राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : सडक़ पर किताब बेचता लेखक
27-Dec-2022 5:30 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : सडक़ पर किताब बेचता लेखक

सडक़ पर किताब बेचता लेखक
इस महीने की शुरुआत में इसी जगह पर एक लेखक सोनू कुमार बंजारे की तस्वीर लगाई गई थी। बिलासपुर के रहने वाले सोनू लॉकडाउन के दौरान मुंबई चले गए थे, मायानगरी में किस्मत आजमाने के लिए। इसका जिक्र अपने सोशल मीडिया पेज पर कलमकार असगर वजाहत ने किया था। सोनू ने एक कहानी लिखी है, जिस पर वे फिल्म बनाना चाहते हैं। वे सडक़ पर दिनभर खड़े होकर अपने लिए प्रोड्यूसर की तलाश कर रहे थे। पता नहीं, अब तक उन्हें प्रोड्यूसर मिला या नहीं, पर ऐसा ट्रेंड बढ़ रहा है। शर्मिंदगी क्यों? यदि आप अपने बुद्धिजीवी होने का लबादा उतारकर अपना लिखा हुआ पाठक तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। यह तस्वीर लेखक अरुण कुमार की है। इनकी किताब का नाम है- वीरा की शपथ। पटना की सडक़ों पर अपनी पत्नी के साथ दिनभर यूं ही खड़े रहकर वे अपनी किताब बेच रहे हैं।

इसकी तारीफ करते हुए अपने सोशल मीडिया पर फोटो लगाने वाले सुनील कुमार झा कहते हैं कि बुरे दिनों में ‘नागार्जुन’ ने भी अपनी किताब ‘विलाप’ और ‘बुढ़वर’ की कॉपी ट्रेनों में घूम-घूमकर बेची थी।
यानि ट्रेंड नया नहीं है। कम से कम इसी बहाने किताबों का दौर वापस लौटे। 

रानू साहू की वापिसी, और मसूरी...
रायगढ़ की कलेक्टर रानू साहू करीब तीन हफ्ते की छुट्टी के बाद अब काम पर लौट गई हैं। कल सोमवार को उन्होंने काम सम्हाल लिया है। आसपास के लोगों का कहना है कि काम पर आने के पहले वे बस्तर के दंतेश्वरी मंदिर में पूजा-अर्चना करके लौटी हैं। कोयला-उगाही मामले में चल रही ईडी की जांच के सिलसिले में उनका नाम जुड़ा हुआ है, और उनके सरकारी बंगले पर ईडी का छापा भी पड़ा था, और पूरे परिवार की संपत्तियों की जांच भी चल रही है। आने वाला वक्त राज्य के कुछ अफसरों के लिए बड़ी चुनौती का रहने वाला है, और ऐसे में छत्तीसगढ़ के 18 आईएएस अफसर ट्रेनिंग के लिए मसूरी गए हुए हैं। जाहिर है कि इस राज्य के इतने आईएएस जब एक साथ हैं, तो आपस में यह चर्चा तो हो ही रही होगी कि सरकारी नौकरी में रहते हुए क्या-क्या नहीं करना चाहिए। इन 18 लोगों में अलग-अलग वरिष्ठता के लोग हैं, सीधे आईएएस बने लोग भी हैं, और राज्य सेवा से आईएएस में चुने गए लोग भी हैं, इसलिए एक-दूसरे से सीखने का मौका भी है। एक तरफ मसूरी अकादमी का प्रशिक्षण, दूसरी तरफ आपस के तजुर्बों का प्रशिक्षण। 

शैलजा का कुछ अलग अन्दाज
प्रदेश कांग्रेस का प्रभार संभालने के बाद पहली दफा यहां आई  शैलजा के मिजाज कुछ अलग ही नजर आए। हरियाणा की कद्दावर नेत्री शैलजा, पीएल पुनिया की तरह दलित समाज से आती हैं। पुनिया कई दलों से होकर कांग्रेस में आए थे, लेकिन शैलजा का पूरा बैकग्राउंड ही कांग्रेस का रहा है। वो नरसिम्हा राव, और फिर मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रही हैं। वो सोनिया गांधी की काफी करीबी मानी जाती हैं। ऐसे में शैलजा की हैसियत पार्टी के भीतर पुनिया के मुकाबले काफी ऊंची है। 

