राजपथ - जनपथ

सांप-नेवले के संबंध भी बेहतर
छत्तीसगढ़ में कल सुबह पड़े ईडी के छापों के बाद राजनीतिक हलचल उफान पर है। और ऐसा लगता है कि कांग्रेस और भाजपा के बीच यह टकराव, छत्तीसगढ़ के ईडी मामलों मेें घिरे हुए लोगों और केन्द्रीय जांच एजेंसी के बीच का टकराव अब चुनाव तक इसी तरह चलता ही रहेगा। दोनों सरकारों का एक-दूसरे पर भरोसा शून्य है, और छत्तीसगढ़ की इन दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियों के बीच के संबंध देखकर सांप-नेवले के संबंध बड़े मधुर लग रहे हैं। इन दोनों पार्टियों के बीच अब किसी तरह के लोकतांत्रिक संबंधों की गुंजाइश नहीं रह गई है। राज्य की एजेंसियों की जांच, और केन्द्र की एजेंसियों की जांच के बीच एक अनकहा मुकाबला सा चल रहा है कि कौन किसे कितना घेर सकते हैं।
दो नए ओहदे
इस बीच कल छत्तीसगढ़ मंत्रिमंडल की बैठक में संविदा पर दो बड़े अफसरों को नियुक्त करने का सैद्धांतिक फैसला लिया गया है, इनके लिए नामों पर चर्चा अभी नहीं हुई है। लेकिन मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद अब सरकार किसी भी दिन आईजी या एडीजी दर्जे की एक संविदा-नियुक्ति पुलिस में कर सकती है, और सचिव या प्रमुख सचिव दर्जे की एक संविदा नियुक्ति प्रशासन में कर सकती है। कल के मंत्रिमंडल के बाद इन दो भावी कुर्सियों को लेकर जानकार लोगों के बीच कई तरह की चर्चाएं शुरू हुई हैं कि ये फैसले किसके लिए किए गए हैं। आने वाला वक्त यह राज खोल पाएगा।
सीआरपीएफ और लाठीचार्ज
राजधानी रायपुर में कल ईडी दफ्तर के बाहर प्रदर्शन कर रही कांग्रेसियों की भीड़ जब बेकाबू होते दिखी तो ईडी दफ्तर की सुरक्षा के लिए तैनात सीआरपीएफ के जवान भी लाठियां लेकर बेरियर गिराती भीड़ पर टूट पड़े थे। जबकि राज्य पुलिस का कहना था कि भीड़ को रोकना उसकी जिम्मेदारी है, और सीआरपीएफ के लोगों को यह काम नहीं करना है, पीछे रहना है। लेकिन कुछ जानकार अफसरों का यह कहना है कि जब राज्य की पुलिस भीड़ को रोक नहीं पा रही थी, या रोकना उसकी नीयत नहीं थी, और जब प्रदर्शनकारी ऊपर की मंजिलों पर ईडी दफ्तर के दरवाजे तक पहुंचकर शर्ट को झंडे की तरह लहरा रहे थे, तब सीआरपीएफ की जिम्मेदारी ईडी के कर्मचारियों और दफ्तर को बचाना भी, और ऐसे में जरूरत पडऩे पर वह खुद भी कार्रवाई कर सकती थी। राज्य की पुलिस का कहना है कि ऐसे प्रदर्शन वह रोज ही रोकती है, और वह जानती है कि कितना बल प्रयोग करना है। यह एक अलग बात है कि राज्य की पुलिस को रोजाना कांग्रेस के लोगों को नहीं रोकना पड़ता है, और सत्तारूढ़ पार्टी के लोगों को रोकते हुए लाठियां भी नर्म पड़ जाती हैं।
रहस्यमय हवन-पूजन
राजधानी रायपुर के कुछ खास किस्म के मंदिरों में वहां के पुजारी अलग-अलग हवन कुंड और वेदियां बनाकर रहस्यमय ढंग से पूजा करते दिख रहे हैं, और मामूली सी पूछताछ पर भी वे उत्साहभरी फुसफुसाहट से बताते हैं कि फलां खास व्यक्ति की तरफ से फलाने मकसद से फलानी पूजा की जा रही है। सुनने वाले नामों को सुनकर बड़े प्रभावित होते हैं, और धार्मिक अनुष्ठानों को अगले प्रभावशाली जजमान ऐसी ही मार्केटिंग से मिलते हैं। फिलहाल हवा में कई तरह की मुसीबतों से पार पाने के लिए कई तरह के हवन-पूजन के नाम चल रहे हैं, और इससे भी कारोबार फलेगा-फूलेगा। लोग दबी आवाज से यह भी बताने की कोशिश करते हैं कि देर रात पूजा करवाने कौन-कौन आकर बैठते हैं। देखते हैं कि किस पूजा का कितना असर होता है।
शराबबंदी मसले में बीच का रास्ता
