राजपथ - जनपथ

जालसाजी के रोज नए तरीके
ऑनलाईन जालसाजी की खबरें थमने का नाम नहीं लेती हैं। अब ताजा जालसाजी पुलिस की वर्दी वाली एक प्रोफाइल फोटो का एक वॉट्सऐप नंबर है जो कि किसी को यह धमकी दे रहा है कि वह दिल्ली एयरपोर्ट पुलिस स्टेशन का अफसर है, और वह उसके नाम से आई हुई एक पार्सल पर सरकारी टैक्स देने से इंकार कर रही है इसलिए उसे 12 घंटे बाद गिरफ्तार कर लिया जाएगा। कई लोग ऐसे झांसे में आ जाते हैं, और ऑनलाईन भुगतान करने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसे ही एक वॉट्सऐप जालसाज के नंबर को जब ट्रूकॉलर पर डालकर देखा गया तो कई लोगों ने उसका नाम फ्रॉड लिखकर रखा था। ट्रूकॉलर एप्लीकेशन लोगों के फोनबुक में किसी नंबर के साथ दर्ज नाम देखकर उसे बताता है। ऐसा झांसे वाला कोई भी संदेश आने पर सबसे पहले तो ठंडे दिमाग से ट्रूकॉलर जैसे किसी एप्लीकेशन पर उस नंबर का नाम देख लेना चाहिए, उसके बाद भी हड़बड़ाना शुरू नहीं करना चाहिए। लोगों को ऐसी जालसाजी के बारे में आसपास के लोगों को बताना भी चाहिए।
छत्तीसगढ़ के अफसरों का बढ़ता प्रभाव
छत्तीसगढ़ के अफसरों को लगातार महत्व मिल रहा है। राज्य के पूर्व मुख्य सचिव रहे एक आईएएस, और रमन सरकार में प्रभावशाली अफसर को एक टीवी चैनल में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली है। इसी तरह छत्तीसगढ़ कैडर के साल 2008 बैच के आईएएस नीरज कुमार बंसोड़ को केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह का पीएस बनाया गया है। हालांकि छत्तीसगढ़ के कई और आईएएस अफसर केन्द्रीय मंत्रियों के साथ काम कर चुके हैं, लेकिन अमित शाह जैसे ताकतवर गृहमंत्री के पीएस के रूप में छत्तीसगढ़ के अधिकारी की नियुक्ति के मायने निकाले जा रहे हैं। राज्य के आईएएस अफसरों के बीच चर्चा का विषय है कि छत्तीसगढ़ के अधिकारी को गृहमंत्री का पीएस नियुक्त करना केवल संयोग नहीं है, बल्कि यह रणनीति का हिस्सा हो सकता है। नीरज छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिला पंचायत के सीईओ, सुकमा और जांजगीर-चांपा जिले के कलेक्टर सहित अन्य महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में इस साल विधानसभा के चुनाव हैं। ऐसे में दिल्ली में उन अफसरों को महत्व दिया जा रहा है, जो छत्तीसगढ़ में काम कर चुके हैं और उन्हें राज्य की सियासी भूमि की अच्छी समझ है। खैर, कारण जो भी हो, लेकिन इतना तो तय है कि छत्तीसगढ़ में माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ का राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव बढ़ रहा है।
नीरज बंसोड़ के कलेक्टर रहे, और अब भाजपा नेता ओ पी चौधरी ने लिखा- नीरज बंसोड़ को अमित शाह जी का पीएस बनने की हार्दिक बधाईज्नीरज को उनके पिताजी ने बड़े मेहनत से आगे बढ़ाया था,चंद महीनों पहले उनके पिता जी का निधन हो गया था,काश इस जंप को वे देख पाते....
मेरे कलेक्टर रहते हुये मेरे साथ नीरज स्ष्ठरू और ष्टश्वह्र के रूप में काम किये और उन्हें थोड़ा नजदीक से जाना..साइलेंट एंड हार्ड वर्किंग उनकी शैली रही आगे और ऊँचाईयों को छुयें...
