राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : रफ्तार गाड़ी, और फाईल की!
04-Feb-2023 3:06 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : रफ्तार गाड़ी, और फाईल की!

रफ्तार गाड़ी, और फाईल की!

छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव की गाड़ी का कल एक्सीडेंट हुआ, और वह एक बहुत बड़ा जानलेवा एक्सीडेंट हो सकता था, उससे वे बच गए। मंत्रियों के काफिले बड़ी तेज रफ्तार से चलते हैं, और किसी हादसे की नौबत आने पर उन पर छाया खतरा बड़ा रहता है। ऐसे में सरकारें ताकतवर ओहदों पर बैठे हुए लोगों की गाडिय़ां समय रहते बदल देना बेहतर समझती हैं। कल के हादसे की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति का कहना है कि सिंहदेव की गाड़ी डेढ़ लाख किलोमीटर चल चुकी थी, और उसे बदलने के लिए सरकार को लिखा जा चुका था। गाड़ी बदलने पर कोई फैसला हो पाता, इसके पहले यह हादसा हो गया, जिसमें गनीमत यही है कि उन्हें नुकसान नहीं हुआ। अब पता लगा है कि इसके बाद नई गाड़ी की यह फाईल वीआईपी काफिले की रफ्तार से आगे बढ़ाई गई है।

नायक और खलनायक

आज अडानी का हाल देखकर बड़े-बूढ़े लोगों की यह बात सही साबित हो रही है कि बद अच्छा, बदनाम बुरा। यानी जो लोग सच में खराब रहते हैं, उन्हें तो लोग एक सीमा तक ही बुरा समझते हैं, लेकिन जो लोग अधिक बदनाम हो जाते हैं, उन्हें अधिक बुरा समझते हैं। अडानी अपनी राजनीतिक पहुंच की चर्चा से खासे बदनाम चल रहे थे, छत्तीसगढ़ में हसदेव के जंगलों के दुश्मन के रूप में अडानी एक खलनायक की तरह चले आ रहे थे, और उनकी कंपनी के अफसरों के लिए मीडिया में जाकर सफाई देना धीरे-धीरे नामुमकिन हो गया था। सत्ता की मेहरबानी अगर किसी कारोबार पर है, तो उससे उसका फायदा भी होता है, और उसका नुकसान भी। देश-प्रदेश में बाकी कारोबारियों को भी इससे सबक लेना चाहिए कि राजनीति से न दोस्ती भली, न दुश्मनी। आज हिन्दुस्तान में टाटा जैसी कंपनी है जिसकी साख बाकी उद्योगों से बहुत बेहतर है, और जिसने अपने आपको किसी राजनीति की मेहरबानी से दूर भी रखा है। नतीजा यह है कि इसी टाटा से भारत सरकार ने जो एयरलाईंस छीनी थी, आज वह घूम-फिरकर उसी के पास वापिस गई है, और लोग इसके बेहतर होने की उम्मीद लगा रहे हैं। कारोबारियों में हर कोई खलनायक नहीं होते हैं, विप्रो के मालिक अजीम प्रेमजी की तरह के देश के सबसे बड़े दानदाता बनकर नायक भी होते हैं। अब इस बात को कई लोग अलग-अलग प्रदेशों पर भी लागू करके देख रहे हैं।

सरकार और जमीनों का बाजार

नया रायपुर और रायपुर के बीच के इलाकों में भूउपयोग के सरकारी नियमों में कुछ रहस्यमय और बड़े फेरबदल की चर्चा है, और इससे जमीन कारोबारियों का बहुत बड़ा नफा-नुकसान हो सकता है। देखें कि यह चर्चा कितनी सही निकलती है। वैसे कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों को भी गिना रहे हैं कि सरकार ने नया रायपुर बसाने के लिए लोगों की जमीनें जबर्दस्ती ले ली थीं, और आने वाले बहुत समय तक उनके इस्तेमाल का कोई आसार नहीं है, इसलिए भूस्वामी उन जमीनों को वापिस पाने का हक रखते हैं। अब पता नहीं सुप्रीम कोर्ट का कोई फैसला नया रायपुर के ऐसे बहुत बड़े हिस्से पर लागू होता है या नहीं, लेकिन कुछ लोग ऐसी संभावनाओं को टटोल जरूर रहे हैं। अगर ऐसा हुआ, तो भी रायपुर के जमीनों का बाजार एकदम बदल जाएगा।

रसीला स्ट्रॉबेरी अब जशपुर से

अनुकूल मौसम और भौगोलिक स्थिति का लाभ लेते हुए जशपुर में अलग-अलग तरह की फसलों को लेने का प्रयोग चल रहा है। इस बार किसानों ने स्ट्रॉबेरी पर हाथ आजमाया है। छत्तीसगढ़ में स्ट्रॉबेरी हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र से आता है। यह काफी महंगे भी बिकते हैं। छत्तीसगढ़ के बाजारों में अब बलरामपुर, अंबिकापुर और जशपुर जिले के किसानों की स्ट्रॉबेरी भी दिखेगी।


