राजपथ - जनपथ

कभी-कभी बहुत छोटे दर्जे के कर्मचारी भी बहुत ऊंचे दर्जे के मुखिया को डुबा देते हैं। एक संवैधानिक कुर्सी को उसी के निजी सहायक ने किस तरह अपनी करतूतों से पलटा दिया, इसका खुलासा हो सकता है आने वाले दिनों में एक स्टिंग ऑपरेशन के उजागर होने से हो जाए। फिलहाल तो बड़े-बड़े लोगों को इससे यह सबक लेना चाहिए कि उनके आसपास के छोटे-छोटे लोग उनका भविष्य किस तरह खत्म कर सकते हैं। छत्तीसगढ़ की मिसाल देश में संवैधानिक कुर्सियों पर बैठे बहुत से लोगों के काम आएंगी कि अपने सहायक किस तरह छांटना चाहिए।
नेताम और कांग्रेस के बीच फिर दूरी
भानूप्रतापपुर उपचुनाव हुए 2 माह से अधिक बीत चुके हैं। कांग्रेस नेता अरविंद नेताम ने सर्व आदिवासी समाज के प्रत्याशी का न केवल खुलकर समर्थन किया था बल्कि प्रचार भी किया था। यह किसी से छुपी हुई बात नहीं थी। पर चुनाव के दौरान उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। कुछ ही दिन पहले कांग्रेस के रायपुर में होने वाले राष्ट्रीय अधिवेशन की एक समिति में भी उनको लिया गया है। अब जाकर उन्हें कांग्रेस के खिलाफ काम करने के लिए कारण बताओ नोटिस दी गई है। अतीत में जाएं तो केंद्र में कृषि राज्य मंत्री रह चुके नेताम ने अपनी स्वतंत्र छवि के आगे पार्टी की परवाह नहीं की है। पार्टी लाइन से बाहर जाकर उनके बयान देखने को मिलते रहे हैं। सन् 1995 में कांग्रेस से उन्हें पहली बार तब बाहर किया गया था, जब बस्तर में मालिक मकबूजा प्रकरण सामने आया था। इसके 6 साल बाद उन्हें पार्टी में वापस लिया गया। फिर कुछ दिन रहने के बाद छोड़ कर चले गए। सन 2012 में अगले साल होने वाले चुनाव को ध्यान में रखते हुए फिर समझा-बुझाकर कांग्रेस प्रवेश कराया गया। इसके बाद वे अलग-अलग मंचों से लगातार कहते रहे हैं उनकी पार्टी के ढांचे में बदलाव होना चाहिए। वे बस्तर को अलग राज्य बनाने की मांग पर पैरवी भी करते रहे हैं।
बाद में उन्होंने फिर पार्टी छोड़ी। राष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने तब के आदिवासी नेता पीए संगमा का समर्थन कर दिया था। इस दौरान बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए, कुछ दिन के लिए भाजपा में भी रहे। फिर भाजपा से निष्कासित पूर्व सांसद सोहन पोटाई के साथ उन्होंने जनवरी 2017 में जय छत्तीसगढ़ पार्टी का गठन किया था। पर इसके कुछ समय बाद कांग्रेस के प्रभारी महासचिव पीएल पुनिया की पहल से वे फिर पार्टी में वापस आ गए थे। 81 वर्षीय नेताम अपनी पहचान के लिए किसी दल पर निर्भर नहीं हैं। जब उन्होंने सर्व आदिवासी समाज के प्रत्याशी का समर्थन किया तब बहुत से लोगों को पूछताछ करनी पड़ी कि वे कांग्रेस में अभी भी हैं भी या नहीं। हाईकमान की उन्हें दी गई ताजा नोटिस इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव ? को देखते हुए मायने रखता है। नेताम नोटिस का कैसा जवाब देते हैं, यह भी जिज्ञासा बनी हुई है।
