राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : शैलजा की क्या बात हुई?
24-Jan-2023 4:59 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : शैलजा की क्या बात हुई?

शैलजा की क्या बात हुई?

छत्तीसगढ़ की कांग्रेस प्रभारी कुमारी शैलजा अपने पुराने संसदीय मित्र, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत से मिलने उनके घर पहुंचीं, तो राज्य के कांग्रेसी सत्कार-शिष्टाचार के मुताबिक उनके साथ नगरीय निकाय मंत्री शिव कुमार डहरिया भी गए। बाद में जब डहरिया से कुछ लोगों ने यह समझने की कोशिश की कि महंत, और उनकी पत्नी, सांसद ज्योत्सना महंत की शैलजा से क्या बात हुई, तो डहरिया ने मासूमियत से जवाब दिया कि उन तीनों की बातचीत अलग हुई, और वे तो दूसरे कमरे में बैठे हुए थे।

प्रदेश कांग्रेस में और राज्य सरकार में सबसे ऊपर के लोग अब बात-बात पर पिछले संगठन प्रभारी पी.एल. पुनिया और शैलजा की तुलना करने लगते हैं, कुछ लोग खुश होते हैं, कुछ लोगों में फिक्र होने लगती है।

कमल और झाड़ू का रिश्ता

कई प्रदेशों के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी अपनी ताकत के साथ-साथ कुछ दूसरे लोगों पर भी निर्भर करती है। जहां पर मुस्लिम पर्याप्त संख्या में हैं, वहां पर भाजपा का प्रचार शुरू होने के पहले ही ओवैसी शामियाना लग जाता है, और वह मुस्लिमों का इतना ध्रुवीकरण कर देता है कि उसके जवाब में हिन्दू ध्रुवीकरण होना तय रहता है, और उससे भाजपा का काम आसान हो जाता है। कुछ ऐसा ही हाल के बरसों में कुछ जगहों पर आम आदमी पार्टी कर रही है, और वह भी भाजपा के लिए ओवैसी किराया भंडार के शामियाने में केजरीवाल साऊंड सर्विस का माइक लगाकर कमल की आमसभा सफल बनाने में लग जाती है। पंजाब एक अलग मामला रहा जिसमें अकालियों से टूट हो जाने के बाद भाजपा किसी भी और मदद से सरकार नहीं बना सकती थी, इसलिए वहां पर आम आदमी पार्टी सत्ता पर आ गई। लेकिन हिमाचल, और गुजरात में आप ने कांग्रेस के वोट काटे, और भाजपा की परोक्ष मदद की।

छत्तीसगढ़ में मुस्लिम वोट इतने नहीं हैं कि यहां ओवैसी किराया भंडार का कारोबार चल सके। ऐसे में अपनी ताकत से परे भाजपा की उम्मीदें सिर्फ केजरीवाल की पार्टी से है। छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी जितने वोट काटेगी, उनमें से अधिकतर कांग्रेस पार्टी के रहेंगे, ऐसी उम्मीद के साथ भाजपा अगले चुनाव में उतरने वाली है। अब अभी तक अगर इस राज्य में आप का अभियान शुरू नहीं हुआ है, उसके प्रदेश चुनाव संचालक यहां आकर बैठे नहीं हैं, तो यह मानकर चलना चाहिए कि यह भाजपा की किसी रणनीति के अनुकूल फैसला हो सकता है। गुजरात में आदिवासी इलाकों में उस आम आदमी पार्टी को अच्छा समर्थन मिला जो कि दिल्ली जैसे शहरी इलाके की पार्टी है। क्या छत्तीसगढ़ में भी झाड़ू आदिवासी इलाकों में भी चलेगा?

आरक्षण पर मार्च तक इंतजार क्यों?

छत्तीसगढ़ विधानसभा में आरक्षण पर प्रस्तावित विधेयक पर राज्यपाल का हस्ताक्षर कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन, पूरे मंत्रिमंडल की उनसे मुलाकात के बावजूद अब तक नहीं हो पाया। प्रदेश सरकार ने लगातार दबाव बनाकर रखा है पर राज्यपाल ने अब स्पष्ट कर दिया कि वे मार्च से पहले इस पर हस्ताक्षर नहीं करेंगी। यह बात उन्होंने रायपुर में एक कॉलेज के कार्यक्रम के बाद मीडिया के पूछे गए सवाल के जवाब में कही। राज्यपाल चूंकि एक पंक्ति में जवाब देकर आगे बढ़ गई थीं, इसलिए मार्च तक इंतजार क्यों किया जाए, यह पूछा जाना रह गया। पर, इसकी एक वजह दिखाई देती है। वह है, सुप्रीम कोर्ट का हाल का रुख। हाईकोर्ट ने सन् 2012 के 58 प्रतिशत आरक्षण को रद्द कर दिया था, जिस पर स्थगन की मांग पर याचिकाएं दायर की गई थीं। पिछले सप्ताह सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने स्थगन देने से इंकार कर दिया। अब इस पर अगली सुनवाई 22-23 मार्च को रखी गई है। कहा जा रहा है कि यह अंतिम सुनवाई भी होगी। इसमें या तो हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रहेगा या 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण को सही ठहराया जाएगा। हस्ताक्षर न करने के पीछे राजनीतिक कारण और भी हो सकते हैं, पर जिस तरह राज्यपाल इस विधेयक की वैधानिकता पर सवाल उठा चुकी हैं, यह संभव है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उन्हें इंतजार हो।

