राजपथ - जनपथ

भूतपूर्व छात्र तो बचाएं मैदान
राजधानी रायपुर के साईंस कॉलेज के मैदान पर नगर निगम से जुड़ी एक संस्था, स्मार्टसिटी की तरफ से करोड़ों की लागत का खानपान का बाजार बनाया जा रहा है। यह जगह परंपरागत रूप से खेल का मैदान रही है, और टाऊन एंड कंट्री प्लानिंग ने इसका चाहे जो इस्तेमाल अपने रिकॉर्ड में दर्ज कर रखा हो, यहां आज तक मैदान ही चले आ रहा है। अब इस मैदान को काटकर खानपान का बाजार बनाया जा रहा है, जो पूरी तरह से नाजायज और अनैतिक काम है। पूरा का पूरा कॉलेज ही उच्च शिक्षा विभाग की सम्पत्ति रहता है, इसलिए तकनीकी रूप से इस जमीन को कोई चाहे शिक्षा विभाग की बता दे, लेकिन हकीकत यही है कि यह हमेशा से साईंस कॉलेज का मैदान रहा है, और आज भी यहां सैकड़ों लोग रोज खेलते हैं। सुप्रीम कोर्ट सार्वजनिक जगहों के इस्तेमाल को लेकर बरसों पहले बहुत कड़ा फैसला दे चुका है, और पहली नजर में खेल मैदान का यह बाजारू इस्तेमाल गैरकानूनी दिखता है। मामला अभी हाईकोर्ट में चल रहा है, लेकिन वहां जाने वाले इस इलाके के पिछले विधायक राजेश मूणत ने अपने तर्कों में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को नहीं गिनाया है। लेकिन राजेश मूणत से परे भी शहर के खेल संगठनों के लोगों को इस मामले में अदालत में शामिल होना चाहिए क्योंकि खेल के मैदान को बचाना कांग्रेस और भाजपा की लड़ाई से परे की बात है, उससे ऊपर की बात है। अभी खेल संगठन चुप हैं। प्रदेश के सबसे बड़े खेल संगठन के मुखिया मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हैं, जो कि इसी कॉलेज के छात्र रहे हैं। मुख्यमंत्री के एक सबसे करीबी भूतपूर्व अफसर, विवेक ढांड भी इसी कॉलेज के छात्र रहे हैं। कम से कम इन दो लोगों को तो इस मैदान को बचाने की कोशिश करनी चाहिए। स्मार्टसिटी के अफसरों को बहुत खर्चीले काम करने हैं, तो वे मैदान बाग-बगीचे, और तालाबों से परे की जगहें ढूंढें। अभी साल भर के भीतर ही तेलीबांधा तालाब का किनारा ऐसे ही खानपान बाजार के नाम पर खत्म किया गया है, दूसरे मैदानों और बगीचों पर ऐसे ही बाजार खड़े किए गए हैं, और लोगों को शक है कि इनमें चुनिंदा लोगों को जगहें देने, या दूसरों के नाम से खुद ही इन बाजारों पर हमेशा के लिए कब्जा कर लेने का खेल चल रहा है।
नाम में बहुत कुछ रखा है...
कई बार दुकानों, प्रतिष्ठानों के नाम ही ग्राहकों को अपनी ओर खींच लेते हैं। किसी चाय वाले की दुकान में तख्ती मिल सकती है-आदमी साधारण हूं, पर चाय स्पेशल बनाता हूं। या किसी रेस्तरां में लिखा- यहां घर जैसा खाना नहीं मिलता, आप आश्वस्त रहें और भीतर आ जाएं। अब इसी तस्वीर को देखिये, कितने प्यार से बुलाया जा रहा है, जैसे कोई मां अपनी गोद में बिठाकर खाने के बारे में पूछ रही हो।
एक और आईएएस !
