राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ में भाजपा का हाल
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पिछले आधे बरस से रात-दिन जिस तरह हर विधानसभा क्षेत्र में जाने, और वहां की तैयारी में लगे हुए हैं, वह अच्छे-खासे मेहनती लोगों को भी शर्मिंदा करने वाली ताकत है। जिस वक्त केन्द्र सरकार छत्तीसगढ़ सरकार के बुरी तरह पीछे लगी हुई हो, भूपेश बघेल के करीबी लोग ईडी के घेरे में हों, तब भी वे लगातार जिस तरह चुनाव की तैयारी में लगे हैं, वह एक असंभव किस्म की सक्रियता है। फिर जब इसे प्रदेश में भाजपा नेताओं की सक्रियता के साथ जोड़क़र देखें, तो लगता है कि भूपेश बघेल विपक्षी नेता की तरह सक्रिय हैं, और भाजपा नेता सत्तारूढ़ होकर महज भाषण दे रहे हैं। पिछले काफी समय में अकेले राजेश मूणत अपने पिछले चुनाव क्षेत्र में एक धारदार आंदोलन करते दिखे, बाकी प्रदेश मानो मोदी की शोहरत के भरोसे बैठा हुआ है। इसलिए दिल्ली में अभी जब छत्तीसगढ़ के तमाम भाजपा नेता इक_ा हुए तो प्रधानमंत्री से लेकर दूसरे नेताओं ने भी छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं को नर्म शब्दों में कड़ी चेतावनी दी कि पिछले चुनाव सरीखे आत्मसंतुष्ट होकर न बैठ जाएं, वरना 15 सीटें भी नहीं मिलेंगी।
भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति में छत्तीसगढ़ पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की टिप्पणी की खूब चर्चा रही। हालांकि पीएम नरेंद्र मोदी ने भी छत्तीसगढ़, और राजस्थान के कार्यकर्ताओं को नसीहत दी थी, और कार्यकर्ताओं को अति आत्मविश्वास से बचने की सलाह दी, लेकिन राजनाथ ने तो विशेषकर छत्तीसगढ़ के नेताओं को आगाह किया कि यह सोचने से काम नहीं चलेगा कि मोदी आएंगे, और हम जीत जाएंगे। राजनाथ सिंह छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी रहे हैं, और यहां छोटे-बड़े नेताओं से उनके व्यक्तिगत संबंध हैं। यहां की गुटबाजी से वो पूरी तरह वाकिफ हैं। ऐसे में उनकी टिप्पणी से छत्तीसगढ़ के नेता असहज हो गए थे।
छत्तीसगढ़ के जानकार बताते हैं कि अगर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अगुवाई में अगला चुनाव होगा, तो उसमें भाजपा की उम्मीद अधिक नहीं रहेगी। लेकिन भाजपा के साथ केन्द्र सरकार की एक बड़ी ताकत है, और राज्य के भाजपा नेता शायद उसी के भरोसे बिना पतवार छुए नाव में बैठे हैं। राज्य सरकार के खिलाफ कई जलते-सुलगते मुद्दे हो सकते हैं, लेकिन भाजपा नेता गांधी के तीन बंदरों की तरह आंख, कान, और मुंह बंद किए बैठे हैं, बस कुछ बयानों पर दस्तखत कर देते हैं।
कौन सी गाडिय़ां किसके पास?
पन्द्रह बरस मुख्यमंत्री रहकर रमन सिंह हटे, तो सुरक्षा के उनके दर्जे के चलते उनके पास उनके वक्त की ही गाडिय़ां रह गईं, क्योंकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दूसरी कंपनी की गाडिय़ां तैयार करवा ली थीं। अब एक तीसरी कंपनी की गाडिय़ां तैयार होने की खबर है, और लोग यह सोच रहे हैं कि अगले चुनाव के बाद कौन सी कंपनी की गाडिय़ां किसके पास रहेंगी?