ट्रिक और चमत्कार के बीच अंतर

राजस्थान की युवा मैजिशियन सुहानी शाह सन् 2016 और उसके बाद कई बार बिलासपुर आईं। कोई अजीबोगरीब पहनावा नहीं, जींस, शर्ट पहनने और फर्राटे से अंग्रेजी बोल सकने वाली सुहानी यहां पर्सनैलिटी डेवलपमेंट के भी अनेक कार्यक्रम कर चुकी हैं। छत्तीसगढ़ के दूसरे शहरों में भी उनको बुलाया जाता रहा। लोगों के मन की बात जानने में भी सुहानी को महारत हासिल है। वह खुद को जादू-टोना जानने वाली नहीं कहती, बल्कि अपने कारनामों को कला और साइंटिफिक ट्रिक बताती हैं। अपने प्रदर्शन में किसी चमत्कार या किसी अलौकिक शक्ति की कृपा का दावा नहीं करती बल्कि इन प्रक्रियाओं को माइंड रीडिंग मेथड कहती हैं। बिलासपुर में उन्होंने अपने शो के दौरान लोगों को हैरान कर दिया, जब बता दिया कि दर्शक ने बंद लिफाफे या पर्चे में क्या लिख रखा है। लोगों के मोबाइल फोन नंबर भी उसने बता दिए। इधर, इस समय बागेश्वर धाम वाले धीरेंद्र शास्त्री सुर्खियों में हैं। उनके रायपुर के कार्यक्रम की देशभर में चर्चा हो रही है। ताजा विवादों को लेकर सुहानी शाह ने कई टीवी चैनलों में इंटरव्यू दिया और कहा है कि किसी के मन की बात जानना कोई चमत्कार या जादू नहीं, बल्कि माइंड रीडिंग की वैज्ञानिक पद्धति है। टीवी पर उन्होंने लाइव टेस्ट भी दिखाए। ‘आज तक’ की एंकर को उसकी बहुत पुरानी सहेली का नाम बता दिया। एंकर ने जो नाम लिया, सुहानी ने पहले से ही स्लेट पर लिख रखा था। संयोग से, सुहानी शाह पहली बार तत्कालीन मंत्री और भाजपा नेता अमर अग्रवाल के बुलावे पर आई थीं। उन्हें सुहानी ने बता दिया कि बंद लिफाफे में वे क्या लिखकर लाए हैं। युवा मतदाताओं को रिझाने के लिए अमर ने व्यक्तित्व विकास और कैरियर डेवलपमेंट के लिए कई कार्यक्रम कराए, जिनमें चेतन भगत, बोमन ईरानी जैसे चर्चित लोग आए। इनमें से एक सुहानी शाह भी थीं। पर आज स्थिति यह है कि सुहानी ने जो टीवी पर बोला, छत्तीसगढ़ आकर बोल दे तो लोग उसके खिलाफ खड़े हो जाएंगे। 6 साल पहले जिसे उसने छत्तीसगढ़ आकर साइंस बताया था, वही बात आज चमत्कार है। हम आगे बढ़ रहे हैं, या पीछे धकेले जा रहे हैं?

मार कहीं से पड़े, पीठ पब्लिक की

दो दिन पहले कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने दिल्ली में हुई नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात पर गहरी चिंता जाहिर की, कि देश पर इस समय 155 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। आजादी से लेकर सन् 2014 तक कांग्रेस की सरकार रहते तक कर्ज 50? लाख करोड़ तक पहुंच पाया था। पर आज आठ साल में ही प्रत्येक देशवासी पर एक लाख 9 हजार रुपए का औसत ऋ ण चढ़ गया है।

इधर छत्तीसगढ़ में भाजपा कह रही है किसने 15 साल के शासनकाल में 40-42 हजार करोड़ रुपए के कर्ज लिए और छत्तीसगढ़ सरकार ने ? अपने 4 साल के ही कार्यकाल में 55 हजार करोड़ रुपए उठा लिए। यानी छत्तीसगढ़ जनता पर तकरीबन 1 लाख करोड़ का कर्ज तक चढ़ चुका है। छत्तीसगढ़ की आबादी करीब 3 करोड़ है। इस हिसाब से एक व्यक्ति के ऊपर 33 हजार रुपया का कर्ज और बढ़ जाता है।

केंद्र की वर्तमान सरकार ने कर्ज 150 प्रतिशत ले लिया छत्तीसगढ़ सरकार ने करीब 110 प्रतिशत। दोनों ही सरकारें, एक दूसरे के विरोधी। पर, अपने तर्क से इसे जायज ठहराती हैं। हमें कराहने की जगह चिंता करनी चाहिए कि कर्ज नहीं लेने से देश-प्रदेश का विकास रुक जाएगा, कल्याणकारी योजनाएं नहीं चल पाएगी, किसान-मजदूरों, गरीबों को राहत नहीं मिल पाएगी। 

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