राजपथ - जनपथ

दांव पर लगा बहुत कुछ
बीस साल बाद एक बार फिर कांग्रेस, और भाजपा के नेताओं ने आगामी विधानसभा चुनाव नतीजे को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना दिया है। उन्होंने अपनी मूंछ, और बाल भी दांव में लगा दिए हैं। भाजपा की सभा में रामविचार नेताम ने यह घोषणा की, कि प्रदेश में भूपेश सरकार के हटने पर ही नंद कुमार साय बाल कटवाएंगे, तो खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने जवाब देने में देरी नहीं की। उन्होंने कह दिया कि भूपेश सरकार रिपीट नहीं हुई, तो वो मूंछ मुड़वा लेंगे।
कुछ इसी तरह चुनौती छत्तीसगढ़ राज्य के पहले विधानसभा चुनाव के ठीक पहले तत्कालीन केंद्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव ने दी थी, और उन्होंने कहा था कि यदि भाजपा की सरकार नहीं बनती, तो वो मूंछ मुड़वा लेंगे। जूदेव सही साबित हुए, और उनकी मूंछ बच गई। अब उनके छोटे बेटे प्रबल प्रताप सिंह भी मूंछ, और बाल की लड़ाई में कूद गए हैं। उन्होंने खुद तो कुछ दांव नहीं लगाया, लेकिन उन्होंने साय का समर्थन देते हुए फेसबुक पर लिखा है कि सरगुजा की जिम्मेदारी हमारी है, अबकी मंूछ उतारने की तैयारी है। अब साय बाल कटवा पाते हैं, या फिर भगत मूंछ पर तांव देते रहेंगे, यह तो विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
अब फिर एसपी की बारी
विधानसभा सत्र निपटने के बाद पुलिस मेें एक बड़ा फेरबदल हो सकता है। इस कड़ी में कम से कम तीन जिलों के एसपी बदले जा सकते हैं। चर्चा है कि एक-दो जिलों में एसपी से स्थानीय कांग्रेस के नेताओं, और विधायकों की बन नहीं रही है। इसको लेकर शिकायतें भी हुई है। इन शिकायतों पर गौर किया जा रहा है। शिकायतें गलत निकली, तो संबंधित एसपी को अपेक्षाकृत अच्छी पोस्टिंग भी मिल सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
चुनावी साल में पुलिस का संयम
एक साल के भीतर यह दूसरा मौका है, जब राजधानी की पुलिस ने हजारों की भीड़ के प्रदर्शन के दौरान बल प्रयोग में संयम का परिचय दिया। भाजपा ने 15 मार्च को ‘मोर आवास, मोर अधिकार’ के लिए कल विधानसभा घेराव का कार्यक्रम रखा था। इस दौरान यह जरूर हुआ कि लिए पुलिस ने स्मोक बम फेंका, जिससे दो भाजपा कार्यकर्ता भागते हुए जख्मी हो गए। मगर यह स्थिति तब आई, जब एक के बाद एक बैरिकेड तोडक़र प्रदर्शनकारियों का समूह पुलिस को धक्का देते हुए आगे बढ़ रहा था। कुछ भाजपा कार्यकर्ता टीन की बड़ी-बड़ी शीट को उखाडक़र आगे जाने की कोशिश में भी घायल हुए। लोहे की चादर नए थे और उसके किनारे नुकीले थे। पुलिस लगातार आक्रामक जवाबी कार्रवाई से बचती रही। इसके चलते करीब डेढ़ दर्जन पुलिस वाले भी जख्मी हो गए हैं। यह संख्या शायद घायल भाजपा कार्यकर्ताओं से अधिक है। इसके अलावा आंदोलन में भाग लेने वालों के खिलाफ कार्रवाई भी मामूली थी। 80 लोगों की गिरफ्तारी की गई और बाद में उन्हें छोड़ भी दिया गया।
बीते साल अगस्त महीने में बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भारतीय जनता युवा मोर्चा ने मुख्यमंत्री निवास घेरने का कार्यक्रम रखा था। उस वक्त भी करीब ढाई हजार पुलिस जवान तैनात किए गए थे। तब भी कार्यकर्ताओं के साथ पुलिस की झड़प हुई और बल प्रयोग की नौबत कई बार आई। इस दौरान भी 15 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए। कार्यक्रम में भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या भी आए थे। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के एक छोटे समूह को मुख्यमंत्री निवास के गेट तक पहुंचने की इजाजत देकर स्थिति बिगडऩे से बचाई। इसके बाद आंदोलन समाप्त हो गया।
याद करें, छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद कांग्रेस सरकार बनी थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय अजीत जोगी के आला पुलिस अफसरों ने प्रदर्शन कर रहे भाजपा नेताओं पर लाठियां बरसा दी। नंदकुमार साय और स्व. लखीराम अग्रवाल जैसे अनेक वरिष्ठ नेता घायल होकर अस्पताल पहुंच गए। इस कार्रवाई से कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ और जिसका परिणाम सन् 2003 के चुनाव में दिखा।
सन 2023 के चुनाव के मद्देनजर बीजेपी इस तरह के और भी आंदोलन करेगी और यह उसका अधिकार भी है। बस, कांग्रेस की सरकार समझदारी से काम लेते दिख रही है। वह कोशिश कर रही है कि भीड़ को काबू में करने के लिए बल का प्रयोग इस तरह से ना किया जाए की बाकी बातें पीछे रह जाए और वही चुनाव का एक मुद्दा बन जाए।
कर्मा के नाम यूनिवर्सिटी का विरोध
बीते साल नवंबर महीने में कैबिनेट की बैठक में तय किया गया कि बस्तर विश्वविद्यालय शहीद महेंद्र कर्मा के नाम पर जाना जाएगा। स्वर्गीय कर्मा उन 29 कांग्रेसी नेताओं में से एक बड़ा नाम थे, जिन्हें 25 मई 2013 को परिवर्तन रैली के दौरान झीरम घाटी के माओवादी हमले में जान गंवानी पड़ी थी। नक्सल उन्मूलन के लिए तैयार किए गए सलवा जुडूम, जिसका अनेक मानव अधिकार संगठनों ने विरोध किया, को भी कर्मा का समर्थन था। वे नेता प्रतिपक्ष रहे और उसके पहले जोगी सरकार में वाणिज्य मंत्री थे।
इधर कल भैरमगढ़ में सैकड़ों आदिवासी एकत्र हुए। उनकी कई मांगों में से एक यह भी थी कि बस्तर विश्वविद्यालय को महेंद्र कर्मा का नाम ना दिया जाए। इनका कहना है कि नाम यथावत बस्तर विश्वविद्यालय ही रहे। इस आशय का ज्ञापन उन्होंने कलेक्टर के नाम पर सौंपा भी है। यह साफ नहीं है स्वर्गीय कर्मा के नाम से आपत्ति क्यों है? इस सवाल का जवाब आना इसलिए ज्यादा जरूरी है क्योंकि वे नक्सलियों के हाथों मारे गए थे। ([email protected])