राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : न्यूज वैल्यू का कुछ नहीं ?
27-Jan-2023 4:05 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : न्यूज वैल्यू का कुछ नहीं ?

न्यूज वैल्यू का कुछ नहीं ?

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति के राष्ट्र के नाम संदेश को अगले दिन हिन्दी के अखबारों में जगह नहीं मिली, तो विशेषकर प्रदेश के पूर्व नौकरशाह हैरान रह गए। ज्यादातर पूर्व नौकरशाहों का वीआईपी रोड स्थित मौलश्री विहार में रहवास है। ये सब गणतंत्र दिवस के मौके पर झंडा वंदन के लिए कॉलोनी के गार्डन में ही एकत्र हुए थे।

झंडा वंदन के बाद दो पूर्व सीएस और अन्य रिटायर्ड अफसर, यह जानने के लिए उत्सुक थे कि आखिर सर्वाधिक प्रसारित हिन्दी अखबारों ने राष्ट्रपति के नाम संदेश को क्यों नहीं लिया? उन्होंने अपने परिचित अखबार के जिम्मेदार लोगों से जानने की कोशिश भी की। उन्हें सीधा-सपाट जवाब मिला कि राष्ट्र के नाम संदेश में न्यूज वैल्यू का कुछ नहीं था। इस पर पूर्व अफसरों ने आपत्ति जताई, और उन्हें बताया कि राष्ट्रपति का संदेश कैबिनेट से अप्रूव होता है। इसमें गणतंत्र की भावनाएं छिपी होती है, और इसकी ताकत है कि कमजोर आदिवासी समाज की महिला देश के शीर्ष पद पर काबिज हुई हैं।

एक-दो अखबार के प्रमुखों ने चूक भी मानी, और यह कहा कि विज्ञापन, और अन्य वजहों से खबर मिस हो गई। इसके बाद गणतंत्र दिवस पर पूर्व नौकरशाह पत्रकारिता में आ रही गिरावट पर आपस में चर्चा करते रहे, और चिंतित भी दिखे।

तनातनी के बीच मुलाकात

आरक्षण विवाद का साया गणतंत्र दिवस की शाम राज्यपाल के स्वागत समारोह में भी देखने को मिला। समारोह में शामिल होने के लिए विशेषकर नेताओं में होड़ मची रहती है। एक दिन पहले तक आमंत्रण पत्र हासिल करने के लिए कोशिश होते रहती थी, लेकिन इस बार के स्वागत समारोह का नजारा एकदम बदला सा था। सरकार के मंत्री, मेयर, कांग्रेस विधायक, और प्रमुख पदाधिकारी समारोह से दूर रहे। अलबत्ता, सांसद सुनील सोनी, बृजमोहन अग्रवाल सहित भाजपा के कई प्रमुख नेताओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।  
सीएम भूपेश बघेल ने समारोह खत्म होने से कुछ देर पहले ही राजभवन पहुंचे, और राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके से उनकी सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में अच्छी चर्चा भी हुई। इससे पहले यह खबर उड़ी थी कि आरक्षण विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं होने के कारण सीएम, राजभवन नहीं जाएंगे, लेकिन जगदलपुर से लौटने के बाद वो राजभवन ही गए। सीएम विधेयक को मंजूरी नहीं मिलने से खफा हैं, और रह रहकर राज्यपाल पर निशाना साध रहे हैं। राज्यपाल भी प्रतिक्रिया दे रही हैं। ऐसे तनातनी के बीच दोनों के बीच मेल मुलाकात के बाद विधेयक को मंजूरी मिलने की अटकलें भी लगाई जा रही हंै। देखना है आगे क्या होता है।

श्रम मेव जयते

जरूरी नहीं कि परेड या सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपना काम-धंधा छोडक़र भाग लेने पर ही आपकी देश के प्रति लगन दिखाई दे। अपनी रोज की जिम्मेदारी निभाते हुए, काम करते हुए भी भावनाओं को किया जा सकता है।

अश्लील वीडियो में गिरफ्तारियां

बच्चों से संबंधित अश्लील वीडियो अपलोड और शेयर करने के आरोप में राजधानी रायपुर की पुलिस ने 11 लोगों को गिरफ्तार किया है। दूसरे जिलों में भी लगातार इस तरह की कार्रवाई चल रही है। सितंबर में इंटरपोल से मिली सूचना के बाद देश के 21 राज्यों में 59 ठिकानों पर छापेमारी कर एक ही दिन में 50 गिरफ्तारियां सीबीआई ने की थी। उनमें से कई अपने राज्य से थे। जांजगीर-चांपा जिले में सितंबर और अक्टूबर महीने में 21 लोग पकड़े गए। पिछले साल एनसीआरबी ने बच्चों के 80 अश्लील वीडियो छत्तीसगढ़ से अपलोड होने की खबर राज्य की पुलिस को दी थी। इन्हें भी बहुत सी गिरफ्तारियां हुईं।