कांग्रेस के बाली और सुग्रीव
रामायण के बाली और सुग्रीव के बारे में तो आपने सुना ही होगा। कथा के अनुसार बाली काफी शक्तिशाली था और लड़ाई में विरोधी की आधी शक्ति उसको प्राप्त होने का वरदान भी मिला था, लिहाजा अच्छे-अच्छे बाहुबली भी बाली के सामने टिक नहीं पाते थे। यही वजह थी कि बाली का सगा भाई सुग्रीव उससे भागा-भागा फिरता था। वनवास के समय सीताजी की खोज में मदद के बदले प्रभु राम ने सुग्रीव को राजपाठ लौटाने का वादा किया था। जिसमें यह तय हुआ था कि सुग्रीव बाली को युद्ध के लिए ललकारेगा और भगवान बाली का वध कर देंगे, लेकिन दोनों के बीच जब युद्ध शुरू हुआ तो राम असमंजस में पड़ गए कि कौन बाली और कौन सुग्रीव ? चूंकि दोनों सगे भाई थे, इसलिए एक जैसे ही दिखते थे। इस असमंजस में राम तीर नहीं चला पाए, तब सुग्रीव ने जैसे-तैसे भागकर जान बचाई। इसके बाद राम ने सुग्रीव के गले में माला डालकर लड़ाई के लिए भेजा, ताकि उन्हें पहचाने में दिक्कत न हो। सुग्रीव इसके पहले बड़ी मुश्किल से जान बचाकर लौटे थे, तो घबरा रहे थे कि कहीं ताकतवर बाली उनका वध न कर दे। लेकिन राम के भरोसे वे साहस जुटाकर बाली को फिर ललकारने पहुंचे। सुग्रीव की ललकार सुनकर बाली की पत्नी ने कहा भी कि ध्यान मत दीजिए, वो ऐसे ही ललकारता है और भाग जाता है। बाली नहीं माने और सुग्रीव से लडऩे चले गए, इस बार राम ने बाण चलाया और बाली का वध कर दिया। ये पूरी कथा तो आप जानते ही हैं, फिर भी इसे दोहराने का मतलब यह था कि इन दिनों कांग्रेस संगठन में भी बाली-सुग्रीव जैसा खेल चल रहा है। एक कांग्रेसी ने रामायण के इस प्रसंग के साथ बताया कि संगठन के एक पदाधिकारी जो सुग्रीव जैसे खुद ताकतवर तो नहीं है, फिर भी बाली जैसे बड़े और शक्तिशाली नेता को ललकार रहे हैं। कांग्रेस के इस सुग्रीव को भी भरोसा था कि उसके संरक्षक उसे बचा लेंगे, लेकिन यहां भी राम की तरह संरक्षक धोखा खा गए और बाली ने कांग्रेस के सुग्रीव को पटकनी दे दी। जिससे उनके राजपाठ पर खतरा मंडरा लगा है। रामायण के सुग्रीव को तो दूसरा मौका मिल गया था, लेकिन कांग्रेस के इस सुग्रीव को मौका मिलता है या नहीं, यह देखने वाली बात है, क्योंकि बाली के हमले से वे फिलहाल तो चित्त हो गए हैं।
कांग्रेसियों के सुखद खबर के मायने
कांग्रेस में राष्ट्रीय अधिवेशन से पहले आपसी मतभेद साफ दिखाई दे रहे हैं। साल-डेढ़ साल पहले तक संगठन का काम देख रहे एक पदाधिकारी के सोशल मीडिया पोस्ट मतभेद की पुष्टि भी कर दी। उन्होंने लिखा कि सुखद खबर... बड़े दिनों बाद दिल को सुकून देने वाला मिला। सोशल मीडिया पर अचानक उनकी इस टिप्पणी से लोगों को लगा कि शायद उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल गई होगी, लेकिन बाद में पता चला कि वे अपनी ही पार्टी के नेता के खिलाफ कार्रवाई से खुश होकर ऐसा लिख रहे हैं। छत्तीसगढ़ में इस साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं ऐसे में कांग्रेसी एक दूसरे को निपटाने के खेल में खुश होते रहेंगे, तो पार्टी की मुश्किलें बढऩा स्वाभाविक है।
