगते मुद्दे भाजपा की नजरों से गायब हैं। सत्ता में लौटने की थोड़ी संभावना, और बड़ी उम्मीद रखने वाली भाजपा को भुगतान करके कुछ जानकार-समझदार सलाहकार रखने चाहिए जो कि उसे उसी के चारों तरफ बिखरे हुए मुद्दों को दिखा सके, उनका महत्व सुझा सके। बिना भुगतान हम भाजपा को इस जगह बस इतना ही सुझा सकते हैं।
फाइलें रेंगना शुरू...
पुलिस विभाग के छोटे अफसरों-कर्मचारियों के तबादलों को मंजूरी मिलने की चर्चा है। महीनों से सैकड़ों लोगों के नाम की लिस्ट पड़ी हुई थी, और अब लंबे समय बाद फाइलें आगे बढऩे की बात पुलिस विभाग में तैर रही है।
अब औकात वाली बात नहीं..
सन् 2018 में विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ने चुनाव घोषणा पत्र तैयार किया। उसके चेयरमैन तब के नेता प्रतिपक्ष और अब स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव थे। जो घोषणाएं अधूरी रह गई हैं। सिंहदेव आए दिन घिर जाते हैं जब उनसे पूछा जाता है कि घोषणाएं पूरी क्यों नहीं हो रही हैं। आज इस स्थिति से निपटने के लिए सिंहदेव ने मीडिया से साफ-साफ कह ही डाला- घोषणा-पत्र बाबा का अकेले का थोड़े ही था। मैं तो बस एक माध्यम था। घोषणा पत्र में उस वक्त के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल और राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की सहमति थी। अब इस सरकार का अंतिम बजट आना है, पूरा होना चाहिए। किसानों से किए गए वायदों के चलते बजट का 18 प्रतिशत खर्च होने की बात भी उन्होंने कही। पिछली बार अगस्त में उन्होंने सरकार की औकात नहीं, वाली बात कर दी थी, जिस पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया। इस बार उन्होंने संभलकर अपनी सरकार, बघेल और राहुल को घेरा है। फूंक-फूंक पर भविष्य के निर्णय की ओर चल रहे हैं।
कोल रायल्टी पर संसद में मिला जवाब
केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से मिले सुझाव का हवाला देते हुए कोयला खनन से वसूल की गई लेवी की राशि राज्यों को लौटाने से इंकार किया है। छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सांसद राजीव शुक्ला के सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने यह बात कही। वैसे, राशि राज्यों की ही है। सुप्रीम कोर्ट ने जब कोल ब्लॉक के आवंटन रद्द किए थे तो फिर से खदानों की नीलामी संशोधित नई प्रकिया से की गई थी। फैसला आने से पहले इनमें से कुछ खदानों से उत्खनन शुरू हो चुका था। इनसे अतिरिक्त लेवी वसूल की गई। खनिज राज्य की संपत्ति है। इसकी रायल्टी पर भी राज्य का ही हक है। अभी राज्य को रायल्टी मिल ही रही है। पर निरस्त कोयला खदानों की रायल्टी केंद्र ने जमा कराई। इसी आधार पर उन्हें नीलामी की संशोधित नई प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति मिल पाई। मंत्री ने भी संसद में यह नहीं कहा कि यह राज्य का पैसा नहीं है, बस यही कहा कि नहीं देना है। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने किस आधार पर सुझाव दिया और केंद्र ने उसे मान लिया, मंत्री ने जवाब में स्पष्ट नहीं किया।
जिस तरह से राज्यों में महाधिवक्ता सरकार का कानूनी मसलों पर बचाव करते हैं, केंद्र में सॉलिसिटर जनरल करते हैं। मंत्री के जवाब का मतलब यह भी हो सकता है कि वसूली के लिए कोर्ट से ऑर्डर ले आइए। हमारा वकील तैयार है। इस जवाब से केंद्र के खाते में राज्य सरकार के मुताबिक रुकी हुई राशि 4024 करोड़ और बढ़ गई। बहरहाल, सांसद राजीव शुक्ला ने इस सवाल के जरिये छत्तीसगढ़ को लेकर अपनी फिक्र जाहिर कर दी है। वे दिल्ली में रहें, मगर छत्तीसगढ़ के मुद्दों पर मुखर रहें तो किसे एतराज हो सकता है?
हेलमेट नहीं तो कचरा उठाओ
वैसे तो प्रदेश में हेलमेट के खिलाफ सख्ती का कोई अभियान नहीं चल रहा है पर दुर्ग-भिलाई में ट्रैफिक पुलिस का अभियान तेजी से चलाया जा रहा है। शायद हाल ही में सडक़ दुर्घटनाओं के बढ़ जाने के कारण। पुलिस जब बाइक सवारों का चालान काटने के लिए सडक़ पर उतरती है तो लोग हेलमेट पहनना शुरू करते हैं, फिर जैसे ही अभियान रुकता है लोग फिर हेलमेट घर में छूट जाता है। पुलिस पहले फूल देकर लोगों को कोविड नियमों या ट्रैफिक नियमों का पालन करने के लिए समझाती रही है। पर लगता है अब वे दिन लद गए हैं। दुर्ग-भिलाई में एसपी ने आदेश दिया है कि बिना हेलमेट चलने वालों से सडक़ का कचरा उठवाएं। ज्यादातर बिना हेलमेट कॉलेज के छात्र-छात्रा दिखाई देते हैं। पुलिस के रोकते ही वे रोने-गिड़गिड़ाने लगते हैं। जेब खर्च भी इतना नहीं मिलता कि अचानक चालान का बोझ उठा सकें। इसलिए कचरा उठाने में उन्हें भलाई दिख रही है। पर मुमकिन है आगे इस पर विवाद होने लगे। फिलहाल तो पुलिस के अभियान के चलते हेलमेट पहनकर बाइक चलाने वालों का प्रतिशत बढऩे लगा है।