राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : बदले हुए राहुल का व्यक्तित्व
27-Feb-2023 3:47 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : बदले हुए राहुल का व्यक्तित्व

बदले हुए राहुल का व्यक्तित्व

कांग्रेस अधिवेशन में अपने भाषण को लेकर राहुल गांधी कांग्रेस के बाहर के लोगों की भी वाहवाही पा रहे हैं। बहुत से लोगों ने उनकी आज की सोच को चुनावी राजनीति से ऊपर की सोच कहा है। वे अब देश के व्यापक भले की बातें कर रहे हैं, जो कि कांग्रेस के निजी भले से बहुत ऊपर की हैं। इतनी सी बात देखकर बहुत लंबी-चौड़ी अटकल लगाना जायज तो नहीं है, लेकिन फिर भी राहुल का यह फर्क देखकर कुछ दूसरी बातों से उसे जोडऩे की इच्छा होती है।

चार-पांच महीनों की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल ने देश भर के लोगों की तकलीफों को भी करीब से देखा है, और अपनी 50 साल की उम्र में वे जितने लोगों से नहीं मिले होंगे, उतने लोगों से इन महीनों में ही मिल लिए हैं। ऐसा लगता है कि लोगों का दुख-दर्द देखकर उनका मन चुनावी राजनीति, और संगठन की राजनीति से ऊपर उठ गया है, और अब वे राष्ट्रीय जनकल्याण के मुद्दों पर सोचने और बोलने लगे हैं। जब उनमें दिख रहे ऐसे फेरबदल के बारे में सोचें, तो यह भी याद पड़ता है कि राहुल गांधी ने कडक़ड़ाती ठंड में भी जिस तरह सिर्फ एक टी-शर्ट में मौसम की मार को बर्दाश्त किया, वह भी एक अधिक ऊंचे दर्जे का आत्मिक नियंत्रण दिख रहा था। भारत जोड़ो यात्रा में उनके साथ पूरे वक्त चले हुए एक यात्री ने कहा कि वे यात्रा पूरी होने तक तरह-तरह की धार्मिक और आध्यात्मिक बातों में भी दिलचस्पी ले रहे थे। क्या इसे उनसे मिलने वाले दसियों हजार लोगों की तकलीफ देखकर प्रभावित मानसिकता कहा जाए? दुनिया के कई लोग दूसरों के दुख को देखकर सन्यास की तरफ जाते हुए भी इतिहास में दर्ज हुए हैं।

बहुत दूर की कल्पना करने पर यह भी लगता है कि क्या राहुल गांधी सचमुच ही अब संगठन की राजनीति से, चुनाव प्रचार से ऊपर उठ चुके हैं क्योंकि उन्होंने हिमाचल और गुजरात के चुनावों में दिलचस्पी नहीं ली, और न ही आज हो रहे मेघालय और नागालैंड के चुनाव में। राहुल के व्यक्तित्व और उनके कामकाज में आया यह बड़ा फेरबदल आने वाले वक्त में उनके दूसरे फैसलों के साथ मिलकर एक विश्लेषण का सामान जरूर बनेगा।

प्रियंका के बाद भीड़ रवाना

एआईसीसी अधिवेशन के बाद जोरा की सभा में सोनिया और राहुल गांधी शामिल नहीं हो पाए। दरअसल, सोनिया गांधी की तबियत ठीक नहीं थी। बावजूद इसके वो तीनों दिन अधिवेशन में रहीं।
सुनते हैं कि सोनिया और राहुल के साथ प्रियंका गांधी भी जाने वाली थीं लेकिन प्रदेश प्रभारी शैलजा और सीएम भूपेश बघेल ने उन्हें रोक लिया, और सभा को संबोधित करने राजी किया। और फिर प्रियंका के उद्बोधन के बाद तो आधी भीड़ चली गईं। राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े के भाषण के मौके पर तो मैदान पर गिनती के लोग ही रह गए थे।

प्रियंका के लिए प्लेन रुका

सोनिया गांधी, और राहुल के साथ प्रभारी महासचिव के.सी. वेणुगोपाल भी विशेष प्लेन से दिल्ली निकल गए। इसके बाद प्रियंका गांधी, हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के साथ चार्टर प्लेन से रवाना हुई।
बताते हैं कि हुड्डा हरियाणा के विधायकों को साथ लेकर आए थे। बाद में प्रियंका की वापिसी का कार्यक्रम तय हुआ तो उनके लिए जगह बनाने हरियाणा के कुछ नेताओं को रोक दिया गया। हरियाणा के ये नेता बाद में अगली फ्लाइट से दिल्ली निकले।

किसी मंत्री को मौक़ा नहीं  

एआईसीसी अधिवेशन में सरकार के किसी भी मंत्री को उद्बोधन का मौका नहीं मिला। जबकि बाकी राज्यों के कई छोटे नेता संबोधन का मौका पा गए। छत्तीसगढ़ से सीएम भूपेश बघेल, प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम के अलावा युवक कांग्रेस नेता सुबोध हरितवाल ही अकेले थे जिन्हें अधिवेशन में अपनी बात रखने का मौका मिला।

