राजपथ - जनपथ

सत्र खत्म होने का इंतजार!
पिछले कुछ बरस से छत्तीसगढ़ में विधानसभा के सत्र घोषित दिनों तक नहीं चल पाते, और बार-बार समय के पहले सत्रावसान हो जाता है। इस बार तो कुछ गजब ही हो गया, इस बार सत्र शुरू ही हुआ है, और यह चर्चा होने लगी कि यह कब खत्म होगा। प्रतिपक्ष के नेता नारायण चंदेल पार्टी के ही कुछ अधिक मुखर और आक्रामक विधायकों के मुकाबले कमजोर पड़ते हैं, और सदन के भीतर और बाहर बृजमोहन अग्रवाल ही अघोषित नेता प्रतिपक्ष की तरह काम करते दिख रहे हैं। अभी सदन से एक दिन तो ऐसा बहिर्गमन हुआ कि जिसमें बृजमोहन की अगुवाई में बाकी लोग पहले निकल गए, और नेता प्रतिपक्ष रह गए, जिनके सामने सदन छोडक़र जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। अब विधानसभा का अगला चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहा है, वैसे-वैसे विधायकों को मुखर होकर मीडिया के सामने आने की रणनीति सूझ रही है। बृजमोहन अग्रवाल वैसे भी पूरे प्रदेश के मीडिया के सबसे पसंदीदा नेता हैं, और अगर वे इसी तरह सक्रिय रहे, तो भाजपा के किसी और नेता के लिए संभावना कम ही बचेगी।
विधानसभा सत्र विपक्ष के लिए महत्व का मौका रहता है, और अगर इन दिनों में सरकार को घेरकर उसके लिए परेशानी खड़ी करने का काम नहीं हो पा रहा है, तो यह विपक्ष की कमजोरी के अलावा कुछ नहीं है। अब देखना है कि यह सत्र समय के कितने दिन पहले खत्म होता है।
काम न करना अधिक फायदे का?
कल के बजट में मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री भूपेश बघेल ने जैसे ही शिक्षित बेरोजगारों को ढाई हजार रूपया महीना बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा की, तो सोशल मीडिया पर एक लतीफा चल निकला कि अब स्कूलों के स्वीपर और रसोईये काम छोडक़र बेरोजगारी भत्ता लेने लगेंगे क्योंकि वह काम करने के मुकाबले दुगुने फायदे का काम होगा। स्वीपर और रसोईये को शायद बारह सौ रूपये महीने मिलते हैं, और शिक्षित बेरोजगार को ढाई हजार रूपये महीने मिलेंगे।
मानदेय बढ़ाने के लिए आंदोलन कर रहे लाखों कर्मचारियों वाले कई तबकों को कल के बजट में जिस तरह फायदा दिया गया है, उससे दसियों लाख वोटरों की नाराजगी आने वाले चुनाव में दूर होने का आसार है। अब देखना यह है कि इस बजट के बाद और कितने तबके ऐसे बचते हैं जिनकी मांगें अभी पूरी नहीं हुई हैं।
प्रभारी खफा हैं?
चर्चा है कि प्रदेश प्रभारी ओम माथुर रायपुर संभाग के संगठन पदाधिकारियों से काफी खफा हैं। उन्होंने पिछले दिनों संभाग के प्रमुख नेताओं की बैठक ली थी, लेकिन इस बैठक में एक-दो जिले के अध्यक्ष ही गायब थे। यही नहीं, कुछ सीनियर नेताओं की गैर मौजूदगी को भी माथुर ने गंभीरता से लिया। उन्होंने अपना गुस्सा संभागीय प्रभारी सौरभ सिंह पर निकाला। माथुर ने कहा बताते हैं कि भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति हुई, तो ऐसे पदाधिकारियों को बक्शा नहीं जाएगा।
परमानेंट तनातनी
विधानसभा का शायद ही ऐसा कोई सत्र होगा, जब सदन के भीतर पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, और डॉ. शिवकुमार डहरिया के बीच तनातनी नहीं हुई हो। एक बार तो समूचे भाजपा सदस्यों ने डॉ. डहरिया से सवाल पूछने से मना कर दिया था। बाद में आसंदी के हस्तक्षेप के बाद विवाद शांत हुआ। मगर इस सत्र में जब नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. डहरिया अपने विभागों के सवाल का जवाब दे रहे थे। तब भी पहले जैसी स्थिति निर्मित हो गई। पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने तो तैश में आकर कह दिया कि मंत्री जी को बात करने का सलीका नहीं है। मगर इस बार डहरिया के पक्ष में बृहस्पत सिंह और अन्य सत्ता पक्ष के सदस्य खड़े हो गए। ऐसे में चंद्राकर और बाकी भाजपा सदस्य ज्यादा प्रतिकार नहीं कर सके, और संतोष जनक जवाब नहीं आने को कारण बताकर वॉकआउट कर दिया।
लाइट मेट्रो ट्रेन कैसी होगी?
