राजपथ - जनपथ

खुश रखने हर संभव उपाय
भय बिन होत प्रीत, यह कहावत एक संस्थान के प्रमुख पर फिट बैठ रही है। सरकार ने कुछ समय पहले संस्थान में कुछ और राजनीतिक नियुक्तियां की। नए नवेले संचालकों ने साधन-सुविधा के लिए प्रमुख से गुहार लगाई, तो उन्होंने प्रावधान न होने की बात कहकर टरका दिया।
संचालकों में एक तेज तर्रार युवा किसान नेता भी हैं। उन्हें संस्थान में करोड़ों के घोटाले का पता चला। किसान नेता ने खामोशी से दस्तावेज भी जुटा लिए। उसे यह भी जानकारी मिल गई कि संस्थान के प्रमुख ने अपने लिए काफ़ी कुछ बनाए हैं। फिर क्या था, किसान नेता के एक-दो अफसरों के मार्फत संस्थान प्रमुख तक भ्रष्टाचार की जानकारी भेजी।
और यह भी कहलवा दिया कि देर सवेर वो दाऊजी तक जानकारी भिजवाएंगे। पोल खुलने से हड़बड़ाए संस्थान प्रमुख ने तुरंत अफसरों को संचालकों के लिए साधन-सुविधाएं देने के निर्देश दिए। नई नवेली इनोवा खरीदी जा रही है। संचालकों को खुश रखने के लिए संस्थान के अफसर हर संभव उपाय कर रहे हैं। फिलहाल तो संचालक संतुष्ट दिख रहे हैं, लेकिन कब तक ऐसा रहेंगे यह देखने वाली बात होगी।
गिले-शिकवे दूर
चेम्बर अध्यक्ष अमर पारवानी, और पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी में छत्तीस का आंकड़ा है। सुंदरानी, पारवानी को बुरा भला कहने से नहीं चुकते रहे हैं। पारवानी को रायपुर उत्तर से भाजपा की टिकट का दावेदार माना जाता है। अब नई खबर यह है कि दोनों के बीच सुलह हो गई है।
पिछले दिनों गोवा में एक शादी समारोह में श्रीचंद सुंदरानी, और पारवानी ने आपस में बैठकर गिले शिकवे दूर किए। सुनते हैं कि दोनों के बीच इस बात पर सहमति बनी है कि दोनों में से जिसे भी टिकट मिलेगी, उसके पक्ष में काम करेंगे। पारवानी, और सुंदरानी के इस सुलह -समझौते की पार्टी हल्कों में खूब चर्चा हो रही है।
अधिवेशन से पहले गुटबाजी
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम को अनदेखा कर बाकी बड़े नेताओं का पोस्टर-बैनर लगवाना मेयर एजाज ढेबर को भारी पड़ गया। मरकाम समर्थकों ने एयरपोर्ट मार्ग पर जगह-जगह कटआउट, और पोस्टर की तरफ प्रदेश प्रभारी शैलजा का ध्यान आकृष्ट कराया, और यह बताया कि एआईसीसी अधिवेशन की स्वागत समिति का चेयरमैन होने के बावजूद मरकाम की तस्वीर जानबूझकर गायब कर दी गई है।
प्रदेश प्रभारी शैलजा इससे काफी खफा हुई, उन्होंने ऐसे सभी बैनर-पोस्टर को हटाने के निर्देश दिए। साथ ही इसके लिए जिम्मेदार नेता को नोटिस देने के लिए कहा। नोटिस जारी करने की जिम्मेदारी महामंत्री प्रशासन रवि घोष पर थी। चर्चा है कि नोटिस की खबर मिलते ही मेयर एजाज ढेबर राजीव भवन पहुंचे, और उन्होंने बड़े नेताओं को सफाई देकर नोटिस जारी न करने का आग्रह किया। बड़े नेताओं के हस्तक्षेप के बाद नोटिस तो रूक गया, लेकिन अधिवेशन से पहले गुटबाजी की गूंज दूर तक सुनाई दी। देखना है आगे क्या होता है।
पीएससी के ऐसे अनोखे सवाल!