आईएएस का प्रभाव
आईएएस अफसर किसी बात के लिए अड़ जाए, तो अच्छे-अच्छों को झुकना पड़ जाता है। ऐसा ही एक वाकया कुछ दिनों पहले राजधानी रायपुर के वीआईपी रोड में हुआ, जब प्रदेश के एक प्रभावशाली रिटायर्ड अफसर ट्रैफिक जाम की समस्या से परेशान होकर अपनी कार सडक़ पर अड़ा कर बैठ गए। बताते हैं कि साहब एसी चालू करके एक घंटे कार में बैठे रहे, लोगों ने कार हटाने के लिए कई बार मिन्नतें की, लेकिन वे भी ठान कर बैठे थे कि कुछ भी हो जाए, वे टस के मस नहीं होंगे। दरअसल, साहब का घर एक बड़े विवाह भवन के पास ही है। शादी-ब्याह के सीजन में उनके घर जाने के रास्ते पर अक्सर जाम की स्थिति रहती है। बताया जा रहा है कि ट्रैफिक जाम की समस्या के बारे में उन्होंने भवन संचालकों से भी बात की थी, लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया। इसी दौरान पिछले दिनों जब वे एक शादी कार्यक्रम में गाडिय़ों का काफिला देखकर बौरा गए और अपनी सरकारी गाड़ी सडक़ पर अड़ा दी। उस दिन जैसे-तैसे शादी का कार्यक्रम निपटा। इसके बाद से भवन आने के लिए अलग और जाने के लिए अलग रूट तय किया गया है। भवन संचालक ने बकायदा सुरक्षा कर्मियों की तैनाती कर दी है। अब वीआईपी रोड की तरफ से जाने वालों को डेढ़-दो किलोमीटर ज्यादा चलना पड़ रहा है, लेकिन इससे साहब की तकलीफ तो दूर हो गई है।
हाथियों को अपने शावकों की चिंता
बीते कुछ दिनों से खरसिया के रास्ते से निकला 13 हाथियों का दल सक्ती,, चांपा, जांजगीर, बिलासपुर होते हुए अब कोरबा के नजदीक पहुंच गया है। इनमें से ज्यादातर गांवों में पहली बार हाथियों की आमद हुई है। कोरबा में सर्वमंगला मंदिर से सिर्फ 2 किलोमीटर की दूरी पर हाथियों ने डेरा डाल रखा है। पिछले 1 सप्ताह से हाथी घनी आबादी वाले गांवों के आसपास से गुजर रहे हैं लेकिन कुछ चकित कर देने वाली बात यह है कि वे बस्तियों में धावा नहीं बोल रहे हैं। सेल्फी लेने के लिए बहुत नजदीक जाने वाले दो-तीन लोगों पर हमला जरूर हाथियों ने किया लेकिन बड़ी आबादी उसने संकट में नहीं डाला है। हाथियों के व्यवहार पर अध्ययन करने वाले कुछ जानकार बताते हैं ऐसे हाथियों का दल जिनमें शावक भी होते हैं, वे मनुष्यों के बीच जाने से बचते हैं। हाथियों को यह भरोसा होता है कि अगर वे मनुष्य से दूरी बनाकर रखेंगे तो उन पर हमला नहीं होगा। यह अलग बात है कि वन विभाग और पुलिस की मनाही के बावजूद लोग उन्हें देखने के लिए काफी नजदीक जा रहे हैं, और इन्हीं में से कुछ लोग हमले के शिकार भी हो रहे हैं। ये हमले हाथी अपने बचाव में कर रहे हैं। ([email protected])