राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : तहसील ऑफिस में रिश्वत की लिमिट
29-Dec-2022 4:02 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : तहसील ऑफिस में रिश्वत की लिमिट

तहसील ऑफिस में रिश्वत की लिमिट  

यह ठीक है कि आम लोग राजस्व विभाग के छोटे-छोटे कामों में रिश्वतखोरी के चलते बेहद परेशान हैं, पर क्या यह सब इसी सरकार में हो रहा है। इससे पहले सब दुरुस्त था? नहीं था, पर हालत इतनी बुरी भी नहीं थी। मीडिया के सामने संतुलित बात करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कुछ यही इशारा किया। बेलतरा के प्रवास पर उन्होंने पत्रकारों से चर्चा के दौरान सरकार की खामियों को उजागर किया। राज्य के कर्ज में लद जाने की बात, अपराधों का ग्राफ बढऩे की बात, आदि। साथ में कहा कि भूपेश राज में तहसील में लाखों रुपये लग रहे हैं, तब कहीं जाकर आम लोगों का काम हो रहा है। हमारे कार्यकाल में तो 5-10 हजार में काम हो जाता था..। सच को साफ-साफ कह तो दिया पूर्व सीएम ने। उन्होंने भ्रष्टाचार पर नहीं, उसका रेट बढ़ जाने पर चिंता जताई। पर, लोगों के लिए सवाल बाकी रह गया है कि क्या भाजपा सरकार के दौरान में कोई हिदायत थी, कि इतना ही लोगे, इससे ज्यादा लिए तो निपटा दिया जाएगा? और यदि ऐसा है तो कांग्रेस सरकार ने कोई लिमिट क्यों तय नहीं की, अब ये क्यों बेलगाम हो गए हैं, लोग पिस रहे हैं।  

ईडी के दौर में मीडिया, और प्रेस

छत्तीसगढ़ में ईडी की जांच को लेकर मीडिया के बीच एक ऐसी हड़बड़ी दिख रही है जो उसकी रही-सही इज्जत को खत्म कर रही है। आज टेक्नालॉजी की मेहरबानी से हर इंसान एक न्यूज पोर्टल शुरू करके कुछ हजार रूपये महीने के खर्च से मीडिया मालिक बन सकते हैं, अपने आपको पत्रकार कह सकते हैं। और ऐसे में लोग पत्रकारिता की लंबी परंपरा, उसके तौर-तरीकों से परे अपने अंदाज में खबरें गढक़र पोस्ट कर रहे हैं, और उन्हें देखकर उसके दबाव में पुराने पत्रकार भी अपने अखबारों में उसी तरह की हड़बड़ी दिखा रहे हैं।
अच्छे-खासे तजुर्बे वाले रिपोर्टर भी दिन में चार बार दावे के साथ किसी की गिरफ्तारी की बात करते हैं, और साबित यह होता है कि अगले चार दिन तक भी वैसी कोई कार्रवाई नहीं दिखती है। इसके पीछे कुछ तो एक-दूसरे के देखादेखी न्यूज ब्रेक करने की हड़बड़ी है, और कुछ लोगों की अपनी हसरतें हैं जिन्हें खबर की हकीकत की तरह पेश करने की उनकी नीयत है। ऐसा दौर तो आकर चला जाएगा, लेकिन जिस तरह यह दौर कई लोगों की विश्वसनीयता अदालत में गिरा रहा है, उसी तरह यह मीडिया की विश्वसनीयता भी खत्म कर रहा है। रिपोर्टरों को हमेशा से चले आ रहे पत्रकारिता के कुछ तौर-तरीकों को याद रखना चाहिए कि जब तक दो अलग-अलग, एक-दूसरे से असंबद्ध स्रोतों से कोई जानकारी पुष्ट न हो, तब तक उस पर भरोसा नहीं करना चाहिए। यह इम्तिहान सार्वजनिक जीवन के लोगों का भी है, और मीडिया का भी। ऐसे में फिर याद पड़ता है कि मीडिया के अखबार वाले हिस्सों को अपने आपको फिर से प्रेस कहना शुरू करना चाहिए, और अपने तौर-तरीके पुराने रखना चाहिए।

मलाई से परहेज

ईडी, और आईटी की सक्रियता देखकर अफसर अब मलाईदार पोस्टिंग से परहेज कर रहे हैं। पिछले दिनों एक आईएफएस अफसर की मलाईदार पद पर पोस्टिंग हुई, तो पोस्टिंग आदेश जारी होते ही अफसर ने विभाग प्रमुख से मिलकर पोस्टिंग आदेश निरस्त करवाने का आग्रह किया। हालांकि अभी पोस्टिंग आदेश चेंज नहीं हुआ है, लेकिन उन्होंने कार्यभार भी नहीं संभाला है। संबंधित जगह में सैकड़ों करोड़ का फंड है, लेकिन जिस रफ्तार से ईडी राज्य के अफसरों पर शिकंजा कस रही है उससे चुनावी साल में मलाईदार पद पर काम करना जोखिम भरा हो गया है। यही वजह है कि अच्छी साख वाले अफसर इससे दूर रहने का बहाना ढूंढ रहे हैं।