चाइल्ड पोर्नोग्राफी की समस्या अंतरराष्ट्रीय है। बालकों की सुरक्षा, उनकी गरिमा और अधिकारों की रक्षा के लिए यूनेस्को के संकल्प के मुताबिक ऐसे अपराधों को रोकने के लिए देशों में साझेदारी है। भारत में ऐसे मामलों में आईटी एक्ट 67 बी के तहत कार्रवाई की जाती है, जिसमें 5 साल तक की सजा है। कई मामलों में पॉक्सो एक्ट भी जोड़ दिया जाता है, तब सजा और बड़ी हो जाती है। छत्तीसगढ़ में जो मामले पकड़े जा रहे हैं उनमें बहुत से केस नाबालिगों के हैं या 18-20 साल के बच्चों के। इस बारे में किए गए अध्ययन से मालूम होता है कि कोविड-19 के समय इंटरनेट से लैस स्मार्टफोन हाथ में आने पर ऐसे अपराध बढ़े हैं। आसानी से उपलब्ध पोर्न सामग्री के प्रसार से होने वाले खतरों से इसे इस्तेमाल करने वाले किशोर-नवयुवक और मजदूर प्राय: अनभिज्ञ होते हैं। पर किसी को इस बात पर रियायत नहीं दी जा सकती कि उसे कानून की जानकारी नहीं थी। इंस्टाग्राम, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स में अपने ही जान पहचान के लोगों की आपत्तिजनक तस्वीरें और वीडियो अपलोड करने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। ब्लैकमलिंग और ठगी करने का भी यह जरिया बना हुआ है। शिकार लोगों को पता ही नहीं चलता कि वे कब जाल में फंस गए। नई शिक्षा नीति में पुरानी की तरह यौन विषयों को छूने से परहेज किया गया है, जबकि इससे संबंधित अपराध नए नए स्वरूप में सामने आ रहे हैं। पुलिस को भी बिना किसी झिझक के साइबर ठगी की तरह पोर्न संबंधी बढ़ते अपराधों पर समाज, खासकर किशोरों व नवयुवकों को जागरूक करने के लिए आगे आना चाहिए जिसकी कमी साफ दिखाई देती है।

सन् 2023 में तीसरा दल कौन?

कुछ राज्य हैं, जहां दो दलों के बीच ही मुकाबला होता आया है। यह जरूर है कि तीसरे दल की मौजूदगी ने सत्ता एक के हाथ आते-आते दूसरे की झोली में डाल दी। पर सत्ता में भागीदारी का इनाम नहीं मिला। छत्तीसगढ़ में हुए सन् 2003 के चुनाव में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी जीती हुई सीट केवल एक थी, लेकिन भाजपा सरकार बन गई। सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस मतदाताओं के मन में यह बिठाने में सफल रही कि जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ भाजपा की बी टीम है। नतीजे में स्व. अजीत जोगी के प्रभाव की वजह से 5 सीटों पर तो छजकां को जीत मिली, पर वह सरकार में हिस्सेदार नहीं बन सकी। हाल में हुए तीन विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी की भूमिका चर्चा में रही। पंजाब में बारी-बारी सरकार बना रही थी अकाली दल और कांग्रेस। अकाली दल का गठबंधन भाजपा से टूट चुका था, कांग्रेस में बार-बार हुए नेतृत्व परिवर्तन के कारण बिखराव था। आम आदमी पार्टी को अनुकूल मैदान मिल गया। इधर,  गुजरात में भाजपा को रिकॉर्ड जीत मिली, जहां आम आदमी पार्टी सरकार बनाने का दावा करके उतरी थी। विश्लेषण यह रहा है कि भाजपा के असंतुष्ट वोट कांग्रेस और आप दोनों में बंट गए। आप पार्टी पंजाब से लगे हिमाचल प्रदेश में भी सरकार बनाने के इरादे से उतरी थी। उसने 68 में से 67 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। किसी भी सीट पर जमानत नहीं बची। यह वही स्थिति है जो सन् 2018 में आप की छत्तीसगढ़ में थी। भाजपा विरोधी वोटों का विभाजन गुजरात में हुआ, पर हिमाचल में नहीं। अब छत्तीसगढ़ में सन् 2023 का चुनाव है। बहुजन समाज पार्टी अपने जांजगीर-सारंगढ़ क्षेत्र की चुनिंदा सीटों पर पहले की तरह लड़ेगी। वह त्रिकोणीय मुकाबले का दावा करने की स्थिति में नहीं है। पार्टी के टूटने और स्व. अजीत जोगी की अनुपस्थिति के चलते छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस सन् 2018 जैसा प्रदर्शन शायद ही कर पाए। तब, आदिवासी सीटों में कांग्रेस को एकतरफा जीत मिली। इनमें छजकां का प्रभाव न के बराबर था। बस्तर की 12 में से 11 और सरगुजा के सभी 14 सीटों पर कांग्रेस आई। इन परिस्थितियों में आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि आम आदमी पार्टी ने मैदानी इलाकों के बजाय आदिवासी बाहुल्य सीटों पर, विशेषकर बस्तर में अपने-आपको फोकस करना शुरू किया है। आप के राष्ट्रीय नेता बार-बार बस्तर का दौरा कर रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने एक बड़ी रैली निकाली और कार्यकर्ताओं से संवाद का कार्यक्रम रखा जिसमें संजीव झा पहुंचे। नगरनार स्टील प्लांट, धर्मांतरण, नक्सल समस्या, पानी-बिजली, सडक़ की समस्याओं के लिए वह लगातार कांग्रेस-भाजपा दोनों पर हमलावर है। सर्व आदिवासी समाज, भानुप्रतापपुर उप-चुनाव में मिले वोटों के बाद प्रदेशभर के आदिवासी सीटों पर प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर रहा है। आने वाले दिनों में साफ होगा कि इन सबकी सक्रियता का परिणाम गुजरात जैसा होगा या हिमाचल प्रदेश जैसा।

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