राजपथ - जनपथ

ताकतवर सोहन पोटाई का सफर
जुझारू आदिवासी नेता सोहन पोटाई होली के अगले दिन गुजर गए। कांकेर से चार बार के सांसद पोटाई भाजपा से अलग होने के बाद सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले सामाजिक, और राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे थे। पोटाई की हैसियत का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके पार्टी छोडऩे के बाद से विशेषकर कांकेर जिले की विधानसभा सीटों पर भाजपा लगातार हारती चली गई।
पोटाई सक्रिय राजनीति में आने से पहले कांकेर के कोरर इलाके के डाकघर में सहायक पोस्टमास्टर थे। तब बस्तर के संगठन मंत्री की पहल पर नौकरी छोड़ दी, और भाजपा में शामिल हो गए। उन्हें लोकसभा प्रत्याशी बनाया गया। पहला चुनाव तो हार गए, लेकिन वर्ष-1998 में दिग्गज पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम को हराकर पहली बार सांसद बने। फिर उन्होंने पीछे पलटकर नहीं देखा, और भाजपा की टिकट पर लगातार चार बार सांसद बने।
उनसे जुड़े लोग बताते हैं कि पोटाई की पार्टी से कोई नाराजगी नहीं थी। उनका गुस्सा आईपीएस मुकेश गुप्ता को लेकर रहा जो कि रमन राज में बेहद पावरफुल थे। जोगी सरकार में भाजपाईयों पर लाठी चार्ज कराने वाले मुकेश गुप्ता को महत्व मिलने से काफी खफा थे। उन्होंने नंदकुमार साय के साथ कई बार पार्टी फोरम में अपनी बात रखी। धीरे-धीरे वो सौदान सिंह से भी खफा हो चले थे। पार्टी ने उनकी टिकट काटकर विक्रम उसेंडी को प्रत्याशी बनाया, तो भी वो खामोश रहे। बाद के अंतागढ़ उपचुनाव में भोजराज नाग को जीताने में भरपूर योगदान दिया।
उपचुनाव के बाद सोहन पोटाई धीरे-धीरे हाशिए पर चले गए, और फिर पार्टी नेताओं के खिलाफ सार्वजनिक बयानबाजी पर निलंबित कर दिए गए। फिर उन्होंने खुद होकर पार्टी छोड़ दी । पोटाई के पार्टी छोडऩे का नुकसान इतना ज्यादा हुआ कि कांकेर जिले की तीनों विधानसभा सीट भाजपा हार गई। यद्यपि उन्हें पार्टी में लाने की कोशिशें भी हुई। बताते हैं कि छह साल पहले आरएसएस के प्रांत प्रमुख बिसरा राम यादव भी गुपचुप तौर पर उनसे मिले थे, और उन्हें भाजपा में शामिल होने का न्यौता दिया था। लेकिन पोटाई तैयार नहीं हुए, और फिर वर्ष-2018 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ी, और आदिवासी मामलों को लेकर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोला। इसका सीधे-सीधे फायदा कांग्रेस को मिला।
कांकेर लोकसभा की सभी 8 सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। उनके आदिवासियों के मुद्दों को लेकर मौजूदा भूपेश सरकार से भी ठन गई, और उन्होंने सर्व आदिवासी के बैनर तले लड़ाई जारी रखी। कुछ समय पहले उनके नेतृत्व वाले सर्व आदिवासी समाज के प्रत्याशी ने भानुप्रतापपुर उपचुनाव में 23 हजार वोट बंटोरकर सबको हैरत में डाल दिया था। भाजपा को तो भारी नुकसान हुआ। इस दौरान सोहन पोटाई कैंसर से पीडि़त हो गए। उन्हें देखने के लिए तत्कालीन राज्यपाल अनुसुइया उइके कई बार एम्स भी गई थीं। और फिर होली के अगले दिन उनकी सांसें थम गई। उनके गुजरने से सर्व आदिवासी समाज को भी नुकसान हुआ है।
नफा-नुकसान का गणित
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने अपने इस कार्यकाल का आखिरी बजट पिछले दिनों पेश किया। चुनावी साल में बजट पर सभी निगाहें थी। लोगों को उम्मीद थी कि बजट लोकलुभावन होगा, लेकिन चुनावी बजट की अपेक्षा पाल रहे लोगों को निराशा हुई। आमतौर पर चुनावी साल के बजट में हर वर्ग के लिए दिल खोलकर प्रावधान करने की संभावना रहती है, लेकिन मुख्यमंत्री ने आर्थिक संतुलन पर जोर दिया है।
विपक्ष के नेता आरोप लगा रहे हैं कि सरकार ने घोषणापत्र के कई बिंदुओं को बजट में छुआ तक नहीं है। ऐसे में वे वादाखिलाफी का आरोप लगा रहे हैं। खैर, सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप तो चलता ही है और चुनावी साल में तो इसकी झड़ी लग जाती है, लेकिन जानकारों का मानना है कि मुख्यमंत्री जिस तरह विपक्षी पार्टी बीजेपी से उनके मुद्दे छीनने जा रहे हैं, वैसे ही आने वाले दिनों में वे बची-कुछी कसर भी पूरा कर सकते हैं। दावा किया जा रहा है कि चुनाव से चंद महीने पहले मुख्यमंत्री अपना पिटारा खोल सकते हैं । सत्तारूढ़ पार्टी की योजना है कि पहले से सब कुछ करने से सियासी लाभ अपेक्षाकृत कम मिलता है। ऐसे में चुनाव से ठीक पहले ऐसी घोषणाएं की जाए, ताकि उसका पूरा सियासी लाभ मिले। साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने ऐसे ही वादों की झड़ी लगाकर बंपर जीत हासिल की थी। अब देखना होगा कि जनता वादों की झड़ी पर भरोसा करती है या काम पर।
