राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : फिर कई को नोटिस
01-Jan-2023 7:04 PM
	 छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : फिर कई को नोटिस

फिर कई को नोटिस
चर्चा है कि चुनावी साल में ईडी की सक्रियता बढ़ सकती है। कई तो चपेट में आ चुके हैं। कुछ निशाने पर हैं। एक खबर यह भी है कि दो दर्जन से अधिक को नोटिस जारी हुई है। उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया गया है। इनमें से कई तो ऐसे भी हैं जिनसे ईडी पहले भी पूछताछ कर चुकी है।  दोबारा नोटिस मिलने पर दहशत में आना स्वाभाविक है। सरकार, और कारोबार जगत के कुछ प्रभावशाली लोगों का मानना है कि ईडी के साए में ही चुनाव होगा। ऐसे में लडऩा ही एकमात्र विकल्प है। देखना है कि आगे क्या होता है। 

अधिवेशन कब और कहाँ ?
वैसे तो एआईसीसी ने रायपुर में राष्ट्रीय अधिवेशन कराने का ऐलान कर दिया है। प्रदेश कांग्रेस, और सीएम अधिवेशन की तैयारियों में जुट गए हैं। 15 फरवरी के बाद से शहर के तमाम बड़े होटल अभी से बुक कर लिए गए हैं। यद्यपि अभी डेट नहीं आई है, लेकिन माना जा रहा है कि फरवरी के आखिरी हफ्ते में एआईसीसी का अधिवेशन हो सकता है। 

हल्ला यह भी है कि एआईसीसी अब छत्तीसगढ़ की जगह कर्नाटक अथवा दिल्ली में अधिवेशन करा सकती है। चर्चा है कि चुनाव के चलते कर्नाटक में अधिवेशन कराने पर गंभीरता से विचार हो रहा है। कर्नाटक में मार्च-अप्रैल में चुनाव हो सकते हैं। कहा जा रहा है कि यदि  दिल्ली में अधिवेशन कराने का निर्णय होता है, तो एक ही दिन का अधिवेशन होगा। कुछ भी हो, इस पर फैसला जल्द होने की उम्मीद है। 

ये नववर्ष हमें स्वीकार नहीं?
विक्रमादित्य ने शकों को हराकर जिस दिन अपने राज्य की स्थापना की थी, उस दिन को विक्रम संवत् का प्रारंभ माना जाता है। शुक्ल पक्ष प्रतिपदा पर ब्रह्मा जी ने संसार की रचना शुरू की थी, इसे इसलिए नव-संवत्सर नाम से जाना जाता है। 1 जनवरी को नया साल मानने से इनकार करने वाले लोगों का कहना है कि चैत्र प्रतिपदा को नए साल के पहले दिन की तरह मनाया जाए और गुलामी की पहचान बने विदेशी ग्रेगोरियन कैलेंडर से हमें मुक्त होना चाहिए। मगर अपने देश-प्रदेश में सभी जगह चैत्र प्रतिपदा से नए साल की शुरुआत नहीं होती। बंगाली हिंदू, वैशाख के पहले दिन को नया साल मानते हैं, असम बिहू को साल का पहला दिन मानता है। पंजाब नानकशाही कैलेंडर के मुताबिक वैशाखी के दिन को नए साल की शुरुआत मानता है, जिसे होला-मोहल्ला कहते हैं। सिंधी समाज चैत्र महीने की द्वितीय तिथि को चेटीचंड उत्सव मनाता है, जो भगवान झूलेलाल का जन्मदिन है। उनके नववर्ष की शुरुआत इसी दिन से होती है। 

दक्षिण के राज्यों में गुड़ी पड़वा, विशु, ओणम, पोंगल, उगादि जैसे त्योहारों से नए साल की शुरुआत होती है। मारवाड़ी और गुजराती दीपावली से नए साल की शुरुआत करते हैं। इनमें से किसी की शुरुआत चैत्र प्रतिपदा से नहीं होती लेकिन मनाने वाले सब लोग हिंदू ही हैं। संस्कृत में लिखे गए अनेक प्राचीन ग्रंथों में शक संवत् का प्रयोग किया गया है, विक्रम संवत् का नहीं। शक संवत् का प्रयोग करने वाले विद्वान भी हिंदू ही हैं। दूसरे धर्मों की छोड़ भी सकते हैं जैसे-मुस्लिम मोहर्रम महीने की एक तारीख को नया साल मानते हैं। अगस्त महीने का नवरोज पर्व पारसी लोगों का नया साल होता है। पर जैन धर्म जो हिंदू धर्म के बहुत करीब है वह दीपावली के दूसरे दिन को नए साल की शुरुआत मानता है क्योंकि इस दिन महावीर स्वामी को मोक्ष मिला था।

छत्तीसगढ़, राज्य के बस्तर, झारखंड और मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाकों में हरेली और नवाखाई वर्ष के पहले त्यौहार के रूप में मनाया जाता है जो जुलाई-अगस्त महीने में आता है।

छत्तीसगढ़ में देश के सभी पर्वों को मनाते हुए देखा जा सकता है। खासकर रेलवे की वजह से झाड़सुगुड़ा से कटनी और रायगढ़ से गोंदिया तक बस चुके लोगों के बीच।

हिंदुत्ववादियों के एक व्हाट्सएप ग्रुप में एडमिन की तरफ से बार-बार चेतावनी दी जा रही है कि 1 जनवरी हमारा नववर्ष नहीं है, कृपया बधाई और शुभकामनाएं नहीं दें। पर ग्रुप से जुड़े सदस्य मानने को तैयार ही नहीं। शुभकामनाएं देने से बाज नहीं आ रहे हैं।

भीड़ जुटाने का तनाव
आरक्षण विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करने को लेकर राज्यपाल के खिलाफ 3 जनवरी को राजधानी में होने वाली कांग्रेस की जन अधिकार महारैली के लिए हर विधायक को 10 से 12 हजार लोगों की भीड़ अपने-अपने इलाकों से लाने के लिए कहा गया है। सरपंच, पार्षद, निगम और मंडल तथा आयोग के पदाधिकारियों को भी अलग से 2 से 10 हजार लोगों को लाना है। इस हिसाब से अगर देखा जाए तो रायपुर में 8 से 10 लाख लोग पहुंच सकते हैं। एक कांग्रेस नेता का कहना है कि राज्यपाल इस रैली के बाद दबाव में आए चाहे ना आए लेकिन जिन लोगों को भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी दी गई है, वे जरूर तनाव में है। कहा गया है कि भीड़ रायपुर, बिलासपुर में पिछले महीनों में हुई भाजपा की रैलियों के मुकाबले बड़ी होनी चाहिए। इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर संगठन यह भी परखने वाला है कि विधायक और मंडल निगम के पदाधिकारियों की अपने इलाके में कितनी पकड़ है। जो लोग भीड़ नहीं ला सकेंगे, उनके परफॉर्मेंस रिपोर्ट दर्ज की जाएगी।

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