फिर कौन देखेगा धरना-प्रदर्शन

अक्टूबर 2017 में एनजीटी के आदेश के पालन में दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी थी। ट्रैफिक जाम होने के कारण होने वाले प्रदूषण को इसका आधार बनाया गया था। आदेश के बाद वन रैंक वन पेंशन स्कीम के लिए आंदोलन कर रहे पूर्व सैनिकों सहित मजदूर किसान और कर्मचारियों के अनेक संगठनों के तंबू वहां से उखाड़ दिए गए। इस आदेश को मजदूर किसान शक्ति संगठन इंडियन एक्स सर्विसमैन यूनियन आदि ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इसमें सेंट्रल दिल्ली में पूरे साल भर धारा 144 लगाकर रखने के आदेश को भी असंवैधानिक कहा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2018 में फैसला दिया और एनजीटी के आदेश को रद्द कर दिया। साथ ही बोट क्लब पर भी लगाई गई रोक हटा दी।

राजधानी रायपुर में इस समय बूढ़ापारा के पास साल भर चलने वाले आंदोलन के खिलाफ आंदोलन हो रहा है। राजधानी होने के कारण प्रदेश के सारे संगठन यहां इक_े होते हैं और ट्रैफिक संभालने में पुलिस को काफी मशक्कत करनी होती है। लोगों को विशेषकर स्कूली बसों को गुजरने में बाधा हो रही है। इनडोर स्टेडियम का भी ठीक इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। अब बूढ़ापारा में धरना प्रदर्शन पर रोक लगाई जा रही है और नया रायपुर, माना जैसे विकल्पों पर विचार हो रहा है।  

इधर, सरकार प्रदर्शन करने वालों से वार्ता करके कोई हल भी नहीं निकालती। और यदि मांगे नाजायज है, तो सख्ती भी नहीं करती। नतीजतन कई आंदोलन तो साल भर से ज्यादा समय से चल रहे हैं। ऐसी कई मांगें हैं जिसे पूरा करने का 2018 के चुनाव में आश्वासन था।  

दरअसल, प्रदेश की वास्तविक राजधानी तो नया रायपुर है, पर आज बीस साल बाद भी अफसर, नेता रायपुर में ही शिफ्ट हैं। प्राय: सभी कर्मचारी संगठन नई जगह को लेकर विरोध में हैं। उनका यह कहना जायज है कि रायपुर में तो कोई सुन नहीं रहा, नया रायपुर में कौन सुनेगा? यहां रोजाना कम से कम हजारों पब्लिक हमें देख तो रही है।

इंदिरा जी की योजना का हश्र

बस्तर में बीते एक दशक के भीतर बड़े किसानों की संख्या 35 हजार से बढक़र एक लाख पहुंच गई है। इनके पास 48 फीसदी खेती की जमीन है। लघु किसानों के पास 34 और सीमांत किसानों के पास 18 फीसदी भूमि रह गई है। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 20 सूत्रीय कार्यक्रम चलाया गया था। इस दौरान एक अच्छी भावना से भूमिहीन आदिवासियों को बस्तर में 2-2 एकड़ खेती की जमीन बांटी गई थी। पर अब ये छोटे किसान अपनी जमीन आर्थिक तंगी के चलते बेचने लगे हैं और फिर से भूमिहीन हो रहे हैं। उनकी भूमि खरीदने वालों में आदिवासी किसान, व्यवसायी, अधिकारी ही नहीं बल्कि सामान्य वर्ग के लोग भी शामिल हैं। बीजेपी ने इसे लेकर कांग्रेस सरकार पर हमला बोला है, पर यह सिलसिला अभी का नहीं है। पिछले 10-12 साल से यह हो रहा है।

बस्तर संभाग के कमिश्नर श्याम धावड़े इस मुद्दे पर कलेक्टरों की बैठक लेने वाले हैं। अगर कानूनी तरीके से किसी ने जमीन बेची है तो उसे कैसे वापस लाया जा सकेगा? बड़े किसानों को खेती के लिए पूंजी की व्यवस्था करने में दिक्कत नहीं होती है। मशीन और तकनीक का इस्तेमाल कर वे मुनाफे की फसल भी ले लेते हैं। जबकि छोटे किसानों के लिए बीज, खाद, पानी सबकी व्यवस्था करना एक बड़ा संकट है। इस चक्कर में वे कर्ज लेते हैं जिसे नहीं चुका पाए तो उन्हें अपनी जमीन बेचने के सिवाय कोई दूसरा रास्ता नजर नहीं आता। कहा जाता है कि इस सरकार में किसान सबसे ज्यादा खुश हैं लेकिन बस्तर से आ रही खबर निराशाजनक है।

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