राजपथ - जनपथ
दिलचस्प नमकीन
बाजार के तौर-तरीके लोगों का ध्यान खींचने वाले रहते हैं। किसी शहर में ठग्गू के लड्डू नाम की दुकान रहती है जिसका नारा रहता है-ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं।
इस तरह के बहुत से अटपटे नाम लोगों का ध्यान खींचते हैं, कहीं पर टूटे दिलवाले प्रेमियों को रियायती चाय का रेट लगाया जाता है, तो कहीं कुछ और। अब उत्तर भारत से तले हुए नमकीन के कुछ नए ब्रांड एक पत्रकार पंकज ने पोस्ट किए हैं। इनमें से एक सास-बहू का झगड़ा है, और दूसरा भौजी नखरे वाली। अब अगर यही सिलसिला चलते रहा, और भोजपुरी फिल्मों के नामों पर नमकीन बनने लगे, तो फिर वे सिर्फ वयस्कों के काम के रह जाएंगे, और शाम को चखने के लिए काम आएंगे।
गैरकानूनी धंधे
राजधानी रायपुर प्रदेश का सबसे महंगा शहर है, और यह तरह-तरह के भूमाफिया, कंस्ट्रक्शनमाफिया, के निशाने पर रहता है। यहां पर अपनी अवैध कॉलोनी को कैसे वैध करवाया जाए, कैसे गैरकानूनी प्लाटिंग करवाई जाए और बेच दी जाए, किस तरह अपनी कॉलोनी को गैरकानूनी तरीके से किसी सडक़ से जोड़ दिया जाए, यह तिकड़म यहां चलती ही रहती है। अभी शहर के एक सबसे व्यस्त इलाके, नहरपारा में चार दुकानें टूटनी थीं, लेकिन वहां के व्यापारियों ने चंदा करके गैरकानूनी तरीके से तीन दुकानों को बचा लिया, और एक दुकान को तोडक़र सडक़ चौड़ी करने का एक झांसा भी दे दिया। अब पूरी तरह से गैरकानूनी ऐसे समझौते के बाद वहां पर सडक़ की चौड़ाई में धड़ल्ले से पक्का निर्माण भी शुरू हो गया है। म्युनिसिपल में कोई है जो कि ऐसे समझौते और ऐसे निर्माण की जांच कर सके, और यह बता सके कि इस पूरे गोरखधंधे का कौन सा काम कानूनी है, और कौन सा गैरकानूनी?
शहर की एक सबसे महंगी कॉलोनी को किस तरह एक्सप्रेस हाईवे से जोड़ा जा सकता है इसके लिए संघर्ष कहें या तिकड़म, बरसों से जारी हैं, और इस बीच एक दूसरे बड़े कारोबारी ने अपनी कॉलोनी का रास्ता निकलवा लिया। पैसा हो तो दुनिया में क्या नहीं हो सकता है? इस महंगे शहर में कौन सा काम एक नंबर का होता है, और कौन सा दो नंबर का यह तय करने वाले अफसर भी करोड़पति होते-होते अरबपति हो गए हैं।
आखिर कब तक
भाजपा के आज के विधानसभा घेराव के दौरान विधानसभा के भीतर ऐसा क्या किया जाए जिससे कि बाहर तक माहौल बन जाए, इस बात पर पार्टी के भीतर कुछ असहमति रही। नतीजा यह निकला कि अधिक आक्रामक कल्पनाएं किनारे रख दी गईं, और तनातनी उस हद तक न ले जाना तय किया गया। अब खैर, चुनाव कुछ महीनों के बाद ही हैं, ऐसे में समझदारी और शांति की मां कब तक खैर मनाएंगी। फिर यह भी है कि जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहा है, दोनों बड़ी पार्टियों के बीच लड़ाई में कुछ अदृश्य ताकतें भी मददगार साबित हो रही हैं। हर पार्टी के भीतर असंतुष्ट और बेचैन लोग रहते हैं, वे दूसरी पार्टी के नेताओं तक अपने लोगों की कुछ कमजोरियां भी पहुंचाते रहते हैं। ऐसे हथियारों से लैस होकर नेता, विपक्षी नेताओं पर निशाना साधते रहते हैं।
ईमानदार अफसर का रेट
प्रदेश में जगह जगह से डीएमएफ राशि के दुरुपयोग की खबरें मिलती रहती हैं।? इसके बावजूद कि इस राशि पर जनप्रतिनिधियों की समिति का थोड़ा नियंत्रण है। एक दूसरा वन विभाग है जहां करोड़ों का घोटाला होता है और लोगों को हवा भी नहीं लगती। अफसरों के पास कैंपा मद, रोजगार गारंटी योजना और वन सुरक्षा समितियों का बेहिसाब फंड होता है। जंगलों में क्या हो रहा है और क्या नहीं, इसकी जानकारी लोगों तक पहुंचती ही नहीं। अभी कुछ दिन पहले ही मरवाही वन मंडल के गंगनई गांव में फर्जी वन समिति बनाकर करीब 7 करोड़ के गबन की जांच हो गई। विधानसभा में यह मामला उठा था। जांच के बाद दो रेंजर और नीचे के तीन कर्मचारी निलंबित किए गए थे।? कर्मचारियों ने मोर्चा खोल दिया और कहा कि गड़बड़ी अफसरों ने की है और सजा हमको दी जा रही है। डीएफओ वगैरह तो साफ बच गए हैं। अभी इस बात का विवाद सुलझा ही नहीं है कि एक ऑडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें कथित रूप से मरवाही वनमंडल दो कर्मचारियों के बीच बातचीत हो रही है। 