काफी समय से उमा भारती मध्य प्रदेश की शराब नीति के खिलाफ आंदोलन पर थी। उनकी अगुवाई में शराब दुकानों में पत्थर और गोबर फेंके जा रहे थे। चुनावी साल में अपनी ही पार्टी की पूर्व मुख्यमंत्री ‘हिंदू’ छवि की फायर ब्रांड नेता का दबाव सरकार पर भारी पड़ रहा था। अब वहां नई नीति आ गई है। इसके अनुसार शराब दुकानों के ओपन बार (अहाता) बंद कर दिए जाएंगे। जिन दुकानों का भारी विरोध हुआ है, उनकी नीलामी नहीं की जाएगी और बार के नए लाइसेंस जारी नहीं होंगे। धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं से शराब दुकान की दूरी 50 मीटर से बढ़ाकर न्यूनतम 100 मीटर कर दी गई है। शराब पीकर वाहन चलाने वालों का लाइसेंस निलंबित किया जाएगा। वैसे भाजपा प्राय: शराबबंदी के पक्ष में नहीं रही। छत्तीसगढ़ में जब वह शराबबंदी के वायदे को पूरा करने की मांग पर आंदोलन करती है तो यह नहीं बताती कि क्या उनकी सरकार आएगी तो शराबबंदी होगी। भाजपा शासित गुजरात में शराबबंदी पहले से चली आ रही है। बिहार में जब वह साझा सरकार में थी तो यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का फैसला था। मध्यप्रदेश में भी उमा भारती ने पूरी तरह शराबबंदी की मांग नहीं की, बल्कि नियंत्रित बिक्री की मांग उठाई थी। उन्होंने अभियान का नाम ‘शराब छोड़ो, दूध पियो’ रखा था। अब नई नीति का उन्होंने स्वागत कर अपना आंदोलन वापस ले लिया है।
इधर एक के बाद जन घोषणा पत्र के बचे हुए वादों को पूरा करने की कोशिश करती दिख रही छत्तीसगढ़ सरकार शराबबंदी को लेकर अब तक असमंजस में है। मध्य प्रदेश का उदाहरण है। चाहे तो वह भी ऐसा कोई बीच का रास्ता निकाल सकती है। वहां शराबबंदी का वादा न होने के बावजूद बिक्री घटाने की कोशिश हो रही है। अपना प्रदेश तो सन् 2019 में पूरे देश में टॉप पर पहुंच गया था। अहाते एमपी में लाइसेंसी चल रहे हैं पर अपने यहां इनकी बोली आबकारी अफसर लगवा रहे हैं।
क्या खोना है, क्या पाना है..
केंद्र सरकार की इकाई कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने 1 सितंबर 2014 के बाद वाले कर्मचारियों के लिए रिटायरमेंट पर अधिक पेंशन की घोषणा की तो इसे खुशखबरी के तौर पर पेश किया गया। पर जब इसके नियम जारी हुए तो कर्मचारी ऊहापोह की स्थिति में आ गए। अपने वेतन से अधिक राशि ईपीएफओ में जमा करने पर मिलने वाला लाभ उसी अनुपात में होगा या नहीं वे हिसाब नहीं लगा पा रहे हैं। इसीलिए लाखों कर्मचारियों ने अब तक नया पेंशन लेने के विकल्प को भरकर नहीं दिया है। विकल्प आने वाले 10 दिन के भीतर बताना है। छत्तीसगढ़ में भी यही बवाल है। एक नवंबर 2004 के बाद नियुक्त कर्मचारियों को सरकार ने पुरानी पेंशन योजना का लाभ देने की घोषणा की। केंद्र ने पुरानी पेंशन योजना के तहत जमा फंड को देने से मना कर दिया तो पॉलिसी बदली। इस पॉलिसी को लेकर शिक्षकों में रोष है। उन्हें भी इसी महीने के अंत तक विकल्प भरकर देना है।
केंद्रीय बजट में दी गई आयकर छूट को लेकर भी लोग, केंद्र व राज्य सरकार के कर्मचारी असमंजस में हैं। पांच लाख से अधिक सालाना वेतन पर यदि वे पुराने स्लैब में रहेंगे तो कई तरह के निवेश पर छूट है पर जैसे ही 7 लाख से ऊपर वाला नया विकल्प चुनेंगे इन रियायतों से बाहर हो जाएंगे।
मोबाइल फोन में प्रि-पोस्ट प्लान के इतने ऑप्शन होते हैं कि लोग समझ नहीं पाते कि कौन सा किफायती है। रिचार्ज कराने के बाद समझ में आता है कि कुल मिलाकर फायदा तो नेटवर्क ऑपरेटर का ही है। पर इसमें जेब को नुकसान होता ही कितना है? यहां तो पेंशन स्कीन और इनकम टैक्स है, जिसे नहीं समझ पाना जीवन-मरण का सवाल है।
देहात का एक साप्ताहिक बाजार..
आटा, बेसन, शक्कर, गुड़ के पकवान। हाट मेलों में मल्टीनेशनल के खाद्य पदार्थ जरूर पहुंच गए हैं पर पारंपरिक व्यंजनों का क्रेज खत्म नहीं हुआ है। यह तस्वीर अमरकंटक की तराई पर स्थित एक गांव के साप्ताहिक बाजार से ली गई है।