राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : सरकार में ऐसी बदअमनी!
18-Jan-2023 4:48 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : सरकार में ऐसी बदअमनी!

सरकार में ऐसी बदअमनी! 
छत्तीसगढ़ के कुछ बड़े अफसरों से बात की जाए तो उनकी यह हैरानी सामने आती है कि बहुत से नए आईएएस, आईपीएस, आईएफएस अफसरों को काम करने की पता नहीं कैसी छूट मिली हुई है कि वे दिन में कई घंटे नशा किए पड़े रहते हैं। मातहत महिलाओं से संबंधों के किस्से वाले अफसरों के भी नाम बढ़ते चल रहे हैं, और उनके किस्से अधिक दुस्साहसी होते चल रहे हैं। कई बड़े अफसर ऐसे हैं जो मंत्रालय या डायरेक्ट्रेट के अपने दफ्तरों में महीने में दो-चार दिन ही जाते हैं, और घर पर ही वही फाइलें बुलवाते हैं, जिन्हें करने में उनकी दिलचस्पी है। पुलिस महकमे का भी यही हाल है, और पुलिस मुख्यालय एक गैरपुलिस ऐसी युवती की चर्चा से घिरा हुआ है जो कि वहां बहुत से सबसे बड़े अफसरों के पास बैठकर जब चाहे, जो चाहे करवा सकती है। लेकिन दफ्तर के कामकाज से परे ये तमाम हरकतें प्रदेश की अफसरशाही में सदमे के लायक गिरावट ला चुकी हैं, और यह ढर्रा राजधानी से बाहर जिलों तक भी फैल रहा है जहां कई अफसर दफ्तर के वक्त, दफ्तर में, या दफ्तर के बाहर नशा किए पड़े रहते हैं। ऐसी गिरावट न रातों-रात आती है, न रातों-रात हटाई जा सकती है। यह राज्य लंबे समय तक सरकारी अमले में ऐसी बदअमनी के दाम चुकाएगा। 

कांग्रेस नेता पाखंडी बाबा के खिलाफ! 
सोशल मीडिया बड़ी दिलचस्प जगह है। एक भयानक विवादास्पद और पाखंडी बाबा मुस्लिमों के खिलाफ तरह-तरह की नफरत भी फैलाता है, अंधविश्वास भी फैलाता है, चमत्कारी दावे भी करता है, और अंधविश्वासियों के इलाके में उसका खूब डंका-मंका रहता है। ऐसे एक बाबा को इन दिनों छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में राजधानी के विधायक और पुलिस विभाग के संसदीय सचिव विकास उपाध्याय लेकर आए हैं, और उनके चमत्कार दिखला रहे हैं। अब ऐसे में एक पत्रकार के एक ट्विटर पोस्ट पर इस बाबा के आतंकी और पाखंडी बयान का एक वीडियो पोस्ट हुआ, तो उसे पसंद करने वालों में सबसे ऊपर जो दो नाम दिखे उनमें एक छत्तीसगढ़ कांग्रेस के एक प्रमुख नेता आर.पी. सिंह का है। जिस पल यह नाम ऊपर दिखा, उसी पल लिया गया यह स्क्रीनशॉट कांग्रेस के भीतर अब तक साम्प्रदायिकता से बचे हुए लोगों में से एक का नाम है। 

रोका-छेका मतलब...
यह प्रश्न और उसका उत्तर, बीजापुर के एक स्कूल में हुई परीक्षा का है। उत्तर से ही स्पष्ट है कि प्रदेश में बेरोजगारी या नौकरी की भर्ती प्रक्रिया पर लगी अघोषित रोक से बच्चा-बच्चा परेशान हैं। उसे अपने भविष्य की चिंता अभी से सता रही है या फिर अपने भाई-बहन की बेरोजगारी को देखकर कोफ्त हो रही है। इस बच्चे ने खेत में गौवंश के खातू के लिए सरकार की घोषित रोका-छेका अभियान का अपने और वर्तमान में प्रासंगिक, आंकलन कर यह उत्तर लिख दिया। बच्चे का यह उत्तर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। 

आरक्षण पर असमंजस बरकरार
58 फीसदी आरक्षण रद्द करने संबंधी फैसले को चुनौती देने वाली राज्य सरकार को निराशा हाथ लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के आदेश पर फिलहाल राहत देने से इनकार कर दिया है। उन युवाओं को भी निराश होना पड़ा है जो विभिन्न प्रतियोगी और प्रवेश परीक्षाओं में आरक्षण के किसी एक व्यवस्था के लागू होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। कोई नई परिस्थिति नहीं बनी है, न ही संकेत मिला है कि विधानसभा में पारित 76 प्रतिशत आरक्षण के विधेयक पर राज्यपाल हस्ताक्षर करने वाली हैं। हाईकोर्ट नेअवश्य हाल की संविदा भर्ती में अपने यहां सन् 2012 से पहले की व्यवस्था दी है। पर राज्य सरकार इसका अनुसरण करेगी ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा है। ऐसा किया गया तो इस चुनावी साल में राजनीतिक परिणाम क्या होंगे, शायद इस पर विचार हो रहा है। इसे विधानसभा में पारित प्रस्ताव से पीछे हटना भी न मान लिया जाए। अभी तो अजा, जजा वर्ग में असंतोष दिख रहा है, ओबीसी भी नाराज हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण पर अंतिम सुनवाई मार्च के तीसरे सप्ताह में रखी है। उसके बाद ही तय हो पाएगा कि इस जटिल मसले का क्या हल निकलेगा।