12 मिनट से अधिक लंबे वार्तालाप का निष्कर्ष यही है कि पुराने वाले डीएफओ के बारे में तो सब जानते थे कि कितना खाते थे, पर अब जो नए आए हैं वह उनसे भी ज्यादा 22 प्रतिशत की मांग कर रहे हैं, जबकि इमेज ऐसी बना रखी है कि एक रुपया नहीं लेते। एसडीओ को 5 परसेंट देना पड़ता है, बाबू लोग भी 3 परसेंट खा जाते हैं। अब 30 परसेंट ऐसे ही बंट जाएगा, तो हम लोग क्या बचाएंगे और क्या काम कर पाएंगे? इसमें और भी लंबी चर्चा है जिसमें यह साफ होता है कि अफसरों ने सामान सप्लाई के बिना ही लाखों रुपए के चेक काट दिए। नीचे के लोगों को कोई हिस्सा भी नहीं मिला। इधर, जो लोग ठीक तरह से काम करा रहे हैं उन्हें परेशान किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर वायरल हो गए ऑडियो की पुष्टि करना तो मुश्किल हो जाता है कि यह कितना सही है, लेकिन यह साफ है कि बात करने वाले लोग वन विभाग के फंड की बंदरबांट के बारे में गहरी जानकारी रखते हैं। इस पूरी बातचीत में मरवाही वन मंडल के ऊपर से लेकर के नीचे तक के अधिकारियों के नाम है। कोई चाहे तो इस मुद्दे को सकता है। असर भी करेगा क्योंकि विधानसभा का सत्र चल रहा है।
घोटाले की खबरों के बीच
बिजली और आवागमन की सुविधाओं से वंचित जंगल और पहाड़ों के बीच बसे गांवों में शुद्ध पेयजल पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है। केंद्र और राज्य सरकार मिलकर समय एक बड़ी योजना जल जीवन मिशन पर काम कर रही हैं, जिसके तहत प्रत्येक गांव के हर एक घर तक नल कनेक्शन देकर पानी पहुंचाना है। पर, इस योजना में छत्तीसगढ़ काफी पिछड़ गया है। इस वर्ष के अंत तक यह योजना पूरी हो जानी चाहिए थी, लेकिन अब तक सिर्फ 23 फ़ीसदी उपलब्धि हासिल हो पाई है। अब एक साल और आगे बढ़ा दिया गया है। काम धीमा चला लेकिन पीएचई के अफसरों ने भ्रष्टाचार बड़ी तेजी से किया। जांच भी हुई है, कई अफसर निलंबित हुए। दर्जनभर ठेकेदार ब्लैक लिस्टेड भी किए गए। विधानसभा? के इसी सत्र में इस मामले को लेकर खूब हंगामा मचा था। अब पूरे प्रदेश में हुई गड़बडिय़ों की जांच हो रही है।
पर, कहीं-कहीं इस योजना के चलते आए बदलाव की झलक भी मिल रही है। यह तस्वीर बस्तर के एक गांव की है, जहां बिजली लाइन नहीं पहुंची है। यहां क्रेडा ने सौर ऊर्जा इकाई खड़ी की। इसके चलते पेयजल टंकी का निर्माण हो गया है और घरों तक साफ पानी पहुंच रहा है। इन्हें दूर के डबरी, नाले जैसे स्रोतों से भी पानी ढोकर लाना पड़ता था। हैंड पंप भी खराब हो जाते थे या फिर उसमें से साफ पानी नहीं निकलता था। इस तस्वीर से लगता है कि यदि सरकारों के फंड का 50-60 प्रतिशत भी ठीक ढंग से खर्च कर दिया जाए तो काम दिखने लगता है। मुश्किल तब होती है जब पूरे कुएं में भांग घोल दी जाती है।
यूट्यूबर युवाओं का गांव
यूट्यूब चैनल केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि जानकारियों का भी भंडार है। यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो लाखों युवाओं को अपनी रचनात्मकता सामने लाने का मौका देता है, साथ ही आमदनी का रास्ता भी सुझाता है। राजधानी रायपुर के करीब स्थित 4000 की आबादी वाले तुलसी गांव में यूट्यूब के जरिए आया बदलाव देखने लायक है। इस गांव में करीब हर एक घर का कोई न कोई युवा यूट्यूब बनाता है या बनाने वालों की टीम में शामिल है। एक तरह से यह गांव यूट्यूबर युवाओं का हब बन चुका है। वैसे छोटे बच्चे से लेकर वृद्ध तक किसी न किसी भूमिका में आते रहते हैं। वे मनोरंजक तरीके से अनेक सामाजिक मुद्दों को इसके जरिए उठा रहे हैं, वह भी छत्तीसगढ़ी में। इनके बीच आपको कई लेखक, स्क्रिप्ट राइटर, कॉमेडियन, म्यूजिशियंस, सिंगर और गीतकार मिलेंगे। यूट्यूब चैनल को ज्यादा से ज्यादा हिट्स और फीडबैक मिले इसके लिए वे अपने वीडियो का लिंक फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम आदि पर भी शेयर कर रहे हैं। टिक टॉक और रील्स भी बना रहे हैं। इनमें कुछ युवा कहीं प्राइवेट जॉब कर रहे हैं कुछ एमएससी और इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर बेरोजगार हैं। एक युवा औसत में सारे खर्चे काटकर 10-12 हजार रुपये कमाई कर रहा है। कुछ की कमाई इससे भी ज्यादा है।
यह हैरानी की बात है कि छत्तीसगढ़ सरकार बॉलीवुड कलाकारों की फिल्मों और वेब सीरीज के लिए तो तमाम तरह की छूट और सुविधाएं दे रही है लेकिन ऐसे स्थानीय मेहनती कलाकारों की तरफ उसका ध्यान नहीं गया है।