राजपथ - जनपथ

ईडी का असर
मनी लॉन्ड्रिंग केस में ईडी की कार्रवाई आहिस्ते-आहिस्ते चल रही है। विरोध-प्रदर्शन के बाद भी नेता, और अफसर ईडी की खौफ से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं।
एक सरकारी संस्थान में कुछ महीने पहले ईडी ने कार्रवाई की थी, और संस्थान के मुखिया के खिलाफ केस दर्ज किया था। अब संस्थान में मुखिया तो बदल चुके हैं, लेकिन कामकाज को लेकर अफसरों में डर बरकरार है।
सुनते हैं कि संस्थान के नए मुखिया ने आते ही वित्तीय पॉवर भी अधीनस्थ अफसरों को डेलीगेट कर दिए हैं। फाइलों पर दस्तखत करने में काफी आनाकानी कर रहे हैं। मुखिया के पास दो और संस्थानों के प्रभार भी हैं। वो बाकी संस्थानों में रूचि तो लेते हैं, लेकिन जहां ईडी आ चुकी है वहां के अफसरों को देखते ही परेशान हो जाते हैं।
ऐसा नहीं है कि मुखिया की साख बहुत अच्छी है, वो जहां भी रहे, वहां जमकर बल्लेबाजी की थी। चूंकि जिस संस्थान में ईडी की नजर है, वहां से दूरी बनाए रखने में ही उन्हें समझदारी नजर आ रही है। मगर इससे मातहत तो परेशान हैं ही, कामकाज पर भी असर पड़ रहा है।
एक किस्म से डायबिटीज
आय से अधिक संपत्ति केस में घिरे रमन सिंह के पूर्व पीएस अमन सिंह से ईओडब्ल्यू पूछताछ कर चुकी है। उनके भाई का भी बयान ले चुकी है। अभी तक तो कोई नई बात छनकर बाहर नहीं आई है। अलबत्ता, सोमवार को अमन सिंह की अग्रिम जमानत याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हो सकती है। जिला अदालत में उनकी याचिका खारिज हो गई थी।
दूसरी तरफ, आय से अधिक संपत्ति के मामले में पहले के प्रकरणों में ईओडब्ल्यू की जांच को देखा जाए, तो कई अफसरों को क्लीन चिट मिल चुकी है। ईओडब्ल्यू ने प्रकरण के खात्मे के लिए लिख भी दिया है, लेकिन अदालत से खात्मा नहीं हो पाया है।
ईओडब्ल्यू-एसीबी की जांच के घेरे में आए कई तो दिवंगत भी हो चुके हैं। लेकिन जब भी कोई सूची जारी होती है, तो उनका नाम आ ही जाता है। कुल मिलाकर ईओडब्ल्यू-एसीबी में दर्ज प्रकरणों को देखकर कई जानकार लोग हंसी मजाक में तुलना शुगर की बीमारी से भी करते हैं। जिसे नियंत्रित तो किया जा सकता है, लेकिन पूरी तरह खत्म करना मुश्किल है।
गरीब महिलाओं पर कर्ज का बोझ
जशपुरनगर और मनोरा इलाके में महिलाओं को प्रशिक्षण और रोजगार देने के नाम पर महिला स्व-सहायता समूह को प्रशिक्षण दिया गया। महिलाओं को सरकारी विभागों में काम का ऑर्डर दिलाने के नाम पर लाखों रुपये का कर्ज दिलाया गया, पर कर्ज की रकम प्रशिक्षण देने वालों ने महिलाओं के खाते में जमा नहीं कर खुद अपने पास रख लिए और फिर फरार हो गए। महिलाओं ने एफआईआर कराई, पुलिस ने ढूंढकर आरोपी महिला को गिरफ्तार कर लिया और उसे जेल भी भेज दिया है। पर अब बैंक, महिलाओं और स्व-सहायता समूहों पर दबाव रहे हैं कि वे कर्ज चुकाए। वह कर्ज जो उनके हाथ में आया ही नहीं। स्व-सहायता समूहों में प्राय: वे महिलाएं होती हैं जो रोजी-मजदूरी करती हैं और अतिरिक्त