विकास का स्वागत और विरोध
छत्तीसगढ़ के उत्तर और दक्षिणी हिस्से से दो अलग-अलग खबरें है। भैरमगढ़ इलाके में इंद्रावती नदी पर जिला मुख्यालय बीजापुर से 40 किलोमीटर दूर ताडबाकरी गांव के पास एक पुल बनाने का भारी विरोध हो रहा है। सैकड़ों आदिवासी 11 ग्राम पंचायतों से जमा होकर अनिश्चितकालीन धरना दे रहे हैं। पहले भी पुल बनाने के खिलाफ आंदोलन किया गया था। आरोप है कि इस दौरान कुछ को जेल में भी डाल दिया गया, पर विरोध रुका नहीं है। दूसरी खबर राज्य के उत्तरी छोर पर स्थित बलरामपुर जिले के पुंदाग गांव की है जहां पहाड़ी कोरवा जनजाति इस बात का जश्न मना रहे हैं कि जिला मुख्यालय तक पहुंचने के लिए आजादी के बाद पहली बार पक्की सडक़ बना दी गई है। यहां के ज्यादातर लोगों ने जिला मुख्यालय को आज तक नहीं देखा है। उन्हें झारखंड के सीमावर्ती गांवों को पार करके बलरामपुर पहुंचना पड़ता था।

बीजापुर नक्सल समस्याग्रस्त जिला है। बलरामपुर में यह लगभग समाप्त है। बीजापुर के आंदोलनकारियों का कहना है कि पेसा कानून को लगातार कमजोर किया जा रहा है। पुल बनाने से पहले ग्राम सभा से मंजूरी क्यों नहीं ली गई? बलरामपुर भी आदिवासी बाहुल्य जिला है। विकास की पहचान सडक़ के बनने पर ऐसी आपत्ति वहां के लोगों ने नहीं उठाई। फिर दोनों में अंतर क्या है? एक जगह विकास को लेकर खुशी, दूसरी जगह विरोध में आंदोलन!

अनेक कारण हो सकते हैं विरोध के। पर एक अनुमान लगाया जा सकता है कि बीजापुर के इन आदिवासी गांवों के लोगों को लगता होगा कि पुल, सडक़ और दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण ग्रामीणों के लिए नहीं, बल्कि उन लोगों के लिए किया जा रहा है जो शहरों से आसानी से उन तक पहुंच जाएंगे और उनका शोषण करेंगे। यहां के खनिज और वन संसाधनों का दोहन करेंगे और इसकी परिणाम उनका विस्थापन भी हो सकता है।

पापा का आंचल...
जैकेट के भीतर घुसे होने के कारण तस्वीर से यह तो पता नहीं चल रहा है कि आप पापा की परी हैं, या उनके राजकुमार। पर पापा को थैंक्यू जरूर कहना, क्योंकि वे अपने होने की जिम्मेदारी शिद्दत से उठा रहे हैं।

11 मुल्कों की पुलिस लग गई
भेंट मुलाकात में जनता से मुख्यमंत्री सीधे संवाद करते हैं। हर कोई प्रदेश के मुखिया से बात करने इस मौके का लाभ लेना चाहते हैं। पर सबको मौका नहीं मिल पाता क्योंकि हर कोई डिटेल रखना चाहता है। प्राय: शिकायत राजस्व और पुलिस विभाग से अधिक आ रही है। कोरबा जिले में एक युवक के हाथ में माइक आया तो उसने पहले एक समस्या बताई, फिर दूसरी। वह जब नहीं रुका तो सीएम में कहा कि तुम जांजगीर के रहने वाले हो जब मैं वहां गया था तभी समस्या तुमको बतानी थी। युवक के जवाब से मुख्यमंत्री और सभा में मौजूद दूसरे लोग ठहाका लगाने से खुद को नहीं रोक पाए, जब उसने कहा कि मुझे जांजगीर की सभा में पहुंचने से रोकने के लिए 11 मुल्कों की पुलिस लगा दी गई थी। छत से कूद-फांद कर पहुंचने की कोशिश की फिर भी नहीं पहुंच पाया। मुझे यहां कोरबा में आकर अपनी बात कहनी पड़ रही है। वैसे, अभी तक किसी सिरे से यह खबर नहीं आई है कि मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से किसी विशेष तरह की समस्या बताने वाले को सभा में पहुंचने और बोलने से रोकने का निर्देश हो। पर ऐसा लगता है कि अधिकारी पहले से पता करते रहते हैं कि कौन सीएम की सभा में क्या बोल सकता है, और वे अपने बचाव का इंतजाम पहले से करने की कोशिश में होते हैं। ([email protected])

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