लंबे मुसाफिर मरकाम  

सीएम भूपेश बघेल, और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम भारत जोड़ों यात्रा में राहुल गांधी के साथ कई बार कदमताल कर चुके हैं। सीएम व्यस्तताओं के बावजूद अलग-अलग राज्यों में राहुल के साथ पदयात्रा के लिए समय निकाल चुके हैं। मोहन मरकाम भी पीछे नहीं है। पिछले दिनों हरियाणा में वो जब राहुल के साथ चल रहे थे, तो प्रियंका गांधी ने उन्हें देखकर पूछ लिया कि मरकामजी आप शुरू से साथ चल रहे हैं क्या? इस पर मरकाम ने कहा कि मैडम, बीच-बीच में ही यात्रा में शामिल होते हैं। मरकाम जब भी यात्रा में साथ होते हैं, तो प्रतीकात्मक यात्रा करने के बजाए सौ-डेढ़ सौ किमी साथ चलते हैं। ऐसे में बहुतों को गलतफहमी हो जाती है कि मरकाम शुरू से ही यात्रा में साथ हैं।

प्लीज, प्लीज, प्लीज पीएम रेल दीजिए

जशपुर में रेल की मांग की मांग बस्तर की मांग से कम पुरानी नहीं है। बस्तर में कुछ ट्रेनें तो चल भी रही हैं, सांसद दीपक बैज ने पिछले दिनों लोकसभा में सवाल किया तो दुर्ग से जगदलपुर तक सीधी रेल लाइन के लिए आश्वासन भी मिला। पर जशपुर को लेकर कोई ठोस घोषणा नहीं हो रही है। सांसद गोमती साय ने भी जशपुर में रेल की 50 साल पुरानी मांग को लेकर पिछले दिनों लोकसभा में आवाज उठाई। जशपुर में रेलवे ट्रैक बिछाने का काम अगर आज शुरू हो तो इसका लाभ आने वाली पीढ़ी को मिल पाएगा। जशपुर के स्कूली बच्चों ने इस बात को समझा। करीब 300 बच्चों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पोस्टकार्ड लिखकर जशपुर में रेल सुविधा शुरू करने की मांग की है। इन्होंने पोस्टकार्ड का एक पूरा हिस्सा प्लीज, प्लीज लिखकर भर दिया है, जैसा बच्चे प्राय: किसी खिलौने के लिए जिद करते हैं।

पर, जशपुर में रेल परियोजना शुरू नहीं होने के पीछे कुछ राजनीतिक कारण भी थे। यहां के पर्यावरण को नुकसान, विशिष्ट संस्कृति और खनिज के दोहन की आशंका के चलते क्षेत्र के प्रभावशाली नेताओं ने रेल लाने में दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। पर अब यहां से निकलने वाली ईब नदी से बहुत पानी बह चुका है। कोरबा-लोहरदगा रेल लाइन के सर्वे को मंजूरी मिल चुकी है। अंबिकापुर-झारसुगुड़ा को लेकर सर्वे की मांग हो रही है। लोग इन दोनों परियोजनाओं पर जल्द निर्णय लेने की मांग कर रहे हैं। सिर्फ सडक़ मार्ग की सुविधा होने के कारण जशपुर पिछड़ेपन और बेरोजगारी के संकट से जूझ रहा है। लोग अब इस मांग को लेकर सडक़ पर भी उतर रहे हैं। अधिवक्ताओं ने मोर्चा बनाकर आंदोलन शुरू कर दिया है।

तो फिर बगावत किसने की?

भाजपा की ओर से भाटापारा नगरपालिका अध्यक्ष कांग्रेस की सुनीता गुप्ता के विरुद्ध कल लाया गया अविश्वास प्रस्ताव ध्वस्त हो गया। नियम के मुताबिक प्रस्ताव पारित होने के लिए 11 मतों की जरूरत थी, उन्हें 12 मिल गए। इस तरह से कुर्सी बच गई। पर कांग्रेस में हो गई थी बगावत। अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 19 वोट पड़े, जबकि भाजपा पार्षदों की संख्या कुल 15 है। यानि कांग्रेस के चार पार्षदों ने धोखा दिया। दिलचस्प यह है कि रायपुर से गए पर्यवेक्षक पंकज शर्मा और प्रमोद दुबे मतदान के पहले रात 2 बजे तक मैराथन बैठक ले रहे थे। कांग्रेस के सभी पार्षद उसमें पहुंचे। भरोसा दिलाया कि पार्टी से बाहर नहीं जाएंगे। अगले दिन वोटिंग के बाद सारे पार्षद एक साथ खड़े दिखे, सब मांग कर रहे थे कि क्रास वोटिंग जिसने भी की, उसके खिलाफ कार्रवाई हो। सबने जीत का जश्न भी मिलकर मनाया। भाजपा ने मेहनत तो खूब की लेकिन सफलता नहीं मिली। पर अपनी रणनीति को वे इस नजरिये से कामयाब मान रहे हैं कि हमने कांग्रेस को तोड़ लिया और टूटा कौन इसकी भनक नहीं लगने दी।

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