राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : आगे-आगे देखें, होता है क्या...
13-Feb-2023 5:05 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : आगे-आगे देखें, होता है क्या...

आगे-आगे देखें, होता है क्या...
छत्तीसगढ़ में चल रहे कोयले की रंगदारी-उगाही की गिरोहबंदी की जांच  से भानुमति का पिटारा खुल गया दिखता है। अब हिन्दी में यह कहावत कितने समय से चली आ रही है कि हम यह भी भूल गए हैं कि भानुमति थी कौन। खैर, वह जो भी रही हो, अभी आईटी और ईडी के हाथ जितने तरह के दस्तावेज लगे हैं, और उनसे भी बढक़र जितने तरह की चैट लोगों के मोबाइल फोन से बरामद हुई है, वह आंखें खोल देने वाली है। लोगों को इससे यह भी पता लग रहा है कि जिन लोगों की इतनी इज्जत होती आई है, वे दरअसल किस किस्म के लोग हैं। और इससे परे यह भी पता लग रहा है कि जिन लोगों की दौ कौड़ी की इज्जत नहीं थी, वे कैसे-कैसे लोगों से कितनी-कितनी इज्जत पाते आए हैं। अदालत का फैसला तो जब भी हो, जनता के बीच जनधारणा का फैसला तो ऐसे पुख्ता सुबूतों से हो ही सकता है। लेकिन ऐसे दस्तावेज एक दूसरे से लेन-देन करने में लोग इतने चौकन्ने होकर काम कर रहे हैं कि किसी मैसेंजर सर्विस पर भी दस्तावेज नहीं भेज रहे, और आईफोन की एयरड्रॉप सेवा को भरोसेमंद मान रहे हैं। जांच एजेंसियों के भेजे गए कुछ ऐसे कागज अफसरों ने कुछ दलालों के साथ साझा किए थे जो कि जांच एजेंसियों की पूरी कार्रवाई को ही तबाह करने वाले थे, और अब यह सफाई किसी के गले नहीं उतर रही है, नहीं उतर सकती कि यह गलती से हो गया था। ऐसा गलती से नहीं होता भैया। फिलहाल ऐसे तमाम दस्तावेजों से छत्तीसगढ़ में भाजपा ने अपने आपको जिस तरह दूर रखा हुआ है, तो उसे देखकर कुछ लोगों का यह मानना है कि महासमुंद के बहीखातों में भाजपा के कई बड़े नेताओं के भी नाम दर्ज हैं। अब यह बात सच है या नहीं, यह आईटी और ईडी ही बता सकते हैं, लेकिन जनधारणा सुबूतों की मोहताज नहीं होती, और छत्तीसगढ़ में जनभावनाएं उबाल पर हैं। आगे-आगे देखें, होता है क्या...

अच्छी बात नहीं है
इन दिनों हिन्दी टाइपिंग करने वाले बहुत से लोग कम्प्यूटर-इंटरनेट पर अलग-अलग तकनीक से टाईप करते हैं। कुछ लोग अंग्रेजी के हिज्जे टाईप करके देवनागरी में नतीजा पाते हैं, तो कुछ लोग बोलकर टाईप करते हैं। काम आसान तो होते चल रहा है, लेकिन कई बार कई तरह की चूक भी हो जाती है। अब जितनी बार ऑनलाईन सट्टा टाईप किया गया, उतनी बार ऑनलाईन सत्ता टाईप हो गया। अब सत्ता और सट्टा का यह रिश्ता टेक्नालॉजी की फ्रॉडियन चूक है तो भी इसकी मरम्मत करने की जरूरत है, सट्टा की चर्चा में सत्ता की बदनामी तो अच्छी बात नहीं है।

चुनाव प्रचार के दौर में बस्तर में हत्याएं
नारायणपुर, बीजापुर के बाद अब दंतेवाड़ा में नक्सल हत्या। तीनों ही जनप्रतिनिधि भाजपा से जुड़े हैं या जुड़े थे। इसके पहले विधायक भीमा मंडावी की भी हत्या बीते सालों में हो चुकी है, जो बीजेपी से ही थे। पर कांग्रेस तथा दूसरे दलों के नेता भी मारे गए हैं। 

झीरम घाटी में तो कांग्रेस नेताओं की एक पूरी पीढ़ी ही खत्म कर दी गई। प्राय: ऐसी वारदातों की वजह नक्सली सुरक्षा बलों के लिए मुखबिरी करने का आरोप लगाते हैं। दंतेवाड़ा के पूर्व सरपंच रामधर आलमी की हत्या चाकू मारकर की गई और एक पर्चा फेंका गया। इसमें मुखबिरी के अलावा, पुलिस की आत्मसमर्पण नीति में सहयोग करने तथा बोधघाट परियोजना में पैसा खाने का आरोप लगाया गया है। आम तौर पर ऐसे ही आरोप लगाकर हत्याएं की जाती हैं। नक्सली स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस के मौके पर काला झंडा फहराते हैं। मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्था के वे खिलाफ हैं।

इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सभी प्रमुख दल प्रदेश के दूसरे स्थानों की तरह बस्तर में भी जनसंपर्क शुरू कर चुके हैं, जो आने वाले दिनों में और तेज होने वाला है। यह प्रचार इसी तरह के जमीनी नेताओं की बदौलत ही होता है, जिन पर नक्सली हमले का खतरा मंडरा रहा है। नक्सली चुनावों के बहिष्कार का आह्वान करते हैं। हत्या की ताजा घटनाओं के पीछे वजह यह हो सकती है कि प्रचार के लिए निकलने वाले जनप्रतिनिधियों में दहशत फैले, क्योंकि बस्तर में शांतिपूर्ण चुनाव हो जाना उनकी विफलता और असर कम होने के रूप में लिया जाएगा।

उइके और बैस की सहूलियत
छत्तीसगढ़ के नए राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन, राजनीतिक उम्र और अनुभव दोनों में निवृतमान हो रही राज्यपाल अनुसुईया उइके से बड़े हैं। बीच में एक बार जनता दल में जाने की बात छोड़ दें तो वे सन् 1971 से लेकर लगातार जनसंघ या भाजपा में रहे हैं। वे पांच बार विधायक, केबिनेट मंत्री व प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी ओडिशा में रहे। उइके कांग्रेस से भाजपा में आई थीं। आरक्षण संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर के लिए कांग्रेस सडक़ पर प्रदर्शन कर चुकी, हल नहीं निकला। सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट से भी कोई फौरी राहत नहीं मिल पाई, जबकि यह आसन्न चुनावों को देखते हुए यह कांग्रेस सरकार के लिए अहम मुद्दा है। हरिचंदन की नियुक्ति के बाद लोगों के बीच सबसे पहला सवाल यही उठ रहा है कि लंबित आरक्षण संशोधन विधेयक पर उनका क्या रुख होगा। एक संभावना यह है कि उइके की तरह अध्ययन के लिए वे भी समय लेने की बात करें। 

यह एक संयोग है कि 13 राज्यपालों की अदला-बदली और नियुक्ति में आरक्षण संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करने के कारण सत्तारूढ़ दल की आलोचना छत्तीसगढ़ की राज्यपाल उइके की तरह झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस भी झेल रहे थे। अब दोनों ही सुविधाजनक राज्यों में स्थानांतरित किए गए हैं। महाराष्ट्र में भाजपा व शिवसेना शिंदे गुट की साझा सरकार है तो मणिपुर में भाजपा की पूर्ण बहुमत की।

स्वच्छता का एक और कदम...

स्वच्छता अभियान के लिए कई बार राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत अंबिकापुर में एक और पहल हुई है। एक पूरा उद्यान कबाड़ का इस्तेमाल करके बनाया गया है। इनमें रबर, प्लास्टिक, फाइबर आदि के खराब और फेंके जाने वाले सामानों का इस्तेमाल हुआ है। 

जब बचपन की याद हिलोरे ले...

बचपन का पेड़ों पर चढऩा, डालियों पर लटकना, फलों-फूलों को तोडक़र कूद जाना हमें याद तो रहता है पर उसे दोहराने की हिम्मत नहीं होती, क्योंकि एक उम्र के बाद सेहत और शरीर इसकी मंजूरी नहीं देता। बॉडी फिटनेस पर हर रोज काफी वक्त बिताने वाले आईपीएस रतनलाल डांगी ऐसा कर पाए। अपने बचपन के दिनों को याद कर वे खेजड़ी (शमी) के पेड़ पर चढ़ गए और यह पोज दिया।

सजायाफ्ता बाबा का स्टाल मेले में

सजायाफ्ता बाबाओं को सरकार चाहे तो कितनी सहूलियत मिल सकती है, इसका हाल के दिनों में हरियाणा के राम-रहीम से बड़ा उदाहरण तो हो नहीं सकता। उन्हें किसी न किसी बहाने पैरोल पर जेल से बाहर निकलने की छूट मिलती जा रही है। बाहर प्रवचन दे रहे हैं, नेता उनके दरवाजे पर जाकर माथा टेक रहे हैं। एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें एक रिकॉर्डिंग स्टूडियो में वे गाने की धुन भी तैयार करा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में भी सजायाफ्ता आसाराम और रामपाल के अनुयायी उनके अपराधों के उजागर होने के बावजूद कम नहीं हुए हैं। रामपाल के अनुयायी तो इतने समर्पित हैं कि वे उनकी एक किताब 10-20 रुपये में या फिर कहीं-कहीं मुफ्त, घर-घर जाकर बांटते हैं। सोशल मीडिया पर भी उनके भक्त तो सक्रिय हैं। इधर धार्मिक नगरी रतनपुर में एक पंडाल स्थानीय निकाय ने आवंटित किया है, जिसमें रामपाल का प्रचार हो रहा है और उसकी किताबें बेची जा रही है। ये रामपाल वहीं हैं जिसने सतनाम आश्रम में पुलिस ने जब प्रवेश करने की कोशिश की थी तो उनके समर्थकों ने भयंकर उत्पात मचाया था। पुलिस को उग्र भीड़ पर काबू पाने के लिए गोलियां, हथगोले दागने पड़े थे। पिछले आठ साल से रामपाल जेल में है। अब किसी अफसर की मेहरबानी से इनका महिमा मंडन मेले में भी हो रहा है।

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