राजपथ - जनपथ

ईडी पर कांग्रेस एक
ईडी की कार्रवाई के खिलाफ कांग्रेस में एकजुटता दिख रही है । अधिवेशन के बीच आपसी चर्चा में पार्टी के बड़े नेता उनका हालचाल भी ले रहे हैं, जिनको ईडी ने सर्च किया था। केसी वेणुगोपाल ने आते ही विकास उपाध्याय से पूछ लिया कि देवेन्द्र यादव का क्या हाल है? कोई समस्या तो नहीं है? विकास ने उन्हें नहीं कहा, तो संतुष्टिपूर्ण भाव प्रकट करते हुए कार में बैठ गए।
अधिवेशन स्थल पर कुछ बड़े नेताओं ने रामगोपाल अग्रवाल को देखकर हाल-चाल लिया। रामगोपाल निश्चिन्त नजर आए। हालांकि वो ज्यादातर समय होटल में ही रहे। कांग्रेस के तमाम बड़े नेता होटल में ही रूके। ऐसे में स्वाभाविक तौर पर रामगोपाल की पूछ-परख होती रही।
बिछे गुलाबों की चर्चा
मेयर एजाज ढेबर ने प्रियंका गांधी के स्वागत को यादगार बनाने के लिए सैकड़ों किलो गुलाब की पंखुडिय़ाँ सडक़ पर बिछवा दीं, लेकिन सोशल मीडिया में उन्हें खूब भला बुरा कहा जा रहा है। यहाँ तक कहा गया कि फूलों की पंखुडिय़ाँ सडक़ पर बिछाकर उनके ऊपर चलना चलाना प्रकृति की व्यवस्था के विरूद्ध है। जैन धर्म में तो इसे जीव हत्या तक माना गया है।
और तो और जब खुद ढेबर ने मल्लिकार्जुन खडग़े को पंखुडिय़ाँ बिछवाकर प्रियंका के स्वागत के स्वागत के बारे में बताया, तो खडग़े यह कह गए कि उसी सडक़ से गुजरे थे तब हमें कुछ नजर नहीं आया। तब ढेबर झेंप गए।
अबे...सुन बे गुलाब
कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में सडक़ पर गुलाब बिछाकर किए गए नेताओं के स्वागत की सराहना कम आलोचना ज्यादा हो रही है। लोग प्रख्यात कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता अबे..सुन बे गुलाब का भी जिक्र कर रहे हैं। उनकी कुछ लाइनें इस तरह से है- शाहों, राजों, अमीरों का रहा प्यारा/ तभी साधारणों से तू रहा न्यारा/ वरना क्या हस्ती है, पोच तू/ कांटों से ही भरा है, सोच तू।
कुछ लोगों की राय है कि गुलाब पर चलने से प्रियंका गांधी को खुद से ही मना कर देना था। पर, मुमकिन है पहले से उन्हें मालूम नहीं रहाहोगा। यह भी सलाह आई है कि सडक़ और पूरे अधिवेशन स्थल की फर्श को गोबर से पुताई करनी थी, तब अच्छा संदेश जाता कि यह किसानों का प्रदेश है और उनके बारे में सोचने वाली सरकार है। सोशल मीडिया पर एक ने यह भी कहा कि गुलाब तो 15 से 20 रुपये किलो में खरीदा गया होगा, टमाटर बिछा देते। किसानों को दाम नहीं मिल रहा है, 5 रुपये किलो में बेचकर कुछ लोग फायदा उठा लेते।
आने वाले हैं केजरीवाल
इस वर्ष के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में अगर कांग्रेस और भाजपा को कोई दल ठीक-ठाक तरीके से पूरे प्रदेश में चुनौती देने का दावा कर रही है तो वह आम आदमी पार्टी है। आप के राष्ट्रीय महासचिव राज्यसभा सदस्य डॉक्टर संदीप पाठक छत्तीसगढ़ के ही रहने वाले हैं। वे पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल के दौरे के बाद यहीं पर डेरा डालने वाले हैं। केजरीवाल ऐलान कर चुके हैं कि कर्नाटक, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में वह पूरी ताकत से मैदान में उतरेगी। वे 4 मार्च को कर्नाटक और 5 को छत्तीसगढ़ में रैलियां करने जा रहे हैं। 13 मार्च को राजस्थान और 14 को मध्य प्रदेश में सभाएं हैं। कांग्रेस ने साफ कह दिया है कि वह तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और भारत राष्ट्र समिति को भाजपा की मददगार मानती है। गुजरात के नतीजों से साफ हो गया कि आप ने वहां कांग्रेस को बेहद नुकसान पहुंचाया। सन् 2018 के चुनाव में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ को कांग्रेस ने भाजपा की बी टीम साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। आप को लेकर छत्तीसगढ़ में यदि यह नेरेटिव सेट नहीं हो पाया तो फायदा बीजेपी को ही होने वाला है। संकेत पहले सप्ताह में केजरीवाल के होने वाले दौरे के बाद ही मिलेगा।
एनपीएस पर और भरोसा नहीं..
नया या पुराना पेंशन स्कीम चुनने को लेकर आखिरी तारीख तक कर्मचारियों में असमंजस की स्थिति बनी रही। इस योजना में विकल्प भरने की आखिरी तारीख 24 फरवरी तय की गई थी, जिसे 5 मार्च तक अब बढ़ा दिया गया है। अभी पूरे प्रदेश से आंकड़े नहीं आए हैं कि कितने कर्मचारियों ने कोई विकल्प नहीं भरा, पर इनकी संख्या हजारों में हो सकती है। जिन लोगों ने विकल्प चुना उनमें से अधिकांश ने पुरानी पेंशन स्कीम को चुना है। केंद्र ने नेशनल पेंशन स्कीम में जमा राशि लौटाने से मना कर दिया है, इसलिए पुरानी पेंशन में भी 1985 के पहले से सेवा में आए कर्मचारी-अधिकारियों की तरह लाभ नहीं मिलेगा। इसके बावजूद नई पेंशन स्कीम में सिर्फ वे जा रहे हैं जिनकी कुल सेवा अवधि 10 साल से कम बची है। इनमें सन् 2018 से संविलियन के तहत शासकीय सेवा में आए करीब 1.5 लाख शिक्षक ज्यादा प्रभावित हुए हैं। वे 2012 से ओपीएस मांग रहे थे, क्योंकि एनपीएस में उनकी राशि उसी समय से कटने लगी थी। सरकार 2018 से देने जा रही है। नई पेंशन स्कीम में कर्मचारियों के काटे गए पैसों को शेयर बाजार में निवेश किया गया है। उनके पेंशन का निर्धारण शेयर बाजार में उनकी लगाई गई पूंजी के वास्तविक मूल्य के आधार पर किया जाएगा। कम लाभ की गुंजाइश होने के बावजूद ओल्ड पेंशन स्कीम का विकल्प भरने से एक बात साफ हो रही है कि कर्मचारी शेयर बाजार में किए गए निवेश को जोखिम भरा मान रहे हैं। जिस तरह से एलआईसी और एसबी जैसी संस्थाओं का निवेश अडाणी की कंपनियों के शेयरो में डूब गया है, अब तो उनको भरोसा करना और भी मुश्किल हो रहा है।