आमदनी के लिए समूहों से जुड़ जाती हैं। बैंकों के दबाव के चलते वे घोर संकट में फंस गए हैं। अपना घर चलाएं या कर्ज चुकाएं। ऐसे बहुत से मामले आते होते हैं जिनमें बैंकों की मिलीभगत से ही फर्जी कर्ज दिए जाते हैं। बैंक ने जब कर्ज दिया तो सीधे महिलाओं और स्व-सहायता समूहों के खाते में रकम नहीं डाली बल्कि उनके नाम पर चेक या कैश रकम जारी कर दी और ठगी का रास्ता यहीं से खुला। बैंक ने यह सुनिश्चित करना जरूरी नहीं समझा कि कर्ज की रकम महिलाओं के खाते में सीधे जाए और कोई बिचौलिया उसके बीच नहीं आए। यह तो स्व सहायता समूहों का मामला है जिसमें महिलाओं पर लाख-दो-लाख रुपये का कर्ज चढ़ा है। पर 30-40 लाख रुपये के होम लोन में भी छत्तीसगढ़ में इस तरह का फर्जीवाड़ा हो रहा है। पुलिस भी इस तरह की जालसाजी के मामलों में जल्दी बैंक के जिम्मेदार बाबू-अधिकारियों पर हाथ नहीं डालती। जशपुर के मामले में पीडि़त महिलाओं की संख्या 2-4 नहीं हैं बल्कि सैकड़ों है। उन्होंने कल कलेक्टोरेट में प्रदर्शन कर कर्ज माफी की मांग की, पर शायद ही ऐसा हो। इन महिलाओं को कुछ राहत मिलने की उम्मीद तभी है जब पुलिस और प्रशासन बैंक अधिकारियों पर भी शिकंजा कसे। आरबीआई से शिकायत करने का रास्ता भी है।
शाह के पहले नक्सलियों की रैली
सीआरपीएफ का स्थापना दिवस पहले दिल्ली मुख्यालय में ही मनाया जाता था, पर अब देश के अलग-अलग हिस्सों में यह कार्यक्रम होता है। 25 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इसी सिलसिले में बस्तर आ रहे हैं। दौरा कार्यक्रम जारी होते ही पूरे बस्तर में सुरक्षा बल अलर्ट मोड पर है। शाह ने कहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव से पहले बस्तर से नक्सलवाद का पूरी तरह खात्मा कर दिया जाएगा। इसका अर्थ नक्सली यह अनुमान लगा रहे हैं कि शाह के जाते ही सुरक्षा बलों की कार्रवाई और तेज होगी। जाहिर तौर पर सुरक्षा बलों की कोशिश होती है कि नक्सलियों को स्थानीय आदिवासियों से अलग-थलग किया जाए। नक्सल उन्मूलन में इसी से सफलता मिलेगी, लेकिन शनिवार को सुकमा में निकली रैली एक नए खतरे का संकेत है। हजारों ग्रामीणों ने शाह के दौरे के विरोध में प्रदर्शन किया। इस रैली में ग्रामीण तो थे ही, पर बड़ी संख्या में ऑटोमैटिक गन और दूसरे हथियारों से लैस नक्सली भी इसमें शामिल थे। वे ड्रोन हमले, हवाई बमबारी तथा सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ाने का भी विरोध कर रहे थे। हर बार लगता है कि सरकार नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लडऩे जा रही है। अब जब शाह ने ‘खात्मे’ की समय सीमा तय कर दी है तो देखना है कि उनके दौरे के बाद बस्तर की हालत में कितना सुधार आता है।
बस्तर में कश्मीर सा नजारा
कल प्रदेशभर में मौसम अचानक बदला। कई जगह बारिश के साथ ओले भी गिरे। फसल को कहीं नुकसान भी हुआ है, पर गर्मी की बढ़ती रफ्तार पर थोड़ी रोक भी लगी। जगदलपुर शहर के बाहरी इलाके की एक तस्वीर।