दिलचस्प बात यह है कि कार्यक्रम का संचालन बीके हरिप्रसाद कर रहे थे जो कि लंबे समय तक छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी रहे हैं और वो यहां के तमाम छोटे-बड़े नेताओं से परिचित हैं। टीएस सिंहदेव, और ताम्रध्वज साहू तो पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदारी निभा चुके हैं। उन्हें भी संबोधन का मौका न मिलना, कांग्रेसजनों के बीच चर्चा का विषय है। सरकार के मंत्री मंच पर चौथी पंक्ति में बैठकर भाषण सुनते नजर आए।

मरकाम का नाम

एआईसीसी अधिवेशन में मोहन मरकाम ने तो अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई। उन्हें उद्घाटन भाषण देने का मौका भी मिला। मगर सोनिया गांधी को छोडकऱ कोई भी नेता उनके नाम का सही उच्चारण नहीं किया। प्रदेश प्रभारी से लेकर अन्य राष्ट्रीय नेता उन्हें मारकम-मारकम ही कहते रहें। अकेले सोनिया गांधी ही थीं जिन्होंने अपने उद्बोधन में उन्हें स्पष्ट रूप से मोहन मरकाम कहा।

अधिवेशन के बाद जवाबदेही खत्म

कांग्रेस के तीन दिन के अधिवेशन से छत्तीसगढ़ सरकार और यहां की कांग्रेस पार्टी पर छाया हुआ ईडी का खतरा कम तो नहीं हुआ है, लेकिन उससे इस राज्य की सत्ता और उसके संगठन पर से दबाव हट गया है। पार्टी के भीतर राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ की अगर कोई जवाबदेही ईडी के आरोपों को लेकर बनती भी थी, तो भी वह अब इस अधिवेशन के बाद खत्म हो गई है क्योंकि पार्टी ने औपचारिक रूप से यह मान लिया है, और कह दिया है कि मोदी सरकार अपनी जांच एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्षी पार्टियों, उनकी सरकारों, और उनके नेताओं के खिलाफ साजिश के तहत कर रही है। इतने अधिक नेताओं ने इतनी बार यह बात कह दी, कि अब छत्तीसगढ़ के मामलों को लेकर दिल्ली में कोई चर्चा होने की आशंका अब नहीं रह गई है। फिर कल जिस तरह दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सीबीआई ने शराब-मामले में गिरफ्तार किया है, उससे घायल आम आदमी पार्टी भी मोदी सरकार पर तगड़ा हल्ला बोल चुकी है, और ऐसे में दूसरे प्रदेशों में केन्द्रीय एजेंसियों की कार्रवाई की साख को आम आदमी पार्टी तो खारिज कर ही चुकी है। अब एक-एक करके देश के तमाम गैरविपक्षी दल मोदी सरकार की जांच एजेंसियों का निशाना बन चुके हैं, और इसलिए कोई भी सरकार अब इन एजेंसियों की चार्जशीट के नैतिक दबाव में नहीं हैं। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि सितंबर 2022 तक डीएमके के 6, बीजू जनता दल के 6, सपा के 5, बसपा के 5, आप के 3, वाईएसआरसीपी के 3, आईएनएलडी के 3, सीपीएम के 2, पीडीपी के 2, और टीआरएस, एआईएडीएमके, एमएनएस के एक-एक नेता के खिलाफ केन्द्रीय जांच एजेंसियां जांच कर रही हैं। इस लिस्ट में ममता की टीएमसी के कई नेताओं के नाम नहीं हैं जो कि गिरफ्तार होकर जेल में भी हैं, लालू की पार्टी के खिलाफ तो अदालतों से सजा होती ही जा रही है, महाराष्ट्र में एनसीपी के कितने ही नेता गिरफ्तार किए गए हैं, शिवसेना के एक बड़े नेता संजय राऊत गिरफ्तार हो चुके हैं, इस लिस्ट में नेशनल कांफ्रेंस का नाम भी नहीं है जिसके बड़े नेताओं पर छापे पड़ चुके हैं। जब हर विपक्षी दल निशाने पर है, तो छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार और पार्टी की जवाबदेही भी खत्म हो जाती है।

अंबानी ड्रॉप, फोकस अदाणी पर

कांग्रेस के रायपुर राष्ट्रीय अधिवेशन के बाद इस बात की ओर लोगों का ध्यान जा रहा है कि पहले राहुल गांधी और पार्टी के तमाम नेता हम दो (मोदी, शाह), हमारे दो (अदाणी, अंबानी) की बात करते थे लेकिन अब अंबानी को बख्श दिया गया है। वजह साफ है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद देश दुनिया का ध्यान सिर्फ अडाणी के व्यापारिक साम्राज्य को मिल रही सरकारी मदद की तरफ केंद्रित हो गया है। अडाणी, अंबानी को एक तराजू में कम से कम इस मौके पर तौला जाना सही नहीं होगा।

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