बचपन से भेदभाव
बच्चों को बचपन से ही जिस तरह का भेदभाव सिखाया जाता है, उसी का नतीजा रहता है कि बड़े होने तक लडक़ों को लगने लगता है कि वे घर पर अपनी बहनों के मुकाबले अधिक अधिकार संपन्न हैं। यह हाल उन देशों की बच्चों की किताबों का भी है जहां पर लैंगिक समानता अधिक मानी जाती है। अब तस्वीरों वाली एक किताब जो कि पश्चिम के एक बड़े प्रकाशक से आई है, खासी महंगी है, वह भी छोटे बच्चों को एक कहानी में कुत्ते के बच्चों के सारे जिक्र में बस नर-पिल्लों का जिक्र करते हुए उनके लिए ‘ही’ का ही इस्तेमाल करती है। दस पिल्लों में भी एक भी मादा पिल्ले का जिक्र नहीं होता, हर जगह बस मर्द पिल्लों का ही जिक्र होता है।
श्रेय लेने की चिंता
छत्तीसगढ़ में इस महीने कांग्रेस का बड़ा कार्यक्रम होने वाला है। इसमें पार्टी के तमाम नीति निर्धारक नेताओं के साथ आम कार्यकर्ताओं का जमावड़ा रहने वाला है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के इस कार्यक्रम से साल 2023 के विधानसभा चुनाव और 2024 के आम चुनाव का रोड मैप निकलेगा। इस आयोजन की मेजबानी मिलने को लेकर राज्य कांग्रेस संगठन के पदाधिकारी उत्साहित हैं। उनको इस बात की खुशी है कि देश का निर्णय छत्तीसगढ़ की जमीन पर होगा, लेकिन इतने बड़े कार्यक्रम का सफलतापूर्वक आयोजन भी कम चुनौती नहीं है। हालांकि राज्य में कांग्रेस की सरकार है, तो आयोजन की व्यवस्था में दिक्कत आने की आशंका नहीं है, लेकिन सत्ता और संगठन को व्यवस्था से ज्यादा श्रेय लेने की चिंता सता रही है। अब यह तो वक्त ही बताएगा कि कौन किसमें बाजी मारता है।
कहीं आतिशबाजी, कहीं अंधेरा
सरकार में कई किस्म के संस्थान होते हैं, और उनमें उन संस्थानों पर सरकार मेहरबान होती है जहां की चकाचौंध में सत्ता को भी शोहरत मिल सके। इसलिए कार्यक्रम करवाने वाले सरकारी संस्थानों को खूब बढ़ावा मिलता है, और पीछे के कमरे में चुपचाप बैठकर काम करने वाले संस्थान दम तोड़ते रहते हैं। छत्तीसगढ़ में ग्रंथ अकादमी बनाई गई, तो उससे सत्तारूढ़ लोगों को शोहरत मिलने की अधिक गुंजाइश नहीं थी, इसलिए उसकी कुर्सियां खाली पड़ी हैं, बिजली कटते रहती है, कम्प्यूटर रहता नहीं, बजट है नहीं, और छपी हुई पुरानी किताबों दीमकों का इंतजार करती रहती हैं। किताबों से जुड़ा हुआ यह संस्थान खत्म होने से भी बुरे हाल में है, और राजधानी रायपुर में रविशंकर विश्वविद्यालय के अहाते में एक कोने में पड़ा हुआ है। दूसरी तरफ संस्कृति, साहित्य, और पर्यटन से जुड़े संस्थानों के लिए दसियों लाख रूपये के बजट वाले कार्यक्रम होते रहते हैं। अगर सरकार को ग्रंथ अकादमी बंद ही करनी है, तो दिल कड़ा करके यह काम भी कर देना चाहिए। मध्यप्रदेश की तर्ज पर एक-एक करके संस्थान तो बना दिए गए, लेकिन उनमें से जिन्हें दुहा जा सकता था, उन्हें ही जिंदा रखा गया है, और सींचा जा रहा है। और कुछ न सही, साहित्य अकादमी के किसी कार्यक्रम में एक सत्र छत्तीसगढ़ ग्रंथ अकादमी की चर्चा पर भी रखना चाहिए ताकि बाहर से आए हुए लोगों को साहित्य और पुस्तकों से जुड़े हुए इस संगठन का हाल भी पता लग सके।
पॉलिटिक्स में जायज!
छत्तीसगढ़ में चुनावी साल में आरोप-प्रत्यारोप का दौर काफी तेज हो गया है। खासकर मौजूदा और पूर्व मुख्यमंत्री के बीच रोजाना जुबानी जंग होती है। ट्वीटर पर भी दोनों नेताओं की जंग खूब सुर्खियां बटोरती है। स्थिति यह है कि दिन की शुरूआत के साथ ही ट्वीटर वार शुरू हो जाता है। अब तो व्यक्तिगत और पारिवारिक हमले भी तेज हो गए हैं। पहले घरेलू मामलों पर सियासी लोग टीका-टिप्पणी करने से बचते थे, लेकिन लगता है कि अब यह लिहाज़ भी खत्म हो गया है। सियासत के इस नए दौर में हमला करने का कोई भी मौका मिले तो उसे लपकने की परंपरा शुरू हो गई है। कुछ लोग इस परिपाटी के पक्ष में प्रसिद्ध अंग्रेजी कहावत, ऑल इज फेयर इन लव एंड वॉर, का जिक्र करते हुए कहते हैं कि सियासत भी युद्ध भूमि की तरह ही है, और वहां भी सब कुछ जायज है, लेकिन कुछ तो इस कहावत को यह कहकर खारिज करते हैं कि प्यार पाने के गलत तरीके को कैसे जायज ठहराया जा सकता है? क्योंकि प्यार जोर जबरदस्ती से हासिल नहीं किया जा सकता। खैर, यह चर्चा या बहस लंबी हो सकती है,लेकिन इसका सार यह निकला कि कहावत में पॉलिटिक्स को जोड़ दिया जाना चाहिए, तो यह कुछ हद तक जायज हो सकता है।
टिकट का गणित
कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में कई तरह के प्रस्ताव भी पारित होने की संभावना है। इन प्रस्तावों पर चुनाव लडऩे के इच्छुक नेताओं की नजर टिकी हुई है। कहा जा रहा है कि पारित प्रस्ताव के आधार पर ही टिकट का वितरण किया जाएगा। संभावित प्रस्तावों के संबंध में अटकलबाजी भी खूब हो रही है। कहा जा रहा है कि चुनाव लडऩे के इच्छुक निगम-मंडल के पदाधिकारियों को लाल बत्ती का मोह छोडऩा पड़ेगा। इसी तरह संगठन में काबिज नेताओं को भी टिकट नहीं दी जाएगी। कहने का आशय है कि नए चेहरों तथा किसी भी पद में नहीं रहने वालों को ही टिकट मिलने की संभावना है। इन चर्चाओं से वे लोग तो खुश हैं, जो फिलहाल सत्ता-संगठन से दूर हैं, लेकिन सत्ता-संगठन की कुर्सी पर कब्जा जमाए नेता इसका तोड़ निकालने में लगे हैं।