नाकाम, बेबस दिखी होली पर पुलिस
होली पर्व पर रंगों के साथ साथ खून भी खूब बहा। रायपुर महासमुंद, भिलाई, बिलासपुर आदि से इन 2 दिनों में मर्डर के 6 मामले सामने आए हैं। छत्तीसगढ़ के दूसरे जिलों का आंकड़ा सामने आएगा तो यह संख्या और भी बढ़ सकती है। चाकूबाजी की भी अनेक घटनाएं हुई है। इसी तरह सडक़ दुर्घटनाओं में 1 दर्जन से अधिक लोगों की मौत हुई है जिनमें से ज्यादातर बाइक सवार हैं। जो हत्याएं हुई है उनमें पुरानी रंजिश के मामले शामिल है। इनमें वे भी मामले हैं जिनमें हत्या का प्रयास का केस पुलिस ने दर्ज किया और आरोपी जमानत लेकर बाहर हैं। हर शहर से पिछले 8-10 दिन तक पुलिस असामाजिक तत्वों की धरपकड़ कर प्रतिबंधात्मक धाराओं के तहत गिरफ्तारी की खबरें देती रही। मगर पुलिस उन लोगों की पहचान नहीं कर पाई जो मर्डर और चाकूबाजी जैसे अपराधों को अंजाम दे सकते थे। प्राय: सभी सडक़ दुर्घटनाओं में शराब पीकर अनियंत्रित रफ्तार से बाइक चलाने की बात सामने आई है। बाकी दिनों में पुलिस नशे में वाहन चलाने वालों के खिलाफ चौक-चौराहे पर चेकिंग अभियान चलाती है लेकिन होली के दिन ऐसा लग रहा था मानो लोगों को पूरी तरह छूट दे दी गई है। इतनी ज्यादा सडक़ दुर्घटनाएं एक ही दिन हुई और सख्ती नहीं बरतने के कारण बाइक सवारों को अपनी जान गंवा देनी पड़ी। हो सकता है कि पुलिस ने होली की खुशी में खलल नहीं डालने के मकसद से कार्रवाई नहीं की, लेकिन इस शिथिलता से कई परिवार उजड़ गए।
ईडी दफ्तर के बाहर रंग-गुलाल
ईडी और सीबीआई जिस तरह से रोज-रोज विपक्षी दलों के नेताओं को पूछताछ के लिए बुलाने लगी है, उससे इनका खौफ लोगों के दिमाग से हटता जा रहा है। शायद आने वाले वक्त में ईडी और लोकल पुलिस के बुलावे के बीच कोई फर्क नजर नहीं आएगा। कुछ लोग तो मानसिक रूप से इस बात के लिए भी तैयार है कि दो 4 महीने के लिए जेल ही जाना पड़ेगा और क्या होगा? भिलाई के विधायक देवेंद्र यादव को ईडी ने रायपुर स्थित कार्यालय में बयान दर्ज करने के लिए मंगलवार को बुलाया था। पूछताछ के बाद जब विधायक दफ्तर से बाहर आए तो उनके समर्थक रंग गुलाल लेकर खड़े थे। विधायक ने वहीं उनके साथ होली खेली और गाना गाया-रंग बरसे भीगे चुनरवाली...।
राहुल के लिए आवास की मांग
रायपुर के कांग्रेस अधिवेशन में भाषण के दौरान राहुल गांधी ने जिक्र किया था कि उनके पास अपना एक मकान भी नहीं है। बीजेपी राहुल गांधी का जनाधार नहीं मानती, उसके बावजूद वह उनके एक-एक बयान की चीरफाड़ करने में लगी रहती है। दिल्ली या रायपुर नहीं, अब गांव-कस्बे के कार्यकर्ता भी यही काम कर रहे हैं। ताजा मामला नवागढ़ के एक भाजपा नेता का है। उन्होंने एसडीएम को लिखी एक चिट्ठी वायरल की है, जिसमें कहा है कि गरीब राहुल गांधी के पास अपना मकान नहीं है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उनको शासकीय जमीन आवंटित किया जाए। यह चिट्ठी खुद को चर्चा में लाने की कोशिश के अलावा कुछ नहीं लगती। कुछ लोगों का दावा है कि यह टिकट के लिए दावेदारी का एक तरीका है। दरअसल, प्रधानमंत्री आवास के लिए छत्तीसगढ़ का निवासी होना और बीपीएल कार्डधारक होना जरूरी है। दोनों ही क्राइटेरिया में राहुल नहीं आते हैं। उन्होंने खुद कोई आवेदन भी नहीं दिया, जो जरूरी है। एक ने तो यह प्रतिक्रिया भी दी है कि देना है तो अपनी खुद की जमीन क्यों नहीं दे देते। सरकारी जमीन क्यों दिलाना चाहते हैं? एक दूसरी प्रतिक्रिया है कि गैस सिलेंडर का दाम 1200 रुपये कर दिया गया है। ऐसे ही जरूरी सवालों से ध्यान भटकाने के लिए इस तरह की बातें की जा रही है। जो भी हो, छत्तीसगढ़ भाजपा ने इस चिट्ठी को बड़ी गंभीरता से लिया है। अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल पर इसे उसने शेयर किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सीएम भूपेश बघेल की मुलाकात की तस्वीरों की मीम बनाकर भी डाली गई है, जिसमें बघेल मोदी से राहुल गांधी के लिए आवास मांग रहे हैं और मोदी कह रहे हैं-मिल जाएगा।