राजपथ - जनपथ

तस्वीर/ छत्तीसगढ़
आईटी छापे, पर सनसनी नहीं...
आज सुबह छत्तीसगढ़ फिर डेढ़-दो दर्जन जगहों पर इंकम टैक्स के छापे देख रहा है। लोग कारोबारियों के नाम देखकर यह अटकल लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि इनमें से कौन किस नेता के करीबी होंगे, और किस मकसद से इनके यहां छापा पड़ा होगा। देश का माहौल ऐसा हो गया है कि किसी के सिर्फ आर्थिक अपराधी होने की बात अब लोगों को नहीं सूझती है, सिर्फ टैक्सचोर होने की बात नहीं सूझती है, लोग तुरंत सोचने लगते हैं कि किस राजनीतिक हिसाब चुकता करने के लिए छापे पड़ रहे हैं।
आज सुबह कारोबारियों के नाम देखकर लोगों को थोड़ी सी निराशा हुई क्योंकि ये नाम सीधे-सीधे किसी नेता से जुड़े हुए नहीं दिख रहे थे, इसलिए आईटी कार्रवाई की चर्चा में राजनीतिक तडक़ा लगाने की गुंजाइश नहीं दिख रही थी। लेकिन ऐसे लोगों को बहुत निराश होने की जरूरत भी नहीं है क्योंकि धीरे-धीरे इनमें से कुछ का कोई राजनीतिक कनेक्शन सामने आ सकता है। जिस तरह फिल्मों के साथ ड्रग्स और जुर्म का तडक़ा लग जाने से मामला अधिक सनसनीखेज हो जाता है, उसी तरह टैक्स और जांच एजेंसियों की कार्रवाई में नेताओं और अफसरों का नाम जुड़ जाने से सनसनी कुछ बढ़ जाती है। लोगों को ऐसी सनसनाती हुई ताजगी के लिए कुछ इंतजार करना पड़ेगा, इन छापों का भी ऐसा कोई कनेक्शन सामने आ सकता है।
पदयात्रा की संभावना यहां भी
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में उत्तरप्रदेश में कल तीसरे दिन इस यात्रा की भीड़ के सारे रिकॉर्ड टूट गए, और शामली नाम की जगह में लोगों की अपार भीड़ के वीडियो चारों तरफ तैर रहे हैं। जिस उत्तरप्रदेश में राहुल गांधी को पिछला लोकसभा चुनाव हारना पड़ा था, और जो उसके पहले-बाद लगातार साम्प्रदायिकता में झोंका जा रहा है, वहां पर आज अगर लोग राहुल के साथ बड़ी संख्या में खड़े हो रहे हैं, तो यह व्यक्ति के बजाय उसके उठाए हुए मुद्दे का भी असर दिख रहा है कि आज भारत को जोडऩे की जरूरत है। यह कुछ हैरानी की बात भी है कि भारत में कोई नेता सवा सौ दिनों से एक पैदल सफर पर है, दर्जन भर बार प्रेस कांफ्रेंस कर चुका है, तीन हजार किलोमीटर पैदल चलते हुए लाखों लोगों से मिल चुका है, लेकिन नफरत की एक भी बात उसने नहीं कही है। अलग-अलग विचारधारा के लोगों को अलग-अलग प्रदेशों में ऐसी पदयात्रा के बारे में सोचना चाहिए। छत्तीसगढ़ में तो उत्तर में सरगुजा से लेकर दक्षिण में बस्तर तक आदिवासी मुद्दों को लेकर ऐसी एक यात्रा की जा सकती है, और राज्य छोटा होने के बावजूद करीब हजार किलोमीटर का ऐसा रास्ता निकल सकता है जिसमें दसियों लाख लोगों को आदिवासी मुद्दे बताते हुए आगे बढ़ा जा सकता है।
धर्मांतरण और नगरनार
कल 6 जनवरी को बस्तर के अधिकांश इलाकों में बंद का असर देखा गया। नारायणपुर में सर्व आदिवासी समाज नगरनार स्टील प्लांट को निजी हाथों में सौंपने और पेसा कानून को कमजोर बनाए जाने के खिलाफ जैसे मुद्दों को लेकर आंदोलनरत था। दूसरे संगठन छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज ने धर्मांतरण को लेकर बंद का आह्वान किया था।