रिकॉर्ड कहीं नहीं जाते
छत्तीसगढ़ में आईटी और ईडी की जांच के चलते बहुत से बड़े-बड़े अफसरों के जमीन-जायदाद के कागज सामने आए हैं, और उन्हें देखकर लोग हक्का-बक्का हैं। एक जमीन दलाल ने पूछताछ में यह मंजूर किया कि एक आईएएस अफसर और उसकी बीवी को पूछताछ से घिरी कई जमीनें उसने बेची थीं, जिनमें करोड़ों का नगदी लेन-देन हुआ था। लेकिन ईडी की जांच एक खास तारीख के बाद की खरीद-फरोख्त तक सीमित है, जबकि जमीन दलालों के पास जानकारी पिछले दस बरस की है। ईडी उतनी पुरानी जांच में नहीं जा रही, लेकिन जो कागज जब्त हुए हैं, वे तो जांच से भी पहले के दौर के भी हैं। अब आगे जाकर ऐसी जानकारियों की जांच कौन सी एजेंसी करेगी, इस फिक्र में बहुत से अफसर बैठे हैं। दिक्कत बस यही है कि जमीन की रजिस्ट्री एक बार हो जाने के बाद उसके रिकॉर्ड कहीं नहीं जाते।
मैच का सवाल ही पैदा नहीं होता
रायपुर में भारत-न्यूजीलंैड क्रिकेट मैच को लेकर काफी उत्सुकता है। पहली बार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच हो रहा है। इसलिए टिकटें भी हाथों-हाथ बिक गई है। इन सबके बीच आयोजकों ने एक हजार टिकटें विधायक, सांसद, और अन्य विशिष्ट व्यक्तियों के लिए रखा है। भाजपा के विधायक, और उनके परिवार के सदस्य व कई नेता मैच देखने का प्लान तैयार कर रहे थे कि प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने झटका दिया है।
माथुर के निर्देश पर ही 21 तारीख को अंबिकापुर में प्रदेश कार्यसमिति की बैठक रखी गई है। इसमें सभी विधायक, और कार्यसमिति के सदस्यों का रहना जरूरी हो गया है। अब अंबिकापुर में रहेंगे, तो मैच देखने का सवाल ही पैदा नहीं होता। दबे जुबान में कई लोग माथुर को कोस रहे हैं।
आगे पाठ, पीछे सपाट
राज्य सरकार की शिक्षा नीति नई क्रांति लेकर आई है। शिक्षा को प्राथमिकता में रख बच्चों और युवाओं के उज्जवल भविष्य की कोशिश हो रही है। नक्सल क्षेत्रों में रमन सरकार के दौरान बंद 200 से अधिक स्कूलों को खोला गया। 247 आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम और 32 हिंदी माध्यम स्कूल खुल चुके हैं। उत्कृष्ट कॉलेज भी खोले जाएंगे। यह कांग्रेस प्रवक्ता की ओर से शिक्षा के क्षेत्र में सरकार की उपलब्धियों पर दिया गया बयान है।
दूसरी तरफ शिक्षा की वार्षिक स्थिति पर असर (स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) 2021 हमारे सामने है। रिपोर्ट के मुताबिक शुरुआती स्तर की कक्षाओं में वर्णमाला के अक्षरों को भी पहचान पाने में असमर्थ छात्रों का प्रतिशत 2018 की तुलना में अब 2 गुना हो गया है। बुनियादी पढ़ाई और अंकगणित जानने के स्तर में भी बड़ी गिरावट आई है। ऐसे दर्जनों पैमाने हैं जिन्हें दर्शाकर राज्य की स्कूली शिक्षा में आई गिरावट का उल्लेख है। असर की रिपोर्ट पूरे देश में विश्वसनीय मानी जाती है। राज्य के 28 जिलों के 33 हजार 432 घरों में 3 से 16 साल तक के 45 हजार 992 बच्चों के बीच किए गए सर्वेक्षण पर ताजा रिपोर्ट आधारित है। राज्य के शिक्षा विभाग के अनुरोध पर ही यह सर्वेक्षण किया गया था। रिपोर्ट में यह जरूर कहा गया है कि कोविड-19 महामारी और उसके बाद के प्रतिबंधों के कारण बच्चों में सीखने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित हुई।