नवा रायपुर तक रेलवे लाइन बिछाने और स्टेशन के निर्माण का काम लगभग पूरा हो चुका है लेकिन योजना 2 साल पीछे चल रही है। अब अधिक व्यावहारिक योजना छत्तीसगढ़ सरकार लेकर आई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कल बजट भाषण में नवा रायपुर से दुर्ग तक लाइट मेट्रो रेल सेवा शुरू करने की घोषणा की है। अभी इस प्रोजेक्ट पर विस्तार से जानकारी आनी बाकी है कि इस पर डीपीआर कब बनेगा, कितना खर्च होगा और कार्य कब तक पूरा होगा। लेकिन जब भी होगा बरसों से वीरान पड़ी राजधानी में चहल पहल बढ़ेगी और जिन कस्बों से पटरियां पार होगी उनका भी विकास होगा। इस समय दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के उन हिस्सों पर जहां पर मेट्रो रेल नहीं पहुंच पाई है लाइट मेट्रो चलाने की योजना पर काम हो रहा है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, प्रयागराज, मेरठ, वाराणसी जैसे शहरों में भी यह परियोजना आ रही है। लाइट मेट्रो मौजूदा सडक़ के समानांतर बिछाई जाने वाली पटरी पर चलती है। दो या तीन बोगियां होती हैं, अधिकतम तीन सौ यात्री सफर कर सकते हैं। बस स्टैंड की तरह ही इसका स्टेशन होता है। जहां फुटपाथ और सडक़ की चौड़ाई कम होगी, सिर्फ वहीं पर भूमिगत पटरियां बिछाई जाती है। घोषणा हुई है तो जाहिर है देर सबेर काम शुरू होगा ही। भविष्य में लाखों लोगों को यातायात की सुलभ सुविधा मिलेगी। फिलहाल तो नवा रायपुर स्टेशन को पुराने शहर से जोडऩे में ही फंड की कमी दिखाई दे रही है।
परीक्षा के बीच डीजे का शोर
डीजे का शोर शराबा रोकने के मामलों में पुलिस चेहरा देखकर काम करती है। खबर है कि राजधानी के साइंस कॉलेज में छात्रों की परीक्षा चल रही थी और हॉस्टल में होली मिलन के दौरान तेज आवाज में डीजे बज रहा था। परीक्षा हाल से निकलकर छात्रों ने डीजे बंद करने के लिए कहा तो दोनों गुटों में विवाद हो गया और वहां फोर्स तैनात करनी पड़ी। पुलिस ने बड़ी नरमी बरती। जिला प्रशासन के आदेश का पालन किया जाता तो डीजे जब्त किया जाता और कोलाहल अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाती, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। डीजे बजाने के लिए कोई अनुमति भी नहीं ली गई थी। मामले में कुछ राजनीति भी होने लगी है। परीक्षा देने वाले छात्रों का कहना है कि कार्रवाई नहीं होने पर आंदोलन करेंगे। होली के मौके पर पुलिस शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए तमाम तरह के निर्देश जारी करती है, असामाजिक तत्वों की धरपकड़ में भी लगी रहती है, पेट्रोलिंग करती है- पर ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ जागरूक करने का अभियान इनमें शामिल नहीं है, जबकि इसी के नाम पर मारपीट की कई घटनाएं हो जाती हैं।
गोदना में आंध्र यूनिवर्सिटी की दिलचस्पी
गोदना बस्तर की संस्कृति का हिस्सा है। यह यहां की उन विविध कलाओं में से एक है जो तेजी से लोकप्रिय होती जा रही है। गोदना, जिसे नई पीढ़ी टैटू के नाम से जानती है ,के पंडाल पर बस्तर के बीते राज्योत्सव में भारी भीड़ थी। इनमें युवाओं की संख्या ज्यादा थी। बस्तर पहुंचने वाले विदेशी सैलानियों में भी बस्तर की टैटू को लेकर खासा आकर्षण होता है। बस्तर के आदिवासियों के इस पारंपरिक ज्ञान को सीखने के लिए अब उच्च-शिक्षा संस्थानों में भी दिलचस्पी दिखाई दे रही है। बस्तर के टैटू बॉय के रूप में पहचान रखने वाले धनुर्जय को आंध्रप्रदेश के वीआईटी यूनिवर्सिटी ने बुलाया है। वे वहां एक कार्यशाला रखेंगे और व्याख्यान देंगे। वहां के युवा बस्तर आकर टैटू को सीखने की कोशिश कर चुके हैं। छात्रों के अलावा प्रोफेसर भी इसमें शामिल होंगे।