छत्तीसगढ़ पीएससी के इम्तिहान में अभी दो दिन पहले जो सवाल पूछे गए वे लोगों को हक्का-बक्का कर गए। राज्य के कुछ सरकारी कार्यक्रमों से जुड़े हुए इतने छोटे-छोटे और महत्वहीन सवाल थे कि जिन्हें पहले से उनके जवाब मालूम हों, महज वे ही लोग इनके जवाब दे सकते थे। इनका किसी सामान्य ज्ञान से भी कोई लेना-देना नहीं था, और न ही किसी और किस्म के ज्ञान से। ऐसे सवाल किसी संस्था की साख को कम करते हैं क्योंकि उम्मीद से परे के ऐसे महत्वहीन सवालों की तैयारी तो कोई कर नहीं सकते थे। अब इनके पीछे मकसद क्या था, यह तो पता नहीं, लेकिन कुछ लोग ऐसे ही सवालों के जवाब देकर बाजी मार ले जाते हैं।
एक सवाल यह भी था कि गिल्ली-डंडा के खेल में गिल्ली की लंबाई कितनी होती है, और यह भी था कि गिल्ली-डंडा मुकाबले के निर्णायक को क्या कहा जाता है। एक सवाल यह था कि मुख्यमंत्री ने राजनांदगांव विधानसभा क्षेत्र में किस तारीख को भेंट-मुलाकात कार्यक्रम किया, इसके चार जवाब में से सही को छांटना था। अब मुख्यमंत्री सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में दौरा कर रहे हैं, ऐसे में किसी एक विधानसभा क्षेत्र के दौरे की तारीख को याद रखना कितना महत्वपूर्ण होना चाहिए था? पीएससी के मुकाबले बहुत महत्वपूर्ण।
कहीं खुशी, कहीं गम
छत्तीसगढ़ की गवर्नर अनुसुईया उईके को यहां से मणिपुर भेजा गया, तो लोगों को हैरानी हुई क्योंकि वे तो राज्य की कांग्रेस सरकार से ठीक-ठाक टकराव चला रही थीं। और जाहिर है कि कोई भी राजभवन ऐसे टकराव केन्द्र सरकार के तय किए हुए ही चला सकते हैं, खुद होकर नहीं। और बंगाल में वहां के राज्यपाल ने जिस तरह ममता बैनर्जी से टकराव जारी रखा था, उसी ने उन्हें उपराष्ट्रपति तक बना दिया। ऐसे में कोई जाहिर वजह नहीं थी कि अनुसुईया उईके को छत्तीसगढ़ जैसे महत्वपूर्ण राज्य से हटाकर मणिपुर जैसे महत्वहीन राज्य में भेजा जाए। खैर, जो भी वजह हो, उन्हें बिदा करने अभी छत्तीसगढ़ महिला आयोग का एक प्रतिनिधि मंडल पहुंचा, तो इनमें से हर किसी के चेहरे खिले हुए थे, और तस्वीर में सिर्फ राज्यपाल का चेहरा मुरझाया हुआ था। फोटो देखकर यह समझ पड़ रहा था कि इस तबादले से खुश कौन हैं, और ऐसी बिदाई से उदास कौन है।
ऑनलाइन ठगों का काम भी अब आसान
फोन वालेट के जरिये रुपये ट्रांसफर करना बहुत आसान है। बस कुछ बटन दबाएं और बैंक खाते में दर्ज फोन नंबर के आधार पर सामने वाले को रकम मिल जाती है। पर इसी सहूलियत ने ठगी का काम भी आसान कर दिया है। छत्तीसगढ़ के एक शख्स को किसी इन्फोएज डॉट काम की ओर से नौकरी दिलाने का झांसा दिया गया। 6 नवंबर से एक दिसंबर के बीच उसने लेटर जारी करने के नाम पर जब 65 हजार रुपये वसूल लिए तब ठगी का अंदाजा लगा। यह पोस्ट इसलिए है ताकि आप सजग रहें और इस तरह के झांसे में आने से बचें।
लोकल में मेल का किराया
कोविड काल में लोकल पैसेंजर ट्रेनों को बंद कर दिया गया था। एक्सप्रेस ट्रेनों में भी बिना रिजर्वेशन सफर करने की सुविधा नहीं दी जा रही थी। बाद में मेल एक्सप्रेस ट्रेनों में जनरल डिब्बे लगाए गए। इसका किराया लोकल पैसेंजर ट्रेनों से लगभग दो गुना होता है। अब दो साल बीत गए पैसेंजर ट्रेनों को चालू किया जा चुका है पर किराया मेल या एक्सप्रेस ट्रेन का ही लिया जा रहा है। चाहे अब काउंटर से टिकट लें या ऑनलाइन खरीदें, पैसेंजर ट्रेनों का विकल्प मिलता ही नहीं। बिना किसी औपचारिक घोषणा के रेलवे बढ़ा हुआ किराया वसूल कर रही है। यह ऐसी ही एक टिकट है, जिसमें रायगढ़ से बिलासपुर सफर करने वाले यात्री को पैसेंजर ट्रेन के लिए भी मेल-एक्सप्रेस का टिकट बनाकर दिया गया। इसका किराया 60 रुपये है, जबकि पैसेंजर ट्रेनों में इसका सिर्फ 30 रुपये लिया जाता था।