शैलजा की ताकत को भांपकर सत्ता, और संगठन ने उनके सत्कार में कहीं कोई कसर बाकी नहीं रखी। शैलजा कौन सी गाड़ी में बैठेगी, कहां रुकेगी और कहां स्वागत होगा, यह सब कुछ पहले से तय था। सीएम भूपेश बघेल और प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने मिलकर रूपरेखा तैयार कर ली थी। शैलजा को सीएम की गाड़ी में बैठना था। आगे की सीट पर सीएम बैठते, और पीछे प्रदेश अध्यक्ष मरकाम, और प्रभारी सचिव सप्तगिरि उल्का के साथ शैलजा को बैठना था। 

जैसे ही स्वागत सत्कार के बाद उन्हें बताया गया कि किस गाड़ी में बैठना है, तो शैलजा ने कहा कि वो आगे की सीट पर बैठेंगी। फिर क्या था सीएम और अन्य नेताओं को पीछे की सीट पर बैठना पड़ा। यही नहीं, शैलजा के लिए न्यू सर्किट हाउस में ठहरने की व्यवस्था की गई थी। वो न्यू सर्किट हाऊस में गईं भी, और कार्यकर्ताओं से मेल मुलाकात की। लेकिन रात्रि विश्राम उन्होंने होटल मैरिएट में किया। वो पहले से ही अपने लिए होटल बुक करा रायपुर पहुंची थीं। 

चर्चा है कि पीसीसी और सरकारी तंत्र ने होटल के बिल का भुगतान करने की पेशकश की, लेकिन शैलजा ने ऐसा करने से मना कर दिया, और उन्होंने खुद ही इसका भुगतान किया। जबकि उनसे पहले के प्रभारी के लिए व्यवस्थापक होते थे, जो कि गाड़ी और अन्य सुविधाएं मुहैया कराते थे। ऐसे कुछ व्यवस्थापकों ने प्रभारियों की इतनी सेवा की थी कि उन्हें सत्ता और संगठन में पद भी मिल गया, लेकिन शैलजा की कार्यशैली बाकियों के तुलना में एकदम अलग दिखी।

ब्लॉक अध्यक्ष हनुमान 
खबर है कि हरियाणा में राहुल गांधी की पदयात्रा के दौरान शैलजा की पीएल पुनिया से मीटिंग भी हुई थी। शैलजा ने रायपुर आने से पहले सत्ता और संगठन के कामकाज को लेकर पुनिया से फीडबैक भी लिया था। 

बताते हैं कि ब्लॉक अध्यक्षों ने सरकार में काम न होने, और अपनी उपेक्षा को लेकर शिकवा शिकायतें की, तो उन्होंने रोका-टोका नहीं और उन्हें अपनी बात कहने का पूरा मौका दिया। बाद में उन्होंने ब्लॉक अध्यक्षों को अपनी ताकत का अहसास कराया। उन्होंने कहा कि वो (ब्लॉक अध्यक्ष) हनुमान की तरह हैं, जिन्हें खुद की ताकत का अहसास नहीं है। शैलजा ने कहा दबाव बनाएँ, देखते हैं कि काम कैसे नहीं होता है। शैलजा ने सरकार की तारीफ की, तो नाराज नेताओं को भी अन्याय न होने का भरोसा जगाया। कुल मिलाकर शैलजा से निचले कार्यकर्ता भी संतुष्ट नजर आए। 

चुनाव लडऩे की ख्वाहिश से गई कलेक्टरी 
प्रदेश के एक कलेक्टर को चुनाव लडऩे की ख्वाहिश जाहिर करना महंगा पड़ गया। पिछले दिनों धमतरी और नारायणपुर जिले के जिलाधीशों के तबादले की असल वजह में कुछ रोचक बातें सुनाई दे रही हैं। 

धमतरी कलेक्टर पीएस एल्मा की चुनाव लडऩे की जुबानी ख्वाहिश की खबर सिहावा विधायक डॉ. लक्ष्मी ध्रुव के कानों तक पहुंच गई। कलेक्टर ने अपने करीबियों से डॉ. ध्रुव के विधानसभा से टिकट के लिए जोर लगाने का इरादा साझा किया। यह बात उड़ते हुए सिहावा विधायक के कानों तक पहुंच गई। हालांकि एल्मा मूलत: नारायणपुर जिले के बाशिंदे हैं, लेकिन वह धमतरी में कलेक्टरी करते हुए अपने लिए सुरक्षित सीट में सिहावा पर नजरें जमाए हुए हैं। 

