राजपथ - जनपथ

विरोध प्रदर्शन को सतनामी समाज की ना
आरक्षण पर कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे पर जबरदस्त हमला कर रहे हैं। जाहिर है यह कसरत इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर है। 3 जनवरी को होने वाले प्रदर्शन में कांग्रेस ने विभिन्न सामाजिक संगठनों को इसमें शामिल होने का न्यौता दिया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने अलग-अलग सामाजिक संगठनों से मुलाकात कर उनसे समर्थन मांगा। इनमें से सतनामी समाज के एक प्रमुख संगठन ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया। वे 16 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहे हैं। राज्यपाल के पास लंबित विधेयक में उन्हें 13 प्रतिशत देने का प्रावधान रखा गया है।
सन् 2012 में मध्यप्रदेश के समय से चले आ रहे आरक्षण के प्रतिशत में तत्कालीन भाजपा सरकार ने बदलाव किया। कुल मिलाकर आरक्षण का प्रतिशत 58 किया गया, जिसमें अनुसूचित जाति के लिए प्रतिशत 16 से घटाकर 12 कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने इस प्रावधान को निरस्त किया तो सरकार नया विधेयक लेकर आई। उस वक्त आरक्षण का प्रतिशत कम करने के खिलाफ सतनामी समाज में रोष था। इसके विरोध में प्रदर्शन हुए। पर भाजपा ने इसके ठीक एक साल बाद हुए सन् 2013 के चुनाव में 10 में से 9 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज कर ली। उस वक्त सतनामी समाज के प्रभावशाली चेहरे बालदास का उन्हें परोक्ष समर्थन मिल गया था। उनके करीब 20 उम्मीदवारों ने कांग्रेस के वोट जगह-जगह काटे। सन् 2018 के चुनाव में बालदास कांग्रेस के समर्थन में थे। तब भाजपा केवल मस्तूरी और मुंगेली की अनुसूचित जाति सीट जीत सकी, एक पामगढ़ सीट बसपा को मिली और कांग्रेस को 7 सीटों पर कामयाबी मिली।
भाजपा ने अनुसूचित जाति के 16 प्रतिशत आरक्षण की मांग को समर्थन दिया है। वह ईडब्ल्यूएस के लिए भी केंद्र की तरह 4 की जगह 10 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रही है। ओबीसी और अनुसूचित जनजाति को मिले आरक्षण पर कोई आपत्ति किसी को नहीं है। विधेयक कानून के कटघरे में खरा उतरेगा या नहीं यह बाद का सवाल है, पर विधेयक रोके जाने के राज्यपाल के फैसले का जिस तरह भाजपा समर्थन कर रही है, उसे उसमें सियासी फायदा दिखाई दे रहा है। ओबीसी वोटों पर कांग्रेस की बराबरी तक पहुंचने की कोशिश में उसने दोनों महत्वपूर्ण पद नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष, दे ही रखा है। डर यही है कि विधेयक जैसा है वैसे का वैसा मंजूर कर लिया गया तो कांग्रेस को बढ़त मिल सकती है।
धूप भी तो ठंडी है..
घने जंगलों के बीच बसे गांवों में इन दिनों गजब का जाड़ा है। ये स्कूली बच्चे कोरबा जिले के ऐसे ही एक गांव से हैं, जहां वे बैठे तो हैं धूप में, पर अलाव के बिना उनका काम नहीं चल रहा है।