राजपथ - जनपथ

माणिक साहा आकर लौट गये !
विधानसभा चुनाव निपटने के बाद दो दिन पहले त्रिपुरा के सीएम माणिक साहा निजी प्रवास पर रायपुर आए, और भिलाई में अपनी पुत्री से मिलने गए। उनके आने की खबर कुछ भाजपा नेताओं पर पहुंची। पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह ने उन्हें फोनकर अपने घर आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया। साहा ने उनसे कहा कि वो पारिवारिक काम से आए हैं, और तुरंत चले जाएंगे। अगले प्रवास में सबसे मिलने आएंगे।
साहा से एयरपोर्ट के वीआईपी लाउंज में पार्टी के प्रोटोकॉल से जुड़े एक नेता ने मुलाकात की। उनसे त्रिपुरा में चुनावी संभावनाओं पर बात की। साहा आश्वस्त है कि त्रिपुरा में भाजपा की सरकार रिपीट होगी। उनका अनुमान है कि 60 सीटों में से 38 से 40 तक सीटें भाजपा को मिल सकती हैं।
पार्टी नेता यह जानकार हैरान रह गए कि साहा का कुल राजनीतिक कैरियर ही मात्र 6 साल का है। इस दौरान उन्हें राज्यसभा में भी भेजा गया था। लेकिन तीन दिनों के भीतर उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा गया, और फिर त्रिपुरा का सीएम बना दिया गया। साहा की पहचान त्रिपुरा में एक अच्छे चिकित्सक की है। पार्टी ने उनकी छवि को ध्यान में रखकर सीएम का दायित्व सौंपा है। एग्जिट पोल के नतीजे भी साहा की उम्मीदों के आसपास बता रहे हैं। आगे क्या होता है यह तो 2 तारीख को चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
जालसाजी और रफ्तार
छत्तीसगढ़ में बिलासपुर पुलिस ने अभी लोगों को धोखा देने वाला एक सेमीनार चलते हुए रोका। यह एक चीनी मोबाइल ऐप की मार्केटिंग का सेमीनार था, जिसका नाम दस बिलियन ऑनलाईन है। इसमें लोगों को दो सौ दिनों में पैसा दुगुना करने का झांसा दिया जा रहा था। पुलिस जितने किस्म के झांसे पकड़ सकती है, उससे अधिक किस्म के झांसे पैदा होते रहते हैं। अब अभी इस अखबार के एक मोबाइल नंबर पर एक संदेश आया कि फलाने ऐप पर जमा किया गया फॉर्म मिल गया है, और आगे के लिए उसका रिफ्रेंस नंबर यह है। अब दिक्कत यह है कि जिस फोन पर यह संदेश आया है उसके नंबर से कोई फॉर्म जमा नहीं किया गया है। बहुत से लोग आए हुए ऐसे मैसेज के साथ किसी ईनाम का जिक्र होने पर उसका लिंक खोल लेते हैं, और उसके साथ ही उनके मोबाइल पर दर्ज बैंक या किसी और पेमेंट एप्लीकेशन के पासवर्ड खतरे में पड़ जाते हैं। बिलासपुर पुलिस ने जिस तेजी से ऐसे मार्केटिंग सेमीनार के बीच लोगों को पकड़ा है, पुलिस की वैसी ही रफ्तार ऑनलाईन जालसाजी को रोकने के लिए जरूरी है।
75 साल पुरानी फिल्म में बूढ़ा तालाब
रायपुर के बीचो-बीच स्वामी विवेकानंद सरोवर जिसे ज्यादातर लोग बूढ़ा तालाब के नाम से जानते हैं, के साथ कई ऐतिहासिक यादें जुड़ी हुई हैं। करीब 600 साल पहले कलचुरी शासकों ने तालाब और साथ के महाराज बंध को विकसित किया था। स्वामी विवेकानंद ने रायपुर में काफी समय बिताया। यहां पर वे घंटों बैठकर ध्यान करते थे। बताते हैं कि पहले यह तालाब पुलिस लाइन तक फैला हुआ था लेकिन धीरे-धीरे हुए निर्माण कार्यों के चलते सिमटता गया। आज ट्विटर पर एक छोटी सी वीडियो क्लिप मिली, जिसमें एक किरदार राज कपूर को बता रहा है कि- मैं रायपुर से आया हूं और हम बचपन में बूढ़ा तालाब में मछलियां मारा करते थे।
