राजपथ - जनपथ

यह सिलसिला खत्म हो
राज्य के सूचना आयोग में अध्यक्ष और एक सदस्य के लिए जिन लोगों ने आवेदन दिया, उनके नाम की लिस्ट आरटीआई एक्टिविस्ट लोगों ने कुछ घंटों के भीतर ही हासिल कर ली। लेकिन दूसरी तरफ राज्य में बिल्डरों और कॉलोनाइजरों, निर्माण संस्थाओं के मामलों की सुनवाई के लिए बने रेरा में किन लोगों ने अर्जियां भेजी हैं, या सरकार के तय किए हुए किन लोगों के नामों पर हाईकोर्ट जज की अगुवाई में कमेटी विचार करेगी, वह अब तक साफ नहीं है। लोग आजादी के 75 साल बाद भी किसी जानकारी को तब तक दबाए रखना चाहते हैं, जब तक उसे उजागर करना उनकी मजबूरी न हो जाए। और ऐसी मजबूरी होने पर भी लोग सूचना आयोग से 25 हजार रूपये का जुर्माना होने की भी फिक्र नहीं करते, और जानकारी देने से मना करते रहते हैं।
सच तो यह है कि सूचना पाने को अधिकार बनाने के बजाय सूचना देने को जिम्मेदारी बनाना जरूरी है। हर सरकारी कागज अगर इंटरनेट पर डाल देना उस विभाग और अफसर की जिम्मेदारी बना दिया जाएगा, तो सरकारी कामकाज में भ्रष्टाचार भी घटेगा, पारदर्शिता बढ़ेगी, और सरकारी उत्पादकता बढ़ सकेगी। आज तो किसी गलत काम के बाद महीनों तक विभाग आरटीआई में मांगी गई अर्जियों को तरह-तरह से रोकने में लगे रहता है। यह सिलसिला खत्म होना चाहिए।
बिकने से बचेगा नगरनार?
एनएमडीसी के आधिपत्य वाले बस्तर के नगरनार स्टील प्लांट को खुली बोली लगाकर बेचने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। केंद्र सरकार के निवेश और लोक संपत्ति प्रबंधन विभाग ने बोलियां जमा करने की अंतिम तारीख 27 जनवरी 2023 तय की है। विघटन के बाद एनएसएल (नगरनार स्टील) के शेयर बीएसई, एनएसई और कोलकाता स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हो जाएंगे। स्टील प्लांट के डीमर्जर के खिलाफ मजदूरों का लगातार आंदोलन चल रहा है। उनका कहना है कि प्रभावितों ने केंद्र सरकार के कारपोरेशन को प्लांट लगाने के लिए जमीन दी थी, मगर अब इसे निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। निजीकरण के बाद उनकी नौकरी पर भी खतरा मंडराएगा।
2 साल पहले छत्तीसगढ़ विधानसभा में एक शासकीय संकल्प पारित किया गया था। इसमें विपक्ष के सुझाए गए संशोधनों के बाद सरकार ने सर्वसम्मति से कहा था कि यदि निजीकरण किया गया तो राज्य सरकार इसे खुद खरीदेगा और संचालित करेगा। बस्तर के लोगों की भावनाएं भी लगभग 24 हजार करोड़ रुपए के विशाल संयंत्र से जुड़ी हुई हैं। बस्तर सांसद दीपक बैज यह मामला लोकसभा में उठा चुके हैं। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में पेसा कानून 1996 लागू है। नियमों की अनदेखी कर नगरनार प्लांट का निजीकरण व्यवहारिक नहीं है। केंद्र के फैसले से बस्तर की जनता आंदोलित है और प्लांट में नौकरी का सपना टूटते देख नौजवान गुस्से में हैं।
इधर कल 6 जनवरी को सर्व आदिवासी समाज ने इस पर और इससे जुड़े कुछ अन्य मुद्दों पर बंद का आह्वान किया है। चेंबर ऑफ कॉमर्स सहित तमाम संगठनों का इसे समर्थन मिल रहा है।
केंद्र ने विधानसभा में पारित प्रस्ताव और लोकसभा में उठाए गए सवालों को दरकिनार करते हुए निजीकरण के फैसले में कोई बदलाव नहीं किया। इधर लिखते-लिखते यह जानकारी भी आ गई है कि जो शर्त केंद्र सरकार ने तय की है उसके अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार को टेंडर में भाग लेने का मौका ही नहीं मिल पाएगा। ऐसी बंदिश क्यों लगाई गई है यह अभी साफ नहीं है। पर इसे खरीदने की क्षमता कौन रखता है इसका अनुमान जरूर लगाया जा सकता है। अभी से क्या कहें, इसी महीने स्थिति साफ भी हो जाएगी।
खाली-खाली वंदे भारत
नई शुरू की गई 20825 बिलासपुर-नागपुर वंदे भारत एक्सप्रेस 90फीसदी खाली चल रही है। इधर रायगढ़ में मांग हो रही है कि यह ट्रेन उनके यहां से शुरू की जाए। दूसरी ओर विदर्भ में मांग है कि इसे अमरावती तक बढ़ा दिया जाए। रेलवे को एक कोशिश करके देख लेना चाहिए, क्या पता सम्मानजनक संख्या में सवारी मिल जाएं। किराया घटाने के बारे में तो शायद विचार होगा नहीं।
आबकारी रेड पर मंत्री का जवाब
प्रदेश के कई जिलों से समय-समय पर खबरें आती हैं की अवैध शराब की बिक्री रोकने के लिए छापामारी करने वाली आबकारी और पुलिस टीम पर लोग हमला कर देते हैं। कबीरधाम में तो हाल ही में ऐसी घटना हुई। जान जोखिम में डालकर ड्यूटी करने वाले ऐसे कर्तव्यपरायण पुलिस जवान सहानुभूति और शाबाशी के लायक माने जाते हैं। मगर असली स्थिति कुछ दूसरी है। ज्यादातर मामलों में अवैध शराब निगरानी रखने वाले इन्हीं विभागों के संरक्षण में बिकती है, मगर दो कारणों से छापेमारी होती रहती है। एक तो अवैध शराब पकडऩे का टारगेट भी पूरा करके दिखाना होता है, दूसरा कोचिए भेंट-नजराना चढ़ाने में देरी कर देते हैं। फिर जब टीम छापा मारती है तो विवाद खड़ा हो जाता है। छापे को लीक करने वाले उन्हीं के महकमे के होते हैं और कोचिए पहले से माल गायब कर देते हैं। ऐसे में टीम को कई बार केस फर्जी बनाना पड़ता। फिर हो जाता है बवाल।
कांग्रेस विधायक छन्नी साहू के इस सवाल का आबकारी मंत्री कवासी लखमा के पास कोई जवाब नहीं था कि एक बाइक पर 3 लोग सवार होकर 10 पेटी शराब कैसे लेकर जा सकते हैं। मामला पूरी तरह फर्जी लग ही रहा था। विपक्षी भी इस मामले में लखमा को घेरने लगा तब उन्होंने कार्रवाई की बात की। हुई या नहीं, अभी मालूम नहीं।