राजपथ - जनपथ

अफसर बेदाग, फिर भी सस्पेंड
सरकारी अफसरों का भ्रष्ट आचरण सामने आने के बाद शुरुआती कार्रवाई जोर-शोर शुरू होने के बाद अंजाम किस मुकाम तक जाता है, इसका पता नहीं चलता। कुछ दिनों, हफ्तों की सुर्खियों के बाद लोग भूल भी जाते हैं और संकरी गली से अफसर वापस कुर्सी पर आ बैठ जाते हैं। सन् 2020-21 में हाईकोर्ट में रायपुर के एक नागरिक ने हाईकोर्ट को पत्र लिखा था जिसमें बताया गया था कि एसीबी ने 90 से अधिक अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की पर चार्जशीट पेश नहीं किया, वे सब मलाईदार पदों पर बैठे हैं। हाईकोर्ट के जवाब तलब के बाद कुछ दिनों तक एसीबी ने सक्रियता दिखाई और कुछ मामले कोर्ट में पेश किए। इसके बाद फिर वही चाल। कल ही जल जीवन मिशन जांजगीर-चांपा के एक कार्यपालन यंत्री एसके चंद्रा को टेंडर में गड़बड़ी के कारण निलंबित किया गया था। पता चला कि उसके घर 2016 में एसीबी ने इस अधिकारी पर छापा मारा था और 8 करोड़ की अवैध संपत्ति बरामद की थी। यानि इस बीच वह मलाई वाले पद पर बहाल कर दिया गया था। साल भर में कितने ही बाबू, पटवारी, रिश्वत लेते धरे जाते हैं पर इनमें से किसको सजा हुई या नहीं, पता ही नहीं चलता। एसीबी रेड की खबरों को जितना जोर-जोर प्रचारित करती है, रुके मामलों को उतना ही छिपाती है। भ्रष्टाचार रोकना किसी भी सरकार की प्राथमिकता में नहीं। इसे व्यवस्था का जरूरी हिस्सा मान लिया गया है।
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (जीपीएम) जिले में बाकी राइस मिल मालिकों ने मिलिंग के लिए धान नहीं मिलने और एक ही पार्टी को ऑर्डर देने शिकायत प्रभारी मंत्री जयसिंह अग्रवाल से नहीं की होती तो शायद करोड़ों की फर्जी बैंक गारंटी का खुलासा ही नहीं हुआ होता। कलेक्टर ने इस मामले में इन चार राइस मिलों के तीन मालिकों पर ही नहीं बल्कि स्टेट बैंक के मैनेजर के खिलाफ भी चारसौबीसी का अपराध दर्ज कराया। बच गए जिला विपणन अधिकारी लोकेश देवांगन। सबसे पहले जिस अधिकारी को जिम्मेदार मानकर सस्पेंड किया गया, एफआईआर से उसी का नाम गायब ! यदि यह अधिकारी बेदाग है तो सस्पेंड भी करने की जरूरत क्या थी और यदि फर्जीवाड़े में हाथ दिखाई दे रहा है तो अब एफआईआर से बचाने वाला कौन है?
इतनी खुशी काफी नहीं
सिकंदराबाद-अगरतला के बीच सफर कर रहे एक यात्री अपने 19 माह के बच्चे के साथ सफर पर था। बच्चे का खिलौना ट्रेन में छूट गया। एक यात्री ने रेल मदद में इसकी जानकारी दी और कहा कि संभव हो तो यह खिलौना बच्चे को वापस लौटा दें। रिजर्वेशन बोगी में नाम नंबर के जरिये उतरे यात्री का पता चल गया और आरपीएफ ने खिलौना बच्चे को उसके पापा के साथ बुलाकर लौटा दिया। समय-समय पर ऐसे मानवीय पहलू आरपीएफ का दिखाई देता है, जब वह खोया सामान यात्रियों को लौटाते हुए दिखाए जाते हैं। सोशल मीडिया पर इसकी तारीफ तो हो रही है पर कई यात्रियों को शिकायत है। उनका कहना है कि- यह छवि संवारने के लिए किया जा रहा पब्लिसिटी स्टंट है। लॉ एंड ऑर्डर पर फोकस करना चाहिए रेलवे को। यह अच्छी बात है कि बच्चे के खिलौने का ख्याल रखा, उसका चेहरा खिल गया, लेकिन हर रोज ट्रेनों में पॉकेटमारी, चैन-स्नैचिंग, लूट और चोरी की कितनी ही वारदातें होती हैं। शिकायतें तक लिखवाने में भारी दिक्कत होती है। ऐसे मामलों में रिकव्हरी कर आम यात्रियों के चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रतिशत कितना, क्या है, यह आंकड़ा भी जारी किया जाना चाहिए।