प्रत्यक्ष रूप से इनमें किसी राजनीतिक दल का बैनर नहीं था लेकिन बंद के मौके पर हुई सभाओं में अलग-अलग दलों के नेताओं ने भागीदारी की।
बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस धर्मांतरण को प्रोत्साहन दे रही है क्योंकि जो ईसाई धर्म स्वीकार कर लेते हैं, वे उनके वोटर बन जाते हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस ने आंकड़े गिनाकर दावा किया है कि धर्मांतरण की घटनाएं भाजपा के शासनकाल में ज्यादा हुई हैं। भय, लालच या प्रलोभन के जरिए किसी को धर्म परिवर्तन के लिए उकसाना कानूनन जुर्म है, पर ऐसे ज्यादातर मामले अदालतों में टिक नहीं पाते। धर्म बदलने वाले लोग साफ मना कर देते हैं कि उन्होंने किसी दबाव में फैसला लिया। बस्तर के व्यापक बंद ने यह तो तय कर दिया है कि सन् 2023 में यह मुद्दा राजनीतिक दलों के काम आने वाला है। पर इस शोरगुल में 25 हजार करोड़ रुपए के नगरनार स्टील प्लांट को निजी हाथों में बेचने का विरोध धीमा पड़ गया। बिकने की प्रक्रिया इस समय बड़ी तेजी से चल रही है। सवाल है कि भविष्य के लिए कौन सा मुद्दा कितना जरूरी है?
बदल रहा नारायणपुर
सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करना मना है, मगर लोग मानते नहीं है। कहीं-कहीं जागरूकता आई है और स्मोकिंग जोन बना दिए जाते हैं। अब ऐसा ठिकाना बस्तर के नारायणपुर में भी देखने को मिल रहा है।
कोरबा में गिरिराज के बाद शाह
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कल कोरबा जिले के प्रवास पर पहुंच रहे हैं। उनका यहां कोई सरकारी कार्यक्रम नहीं है। माता सर्वमंगला देवी का दर्शन कर आम सभा को संबोधित करेंगे और कोर ग्रुप की बैठक के बाद करीब 2 घंटे रहकर शाह वापस लौट जाएंगे। बस्तर के अलावा कोरबा भी एक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है। संयोग से लोकसभा में प्रदेश की दोनों सीट ही कांग्रेस के पास है। दोनों इलाकों में कुछ को छोडक़र विधानसभा की भी लगभग सारी सीटें कांग्रेस को ही मिली है। बस्तर में दिल्ली से नियुक्त किए गए भाजपा के प्रभारी नेताओं ने हाल के दिनों में खूब दौरा किया है। कोरबा में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह का चर्चित दौरा रहा जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री आवास रोके जाने के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था। इन दोनों ही बेल्ट में यदि भाजपा अपनी खोई हुई पकड़ फिर से बना लेती है तो सन 2023 के चुनाव में मजबूत स्थिति में पहुंच सकती है, ऐसा उनकी पार्टी के लोगों का मानना है। लोगों की निगाह इस बात पर टिकी हुई है कि अमित शाह जनसभा में क्या बोलते हैं और कोर ग्रुप की बैठक में पार्टी के क्षेत्रीय नेताओं के बीच कौन सा मंत्र फूंक कर जाएंगे। ऐसा लगता नहीं कि 2018 की तरह इस बार वे अब की बार 65 पार दोहराने वाले हैं।
गलत नंबर प्लेट की इस गाड़ी पर कोई कार्रवाई करने से पुलिस के ऊपर भगवान महादेव का श्राप बिजली की तरह टूट कर गिर सकता है। पुलिस सावधान रहे।