इंटरनेट पर ही खंगालने से पता चला कि यह सन् 1948 में आई प्रेम त्रिकोण पर आधारित फिल्म गोपीनाथ का सीन है। शुरुआती 10 मिनट में ही बूढ़ा तालाब रायपुर का जिक्र आ जाता है। फिल्म में राज कपूर, तृप्ति मित्रा, लतिका, अनवरी, सचिन घोष, महेश कौल आदि ने अभिनय किया है। फिल्म महेश कौल और बृज किशोर अग्रवाल ने बनाई थी। संवाद राज कपूर, सचिन घोष और अनवरी के बीच का है।
लाल हो गए अफसर, उजाड़ हो गया गांव
बस्तर जिला मुख्यालय के करीब पिछले साल 45 लाख रुपए खर्च करके एक गांव बसाया गया था ताकि एक ही जगह पर पर्यटकों को बस्तर की संस्कृति और रहन-सहन के बारे में जानकारी मिल सके। इसे आसना पार्क नाम दिया गया। गुणवत्ता विहीन काम और देखरेख के अभाव में यह अब उजाड़ हो चुका है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से इस पार्क का उद्घाटन कराया गया था। साल भर बीत गए कोई पर्यटक यहां झांकने नहीं पहुंचा। वन विभाग के अधिकारी कर रहे हैं इसके मेंटेनेंस के लिए और बजट मांगा गया है। इसका यह मतलब है कि पिछले खर्च की किसी पर जवाबदेही नहीं और नए खर्च की तैयारी।
इतने भी नहीं घिसने पड़े जूते
बतौली सरगुजा जिले का छोटा सा गांव है जहां से निकले प्रकाश गर्ग ने एक अलग तरह की हुनर से पहचान बना ली है। उन्होंने बिलासपुर में इंजीनियरिंग की, लेकिन शौक पेंटिंग का था इसलिए इसी में रम गए। आदिवासी बच्चों को इस कला में पारंगत करने की कोशिश कर रहे हैं। इन दिनों उनकी पेंटिंग से बॉलीवुड के कुछ कलाकारों के बंगले सजाए जा रहे हैं। विदेशों में भी इनकी पेंटिंग की मांग हो रही है। एक प्रोजेक्ट में उन्हें 5 से 10 लाख रुपए मिल जाते हैं। यह सब बातें मीडिया में जरूर आनी चाहिए। मगर अभी एक पोस्ट में प्रकाश ने इस बात पर एतराज किया है कि खबर को संवेदनात्मक बनाने के लिए झूठी बात की जा रही है। दरअसल एक अखबार में छाप दिया कि जिसके पिता कभी साइकिल मैकेनिक थे, आज उनकी पेंटिंग की मांग विदेशों में हो रही है। प्रकाश का कहना है हमारे पिता व्यवसायी हैं। उनकी साइकिल दुकान तो है मगर वे साइकिल बेचते हैं। हमें पिता ने नाजों से पाला है और उन्हें कभी साइकिल की मरम्मत करने की मजबूरी नहीं आई।
यह कैसा कौशल विकास?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को सामने रखकर कुछ साल पहले कौशल विकास योजना शुरू की गई थी। अचानक प्रदेश में कौशल विकास केंद्रों की बाढ़ आ गई। समझदार लोग सरकारी योजनाओं से व्यापार धंधे का रास्ता निकालते ही हैं। अनुदान और प्रोत्साहन मिला तो धड़ाधड़ कौशल विकास केंद्र खुले। युवाओं को रोजगार देने का दावा किया गया था। अब जो आंकड़ा सरकार के पास आया है उसके मुताबिक बीते 5 सालों में करीब 4 लाख युवा प्रशिक्षित हो चुके हैं लेकिन उनमें से केवल 10 हजार को नौकरी मिल पाई है। दावा हर साल 50 हज़ार लोगों को नौकरी देने का था। रोजगार कार्यालयों में समय-समय पर प्लेसमेंट मेले लगाए जाते हैं। पर युवाओं का उनसे मोहभंग हो चुका है। बेहद कम तनख्वाह और नौकरी के स्थायी नहीं होने की वजह से। हाल ही के मेगा भर्ती अभियान में देखा गया कि जितने पोस्ट थे, उतने युवा भी नौकरी मांगने नहीं आए। इन सब के बावजूद इस बार भी 18 करोड़ रुपए का बजट राज्य में युवाओं को ट्रेनिंग देने के लिए रखा गया है। सरकार योजनाओं की समीक्षा तो करे। अब तक जो युवा ट्रेनिंग ले चुके हैं उनका क्या हाल है पता करें। कहीं मनरेगा और गोबर बीनने का काम तो नहीं कर रहे हैं?