मगर, देखने की बात यह भी है कि स्कूलों को खुले काफी दिन हो चुके। कहीं दूसरा तो कहीं तीसरा सत्र होगा, जब ऑफलाइन परीक्षा ली जाएगी। यदि बच्चों में कोविड के समय से खोया हुआ आत्मविश्वास नहीं लौट पाया है, तो इसके लिए वे नहीं बल्कि शिक्षक और विभाग के अफसर जिम्मेदार हैं। जितनी तेजी से स्कूल खुल रहे हैं, उस अनुपात में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने की कोशिश नहीं हो रही है।
डिलीवरी बॉय की सहूलियत के लिए
सामान ऑनलाइन मंगाएं और डिलीवरी ब्वॉय बहाना करे, तब। कभी घर नहीं मिलने की बात कर सकता है, या फिर बार-बार फोन करके लोकेशन पूछ सकता है। उनके लिए कुछ लोगों ने नया तरीका निकाल लिया है। इसे देखें, इसमें पते की जगह पर क्या लिखा है- शरीफ कॉलोनी स्वीट हार्ट किराना स्टोर से 10 कदम आगे, एक गेट के सामने बुड्ढा बैठा रहता है, उसके एकदम ऊपर वाला घर, पटना बिहार। दूसरे में लिखा है- नाम भीखाराम। हरिसिंह नगर से एक किलोमीटर पहले राइट साइड में अपने खेत का गेट है। गेट के पास में एक छोटी फाटक है और वहां से फोन कर देना में सामने आ जाऊंगा, जोधपुर।
शिक्षाविदों का अर्थशास्त्र
उच्चशिक्षा पर भी थोड़ी बात हो जाए। नेशनल एसेसमेंट एंड एक्रीडिटेशन काउंसिल, नैक से अच्छा ग्रेड हासिल करना विश्वविद्यालय और कॉलेजों का एक बड़ा लक्ष्य होता है। ग्रेडेशन जितना अच्छा होगा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से संसाधनों, शोध, सेमिनार और नियुक्ति के लिए उतना ही अधिक अनुदान मिलता है। शिक्षा संस्थानों की प्रतिष्ठा भी बढ़ती है, जिसके कारण प्रवेश लेने के लिए होड़ भी बढ़ती है। राज्य और केंद्र सरकार की ओर से स्थापित छत्तीसगढ़ के किसी भी विश्वविद्यालय को ए प्लस या डबल प्लस जैसी अच्छी ग्रेडिंग अभी हासिल नहीं हो पाई है। कुछ निजी विश्वविद्यालयों के पास जरूर ए या ए प्लस ग्रेडिंग है। सर्वेक्षण चलता रहता है, ग्रेडेशन में भी उतार-चढ़ाव होता रहता है।
इधर अच्छा मूल्यांकन परिणाम हासिल करने के फेर में बस्तर विश्वविद्यालय ने अनाप-शनाप खर्च कर दिए। करीब एक करोड़ तो संरचना में लगाए गए। दीक्षांत समारोह के लिए बजट 20 लाख रुपए था, मगर खर्च 70 लाख रुपए किए गए। सन् 2022-23 के लिए 9 करोड़ रुपए का बजट था, खर्च 13 करोड़ किया गया। स्थिति यह बन गई कि शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन के लिए पैसे नहीं बचे। 17 साल में पहली बार एफडी तोडऩी पड़ी। बजट से ज्यादा खर्च इसलिए किया गया, ताकि नैक टीम के दौरे के बाद नतीजा अच्छा मिले। मगर ग्रेडेशन मिला कमजोर श्रेणी का- सी।
हालत यह है कि नया बजट आने में तीन-चार महीने का समय है। आगे का खर्च चलाने के लिए या तो एफडी फिर से तोडऩी पड़ेगी या फीस बढ़ाकर छात्रों पर बोझ डाला जाएगा।