बताते हैं कि एल्मा के चुनाव लडऩे की बात से डॉ. ध्रुव इस कदर  नाराज हुई कि उन्होंने सरकार के रणनीतिकारों से फौरन उन्हें धमतरी से हटाने का दबाव बनाया। इस दबाव का असर नारायणपुर कलेक्टर रितुराज रघुवंशी पर पड़ा। सुनते हैं कि नारायणपुर से उन्हें दंतेवाड़ा में पदस्थ किए जाने की सरकार की इच्छा थी। धमतरी में बदले परिदृश्य की वजह से रितुराज को नारायणपुर से हटाया गया। 2014 बैच के रितुराज की पोस्टिंग नारायणपुर में  कुछ महीने पहले हुई थी। 

नारायणपुर में एसपी और कलेक्टरों की तैनाती अस्थिर रूप लिए हुए हैं। पिछले कुछ सालों से कलेक्टर-एसपी आते-जाते दिख रहे हैं। एल्मा की दिली इच्छा में चुनाव लडऩा शामिल है। सिहावा में वह अपने शुभचिंतकों के जरिये लोगों से संपर्क में भी हैं। एल्मा से चूक यह हो गई कि उन्होंने अपनी बातें खोलकर रख दीं, जिससे उन्हें कलेक्टरी से हाथ धोना पड़ा।

नेपाल में ढाई-ढाई साल
देखिए नेपाल को, वहां किसी दल को बहुमत नहीं मिला। देउबा के साथ पिछली बार प्रचंड की पार्टी सरकार में थी, इस बार प्रचंड ने समर्थन देने से मना कर दिया। बात तब बनी जब तय हुआ कि ढाई-ढाई साल दोनों प्रधानमंत्री बनेंगे। प्रचंड ने शर्त रखी कि पहले उनको कुर्सी संभालने का मौका मिले। देउबा थोड़ी ना-नुकुर के बाद इसके लिए भी तैयार हो गए। प्रचंड ने शपथ ले ली है। ढाई साल बाद कुर्सी छोड़ देंगे, मौका देउबा को मिलेगा। यदि ढाई साल बाद प्रचंड अपने वादे से मुकरेंगे तो देउबा हाथ खींच लेंगे, उनकी सरकार गिर जाएगी। यह डील उनके राष्ट्रपति या किसी सुप्रीमो के साथ बैठक में नहीं हुई, खुलेआम ऐलान किया गया। देउबा किसी हाईकमान से बंधे भी नहीं है। उनकी अपनी पार्टी, उनकी अपनी मर्जी। वादाखिलाफी हुई तो सरकार गिराने के लिए उन्हें किसी से पूछने की जरूरत नहीं।

अस्वीकरण- इस चर्चा का मकसद किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को उकसाना नहीं है।

न्यू ईयर पर अपना एमपी..
शराब के शौकीन यदि न्यू ईयर पर गोवा वगैरह नहीं जा पा रहे हों तो छत्तीसगढ़ से सटे मध्यप्रदेश में मौका है। आबकारी विभाग ने वहां शराब लाइसेंस को लेकर बड़ा बदलाव कर दिया है। किसी ठिकाने पर किसी एक दिन 10-12 लोगों की पार्टी करनी है तो शराब पीने-पिलाने का लाइसेंस 500 रुपये में मिल जाएगा। शादी-ब्याह या दूसरे उत्सवों को लेकर भी बड़ी उदारता बरती गई है। दो हजार से लेकर 10 हजार तक अलग-अलग कैटेगरी। इधर, एक अपना राज्य है जहां शराबबंदी को लेकर भाजपा सोते-जागते सरकार को घेर रही है। उनके आंदोलन से मदिरा प्रेमियों की सांस अटक जाती है। वैसे, सांसद सरोज पांडेय ने कह दिया है कि हम तो कांग्रेस को उसके घोषणा पत्र की याद दिला रहे हैं। इसका मतलब यह नहीं कि हम शराबबंदी का वादा करते हैं। ([email protected])

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