चुनावी साल में अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले कई विशिष्ट लोग सक्रिय राजनीति में आ सकते हैं। इनमें एक रिटायर्ड आईएएस अफसर के नाम भी चर्चा में है। ये अफसर पिछली सरकार में रिटायर हुए थे, और फिर उच्च संवैधानिक पद पर रहे। कुछ समय पहले इनका कार्यकाल खत्म हुआ। वो अब पद से हटने के बाद सक्रिय राजनीति में आने की सोच रहे हैं। वैसे तो उनका दोनों ही प्रमुख दल, भाजपा, और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं से उनका मधुर संबंध हैं, लेकिन वो भाजपा में जाने पर विचार कर रहे हैं।
सुनते हैं कि अफसर की पूर्व सीएम रमन सिंह, अजय चंद्राकर, और अन्य प्रमुख नेताओं से चर्चा हुई है। भाजपा नेता भी चाहते हैं कि जल्द से जल्द उनकी पार्टी में जॉइनिंग हो जाए। यदि ऐसा होता है तो भाजपा में आने वाले तीसरे आईएएस होंगे। इनमें ओपी चौधरी, और गणेश शंकर मिश्रा पहले से ही सक्रिय हैं, और पार्टी के भीतर उन्हें अहम दायित्व मिला है। सब कुछ अनुकूल रहा, तो किसी बड़े राष्ट्रीय नेता के समक्ष उनका भाजपा प्रवेश हो सकता है।
चुनावी साल और क्रिकेट
भारत-न्यूजीलैंड मैच देखने पास और टिकट के लिए मारामारी है। चूंकि पहली बार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच हो रहा है। लोगों में उत्सुकता स्वाभाविक है। टिकट की कालाबाजारी हो रही है। ऐसे में ताकतवर लोगों की डिमांड से बीसीसीआई से जुड़े लोग भी हलाकान हैं। रोज टिकट के लिए बड़े बंगलों से फोन आ रहे हैं। न सिर्फ नेता बल्कि अफसर भी दबाव बनाने में पीछे नहीं हैं।
चर्चा है कि दो बड़े अफसर तो ग्राऊंड, और कानून व्यवस्था के लिए इंतजामों का निरीक्षण करने पहुंचे, और दबाव बनाकर पास-वीवीआईपी टिकट लेकर आ गए। सरकार के एक मंत्री को तो अपने समर्थकों को जवाब देना मुश्किल हो गया है। उन्हें कुछ ही पास दिए गए हैं, लेकिन पूरे विधानसभा क्षेत्र से समर्थक उन पर पास दिलाने के लिए दबाव बना रहे हैं। चुनावी साल है इसलिए समर्थकों को डांट-डपट नहीं पा रहे हैं, और अपना गुस्सा क्रिकेट एसोसिएशन के लोगों पर निकाल रहे हैं।
कोरिया में भाजपा का प्रदर्शन
सन् 2018 के चुनाव में बुरी हार के बाद भाजपा का सोशल मीडिया और विधानसभा में सक्रियता तो देखने को मिली, लेकिन सडक़ पर आंदोलन कम हुए। प्रदेश नेतृत्व और संगठन के प्रभार में परिवर्तन तथा स्मृति ईरानी और अमित शाह जैसे केंद्रीय नेताओं के दौरे के बाद अब पार्टी सडक़ पर खूब दिखाई दे रही है। जो नेता पिछले चुनाव के बाद खामोश बैठे थे, वे अब धरना-प्रदर्शन में दिखने लगे हैं। भाजपा सरकार में जिनका कद ऊंचा था पर हार का सामना करना पड़ा, वे और उनके साथ कार्यकर्ता दोबारा दिखने लगे हैं। जैसे-राजेश मूणत, अमर अग्रवाल आदि।
इधर, बैकुंठपुर में पूर्व मंत्री और भाजपा नेता भैयालाल राजवाड़े समर्थकों के साथ जनपद पंचायत के सीईओ को हटाने की मांग लेकर सडक़ पर उतरे। मीडिया से बात करते समय उन्होंने विधायक अंबिका सिंहदेव के खिलाफ टिप्पणी की।आरोप है कि उन्होंने अभद्र शब्दों का प्रयोग किया। कांग्रेस की शिकायत पर उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कर ली गई। इस एफआईआर के खिलाफ भाजपा कार्यकर्ताओं की भीड़ सडक़ पर उतर गई।
उन्होंने धर्मांतरण और रासुका को लेकर चल रहे प्रदेशव्यापी विरोध के अलावा एफआईआर के खिलाफ भी प्रदर्शन हुआ। पहली बार हुआ कि कोरिया पैलेस का घेराव करने के लिए कोई भीड़ आमादा थी। कोरिया और एमसीबी की पुलिस ने बड़ी कठिनाई से स्थिति संभाला। कांग्रेस की चुनौती है कि यदि हमारा वीडियो क्लिप टैंपर्ड है तो वही असली वीडियो दिखा दे। कौन सा टेंपर्ड है पता चल जाएगा। अब मूल प्रश्न गौण हो गया है। जनपद पंचायत सीईओ को हटाने की मांग भाजपा के अलावा कांग्रेस भी कर रही थी। अब दोनों दल आमने-सामने हैं और अफसर निश्चिंत।