राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : देखते रहिए अदालत की ओर
25-Dec-2022 5:09 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : देखते रहिए अदालत की ओर

देखते रहिए अदालत की ओर
छत्तीसगढ़ में आईटी और ईडी की कार्रवाई जितनी जमीन के ऊपर दिख रही है, उससे कहीं अधिक जमीन के नीचे भी चल रही है। कार्रवाई सामने तो तभी आती है जब किसी पर छापे पड़ते हैं, या किसी को गिरफ्तार करके अदालत में पेश किया जाता है। उसके पहले की कोई जानकारी इन दो एजेंसियों की तरफ से जारी नहीं की जाती है। इसलिए कई बड़ी-बड़ी कार्रवाई भी लोगों की नजरों में नहीं आतीं। 

अब जैसे कोयले से जुड़े हुए ईडी के छापों और अदालती मुकदमे की खबरें तो बहुत आईं, लेकिन यह बात सामने नहीं आई कि एक आईएएस अफसर की बेशुमार दौलत को जांच एजेंसी ने अटैच कर दिया है। एकदम पुख्ता जानकारी यह है कि एक आईएएस की 50 से अधिक जमीनों को ईडी ने अटैच कर दिया है, और इनकी बिक्री या किसी भी तरह के नाम बदलने पर रोक लगा दी है। अभी तक एजेंसी ने सार्वजनिक रूप से यह जानकारी जारी नहीं की है, लेकिन हो सकता है कि अगली गिरफ्तारी के साथ यह पूरी लिस्ट अदालत में पेश हो जाए और लोगों को पता लगे कि एक आईएएस का परिवार उसकी अंधाधुंध कमाई के दौर में किस तरह डेढ़ बरस में पांच दर्जन जमीनें खरीद सकता है। क्रिसमस के ब्रेक के बाद धारावाहिक आगे जारी रहेगा, देखते रहिए अदालत की ओर। 

पहले कौन, राहुल या रूचिर?
जिन लोगों ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मीडिया सलाहकार, और भूतपूर्व पत्रकार रूचिर गर्ग को हाल के महीनों में देखा है, उन्हें लग सकता है कि वे ठीक राहुल गांधी के अंदाज में दाढ़ी बढ़ा रहे हैं। खैर, वे अखबारनवीसी छोडक़र कांग्रेस में शामिल हुए, इसलिए राहुल की तरह की फैशन करने में कुछ अटपटा नहीं है, वे मोदी की तरह की दाढ़ी नहीं बढ़ा रहे हैं। लेकिन जो लोग रूचिर को पहले से जानते हैं, उन्हें मालूम है कि वे इस तरह की दाढ़ी बढ़ाने का काम हमेशा से करते आए हैं, और हो सकता है कि रूचिर को देखकर राहुल को यह फैशन सूझा हो। अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में पदयात्रा पूरी करने के बाद राहुल पहले दाढ़़ी मुंडाते हैं, या रूचिर गर्ग। 

पर्यावरण सुधार में आगे राज्य  
छत्तीसगढ़ जैसा राज्य जिसका 40 प्रतिशत से अधिक भाग वनों से आच्छादित हो, वहां पर्यावरण तो बेहतर होना ही चाहिए, पर इसी राज्य में खनिज और उस पर आधारित उद्योगों की भरमार है। यह प्रदूषण फैलाने के लिए काफी हैं। एनओ2 और एसओ2 पर्यावरण प्रदूषण को मापने का पैमाना होता है। सन् 2016 में एसओ2 घनत्व बढक़र 26.02 हो गया था जो अभी उपलब्ध 2020 के आंकड़ों के अनुसार घट कर 16.34 प्रतिशत हो गया। यह करीब 37 प्रतिशत की कमी है। एनओ2 घनत्व 24.11 से घटकर 19.88 हो गया है। ‘इंडिया टुडे’ की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। इसमें यह भी बताया गया है कि वनों का प्रतिशत इस दौरान 41.12 से बढक़र 41.14 हो गया है। राज्य की सात प्रमुख नदियों के जल की गुणवत्ता की निगरानी के लिए 27 केंद्र भी स्थापित किए गए हैं।

दुनियाभर में ग्लोबल वार्मिंग को लेकर चिंता बढ़ रही है। भारत ने सन् 2030 तक उद्योगों से कार्बन उत्सर्जन 50 प्रतिशत तक कम करने और सन् 2070 तक शून्य पर लाने का संकल्प लिया है। उस समय तक आज के लोग शायद न रहें पर वे आने वाली पीढ़ी को साफ हवा में सांस लेने की सौगात दे सकेंगे। छत्तीसगढ़ पर किया गया विश्लेषण यदि सही है तो अच्छी बात है, वरना कुछ साल पहले तो राजधानी रायपुर देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल हो चुका है।

ऐसी जागरूकता हर जगह नहीं
अमूमन होटल-रेस्तरां में खाना खाने के बाद लोग बिल पर बहस नहीं करते। टोटल बिल देखते हैं और किस-किस तरह का चार्ज लगाया गया है, ध्यान नहीं देते। बिल के साथ वेटर को अलग से नजराना भी देते हैं। बैंकुठपुर के सलका स्टेट हाइवे पर एक खूब चलने वाला ढाबा है-बाबू की रसोई। परिवार के साथ खाना खाने गए एक ग्राहक के पास बिल आया। उसने देखा कि बिल में जीएसटी के अलावा सर्विस चार्ज भी जोड़ा गया है। जितने का बिल बना था, उस हिसाब से सर्विस चार्ज कुछ भी नहीं था। पर ग्राहक ने कहा, ये बिल में जोडऩा गलत है। मेरी इच्छा होगी तो वेटर को अलग से जो चाहूं दूं। ढाबे का मैनेजर भी अड़ गया, कहा-सर्विस चार्ज तो हम बिल में जोड़ते हैं, आपको भी देना होगा। ग्राहक ने फूड विभाग में फोन कर दिया। वहां से एक टीम भी तुरंत आ गई। सर्विस चार्ज जोडऩे को लेकर बिल के साथ एक रिपोर्ट बनाकर जीएसटी विभाग को कार्रवाई के लिए भेजा। पर वह भी किया, जो फूड विभाग के अधिकार में था। ढाबे में रखे पनीर और दूसरे कच्चे सामानों की गुणवत्ता पर शंका जताई, सैंपल ले लिया। उसे जांच के लिए रायपुर के लैब में भेज दिया।  

दरअसल, जीएसटी लागू होने की शुरूआत में सर्विस चार्ज को लेकर कोई स्पष्ट आदेश नहीं था। बाद में शिकायतें आने पर केंद्र ने स्पष्ट किया कि सर्विस चार्ज नहीं लिया जा सकता। लोगों को पता तो है, पर शिकायत नहीं करते।

अलाव की जरूरत
आवारा कुत्तों की सबसे ज्यादा मौत गाडिय़ों से कुचलकर नहीं, बल्कि ठंड से होती है। बहुत से लोग खुले में पुराने टायर, कंबल, कपड़े रखकर इस बात की फिक्र करते हैं। यह तस्वीर जयपुर की है। ([email protected])

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